राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन Topik-4
राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन में भील आन्दोलन व मीणा आन्दोलन प्रमुख है जिसमे गुरु गोविन्द गिरी व मोतीलाल तेजावत जी प्रमुख थे , भील आन्दोलन में मानगढ़ हत्याकांड हुआ था जिसमे 1500 भील शहीद हुए थे , जनजातीय आन्दोलन निम्नलिखित है ———
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राजस्थान में जनजातीय आन्दोलन
- 1 भील आन्दोलन / भक्त आन्दोलन ———-
- रामायण कल में भीलो को निषादराज कहा गया
- बानभट्ट की कादम्बरी और सोमदेव द्वारा रचित कथासरितसागर में भीलो को भिल्ल कहा गया
- कर्नल जेम्स टॉड ने भीलो को वनपुत्र कहा
- यूनानी विद्वान टोलेमी ने अपनी पुस्तक भूगोल में भीलो को फिलाईट (तीरंदाज ) कहा है
- भील आन्दोलन के कारण ———-
- दोषपूर्ण भू-राजस्व पद्तिया (अत्यधिक कर व लाग-बागे)
- मावडी शराब के निर्माण पर प्रतिबंध
- मावडी शराब का निर्माण महुआ व्रक्ष के फूलो और पतो से किया जाता था
- मेवाड़ सरकार द्वारा इसके निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया
- भीलो में बेगार की समस्या भी प्रमुख थी
- AGG होलेन्ड द्वारा भी भीलो में बेगार को कम करने हेतु मेवाड़ सरकार को कहा गया था
- गुरु गोविन्द गिरी व मोतीलाल तेजावत ने भी भीलो के अधिकारों के लिए मुख्य रूप से कार्य किया
- सम्प सभा ——————
- 1883 ई. में
- स्थान ——- सिरोही
- स्थापना —— गुरु गोविन्द गिरी
- भीलो को संगठित करने एवं आपसी भाईचारा बढ़ाने हेतु गोविन्द गिरी ने 1883 ई. में सम्प सभा का गठन किया
- सम्प सभा का प्रथम अधिवेशन ———- 1903 ई. में हुआ
- सम्प शब्द का शाब्दिक अर्थ ——- भाईचारा / बंधुता होता है
- मेवाड़ भील कोर ( M. B. C. ) की स्थापना —————
- 1841 ई. में
- मुख्यालय ——- खेरवाडा
- कमांडर ——– J. C. ब्रूक
- कार्य ———- भीलो पर नियन्त्रण स्थापित करना
- 2. गुरु गोविन्द गिरी (1858-1931)———-
- ये मूलत डूंगरपुर रियासत के बंसिया ग्राम में बंजारा परिवार से सम्बन्धित थे
- इन्होने 1883 इसवी में भीलो को राजनेतिक रूप से संगठित करने हेतु सम्प-सभा की स्थापना की
- सम्प-सभा की वार्षिक बैठक मानगढ़ की पहाड़ी पर होती थी
- गुरु गोविन्द गिरी ने भीलो में सामाजिक व धार्मिक जनजाग्रति हेतु भगत पंथ की स्थापना की
- गुरु गोविन्द गिरी ने भीलो को शराब छोड़ने हेतु प्रेरित किया जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा
- इन्होने मूर्ति पूजा का विरोध किया तथा भीलो में धुनी-प्रथा और माला-प्रथा का प्रचलन किया
- धुनी की रक्षा हेतु कोतवाल नियुक्त किये गये
- गुरु गोविन्द गिरी, दयानंद सरस्वती से प्रेरित थे
- दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से इन्होने भीलो में शुद्धि आन्दोलन चलाया
- 1910 ई. में गोविन्द गिरी ने 33 सूत्रीय मांग-पत्र सरकार के सामने रखा जिसे गुरूजी का पत्र कहते है
- 1913 ई. में आन्दोलन की समाप्ति हुई
- मानगढ़ हत्याकांड (17 नवम्बर 1913)——
- मानगढ़ नामक पहाड़ी पर भीलो का एक सम्मेलन हुआ
- इस सम्मेलन का नेतृत्व गुरु गोविन्द गिरी ने किया
- यंहा मेवाड़ सरकार तथा अंग्रेजो द्वारा हत्याकांड करवाया गया
- इस हत्याकांड में 1500 भील शहीद हुए
- हत्याकांड में शामिल प्रमुख सेनिक टुकडिया ——-
- मेवाड़ भील कोर (2 बटालियन थी )
- 104 वेलेजली राइफल (1 बटालियन )
- राजपूत बटालियन (1 बटालियन )
- जाट बटालियन (1 बटालियन )
- इस घटना को राजस्थान का जलियावाला बाग हत्याकांड कहा जाता है
- 2012 में गहलोत सरकार ने इस घटना की स्मृति में शताब्दी वर्ष मनाया
- मानगढ़ कांड की स्मृति में प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा को मेला आयोजित होता है
- गुरु गोविन्द गिरी को अहमदाबाद जेल में रखा गया
- 1930 में इन्हें सशर्त जेल से मुक्त किया गया
- इन्होने अपना अंतिम समय गुजरात के कम्बोई नामक स्थान पर व्यतीत किया
- 1931 में गुरु गोविन्द गिरी की मृत्यू हो गयी
- 3 मोतीलाल तेजावत ——–
- ये मूलत उदयपुर रियासत में झाडोल ठिकाने के कोल्यारी गाँव के निवासी थे
- ये ओसवाल बनिया परिवार से सम्बंधित थे
- मोतीलाल तेजावत झाडोल ठिकाने में कामदार के पद पर कार्यरत थे
- इन्होने पद का त्याग कर भीलो के पक्ष में आन्दोलन किया
- मोतीलाल तेजावत के उपनाम ——
- आदिवासियों का मसीहा
- मोती बाबा
- बावजी
- एकी आन्दोलन ( 1921 ) ———-
- 1917 ई. में शुरू ———-लेकिन नेतृत्वहिन्
- 1921 में मोतीलाल जी के नेतृत्व में आन्दोलन की शुरुवात
- भीलो में राजनितिक एकता स्थापित करने हेतु चितोडगढ़ के मातृकुंडिया स्थान से मोतीलाल तेजावत ने यह आन्दोलन प्रारम्भ किया
- मेवाड़ सरकार द्वारा इसका दमन किया गया
- नीमडा हत्याकांड (6 मार्च 1922) ——–
- मेवाड़ भीलकोर के सेनिको द्वारा यह हत्याकांड किया गया
- इस हत्याकांड में 1200 भील शाहिद हुए
- गांधीजी ने इस हत्याकांड की जाँच हेतु मनीलाल कोठारी को नीमडा भेजा था
- मोतीलाल तेजावत ने मेवाड़ सरकार के समक्ष 21 सूत्रीय मांगपत्र प्रस्तुत किया जिसे मेवाड़ की पुकार कहा जाता है
- इसमें से 18 मांगे मानी गयी
- 3 मांगे नही मानी गयी जो निम्न है —-
- बेगार
- वन सम्पदा का अधिकार
- सुअर ये 3 मांगे नही मानी गयी
- मोतीलाल तेजावत ने नारा दिया न हाकिम न हुकुम
- 31 दिसम्बर 1921 ई. को मेवाड़ सरकार ने 50 से अधिक लोगो के एकत्रित होने पर प्रतिबंध लगाया
- एवं तेजावत जी की गिरफ्तारी में सहयोग करने वाले को 500 रूपये का इनाम की घोषणा
- तेजावत जी उदयपुर से सिरोही पहुचे
- गांधीजी ने यंग-इंडिया नामक समाचार-पत्र से हिंसा न करने का आग्रह किया
- सियावा कांड ———
- 12 अप्रैल 1922 ई.
- सियावा गाँव ( सिरोही )
- भील एवं गरासिया जनजाति का सम्मेलन हुआ था जिसमे मेवाड़ भील कोर ने गोलीबारी की
- 3 गरासिया किसान शहीद हुए
- रोहिडा कांड ——–
- 5-6 मई 1925 ई. में
- सिरोही में
- मेवाड़ भील कोर ने गोलीबारी की
- 50 शहीद हुआ और 150 किसान घायल हए
- रोहिडा कांड के पश्चात आन्दोलन हिंसात्मक हो गया
- गांधीजी ने तेजावत जी से मुलाकात करने के लिए मणीलाल कोठारी को भेजा था
- 1929 ई. में गांधीजी की सलाह से तेजावत ने अंग्रजो के सामने आत्मसमर्पण किया
- मोतीलाल तेजावत को 7 वर्ष की जेल की सजा हुई
- 2 मीणा आन्दोलन ———
- आन्दोलन का प्रमुख कारण———क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1924
- क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1924 ——–
- इस अधिनियम के अनुसार मीणा जाती को जरायम पैसा कोम (अपराधी जाती ) घोषित किया गया
- इसके अनुसार 14 वर्ष या इससे उपर के प्रत्येक मीणा व्यक्ति को निकटवर्ती पुलिश-थाने में देनिक हाजरी देना अनिवार्य कर दिया गया
- इस अधिनियम को 1930 में जयपुर रियासत में कठोरता से लागु किया गया
- 1933 में इस अधिनियम के विरोध में मीणा क्षेत्रीय सभा की स्थापना की गयी
- 1944 में जेन मुनि मगन सागर के नेतृत्व में नीमकाथाना नामक स्थान पर विशाल मीणा सम्मेलन हुआ
- इसी सम्मेलन में जयपुर राज्य मीणा क्षेत्रीय सुधर समिति का गठन हुआ जिसके अध्यक्ष —–पंडित बंशीधर शर्मा थे
- दिसम्बर 1945 में अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद का अधिवेशन उदयपुर में हुआ जिसकी अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरु ने की थी
- अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद अधिवेशन में देशभर के 435 नेताओ ने भाग लिया था
- इसी अधिवेशन में पंडित बंसीधर शर्मा ने मीणाओ का विषय सबके सामने रखा
- ठक्कर बप्पा और पंडित नेहरु के प्रयासों से 1946 में मीणाओ को देनिक हाजरी से मुक्ति दे दी गयी और यह आन्दोलन समाप्त हुआ
- आजादी के बाद अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद अधिनियम को रद्द कर दिया गया 1952 में रद्द किया गया