जयपुर का इतिहास : कछवाहा राजवंश Topik-29
हमने पीछे के भाग में जयपुर का इतिहास शुरू से लेकर सवाई जयसिंह तक का इतिहास पढ़ा था , सवाई जयसिंह ने जयपुर शहर की स्थापना की थी , जयपुर में सोरवेधशाला का निर्माण करवाया , एशिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण / रणबंका का निर्माण हुआ , मानसरोवर / मानसागरझील का निर्माण इत्यादि निर्माण कार्य करवाए सवाई जयसिंह ने 7 मुग़ल बादशाहों के काल में अपनी सेवाए दी सवाई जयसिंह अंतिम हिन्दू शासक था जिसने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था , सवाई जयसिंह की मृत्यू रक्त विकार के कारण हुई , सवाई जयसिंह की मृत्यू के बाद इनके 2 पुत्रो के मध्य उतराधिकार संघर्ष हुआ , ईशवर सिंह व माधोसिंह के बीच , आगे का जयपुर का इतिहास निम्नलिखित है ——-
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- सवाई जयसिंह ( 1700-1743 ई. ) तक का इतिहास ———- पीछे के भाग में है
- सवाई जयसिंह के 2 पुत्र के बीच उतराधिकार संघर्ष हुआ ———-
- इश्वरिसिंह व
- माधोसिंह प्रथम
- सवाई जयसिंह के बाद इश्वरिसिंह शासक बना
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जयपुर का इतिहास
- ईशवरी सिंह ( 1743-1750 ई. ) ——————-
- मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह की सहमती से इश्वरिसिंह शासक बना
- इश्वरिसिंह के शासक बनते ही सोतेले भाई माधोसिंह के साथ उतराधिकार संघर्ष की शुरुवात हुई
- माधोसिंह प्रथम एवं उनके साथ मेवाड़ के जगतसिंह + कोटा के दुर्जन शाल + मराठा की सयुंक्त सेना ——————- इश्वरिसिंह पर आक्रमण के लिए आये और दोनों पक्षों के बीच संधि हुई
- जामडोली की संधि ——————-
- 1745 ई.
- स्थान ——————- जयपुर
- इश्वरिसिंह एवं माधोसिंह प्रथम के मध्य हुई
- यह संधि जयपुर के दीवान राजमल खन्नी की चतुरता का परिचय था
- इस संधि के तहत माधोसिंह प्रथम को रामपुरा व टोंक परगना देना तय हुवा
- जामडोली संधि के कुछ समय पश्चात माधोसिंह प्रथम ने इश्वरिसिंह पर आक्रमण किया
- राजमहल का युद्ध ——————-
- 1 मार्च 1707 ई.
- स्थान ——————- टोंक
- यह युद्ध इश्वरिसिंह व माधोसिंह प्रथम के मध्य हुवा
- इश्वरिसिंह के साथ ——————-
- बादशाही सेना थी
- माधोसिंह प्रथम का साथ निम्नलिखित शासको ने दिया ——————-
- मेवाड़ ———- जगतसिंह द्वितीय
- कोटा ———– दुर्जनशाल
- बूंदी ———— दलेलसिंह
- मराठा ———– मल्हार राव होल्कर
- विजेता ——————- इश्वरिसिंह
- इश्वरिसिंह ने राजमहल विजय के उपलक्ष में जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में सरगासूली / इशरलाट का निर्माण करवाया
- सरगासूली / इशरलाट ——————-
- त्रिपोलिया बाजार , जयपुर
- निर्माण ——- इश्वरिसिंह
- यह अष्टकोणीय पद्दति पर आधारित है
- सरगासूली 7 मंजिला इमारत है
- यंहा से इश्वरिसिंह ने कूदकर आत्महत्या की थी
- राजमहल पराजय का बदला लेने हेतु माधोसिंह प्रथम ने इश्वरिसिंह पर पुन: आक्रमण किया
- बगरू का युद्ध ——————-
- 1748 ई. में
- स्थान ——————- जयपुर
- यह युद्ध इश्वरिसिंह व माधोसिंह प्रथम के मध्य हुआ
- इस युद्ध में इश्वरिसिंह के साथ ——————-
- बादशाही सेना थी
- इस युद्ध में माधोसिंह प्रथम का साथ निम्नलिखित शासको ने दिया ——————-
- मेवाड़ ———- जगतसिंह द्वितीय
- कोटा ———– दुर्जनशाल
- बूंदी ———— दलेलसिंह
- मराठा ———– मल्हार राव होल्कर , पेशवा बालाजी
- विजयी ——————- माधोसिंह प्रथम
- बगरू युद्ध के पश्चात माधोसिंह प्रथम को रामपुरा व टोंक के अलावा , निवाई , टोडा , मालपुरा परगने देने तय हुए
- मराठाओ की हर्जाना राशी का भुगतान इश्वरिसिंह करेगा
- इश्वरिसिंह ने मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर के दबाव में आकर 1750 ई. में सरगासूली / इशरलाट से कूदकर आत्महत्या कर ली थी
- इश्वरिसिंह को जाग्रत देव / भोमिय देव भी कहा जाता है
- आत्महत्या करने वाला कछवाहा वंश का एकमात्र शासक इश्वरिसिंह था
- माधोसिंह प्रथम ( 1750-1768 ई. ) ——————-
- 29 दिसम्बर 1750 ई. को जयपुर के शासक बने
- जयपुर शासक बनते ही मराठाओ को 10 लाख रूपये एवं
- टोडा ,निवाई , रामपुर एवं मालपुरा परगना मराठाओ को सोंपा
- माधोसिंह प्रथम ने जयपुर में 5000 से अधिक मराठाओ का नरसंहार करवाया था
- माधोसिंह प्रथम के समकालीन मुगल बादशाह ——————- अहमदशाह
- सफदरगंज का समझोता ——————-
- 1758 ई. में
- यह समझोता निम्नलिखित के मध्य हुआ ——————-
- माधोसिंह प्रथम
- अवध के नवाब —— सफदरगंज
- मुगल शासक —— अहमदशाह के मध्य हुआ
- इस समझोते के पश्चात मुग़ल बादशाह अहमदशाह ने जनवरी 1759 ई. में माधोसिंह प्रथम को रणथम्भोर दुर्ग भेंट किया
- भटवाडा का युद्ध ——————-
- 1761 ई. में हुआ
- स्थान ——————- बारा
- यह युद्ध माधोसिंह प्रथम एवं कोटा के शासक शत्रुशाल के मध्य हुआ
- इस युद्ध का कारण मुगल बादशाह अहमदशाह ने रणथम्भोर दुर्ग माधोसिंह प्रथम को सोपना था
- विजेता ——————- शत्रुशाल
- इस युद्ध के पश्चात शत्रुशाल ने रणथम्भोर दुर्ग पर अधिकार किया
- कान्कोड़ के युद्ध में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर को पराजीत किया था
- 1765 ई. में सवाई माधोसिंह प्रथम ने सवाई माधोपुर शहर की स्थापना की
- माधोसिंह प्रथम ने चाकसू में शील की डूंगरी पर शीतला माता का मन्दिर का निर्माण करवाया
- माधोसिंह प्रथम ने जयपुर में मोती-डूंगरी महलो का निर्माण करवाया
- इन महलो का जीर्णोद्धार मानसिंह द्वितीय की पत्नी गायत्री देवी ने करवाया
- गायत्री देवी ने मोती-डूंगरी महलो का नामकरण तख्त-ए-शाही महल रखा
- 1767 ई. में मावला-मंडोली के युद्ध में माधोसिंह प्रथम ने भरतपुर के जाट शासक जवाहर सिंह को पराजीत किया था
- 1768 ई. में माधोसिंह प्रथम की मृत्यू हुई थी
- सवाई माधोसिंह की मृत्यू के बाद पृथ्वीसिंह शासक बना
- 29 दिसम्बर 1750 ई. को जयपुर के शासक बने
- पृथ्वीसिंह ( 1768-1778 ई. ) ——————-
- पृथ्वीसिंह के शासन काल में माचेडी के सामंत प्रतापसिंह ने जयपुर से अलग एक स्वतंत्र रियासत अलवर की स्थापना की थी
- 15 अप्रैल 1778 ई. को पृथ्वीसिंह की मृत्यू हुई थी
- सवाई प्रतापसिंह ( 1778-1803 ई. )——————-
- 16 अप्रैल 1778 ई. को जयपुर में राज्याभिषेक हुआ
- सवाई प्रतापसिंह कालीन साहित्य रचना ——————-
- सवाई प्रतापसिंह ब्रजनिधि के नाम से साहित्य रचना करते थे
- इनके दरबार में गन्धर्व बाईसी थी
- गन्धर्व बाईसी ——————-
- यह 22 गुणीजनों की मंडली थी अथार्त इनके दरबार में —
- 22 ज्योतिषी
- 22 साहित्यकार
- और 22 संगीतज्ञ थे
- प्रतापसिंह के गुरु / संगीत गुरु ——————- उस्ताद चाँद खा
- प्रतापसिंह के काव्य गुरु ——————- गणपति भारती
- प्रतापसिंह के प्रमुख ग्रन्थ ——————-
- प्रीति-पच्चीसी
- प्रेम-ग्रन्थ
- रमक-झमक ब्रजनिधि
- प्रीति-लता
- बतीसी
- प्रीति-श्रंगार
- ब्राजनिधि-श्रृंगार
- सवाई प्रतापसिंह के प्रमुख दरबारी विद्वान ——————-
- पंडूरिक विठ्ठल ————-
- नर्तन निर्णय
- राग-रतनाकर
- राग-चन्द्रसेन
- ब्रजपाल भट्ट ————-
- ब्रजपाल भट्ट की अध्यक्षता में प्रतापसिंह ने जयपुर में संगीत-सम्मेलन का आयोजन करवाया
- प्रतापसिंह के काल को जयपुर चित्रशेली का स्वर्ण काल माना जाता है
- प्रतापसिंह के दरबारी चित्रकार साहिबराम ने इश्वरिसिंह का आदमकद चित्र बनाया
- इनके काल का गोवर्धन पर्वत का चित्रण मुख्य आकर्षण का केंद्र है
- सवाई प्रतापसिंह ने 1799 ई. में हवामहल का निर्माण करवाया
- हवामहल ——————-
- निर्माण ———-
- 1799 ई. में
- सवाई प्रतापसिंह द्वारा
- हवामहल में 5 मंजिले है ——-
- शरत मन्दिर
- रतन मन्दिर
- विचित्र मन्दिर
- प्रकाश मन्दिर
- हवा मन्दिर
- कर्नल जेम्स टॉड ने हवामहल को कृष्ण का मुकुट कहा है
- निर्माण ———-
- सवाई प्रतापसिंह ने जलमहलो का निर्माण पूर्ण करवाया था
- प्रतापसिंह के आदेस से राधा-गोविन्द संगीत सार नामक ग्रन्थ की रचना की गयी
- प्रतापसिंह के काल में मराठो की तमासा नाट्य शेली का जयपुर में प्रचलन हुआ
- मराठो का जयपुर रियासत में सर्वाधिक आगमन प्रतापसिंह के काल में हुआ
- पंडूरिक विठ्ठल ————-
- सवाई प्रतापसिंह के प्रमुख सैनिक अभियान ——————-
- सवाई प्रतापसिंह का मराठा के साथ अभियान ——–
- मराठाओ का जयपुर में सर्वाधिक आक्रमण सवाई प्रतापसिंह के काल में हुआ
- तुंगा का युद्ध ———-
- 28 जुलाई 1787 ई. में हुआ
- स्थान ——————- लालसोट ( दोसा )
- यह युद्ध सवाई प्रतापसिंह व मराठा सरदार महादजी सिंधिया के मध्य हुआ था
- इस युद्ध में सवाई प्रतापसिंह का साथ ——————-मारवाड़ ( जोधपुर ) के विजयसिंह ने दिया था
- विजेता ——————- सवाई प्रतापसिंह
- मराठा सरदार महादजी सिंधिया पराजीत होने पर कहा था ——————-
- यदि में जीवित रहा तो जयपुर को धुल में मिला दूंगा
- तुंगा युद्ध के पश्चात विजयसिंह ने मराठाओ से अजमेर छिनकर अधिकार किया
- मराठाओ ने पराजय का बदला लेने हेतु पुन: जयपुर पर आक्रमण किया —–
- पाटण का युद्ध ——————
- 1790 ई. में
- स्थान —————— सीकर
- यह युद्ध भी सवाई प्रतापसिंह व मराठा सरदार महादजी सिंधिया के मध्य हुआ था
- इस युद्ध में भी सवाई प्रतापसिंह का साथ —————— मारवाड़ ( जोधपुर ) के विजयसिंह ने दिया था
- महादजी सिंधिया की तरफ से युद्ध किया —————— लकवा दादा( सेनापति ) व डी-बोइंन
- विजेता —————— मराठा सरदार महादजी सिंधिया
- पाटण युद्ध में विजय होने के पश्चात मराठाओ ने अजमेर को पुन: प्राप्त करने हेतु जोधपुर शासक विजयसिंह पर आक्रमण किया
- डागावास का युद्ध ——————
- 1790 ई. में
- स्थान ——————- मेड़ता सिटी , नागोर
- यह युद्ध मारवाड़ ( जोधपुर ) के विजयसिंह एवं मराठाओ के मध्य हुआ
- इस युद्ध में विजयसिंह का साथ ——————- सवाई प्रतापसिंह ने दिया था
- महादजी सिंधिया की तरफ से युद्ध किया ——————- लकवा दादा( सेनापति ) व डी-बोइंन
- विजेता ——————- मराठा
- इस पराजय के बाद विजयसिंह ने आत्मसमर्पण किया और सांभर संधि की
- सांभर संधि ——————-
- 5 जनवरी 1791 ई. में
- स्थान —————— सांभर ( जयपुर )
- यह संधि जोधपुर के शासक विजयसिंह व मराठा सरदार महादजी सिंधिया के सेनापति डी-बोइंन के मध्य हुई
- इस संधि के तहत विजयसिंह ने मराठो को अजमेर सोंपा
- सांभर संधि के पश्चात मराठाओ ने सवाई प्रतापसिंह पर आक्रमण किया
- सवाई प्रतापसिंह ने आत्मसमर्पण किया और संधि की जिसे सांभर संधि द्वितीय से जाना जट्टा है
- सांभर संधि द्वितीय ——————
- फ़रवरी 1791 ई. में हुई
- यह संधि सवाई प्रतापसिंह एवं मराठा की तरफ से डी-बोइंन , लकवा दादा के मध्य हुई थी
- इस संधि के तहत पूर्व बकाया 63 लाख रूपये एवंयुद्ध हर्जाना 15 लाख रूपये प्रतापसिंह ने मराठाओ को देना स्वीकार किया
- सवाई प्रतापसिंह ने अवध के नवाब वजीर अली को शरण दी थी
- अंग्रेजो द्वारा दबाव बनाये जाने पर वजीर अली को 1799 ई. में अंग्रेजो को सोंपा
- राजपूत शासक की शरण में कोई आ जाता तो मृत्यू तक उसकी रक्षा करते इसके लिए मृत्यू तक शरण सिद्दांत था
- मृत्यू तक शरण सिद्दांत की अवहेलना करने वाला राजपुताना का प्रथम शासक सवाई प्रतापसिंह था
- फतेहपुर का युद्ध ——————
- 1799 ई में हुआ
- स्थान —————— सीकर
- यह युद्ध सवाई प्रतापसिंह एवं जोर्ज थोमस के मध्य हुआ
- जोर्ज थोमस आयरलेंड का सेनापति था
- इस युद्ध में जोर्ज का साथ —————— खेतड़ी के ठाकुर ने दिया था
- विजेता —————— जोर्ज थोमस
- 1799 ई. में थोमस के आक्रमण के पश्चात सवाई प्रतापसिंह ने मराठाओ को पैसे चुकाने से मना कर दिया था
- मालपुरा का युद्ध ——————
- अप्रैल 1800 ई. में
- स्थान —————— टोंक
- यह युद्ध सवाई प्रतापसिंह एवं मराठा के मध्य हुआ
- विजेता —————— मराठा
- इस युद्ध के बाद सवाई प्रतापसिंह को 25 लाख रूपये युद्ध हर्जाना देना पड़ा था
- 1803 ई. में प्रतापसिंह की मृत्यू हुई
- सवाई प्रतापसिंह का मराठा के साथ अभियान ——–
- सवाई जगतसिंह द्वितीय ( 1803-1819 ) ——————-
- अगले भाग में ——————- Topik-30 में