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राजस्थान इतिहास

गुर्जर प्रतिहार वंश Topik-10

हरीशचंद्र को गुर्जर प्रतिहार वंश का मूल पुरुष / आदि पुरुष माना जाता है ,गुर्जर-प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ होता है – द्वारपाल / रक्षक , हरीशचंद्र के 2 विवाह हुए थे इनकी क्षत्रिय पत्नी भद्रा व ब्राहमण पत्नी थी , भद्रा के 4 पुत्र – कदक,दह,रज्जिल,भोगभट्ट थे ,राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारो की 2 शाखा थी – मंडोर शाखा व भीनमाल शाखा , 620 ई. में हरीशचंद्र ने मंडोर में गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना की थी आगे का इतिहास निम्नलिखित है ——

गुर्जर प्रतिहार वंश

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  • गुर्जर प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ होता है —-द्वारपाल /रक्षक
  • अरबी आक्रंताओ से सफलता पूर्वक सामना करने वाला प्रथम राजवंश
  • मुहणोत नेणसी ने प्रतिहारो की 26 शाखाओ का उल्लेख किया है
  • राजस्थान में गुर्जर प्रतिहारो की 2 शाखाए थी
    1. मंडोर शाखा ( प्राचीन )
    2. भीनमाल शाखा ( मुख्य )
  • R. C. मजुमदार ने प्रतिहारो को लक्ष्मण का वंशज बताया है
  • 14 वर्ष वनवास के समय लक्ष्मण जी ने रामजी के प्रतिहार के रूप में कार्य किया अत इनके वंशज प्रतिहार कहलाये
  • निम्नलिखित विद्वानों ने इन्हें विदेशियो की सन्तान बताया —–
  • जेम्स टॉड —–शको की सीथियन शाखा
  • स्मिथ ——— हूणों की शाखा
  • कनिघम —— कुसाणों की सन्तान

गुर्जर प्रतिहार वंश

  • घटियाला शिलालेख में हरिश्चन्द्र को गुर्जर प्रतिहार वंश का संस्थापक बताया है जिसे इस वंश का आदिपुरुष / मूलपुरुष कहा गया है
  • हरिशचन्द्र———-
    1. गुर्जर प्रतिहारो का मूल पुरुष / आदि पुरुष
    2. 620 ई. में मंडोर ( जोधपुर ) में गुर्जर प्रतिहार राजवंश की स्थापना की
    3. हरिशचन्द्र के 2 विवाह हुए थे ——
      1. क्षत्रिय महिला भद्रा ——
        • भद्रा के पुत्र ——
          1. कदक
          2. दह
          3. राज्जिल
          4. भोगभट्ट
      2. ब्रहामन महिला
  • मंडोर शाखा ( मांडव्यपुर ) ———
    1. रज्जिल ( 560 ई.)—————
      1. यह मंडोर शाखा का प्रथम शासक माना जाता है
      2. घटियाला शिलालेख के अनुसार यह हरिशचन्द्र और भद्रा (क्षत्रिय ) का पुत्र था
      3. भद्रा हरिशचन्द्र की क्षत्रिय रानी थी जिसके 4 पुत्र थे —-
        1. भोगभट्ट
        2. क्दद्क
        3. राज्जिल
        4. दह
      4. राज्जिल ने रोहिस कूप में महामंडलेशवर मन्दिर का निर्माण करवाया
      5. नरहरी इसका राजपुरोहित था
    2. नरभट्ट —————
      1. नरभट्ट ने पिल्लापणी की उपाधि धारण की जिसका अर्थ है गाय व ब्रहामन का रक्षक
      2. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने ग्रन्थ सी.यु.की. ( पश्चिमी देशो की यात्रा का वर्णन ) में नरभट्ट को पेल्लोपेल्ली कहा है जिसका अर्थ है — साहसिक कार्य करने वाला
    3. नागभट्ट —————
      • इसने मंडोर से मेड्न्त्कपुर ( मेड़ता , नागोर ) को अपनी राजधानी बनाया
    4. तात —————
      • तात सन्यासी बना
    5. भोज —————
    6. शिलुक —————
      1. इसने लोद्रवा के शासक देवराय भाटि को पराजीत किया
      2. और लोद्रवा को राजधानी बनाया
      3. सिद्धेश्वर महादेव मन्दिर का निर्माण करवाया
    7. झोट प्रतिहार —————
      1. यह वीणा बजाने में पारंगत था
      2. इसने गंगा में जीवित समाधि ली थी
      3. रावल जाती को सेनिक सेवा में नियुक्त किया
    8. कक्क —————
      1. यह व्याकरण और ज्योतिष विधा का ज्ञाता था
      2. इसने त्रिराज्य संघर्ष में वत्सराज का साथ दिया था
    9. बाउक —————
      • इसने मंडोर और रोहिसकूप नगर में विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया
    10. कक्कुक —————
      1. इसके काल में 861ई. में घटियाला शिलालेख की रचना की गयी
      2. इस शिलालेख में प्रतिहार वंश की स्थापना और प्रारम्भिक शासको का उल्लेख मिलता है
      3. उदयोतन सूरी ने कक्कुक को प्रतिहार वंश का कर्ण कहा है
    11. यशोवर्धन —————
      1. इसने लोक कल्याण के कार्य किये
      2. तथा गोऊ सेवा समिति की स्थापना की
    12. इन्दा प्रतिहार / इन्द्रजीत प्रतिहार —————
      1. 1395 ई.
      2. इसने राठोड वंश के राव चुडा से अपनी पुत्री का विवाह किया
      3. और इसे मंडोर का दुर्ग दहेज में दिया था
      4. इन्दा प्रतिहार ने चुडा के सामंत के रूप में कार्य किया
      5. इन्दा प्रतिहार मंडोर के प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था

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  • भीनमाल शाखा —————
    1. यह प्रतिहारो की सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली शाखा थी
    2. ह्वेनसांग ने अपने ग्रन्थ सी.यु.की. में भीनमाल को पिलो-भोलो कहा और प्रतिहार सम्राज्य को कुचेलो कहा
    3. घटियाला शिलालेख में भीनमाल शाखा के शासको को क्षत्रिय ब्रहामन कहा गया है
    4. ऐहोल प्रशस्ति , ग्वालियर अभिलेख तथा मिहिरभोज के सिक्को से भी इस वंश की जानकारी प्राप्त होती है
      1. नागभट्ट प्रथम ( 730 -60 ) —————
        1. इसे प्रतिहारो की भीनमाल शाखा का संस्थापक मन जाता है
        2. नागभट्ट प्रथम ने अपनी दो राजधानिय बनाई–
          1. मेड़ता ( नागोर )
          2. उज्जेन ( मध्यप्रदेश )
        3. नागभट्ट प्रथम ने चापड़ा शासको को पराजीत कर अपनी राजधानी भीनमाल ( जालोर )को बनाया
        4. और गुर्जर -प्रतिहारो की भीनमाल शाखा का प्रारम्भ किया
        5. नागभट्ट प्रथम को मलेच्छो का नाशक कहा गया है
        6. नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति में नारायण कहा गया है
        7. नागभट्ट प्रथम का दरबार नागावलोक कहलाता था
        8. ऐहोल प्रशस्ति में नागभट्ट प्रथम को इस वंश का वास्तविक संस्थापक कहा गया है
        9. नागभट्ट प्रथम को विभिन्न स्रोतों में कहा गया है ——-
          1. क्षत्रिय ब्रहामन
          2. राम का प्रतिहार
          3. लक्ष्मण का अवतार
          4. इंद्र के दम्भ का नाशक
        10. नागभट्ट प्रथम के समकालीन शासक ———–
          1. कश्मीर ——ललिता दिव्य
          2. कन्नोज ——-यशोवर्धन
          3. राष्ट्रकूट ——दन्तिदुर्ग
        11. नागभट्ट प्रथम ने उज्जेन में हिरण्यगर्भादान यज्ञ आयोजित करवाया
        12. इस यज्ञ में दन्तिदुर्ग अपनी पुत्री भूमिका सहित शामिल हुए
        13. इस यज्ञ के समय ही भूमिका देवी का विवाह नागभट्ट प्रथम के भतीजे क्क्कुस्त्थ के साथ हुआ
        14. 760 ई. में नागभट्ट प्रथम की मृत्यू हुई
      2. कक्कुस्त्थ ——————-
        • इस काल में गुर्जर- प्रतिहार राज्य की सीमाए यथावत रही
      3. देवराज ——————-
        • इसने उज्जेन को केंद्र बनाकर शासन किया
      4. कुक्कुक ——————-
        1. इसने मंडोर में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
        2. जो राजस्थान का दूसरा सबसे प्राचीन विजय स्तम्भ है
        3. राजस्थान काप्रथम / सबसे प्राचीन विजय स्तम्भ ——–बयाना दुर्ग (भरतपुर ) में स्थित है
        4. राजस्थान का तीसरा विजय स्तम्भ ——— चित्तोड़गढ़
        5. राजस्थान का चोथा विजय स्तम्भ ———- आहुवा ( पाली )
        6. राजस्थान का पांचवा विजय स्तम्भ ——–जेसलमेर
      5. वत्सराज ( 783-95 ) ——————-
        1. उपाधिया ——–
          1. रणहस्तिन ( युद्ध में हाथी के समान शक्तिशाली )
          2. जय वराह
          3. सम्राट
        2. ये विष्णुजी के उपासक थे
        3. वली-प्रबंध लेख से हमे वत्सराज के समय निम्नलिखित प्रथाओ के प्रचलन के साक्ष्य मिले है —
          1. सती प्रथा
          2. नियोग प्रथा
          3. देवदासी प्रथा
        4. वत्सराज के दरबारी विद्वान ——
          1. उदयोतन सूरी ने ——कुवलय माला की रचना की
            • इसमें 18 भाषाओ का वर्णन है
          2. जिनसेन सूरी ने ——-हरिवंश पुराण की रचना की
        5. वत्सराज को प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है
        6. कन्नोज पर अधिकार को लेकर निम्नलिखिततिन वंशो के मध्य संघर्ष हुआ जिसे त्रिराज्य या त्रिपक्षीय संघर्ष कहा जाता है —–
          1. पाल राजवंश
          2. प्रतिहार राजवंश
          3. राष्ट्रकूट राजवंश
        7. वत्सराज ने कन्नोज पर अधिकार किया
        8. कन्नोज में चक्रायुद्ध के स्थान पर उसके भाई इन्द्रायुद्ध को शासक बनाया
        9. वत्सराज ने पाल वंश के राजा धर्मपाल को पराजीत किया
        10. परन्तु लोटते समय राष्ट्रकूट के राजा धुर्व प्रथम से पराजीत हुआ
        11. वत्सराज पराजीत होकर थार के मरुस्थल में शरण ली
      6. नागभट्ट द्वितीय ( 795-833 ) ——————-
        1. उपाधि ——–परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर
        2. ग्वालियर अभिलेख में नागभट्ट द्वितीय को कर्ण कहा गया है
        3. नागभट्ट द्वितीय ने कन्नोज पर अधिकार किया और उसे अपनी राजधानी ( अस्थाई )बनाया
        4. नागभट्ट द्वितीय ने पाल वंश के राजा धर्मपाल को पराजीत किया
        5. परन्तु लोटते समय राष्ट्रकूट शासक गोविन्द तृतीय से पराजीत हुआ
        6. नागभट्ट द्वितीय ने गंगा में जीवित समाधि ली थी
        7. नागभट्ट द्वितीय की आराध्य देवी भगवती देवी थी जिनका मन्दिर उज्जेन में है जिसका निर्माण मिहिरभोज ने करवाया
        8. इनका काल गुर्जर प्रतिहारो का स्वर्ण काल माना जाता है
        9. नागभट्ट द्वितीय के समकालीन —–
          1. कन्नोज शासक ——-चक्रायुध ( धर्मपाल के सहयोग से राजा बना )
            • आयुध वंश का अंतिम शासक चक्रायुद्ध था
          2. पाल वंश के ——— धर्मपाल
          3. राष्ट्रकूट के ——— गोविन्द तृतीय
          4. मेवाड़ शासक ——- खुमाण
        10. चक्रायुध , गोविन्द तृतीय , धर्मपाल तीनो की संयुक्त सेना को नागभट्ट द्वितीय ने पराजीत कर कन्नोज पर अपना अधिकार रखा
      7. रामभद्र ( 833-36 ) ——————-
        1. इनके समय बंगाल के पाल शासक देवपाल का कन्नोज पर अधिकार रहा
        2. 3 वर्ष के शासन काल में गुर्जर प्रतिहारो की शक्ति क्षीण हुई थी
        3. इसके पुत्र मिहिरभोज ने ही इनकी हत्या कर दी थी
      8. मिहिरभोज ( 836-85 ) ——————-
        1. इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था
        2. मिहिरभोज का अर्थ सूर्य का प्रतीक होता है
        3. इसे प्रतिहारो में पित्रहंता शासक माना जाता है
        4. मिहिरभोज के समकालीन पाल वंश के शासक —–
          1. देवपाल
          2. नारायण पाल
          3. विग्रह पाल
        5. समकालीन राष्ट्रकूट शासक —— अमोघ वर्ष
        6. इसने कन्नोज पर अंतिम रूप से अधिकार किया
        7. इसके काल में अरब यात्री सुलेमान ने भारत की यात्रा की थी
        8. सुलेमान ने मिहिरभोज को कहा——-
          1. अरबो का शत्रु
          2. इस्लाम की दीवार
        9. सुलेमान ने भारत को ——-काफिरों का देश कहा
        10. विभिन्न स्रोतों में मिहिरभोज की उपाधिय ——————-
          1. ग्वालियर अभिलेख में ———- आदि वराह
          2. दोलतपुर अभिलेख ————- प्रभास पाटन
          3. बग्रमा अभिलेख —————- सम्पूर्ण पृथ्वी को जितने वाला
          4. ताम्र सिक्को पर ————— मददी वराह
        11. मिहिरभोज ने कन्नोज पर स्थाई रूप से अधिकार किया और उसे अपनी राजधानी बनाया
        12. त्रिराज्य संघर्ष में प्रतिहारो की अंतिम रूप से विजय हुई
        13. मिहिरभोज भगवती देवी का परम भक्त था
        14. भगवती देवी मन्दिर का निर्माण उज्जेन में करवाया
        15. मिहिरभोज ने ग्वालियर प्रशस्ति की रचना करवाई
        16. मिहिरभोज की मृत्यू 885 में हुई
      9. महेन्द्रपाल प्रथम ( 885-910 ) ——————-
        1. उपाधिया ——–
          1. निर्भय नरेश
          2. रघुकुल चुडामणि
        2. दरबारी साहित्यकार ———- राजशेखर
        3. राजशेखर की रचनाये ———–
          1. काव्य मीमांसा
          2. कर्पुर मंजरी
          3. विद्साल भंजिका
          4. बाल रामायण
          5. बाल भारत ( प्रचंड पांडव )
          6. हरविलास
        4. राजशेखर ने अपनी पत्नी अवन्ति के आग्रह पर कर्पुर मंजरी की रचना की थी
        5. राजशेखर ने महेन्द्रपाल प्रथम को रघुकुल चुडामणि की उपाधि प्रदान की
      10. महिपाल प्रथम ( 912-43 ) ——————-
        1. उपाधिया———–
          1. हेरम्भ पाल
          2. विनायक पाल
          3. रघुकुल मुक्तामणि
        2. राजशेखर ने इसे रघुकुल मुक्तामणि की उपाधि प्रदान की
        3. राजशेखर महिपाल प्रथम का भी दरबारी साहित्यकार था
        4. महिपाल प्रथम के समय अलमसुदी नामक अरब यात्री ने भारत की यात्रा की थी
        5. अलमसुदी ने महिपाल की प्रशंसा करते हुए महिपाल को उतर भारत का सबसे शक्तिशाली शासक कहा है
        6. महिपाल प्रथम को आर्यावर्त का महाराजाधिराज भी कहा गया है
        7. राष्ट्रकूट शासक इंद्र तृतीय ने महिपाल प्रथम को पराजीत किया और कुछ समय तक कन्नोज पर अधिकार किया
      11. राज्य पाल ( 1018 ) ——————-
        1. इनके काल में महमूद गजनवी ने कन्नोज पर आक्रमण किया और इसे लुटा
        2. इस समय राज्यपाल बिना लड़े ही राजधानी छोडकर भाग गया
        3. राज्यपाल की कायरता के कारण चन्देल वंश के राजा विद्याधर ने राजाओ का संघ बनाकर इसे मृत्यू दंड दिया था
      12. यशपाल ( 1036 ई. ) ——————-
        1. चन्द्रदेव गहड़वाल ने यशपाल को पराजीत कर कन्नोज पर अधिकार किया
        2. और कन्नोज के गहडवाल वंश की स्थापना की
        3. यशपाल कन्नोज का अंतिम गुर्जर प्रतिहार शासक था
  • प्रतिहारो ने राजस्थान में मन्दिर निर्माण की महामारू शेली / पंचायतन शेली का प्रचलन किया
  • इस शेली के प्रमुख मन्दिर ———
    1. आभानेरी —–हर्षत माता मन्दिर
    2. ओसिया ——– हरिहर मन्दिर
    3. आहड़ ——— वराह मन्दिर

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