राजस्थान की प्रमुख लोकदेविया : जीण माता , करणी माता , जमुवाय माता , चामुंडा माता इत्यादि Topik-4
राजस्थान की लोक देवियां भाग में हम करणी माता ( देशनोक ) , जमुवाय माता , चामुंडा माता , नागणेची , अर्बुदा माता , विरात्रा माता , शिला देवी , कैवाय माता ,तनोट माता , जिण माता , केला देवी , बिलाडा माता , सारिका माता इत्यादि का अध्ययन करेंगे , इन सभी माताओ के बारे में विस्तृत जानकारी निम्न प्रकार है ———-
.
.
.
.
1 करणी माता ————-
- .
- जन्म ——
- 1387 ई. / 1444 विक्रम संवत
- सुवाप गाँव ( जोधपुर )
- पिता ——मेहाजी
- जाती —— चारण
- कीनिया शाखा में
- बचपन का नाम ——रिद्धी बाई / रिद्धु बाई
- इन्होने बचपन में अपनी बुआजी को चमत्कार दिखाए इस कारण यह देवी करनी माता कहलाई
- बुआजी की विकलांगता , सर्पदंश एवं गुगापन का निवारण किया
- करनी माता का विवाह देपजी चारण के साथ हुआ लेकिन माता वैवाहिक जीवन नही बिताना चाहती थी
- करनी माता ने अपनी छोटी बहन गुलाब कंवर का विवाह देपाजी के साथ करा दिया
- देपजी व गुलाब कंवर के पुत्र लक्ष्मण हुआ जिसको करनी माता ने गोद लिया
- सावन पूर्णिमा के दिन लक्ष्मण की मृत्यू कोलायत झील में डूबने से हुई
- अत: चारण जाती के लोग सावन पूर्णिमा को रक्षाबन्धन नही मनाते और कोलायत झील में स्नान नही करते
- 1459 ई. को मेहरानगढ़ दुर्ग की नीव रखी गयी
- राव बिका ने करनी माता के आशीर्वाद से 1465 ई. में कोडमदेसर नामक स्थान पर बीकानेर राज्य की स्थापना की
- एवं 1488 में आखातीज के दिन राती-घाटी नामक स्थान पर बीकानेर शहर की स्थापना की
- करनी माता का प्रारम्भिक पूजा स्थल बीकानेर में है जो नेहडी कहलाता है जल व्रक्ष के निचे स्थित है
- 151 वर्ष की आयु में करनी माता ने 1538 ई. में धिनेरू की तलाई नामक स्थान पर दियात्रा गाँव ( बीकानेर ) में अपने प्राणों का त्याग किया
- करनी माता की गुफा ———दियात्रा गाँव ( बीकानेर )
- प्रतीक चिन्ह —————– सफेद चील
- गीत ———————— चिरजा
- उपनाम ——————— चूहों की देवी , ओला क्रषि की रक्षक देवी
- मन्दिर ———————-
- देशनोक , बीकानेर
- निर्माण ——–
- निर्माण शुरू ——— राव बिका ने किया
- निर्माण पूर्ण ———- सूरतसिंह ने करवाया
- आधुनिक निर्माता —– गंगासिंह
- मन्दिर में सफेद चूहों को काबा कहा जाता है
- मन्दिर की आकृति ——– उलटे कटोरे के समान है
- मन्दिर में आरती 2 प्रकार की होती है ——
- घडाऊ—–संकटकालीन
- संधाऊ —–साधारण समय में
- मेला —–वर्ष में 2 बार नवरात्रा पर
- चेत्र नवरात्रा
- आश्विन नवरात्रा
- सेवको / चेननी चेरी का मेला
- करनी माता की आराध्य देवी ——-तेम्डा ताई थी
- बीकानेर के राठोड वंश की आराध्य देवी
- करनी माता चारण जाती की कुलदेवी
- करनी माता के मन्दिर को मठ कहा जाता है
- जन्म ——
- नागणेची माता ————–
- राठोड वंश की कुलदेवी
- मारवाड़ के शासक राव धुवड , चक्रेश्वरी माता की काष्ठ की 18 भुजाओ वाली मूर्ति कर्नाटक नगाना गाँव ( बाड़मेर ) में लेकर आये
- नगाना गाँव में स्थापित होने के कारण इसे नागणेची माता कहा गया
- राजस्थान की एकमात्र लोकदेवी जिसकी मूर्ति काष्ट की है
- उपनाम ———-
- चक्रेश्वरी माता
- राठेशवरी माता
- परविनी माता
- देवी का मन्दिर नीम व्रक्ष के निचे स्थित होता हें
- देवी के अनुयायी नाग व नीम को पवित्र मानते हें
- मेला ——–वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र नवरात्रा
- आश्विन नवरात्रा
- नागनेची माता के अन्य मन्दिर ——–
- मेहरानगढ़ दुर्ग में —-राव बिका ने बनवाया
- जूनागढ़ दुर्ग में ——-राव बिका ने बनवाया
- वीरातारा माता / विरात्रा माता ———-
- चोहठन ( बाड़मेर )
- यह भोपो की कुलदेवी है
- यंहा राजस्थान का 5वा रोप-वे ( उड़न-खटोरा ) प्रस्तावित
- मेला ———वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र नवरात्र
- आश्विन नवरात्रा
- अर्बुदा माता / अधर माता ———–
- माउन्ट आबू ( सिरोही )
- दूर से देखने पर ऐसा लगता हें की इस देवी की मूर्ति भूमि से स्पर्श नही करती हें अत इसे अधर माता कहा गया
- मेला ——— वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र पूर्णिमा
- आश्विन पूर्णिमा
- शिला देवी ———–
- कछवाह राजवंश की आराध्य देवी
- आमेर (जयपुर )
- देवी को कलि का रूप मन जाता है
- देवी को ढाई प्याले शराब चढाई जाती है जिसे चरनामृत कहा जाता है
- मन्दिर ——–
- आमेर दुर्ग में
- आमेर के शासक मानसिंह प्रथम ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया
- बंगाल अभियान के दोरान ढाका के शासक केदार कायल ने इस मूर्ति को मिर्जा राजा मानसिंह प्रथम को दहेज में दिया
- यंहा अष्टभुजा प्रतिमा है
- इसे अन्नपूर्ण देवी भी कहा जाता है
- मेला ——-वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र नवरात्र को
- अश्विन नवरात्र को
- जमुवाय माता ———–
- कछवाह वंश की कुलदेवी
- मन्दिर —–जमुवा रामगढ़
- निर्माण ——-
- 1137 ई
- दुल्हेराय / तेजकरण / धोलेराय ने करवाया
- यंहा प्राचीन काल में गुलाब की खेती होती थी अत इसे ढूढाड का पुष्कर भी कहा जाता है
- निर्माण ——-
- उपनाम ——-
- बूढवाय माता
- अन्नपूर्ण माता
- मेला ——– वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र नवरात्रा
- आश्विन नवरात्रा
- चामुंडा माता ————–
- प्रतिहार वंश की कुलदेवी
- मारवाड़ के राठोड वंश की आराध्य देवी
- राजस्थान में चामुण्डा माता का सबसे बड़ा मन्दिर मेहरानगढ़ दुर्ग में है जिसका निर्माण राव जोधा ने करवाया
- चामुण्डा माता के अन्य मन्दिर ——
- तारागढ़ की तलहटी में , अजमेर
- 1857 ई में इस मन्दिर पर बिजली गिर गयी तब इस मन्दिर का पुनर्निर्माण महाराजा तख्तसिंह ने करवाया
- मेहरानगढ़ दुख्न्तिका———
- 30 सितम्बर 2008 में भगदड़ मचने से इस मन्दिर में हादसा हुआ
- 216 लोगो की मृत्यू हुई
- आश्विन मास के नवरात्र के दिन
- जिसकी जाँच डॉ जसराज चोपड़ा समिति ने की
- जसराज चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट 2019में राज्य सरकार को सोपी
- मेला ——–वर्ष में 2 बार भरता है
- चेत्र नवरात्र
- आश्विन नवरात्रा
- शीतला माता ———–
- उपनाम ——
- चेचक वाली माता
- माता मावडी
- महामायी माता
- बच्चो की सरंक्षक देवी
- सेढ्ल माता
- माई अनामा
- कुम्हार जाती की कुलदेवी
- राजस्थान की एकमात्र लोकदेवी जिसकी खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती है
- गाँवो में महिलाये खेजड़ी को शीतला माता मानकर पूजते है
- मन्दिर ———
- शील डूंगरी ( चाकसू -जयपुर )
- निर्माण —–सवाई माधोसिंह
- शीतला माता का वाहन —–गधा
- प्रतीक चिन्ह ——-जलता हुआ दीपक / मिटटी का बर्तन
- मन्दिर का पुजारी ———-कुम्हार कहलाता
- मेला ——–शीतला अष्टमी ( चेत्र कृष्ण 8 )
- शीतला अष्टमी के दिन गर्म भोजन नही बनाया जाता है बल्कि एक दिन पहले बना भोजन किया जाता है जिसे बास्योड़ा कहा जाता है
- उपनाम ——
- तनोट माता—————
- लोंगिवाला ( तनोट ) , जेसलमेर
- उपनाम —————-
- थार की वैष्णो देवी
- रुमाल वाली देवी / रुमाली देवी
- B.S.F. के जवानों की आराध्य देवी
- मन्दिर ——–
- लोंगिवाला ( जेसलमेर )
- निर्माण ——
- 888 ई.
- तनुराव ने करवाया
- पुजारी ——B.S.F. के जवान
- भारत-पाक युद्ध में शक्ति का केंद्र यही देवी का मन्दिर था
- देवी के मन्दिर के पास वार म्यूजियम ( युद्ध संग्रहालय ) स्थापित है
- तनोट माता के मन्दिर के पास 1965 विजय की स्मृति में 2 विजय स्तम्भो का निर्माण
- थार की वैष्णोदेवी ———तनोट माता
- राजस्थान की वैष्णोदेवी —–अर्बुदा माता (माउन्ट आबू , सिरोही )
- वास्तविक वैष्णोदेवी ——–कटरा ( J. & k. )
- जीण माता —————–
- जन्म —— घांघू गाँव (चुरू)
- पिता ——– धान्धराय
- भाई ———-हर्ष ( भेरव का रूप )
- पूजा-स्थल —–आडावाला की पहाड़िया , रेवासा ( सीकर )
- बचपन का नाम —–जयंती / जेवण बाई
- जीण माता को दुर्गा का अवतार मन जाता है
- इन्हें मधुमक्खियो की देवी भी कहा जाता है
- मन्दिर ———-
- आडावाला की पहाड़िया , रेवासा
- निर्माण ——-हट्टड चोहान ने 1064 ई. में (प्रथ्विराज प्रथम के काल में )
- मन्दिर के पास में जोगी तलब स्थित है जंहा पांड्वो की आदमकद प्रतिमा स्थित है
- मन्दिर में ओरंगजेब ने सोने का छत्र चढाया
- ढाई प्याले शराब चढाई जाती जो वर्तमान में प्रतिबंधित है
- मेला ——– वर्ष में 2 बार
- चेत्र नवरात्रा
- आश्विन नवरात्रा
- जीण माता चोहानो की कुलदेवी
- 2003 में जय जीण नामक फिल्म बनी
- जीण माता को मीणा जनजाति की आराध्य देवी मन जाता है
- जीण माता का गीत ———–चिरंजा
- यह गीत सभी लोकदेवियो में सबसे लम्बा गीत है
- इस गीत को कनफटे जोगी गेट है
- कैलादेवी ———–
- त्रिकुट पर्वत ,करोली
- पिता ——–वासुदेव
- माता ——–जानकी
- उपनाम ——–
- अंजनी माता
- योगमाया
- यादवो की कुलदेवी / यदुवंश कुल की कुलदेवी
- मीणा व गुर्जर जाती की आराध्य देवी
- मन्दिर ———-
- कालिशील नदी के किनारे ,त्रिकुट पर्वत ,करोली
- निर्माण ——
- 1900 ई. में
- गोपालसिंह ने करवाया
- अष्ठभुजा प्रतिमा स्थित
- हाथो में शस्त्र है सिंह पर सवार है
- मन्दिर के सामने बोहरा भगत की छतरी है
- कैलादेवी का मेला ——-
- चेत्र शुक्ल 8 को
- राजस्थान का लक्की मेला
- मेले में लांगुरिया व जोगनिया गीत गाया जाता
- मेले में कडकदंडवत और घुटककन नृत्य किया जाता है
- आई माता / बिलाडा माता ———-
- आई माता का जन्म मालवा में हुआ
- पिता ———भिरवा ढाबी
- बचपन का नाम —-जीजी बाई
- मांडू सुल्तान के विवाह के डर से जोधपुर आई
- गुरु ———रामदेवजी / रेदासजी
- आँख रोग की निवारक देवी
- सीखी जाती की कुलदेवी जो पाली व जोधपुर में निवास करती है
- 11 डोरा / आई पंथ चलाया
- मन्दिर ———
- बिलाडा ( जोधपुर )
- मन्दिर में गुर्जर जाती के लोग प्रवेस नही करते
- आई माता के मन्दिर को दरगाह / थान या बडेर कहते है
- आई माता का मन्दिर नीम वृक्ष के निचे होता है
- पुजारी को दीवान कहते है
- आई माता के मन्दिर में अखण्ड दीपक जलता है जिसकी ज्योत से केसर टपकता है
- मेला ——— प्रति माह शुक्ल द्वितीय को लगता है
- आई माता को नवदुर्गा / मानी बाई का अवतार मन जाता है
- सारिका माता ————-
- बीकानेर , जोधपुर
- इसे उष्ट्रवाहिनी देवी कहते है
- राजस्थान की एकमात्र लोकदेवी जो ऊंट पर सवार है
- मधुमेह रोग की निवारक देवी
- पुष्करणा ब्रहामणों की कुलदेवी
- ईडाणा माता —————
- इडाणा गाँव , उदयपुर
- रावत जाती की कुलदेवी
- इडाणा माता के मन्दिर में अग्नि स्नान किया जाता है
- गीत ——–लोंगटा
- पुजारी ——–ईका रावत
- कुष्ठ रोग का निवारण और नेकरा रोग की निवारक देवी
- आयड माता / स्वांगिया माता ————-
- तेमडा भाखर , जेसलमेर
- उपनाम ——-
- तेमडा ताई माता
- तेमडाराइ
- आवड माता
- आयड माता
- स्वांगीया माता
- यह माता करनी माता की आराध्य देवी है
- इस देवी का दूसरा रूप शगुन चिड़िया / पालम चिड़िया का है
- प्रतीक चिन्ह ——–मुड़ा हुआ भाला / मुड़ा हुआ स्वांग
- जेसलमेर के भाटि राजवंश की कुलदेवी
- यह 7 चारण बहने थी और सभी देविया हो गयी
- ब्रह्माणी माता ————
- सोरसन गाँव ( बारा )
- विश्व में एकमात्र लोकदेवी है जिसकी पीठ / पश्च भाग की पूजा होती है
- इस मन्दिर को शेलाश्रय गुफा मन्दिर भी कहा जाता है
- गधो का मेला ———-माघ सुक्ल सप्तमी को भरता है 2 स्थान पर —-
- सोरसन ( बारा )
- लुनियावास ( जयपुर )
- दधिमती माता —————-
- गोठ मांगलोद ( नागोर )
- प्रतिहार कालीन महामारू शेली में निर्मित मन्दिर
- दाहिमा और दाधिची ब्रहामणों की कुलदेवी
- पुजारी ———-दायमा
- देवी का जमीन से अवतरण हुआ
- मन्दिर के पास विशाल जिप्सम की खान स्थित है
- 2019 में देवी के मन्दिर के पास जोधपुर शासक सुरसिंह के काल का शिलालेख प्राप्त हुआ
- कैवाय माता ————-
- कीणसरिया गाँव ( नागोर )
- उपनाम ———- कीणसरिया माता
- देवी के मन्दिर में काला व गोरा भेरव की 2 प्रतिमाये लगी हुई है
- मन्दिर का निर्माण ——-चच्चदेव ने करवाया
- दुर्लेभराज कालीन शिलालेख प्राप्त हुआ
- सुगाली माता ————–
- आउवा में
- आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत के परिवार की कुलदेवी
- 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों की आराध्य देवी
- इस मन्दिर में मा काली की प्रतिमा स्थित जिसके 10 सिर व 54 हाथ है
- त्रिपुरा सुन्दरी / तुरताई माता ————-
- तलवाडा ( बांसवाडा )
- पांचाल जाती की कुलदेवी
- तिन पुरो से सम्बन्ध ——–
- शक्तिपुर
- शिवपुर
- विष्णुपुर
- भुतपूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की आराध्य देवी
- मालवा , मेवाड़ , व गुजरात की सयुंक्त देवी
- शाकम्भरी माता ———–
- सांभर / शाकम्भरी ( जयपुर )
- मन्दिर निर्माण ——-वासुदेव चोहान
- अकाल में सब्जी उगाने के कारण यह देवी शाकम्भरी कहलाई
- शाकम्भरी चोहानो की कुलदेवी
- शाकम्भरी चोहान —— साम्भर , अजमेर , रणथम्भोर
- आशापुरा माता ———–
- मन्दिर ———नाडोल ( पाली )
- अन्य माता ——मोदरी माता
- सोनगरा चोहानो की कुलदेवी
- सोनगरा चोहान ——- नाडोल ,पाली , जालोर के चोहानो की कुलदेवी
- मदाणा माता ——-
- कोटा
- हाडा चोहानो की कुलदेवी
- हाडा चोहान ——कोटा , बूंदी , झालावाड के चोहान
- सकराय माता ——-
- उदयपुरवाटी ( झुंझनु )
- खंडेलवालो की कुलदेवी
- अकाल के दोरान पीडितो को साग-सब्जी , कंद-मूल , फल-फुल इत्यादि उपलब्ध करवाने के कारण शाकम्भरी कहलाई
- सच्चियाय माता ——-
- ओसिया ( जोधपुर )
- इसे राजस्थान का कोर्णार्क , ब्लेक पेगेडा व भुवनेश्वर कहा जाता है
- मन्दिर का निर्माण —— उपलदेव परमार ( वत्सराज प्रतिहार कालीन )
- ओसवाल व परमारों की कुलदेवी
- राजेशवरी माता ———
- लोहागढ़ दुर्ग ( भरतपुर )
- सिनसिनवार गोत्र ( जाट राजवंश ) की कुलदेवी
- ज्वाला माता ———
- जोबनेर ( जयपुर )
- खंगारोत वंश की कुलदेवी
- राणीसती माता ———
- झुंझुनू
- मूलनाम —–नारायणी देवी अग्रवाल
- उपनाम—–दादीजी एवं डोकरी भी कहते है
- पति ——-तन धन दास
- यह देवी अपने पति के साथ 1652 ई. में सती हो गयी थी इसलिए इनको रानिसती कहते है
- इनके पति तनधनदास की हत्या हिंसार के नवाब ने की थी
- अग्रवाल जाती की कुलदेवी
- मन्दिर —-शक्तिपीठ
- मेला ———
- सतिया अमावश्या को भरता है ( भाद्रपद अमावश्या )
- मेला 1987 में कुछ समय के लिए प्रतिबंधित किया गया था
- नारायणी माता ———
- मन्दिर ——–बरवा की डूंगरी ( अलवर )
- मूल स्थान —–मोरा गाँव ( जयपुर )
- मूल नाम —–करमेंती
- पति —-करमेंसी
- नाई जाती की कुलदेवी
- इनके पति का अंतिम संस्कार मीणा जाती के लोगो ने किया था
- मीणा व नाई जाती में नारायणी माता को लेकर विवाद है
- मेला——– वैशाख शुक्ल 11 को भरता है
- सुंधा माता / सुंडा माता ————–
- भीनमाल ( जालोर )
- 20 दिसम्बर 2006 को राजस्थान का प्रथम रोप-वे ( उडन-खटोरा ) स्थापित किया गया
- मन्दिर के पास राबडानाथ का धुना स्थित है
- यंहा नागिन तीर्थ स्थित है
- मेला —– नवरात्रा में भरता है
- हिंगलाज माता ———
- मूल मन्दिर ——पाकिस्तान में है
- राजस्थान में मन्दिर ——–जेसलमेर में है
- लोद्रवा ( जेसलमेर ) के चोहानो की कुलदेवी
- चांगली माई व चरम रोग की निवारक देवी
- पुजारी —–चांगला खांप ( मुस्लिम )
- मन्दिर में तेरहताली नृत्य आयोजित होता है
- हिंगलाज माता को ही अवतार आयड माता माना जाता है
राजस्थान की अन्य लोक-देवी ———–
लोक-देवी का नाम | विवरण |
---|---|
पंथवारी माता | किसी भी धार्मिक / तीर्थ यात्रा पर जाते समय पंथवारी देवी की पूजा की जाती है |
छींक माता | जयपुर |
छींछ माता | बांसवाडा |
नकटी माता | जयपुर |
लटीयाल माता | फलोदी में इनका मन्दिर खेजड़ी वृक्ष के निचे होने के कारण इन्हें खेजड़ीराय माता भी कहा जाता है |
साम्भ्रा माता | पंचपदरा लवणता की देवी |
आवरी माता | निकुम्भ ( चितोडगढ़ ) लकवे का ईलाज |
कुशाल माता | बदनोर ( भीलवाडा ) इनके मन्दिर का निर्माण बदनोर / बेराठ नगर विजय की ख़ुशी में राणा कुम्भा ने करवाया |
तुलजा भवानी मन्दिर | चितोडगढ़ निर्माण –बनवीर छत्रपति शिवाजी की आराध्य देवी |
आमजा माता | राजसमन्द भीलो की कुलदेवी |
विश्ववंती माता | उदयपुर भीलो की आराध्यदेवी |
चोथ माता | चोथ का बरवाडा ( सवाई माधोपुर ) कंजरो की आराध्य देवी / कुलदेवी |
नागोर | |
कोडिया देवी | सहरिया जनजाती की कुलदेवी |
बवाल / भवाल माता | नागोर |
उन्ठाला माता | वल्लभनगर ( उदयपुर ) |
बडली माता | आकोला ( चितोडगढ़ ) |
हल्दीघाटी ( राजसमन्द ) | |
बाण माता | केलवाडा ( राजसमन्द ) मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश की कुलदेवी मन्दिर —- चितोडगढ़ दुर्ग में |
घेवर माता | राजसमन्द झील की पाल पर मन्दिर ( राजसमन्द ) |
भद्रकाली माता | हनुमानगढ़ |
भदाणा माता | कोटा हाडाओ की कुलदेवी तांत्रिक सिध्पीठ |