चौहान वंश Topik-11
चौहान वंश ने नागोर , अजमेर , सिरोही , जालोर , कोटा पर शासन किया , बिजोलिया शिलालेख के अनुसार इस वंश का वास्तविक संस्थापक वासुदेव चौहान को माना जाता है , वासुदेव चौहान ने सांभर नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया , वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया और इस झील के किनारे अपनी कुलदेवी शाकम्भरी माता का मन्दिर बनवाया , चौहान वंश की प्राचीन राजधानी अहिच्छ्त्रपुर ( नागोर ) थी , आगे का इतिहास निम्नलिखित है —–
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चौहान वंश
- .वासुदेव चौहान ——-
- बिजोलिया शिलालेख व डॉ दशरथ शर्मा ने वासुदेव चोहान को इस वंश का वास्तविक संस्थापक माना है
- वासुदेव ने साभर नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया
- वासुदेव ने साभर झील का निर्माण करवाया
- साभर झील को तीर्थो की नानी कहा जाता है
- इसकी प्रारम्भिक राजधानी अहिछत्रपुर ( नागोर ) थी
- वासुदेव चोहान ने अपनी कुलदेवी शाकम्भरी माता के मन्दिर का निर्माण साभर झील के किनारे करवाया
- सामंतदेव————–
- दुर्लभराज प्रथम —————
- यह प्रतिहार शासक वत्सराज के समकालीन था
- इसी के काल में साभर पर प्रथम मुस्लिम आक्रमण हुआ
- चोहान प्रारम्भिक समय में गुर्जर प्रतिहारो के सामंत थे
- गुवक प्रथम —————
- यह प्रतिहार शासक नागभट्ट द्वितीय के समकालीन था
- नागभट्ट द्वितीय ने इसे वीर की उपाधि दी थी
- इसने हर्षनाथ मन्दिर का निर्माण प्रारम्भ करवाया
- चन्दनराज —————
- इसकी रानी रुद्राणी / आत्मप्रभा थी
- रुद्राणी ने कालसर्पदोष से मुक्ति पाने हेतु पुष्कर झील के किनारे एक हजार शिवलिंग स्थापित करवाए
- और एक हजार दीपक जलाकर दीपदान किया
- वाकपतिराज —————
- इसे 188 युद्धों का विजेता माना जाता है
- उपाधि ——महाराज
- इसका पुत्र ——लक्ष्मण
- लक्ष्मण को लखनसी भी कहा जाता है
- नाडोल में चोहान वंश की स्थापना की
- सिंहराज —————
- इसने हर्षनाथ मन्दिर का निर्माण पूरा करवाया
- उपाधि ——— महाराजाधिराज
- यह पहला चोहान शासक था जिसने प्रतिहारो से मुक्त होकर स्वतंत्र सता स्थापित की थी
- यह प्रथम स्वतंत्र चोहान शासक बना
- विग्रहराज द्वितीय ( 956 ई. ) —————
- इसने गुजरात के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजीत किया
- और भ्रगुकच्छ ( भड़ोच , गुजरात ) में आशापूरा देवी का मन्दिर बनवाया
- साभर में भी आशापुरा देवी का मन्दिर विग्र्हराज द्वितीय ने बनवाया था
- हर्षनाथ अभिलेख की रचना इसी के काल में की गयी थी
- हर्षनाथ अभिलेख में वासुदेव चोहान से लेकर सिंहराज तक के शासको का उल्लेख मिलता है
- चोहान वंश का यह प्रथम प्रतापी शासक था
- इसने परम भट्टारक महाराजाधिराज परमेशवर की उपाधि धारण की थी
- यह उपाधि धारण करने वाला चोहान वंश का प्रथम शासक था
- वीर्यराम —————
- इसके समय महमूद गजनवी ने साभर पर आक्रमण किया था
- चामुण्डराय —————
- इसने साभर पर पुन: अधिकार किया
- पृथ्वीराज प्रथम —————
- इसे तुर्क जाती का विजेता कहा जाता है
- इसी के काल में जीण माता अभिलेख की रचना की गयी
- अजयराज चोहान ( 1113-33 ) —————
- यह पृथ्वीराज प्रथम का पुत्र था
- चक्रवर्ती सम्राट होने के कारण इसे चक्री भी कहा जाता है
- अजयराज ने अजयमेर ( अजमेर ) बसाया
- और अजमेर को अपनी राजधानी बनाया
- अजयराज ने बिठ्ली पहाड़ी पर अजयमेरु दुर्ग बनाया
- इस दुर्ग को गढ़ बिठली / तारागढ़ भी कहा जाता है
- मेवाड़ के महाराणा रायमल के पुत्र कुंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा
- अजयराज ने मालवा के शासक नरवर्मन को पराजीत किया और उसके सेनापति सुल्हंण को बंदी बनाकर अजमेर लेकर आये
- अजयराज ने गुजरात के शासक मूलराज द्वितीय को पराजीत किया
- यह शेव धर्म का अनुयाई था
- अजयराज ने अजसप्रिय और द्रुम्स नामक चांदी व ताम्बे के सिक्के चलाये
- इन सिक्को पर अपनी रानी सोमलेखा / सोम्म्ल देवी का नाम उत्कीर्ण करवाया
- अजयराज ने अपने पुत्र अर्णोराज के पक्ष में सिंघासन का त्याग किया और अपना अंतिम समय पुष्कर में व्यतीत किया
- 1140 ई.में इनकी मृत्यू हुई
- अर्णोराज चोहान ( 1133-50 ) —————
- इन्हें आनाजी के नाम से भी जाना जाता है
- अर्णोराज ने अजमेर में आनासागर झील का निर्माण करवाया
- बिजोलिया शिलालेख के अनुसार इस झील के निर्माण का उद्देश्य तुर्कों के खून से सनी धरती को धोना था
- जहागीर ने इस झील के किनारे दोलतबाग़ लगवाया
- इस दोलतबाग को वर्तमान में सुभाष उद्दान भी कहा जाता है
- दोलतबाग / सुभाष उद्दान ———-
- नूरजहा की माता अस्मत बेगम ने यंही पर गुलाब से ईत्र बनाने की विधि का अविष्कार किया था
- शाहजहा ने इस उद्दान में 5 बारहदरियों का निर्माण करवायाअर्णोराज ने पुष्कर में आदिवराह मन्दिर का निर्माण करवाया
- यह विष्णु जी का मन्दिर है
- जहागीर ने इस मन्दिर की मूर्ति को झील में फिंकवा दिया था
- अर्णोराज के दरबारी विद्वान ———-
- धर्मघोष सूरी
- देवबोध
- अर्णोराज ने 1137 ई. में गुजरात के चालुक्य शासक जयसिंह सिद्धराज को पराजीत किया और उसकी पुत्री कांचन देवी से विवाह किया
- 1148 ई. में अर्णोराज ने चालुक्य शासक कुमारपाल पर आक्रमण किया परन्तु पराजीत हुआ
- अर्णोराज ने अपनी पुत्री जल्हण का विवाह कुमारपाल चालुक्य से किया
- इस युद्ध के बाद पाली , जालोर व नाडोल के क्षेत्रो पर चालुक्यो का अधिकार हुआ
- अर्णोराज की हत्या इसी के पुत्र जगदेव ने की थी
- जग्गदेव ( 1150-52 )—————
- इसे चोहानो में पित्रह्नता शासक भी कहा जाता है
- विग्रहराज चतुर्थ ( 1152-63 ) —————
- यह बीसलदेव के नाम से साहित्य रचना करता था
- इसने संस्कृत नाटक हरिकेली की रचना की थी जिसमे भगवान शिव और अर्जुन के बीच काल्पनिक युद्ध का उल्लेख मिलता है
- विग्रहराज चतुर्थ के दरबारी साहित्यकार ————
- सोमदेव ——–ललित विग्र्हराज
- ललित विग्र्हराज ग्रन्थ में विग्र्हराज चतुर्थ और इन्द्रपुरी की राजकुमारी देसल देवी के बीच प्रेम-प्रसंग का उल्लेख मिलता है
- नरपति नाल्ह ————— बीसलदेव रासो
- बीसलदेव रासो ग्रन्थ में परमार परमार राजा भोज की पुत्री राजमती और विग्रहराज चतुर्थ के बीच प्रेम-प्रसंग का उल्लेख मिलता है
- अन्य विद्वान ———– धर्मघोष सूरी
- धर्मघोष सूरी के आग्रह पर विग्रहराज चतुर्थ ने पशुवध पर प्रतिबंध लगाया था
- सोमदेव ——–ललित विग्र्हराज
- विग्रहराज चतुर्थ के निर्माण कार्य ——————
- बिसलपुर कस्बा ( टोंक ) बसाया
- बीसलपुर बांध ( टोंक ) बनाया
- संस्कृत पाठशाला ( अजमेर ) का निर्माण करवाया ————–
- इस पाठशाला को सरस्वती कंठाभरण कहा जाता है
- विग्र्हराज चतुर्थ ने इस पाठशाला की दीवारो पर हरिकेली नाटक ( 75 पंक्तिया )को उत्कीर्ण करवाया
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस पाठशाला को मुस्लिम ईमारत के रूप में बदला
- ऐबक ने इसकी दीवारों पर कुरान की आयाते उत्कीर्ण करवाई
- वर्तमान में सूफी संत पंजाब के उर्स में भाग लेने के लिए आने वाले जायरीन ( श्रदालु ) इस भवन में ढाई दिन तक ठहरते है अत : इसे अढाई दिन का झोंपड़ा भी कहा जाता है
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस भवन को सबसे प्राचीन व सर्वश्रेष्ठ इमारत कहा है
- इसे राजस्थान की प्रथम मस्जिद भी कहा जाता है
- भारत की प्रथम मस्जिद ——कुव्वत-उल-इस्लाम , दिल्ली
- विग्रहराज चतुर्थ के काल में अजमेर में पदमनाभ ने साहित्य सम्मेलन का आयोजन करवाया था जिसकी अध्यक्षता सोमदेव ने की थी
- विग्रहराज चतुर्थ ने गजनी ( अफगानिस्तान ) के शासक अमीर खुसरू शाह को पराजीत किया
- विन्सेंट स्मिथ ने विग्र्हराज चतुर्थ के काल को चोहानो का स्वर्ण काल कहा है
- कील हॉर्न नामक विदेशी विद्वान ने साहित्य रचना में विग्र्हराज चतुर्थ की तुलना भवभूति व कालिदास से की है
- विग्र्हराज चतुर्थ की उपधिया ————–
- कवि बन्धु
- कटी बन्धु
- विद्वानों का आश्रयदाता
- अपार गांगेय ——————
- इसकी हत्या इसके भाई पृथ्वीराज द्वितीय ने की थी
- पृथ्वीराज द्वितीय ——————
- इसकी रानी सुहावा देवी थी
- सुहावा देवी ने मेनाल में सुहावेशवर मन्दिर का निर्माण करवाया
- यह मन्दिर भूमिज शेली ( स्थापत्य शेली ) में निर्मित है
- इसे भ्रात्रहन्ता शासक भी कहा जाता है
- इसकी निसंतान मृत्यू हुई थी
- सोमेशवर चोहान ( 1169-77 ) ——————
- इनका बचपन का नाम —— प्रताप लंकेश्वर था
- यह अर्णोराज व कांचन देवी का पुत्र था
- इसके प्रधानमंत्री कदम्बवास / केमास ने अहिछत्रपुर दुर्ग / नागोर के किले का निर्माण करवाया
- सोमेशवर का सेनापति ———– भुवन मलय ( खांडेराव ) था
- सोमेशवर के काल में बिजोलिया शिलालेख ( 1170 ई.में ) की रचना गुणभद्र द्वारा की गयी
- बिजोलिया शिलालेख ———–
- रचना ——–गुणभद्र
- उत्कीर्ण ——— गोविन्द द्वारा करवाया गया
- संस्कृत भाषा में है
- जेनश्रावक लोलाक ने पार्श्वनाथ मन्दिर व कुंड की स्मृति में यह शिलालेख लिखवाया
- बिजोलिया शिलालेख में विभिन्न नगरो के प्राचीन नाम अंकित है
- दिल्ली का ——–ढील्लीका
- मांडलगढ़ ——— मंडलकर
- नाडोल ————- नडडुल
- जालोर ———— जाबालिपुर
- बिजोलिया ——– विन्ध्यावली
- नागदा ———— नागहद
- बिजोलिया शिलालेख ———–
- सोमेशवर ने दिल्ली के शासक अनगपाल तोमर की पुत्री कर्पूरी देवी से विवाह किया था
- इसके पुत्र का नाम पृथ्वीराज चोहान तृतीय था
- सोमेशवर ने वैधनाथ मन्दिर का निर्माण करवाया जिसमे ब्रह्मा , विष्णु , महेश की मुर्तिया स्थापित
- अर्णोराज का स्मारक बनाया
- सोमेशवर के भाई कानराज ने गुजरात शासक प्रतापसिंह सोलंकी की हत्या की थी
- चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय के साथ युद्ध में सोमेशवर चोहान की 1177 ई. में मृत्यू हुई थी
- सोमेशवर की मृत्यू के बाद पृथ्वीराज चौहान तृतीय शासक बने
- पृथ्वीराज चोहान तृतीय ——- अगले भाग में –————Topik-12 में