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राजस्थान इतिहास

चौहान वंश : जालोर का चौहान राजवंश Topik-14

हमने पीछे के भाग में चौहान वंश का शुरू से लेकर रणथम्भोर के चौहान तक का इतिहास पढ़ा , रणथम्भोर के चौहान वंश की स्थापना 1194 ई. मे गोविन्दराज ने की थी जो पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र था , गोविन्दराज ने मोहमद गोरी की अधीनता स्वीकार की थी ,रणथम्भोर का अंतिम चौहान शासक हम्मीर देव चौहान था , इनके समय अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भोर पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की , इस समय रणथम्भोर दुर्ग में राजस्थान का प्रथम साका हुआ जिसमे केसरिया-हम्मीर देव चौहान और जोहर-रानी गंगदेवी ने नेतृत्व किया ,जालोर में चौहान वंश की स्थापना कीर्तिपाल चौहान ने की थी , इनके पिता का नाम अल्हण चौहान था जो प्रतिहारो के सामंत थे ये मूलत नाडोल ( पाली ) के चौहान थे , आगे का चौहान वंश का इतिहास निम्नलिखित है ———

चौहान वंश

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  1. जालोर जबाली ऋषि की तपोभूमि मानी जाती है
  2. यंहा सोनगरा चोहान वंश ने राज किया
  3. इनकी कुलदेवी आशापुरा माता थी जिनका मन्दिर नाडोल ( पाली ) में है
  4. जालोर पर प्रतिहार / परमार / व चोहान राजवंश ने शासन किया
  5. जालोर का प्राचीन नाम ———-
    1. जबालिपुर
    2. सुवर्णगिरी
    3. जालनगर
    4. जलालाबाद
    5. कनकाचल
  6. जालोर में चोहान वंश की स्थापना कीर्तिपाल चोहान ने की थी

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चौहान वंश

  • कीर्तिपाल चौहान —————-
    1. यह जालोर के चौहान वंश का संस्थापक था
    2. इसके पिता का नाम अल्हण चोहान था जो प्रतिहारो के सामंत थे
    3. ये मूलत नाडोल (पाली ) के चौहान थे
    4. कीर्तिपाल चोहान ने मेवाड़ के सामंतसिंह को पराजीत किया और मेवाड़ पर अधिकार किया
    5. परन्तु सामंतसिंह के भाई कुमारसिंह ने कीर्तिपाल को पराजीत कर पुन: मेवाड़ पर अधिकार किया
    6. अत: परमारों को पराजीत कर कीर्तिपाल ने जालोर में स्वतंत्र चोहान राज्य की स्थापना की थी
    7. नेणसी ने कीर्तिपाल की प्रशंसा में लिखा है की कितु एक महान राजा था
    8. कीर्तिपाल ने जालोर में जंगलेश्वर महादेव मन्दिर का निर्माण करवाया
    9. सुंधा शिलालेख में कीर्तिपाल को राजेशवर की उपाधि धारण कि थी
  • समरसिंह( 1182-1205 ) —————-
    1. 1182-1205
    2. इसने प्रतिहारो से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये
  • उदयसिंह ( 1205-57 ) —————-
    1. उदयसिंह ने अपने पुत्र चाचिगदेव की पुत्री का विवाह मेवाड़ के जेत्रसिंह गुहिल के पुत्र तेजसिंह के साथ किया
    2. अत: मेवाड़ के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये
    3. उदयसिंह के समय दिल्ली के सुल्तान ——-
      1. इल्तुतमिश ( 1227 )
      2. नसीरूदीन महमूद ( 1248 )
    4. डॉ दसरथ शर्मा के अनुसार इसका काल जालोर के चोहान वंश में सर्वाधिक सम्रद्धि व विस्तार का काल रहा
    5. नासिरुदीन महमूद ने जालोर पर असफल सेन्य अभियान किये
    6. गुजरात के लवनयप्रसाद को पराजीत किया
  • चाचिग देव ( 1257-72 ) —————-
    1. इसकी पुत्री का विवाह मेवाड़ के जेत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ हुआ
    2. इनके काल में किसी भी सुल्तान का आक्रमण नही हुआ
    3. दिल्ली के सुल्तान ——–
      1. नासिरुदीन महमूद
      2. बलबन
  • सामंत सिंह ( 1272-96 ) —————-
    1. इसके समय दिल्ली के सुल्तान जलालुदीन खिलजी ( 1291 ) थे
    2. जलालुदीन खिलजी ने जालोर पर असफल सेन्य अभियान किये
    3. 1296 ई. में दिल्ली पर अलाउदीन खिलजी का अधिकार हुआ
    4. अत: शत्रु को प्रबल देखकर सामंतसिंह ने अपने पुत्र कान्हडदेव चोहान के पक्ष में सिंहासन का त्याग किया
  • कान्हडदेव चौहान ( 1296-1311 ) —————-
    1. यह जालोर के चौहान वंश का अंतिम व सबसे प्रतापी शासक था
    2. जानकारी के स्रोत ————-
      1. कान्हड दे प्रबंध————-पदमनाभ
      2. जालोर प्रशस्ति
      3. फरिश्ता ————- तारीखे-फरिश्ता
    3. कान्हडदेव के धन सम्पति की तुलना इंद्र के घर की रिद्दी व नो निधियो से की गयी है
    4. पुत्र————-बीरमदेव
    5. पत्नी ————-जेतल देवी
    6. दिल्ली का सुल्तान————-अलाउदीन खिलजी
    7. जालोर दुर्ग की कुंजी सिवाना दुर्ग को कहा जाता है
    8. अलाउदीन के जालोर पर आक्रमण के कारण ————-
      1. राजनीतिक महत्वाकांक्षा ————-
        • अमीर खुसरो के अनुसार
      2. कान्हड दे प्रबंध के अनुसार ————-
        • गुजरात पर आक्रमण करने के लिए जाती हुई अलाउदीन की शाही सेना को रास्ता न देना और वापिस लोटती हुई सेना पर आक्रमण करना
      3. अलाउदीन द्वारा यह गर्वोंक्ति करना की ——- कोई भी हिन्दू शासक उसका सामना नही कर सकता
        • फरिश्ता द्वारा लिखित तारीखे-फरिश्ता में इसका उल्लेख है
      4. नेणसी के अनुसार ————-
        • अलाउदीन की शहजादी फिरोजा व कान्हडदेव के पुत्र बीरमदेव के बीच एकपक्षीय प्रेम होना
    9. फरिश्ता और नेणसी के अनुसार प्रारम्भ में कान्हडदेव ने अलाउदीन की अधीनता स्वीकार कर ली थी
    10. अलाउदीन खिलजी ने जालोर से पहले सिवाणा दुर्ग पर विजय प्राप्त करने हेतु कमालुदीन गुर्ग के नेतृत्व में सेन्य अभियान भेजा
    11. क्युकी जालोर दुर्ग की कुंजी सिवाना दुर्ग को कहा जाता है
    12. इस समय सिवाना का शासक शीतल देव चोहान था
    13. भावले सरदार के विशवासघात के कारण सिवाणा पर तुर्कों का अधिकार हुआ
    14. भावले ने मामदेव कुंड में गोरक्त मिलाया जिसमे पीने का जल था
    15. इस समय दुर्ग में साका किया गया
    16. जिसमे केसरिया का नेतृत्व शीतल देव चोहान ने किया
    17. और जोहर का नेतृत्व रानी मेना दे द्वारा किया गया
    18. अलाउदीन ने सिवाणा का नाम परिवर्तित कर खेराबाद रखा
    19. अलाउदीन ने कमालुदीन गुर्ग के नेतृत्व में ही जालोर पर सेन्य अभियान भेजा
    20. दहिया सरदार बिका के विस्वासघात के कारण 1311 ई. में अलाउदीन का जालोर पर अधिकार हुआ
    21. दहिया बिका की हत्या इसकी पत्नी क्षत्रिया द्वारा की गयी
    22. इस समय दुर्ग में साका किया गया
    23. जिसमे जोहर का नेतृत्व रानी जेतल दे ने किया
    24. और केसरिया का नेतृत्व कान्हडदेव चोहान ने किया
    25. कान्हडदेव चौहान अपने पुत्र विरमदेव सहित वीरगति को प्राप्त हुआ
    26. बीरमदेव 31/2 दिन तक जालोर की राजगद्दी पर आसीन हुआ
    27. अलाउदीन ने जालोर का नाम बदलकर जलालाबाद किया
    28. तथा कमालुदीन गुर्ग को ही जालोर का सूबेदार नियुक्त किया
    29. अलाउदीन ने इस दुर्ग में संस्कृत पाठशाला को मस्जिद के रूप में परिवर्तित किया जिसे अलाउदीन की मस्जिद अथवा टॉप मस्जिद भी कहा जाता है
    30. अलाउदीन ने जालोर दुर्ग में अपनी शहजादी फिरोजा का मकबरा बनवाया
    31. कान्हडदेव चौहान जालोर का अंतिम शासक था

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