नृत्य : राजस्थान की नृत्य कला Topik-30
हमने राजस्थान की नृत्य कला के पिछले भाग में राजस्थान के क्षेत्रीय नृत्य , राजस्थान के प्रमुख व्यवसायिक नृत्य , राजस्थान का राज्य लोक नृत्य : घुमर एवं राजस्थान का शास्त्रीय नृत्य : कत्थक नृत्य का अध्ययन किया अब हम राजस्थान के प्रमुख धार्मिक नृत्यो का अध्ययन करेंगे ——-
.
.
राजस्थान की नृत्य कला
राजस्थान के प्रमुख धार्मिक नृत्य —————
- अग्नि नृत्य —————
- प्रसिद्ध ——– कतरियासर ( बीकानेर )
- जसनाथ जी की आराधना में यह नृत्य किया जाता है
- आश्विन शुक्ल अप्त्मी को आयोजित होता है
- नृत्य के दौरान लगाया जाने वाला नारा ——– फतेह – फतेह
- नृत्य के नृत्यकार ——– सिद्ध कहलाते है
- नृत्य में पाणी का छिडकाव किया जाता है जिसे ——– जमाव कहा जाता है
- अंगारों का स्थान ——– धुणा कहलाता है
- इस नृत्य के प्रवर्तक ——– रुस्तम जी एवं लालनाथ जी
- प्रसिद्ध नृत्यकार ————–
- लालनाथ
- चोखानाथ
- भैरुनाथ
- वाद्द यंत्र ———-
- चिमटा
- थाली
- मंजीरा
- नगाड़ा इत्यादि
- मतीरा फोड़ना , मुख में तलवार रखना इत्यादि द्रश्य दिखाए जाते है
- छ्मछ्ड़ी नृत्य —————-
- मेवाड़ का प्रसिद्ध
- गणेश चतुर्थी ——– भाद्रपद शुकल चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल 14 तक
- मेवाड़ क्षेत्र के छोटे बच्चो द्वारा गणेश चतुर्थी के अवसर पर रंग-बिरंगी पोशाके पहनकर यह नृत्य किया जाता है
- कक्का नृत्य —————-
- प्रसिद्ध ——– जेसलमेर
- यह नृत्य बसंत पंचमी ( माघ शुक्ल पंचमी ) को आयोजित होता है
- प्यार / प्रेम के देवता कामदेव / रतीदेव को समर्पित नृत्य है
- यह नृत्य लडको द्वारा वर्ताकार घेरे में आयोजित किया जाता है
- थाली नृत्य —————-
- कोलुमंड ( फलोदी )
- यह नृत्य मुख्यत: चेत्र अमावश्या को आयोजित होता है
- यह नृत्य पाबूजी की आराधना में थाली वाद्द यंत्र के साथ किया जाता है
- लडके के जन्म पर थाली नृत्य किया जाता है
- तेजा नृत्य —————-
- नागोर
- यह नृत्य तेजाजी की आराधना में किया जाता है
- घोड़ी पर बैठकर तेजा गायन के साथ यह नृत्य किया जाता है
- नृत्य के दौरान ——– तेजागीत व तेजाटेर का गायन किया जाता है
- गोगाजी नृत्य —————-
- हनुमानगढ़ व चुरू
- यह नृत्य गोगाजी की आराधना में किया जाता है
- गोगाजी का वाद्द यंत्र ——– डेरू
- डेरू — आम की लकड़ी से बना होता है
- घुडला नृत्य —————-
- प्रसिद्ध ——– जोधपुर
- यह नृत्य प्रतिवर्ष चेत्र कृष्ण अष्टमी को आयोजित होता है
- नृत्य के दौरान महिलाये अपने सिर पर छिद्रयुक्त मटकी रखकर उसमे जलता हुआ दीपक रखकर नृत्य का आयोजन किया जाता है
- महिलाओ द्वारा गणगोर एवं घुडला गीतों के साथ यह नृत्य किया जाता है
- यह नृत्य घुड्लेखां की गर्दन काटने की ख़ुशी में किया गया
- इस नृत्य की शुरुवात 1492 ई. में कोसाना युद्ध के पश्चात् सातलदेव के काल से मानी जाती है
- इस नृत्य को सरंक्षण ——– रूपायन संस्थान , बोरुन्दा , जोधपुर ने दिया
- रूपायन संस्थान के संस्थापक ——– कमल कोठारी थे
- स्थापना ——– 1960 ई. में
- रूपायन संस्थान के ससन्स्थापक ——– विजयदान देता
- पत्रिका ——– मरूचक्र , लोक संस्क्रति
- छोटा घुडला महोत्सव ——– मेड़ता सिटी , नागोर का प्रसिद्ध है
- कानुडा नृत्य —————-
- चौहटन ( बाड़मेर )
- जन्माष्टमी के दिन चौहटन ( बाड़मेर ) में सामूहिक रूप से इस नृत्य का आयोजन किया जाता है
- यह युगल नृत्य है
- इस नृत्य में पुरुष —श्री कृष्ण और महिलाये —– श्री राधाजी बनकर नृत्य करती है
- भेरव नृत्य —————-
- ब्यावर
- यह नृत्य बादशाह की सवारी रवाना होने से पूर्व भेरूजी के मन्दिर में किया जाता था
- बादशाह की सवारी के दौरान किया जाने वाला नृत्य ——– मयूर नृत्य कहलाता है
- ईला – ईली नृत्य —————-
- यह नृत्य ईलोजी के मन्दिर में महिलाओ द्वारा संतान प्राप्ति की कामना हेतु किया जाता है
- इस नृत्य का सर्वाधिक प्रचलन ——– बालोतरा व जालोर क्षेत्र में है
- ईलोजी ——– होलिका के पति
- मछली नृत्य —————-
- प्रसिद्ध ——– बाड़मेर
- यह नृत्य मुख्यत: बंजारा जाती / कंजर जाती द्वारा किया जाता है
- यह नृत्य जलदेवता एवं माछिरी नमक मछली की प्रेमकथा पर आधारित है
- यह नृत्य पूर्णिमा की रात्रि को आयोजित होता है
- नृत्य के दौरान चाँद —– शिवजी का तथा कन्याए —— पार्वती बनकर नृत्य करती है
- यह नृत्य कन्याओ का मुख्य नृत्य है
- पुरे विश्व का एकमात्र ऐसा लोक नृत्य जो अत्यंत ख़ुशी के साथ शुरू होता है एवं दुःख के साथ समाप्त होता है
- तेरहताली नृत्य —————-
- प्रसिद्ध ——– रामदेवरा , पोकरण , डीडवाना , डूंगरपुर , हिंगलाज माता मन्दिर जेसलमेर
- इस नृत्य का प्रमुख वाद्द यंत्र ——– मंजीरा है
- कुल 13 मंजीरो का प्रयोग होता है
- 9 मंजीरे —— दाये पांव में बांधते है — जिसे ढोल मंजीरे कहा जाता है
- 4 मंजीरे ——– हाथो में बांधते है — जिसे घूंट मंजीरे कहा जाता है
- इस नृत्य का सहायक वाद्द यंत्र ———
- तंदूरा
- रावणहत्था
- थाली — पुरुष बजाते है
- यह नृत्य कामडिया पंथ की महिलाओ द्वारा बैठकर किया जाता है
- नृत्य के दौरान महिलाये घरेलू कार्यो का प्रदर्शन करती है
- इस नृत्य का उदगम स्थल ——– पादरला गाँव ( पाली ) है
- तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना ——– मांगी बाई है जिनका मूल स्थान बानीना गाँव चितोडगढ़ है
- मांगी बाई का विवाह ——– पादरला गाँव ( पाली ) के भेरूदास के साथ हुआ
- मांगी बाई के जेठ का नाम गोरमदास था जो मांगी बाई का गुरु माना जाता है
- 1954 में पंडित नेहरु की अध्यक्षता में चितोडगढ़ में गाडिया- लोहार सम्मेलन आयोजित हुआ
- इस सम्मेलन में नेहरु जी के सामने मांगी बाई ने आकर्षक नृत्य किया
- परिणामस्वरूप 1969 में मांगी बाई को साहित्य एवं संगीत अकादमी पुरुष्कार दिया गया
- तेरहताली नृत्य वर्तमान समय में व्यवसायिक नृत्य का रूप धारण कर चूका है
- तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना ———
- शांति
- फुलवा
- गोदावरी
- मेना
- अन्य प्रमुख कलाकार ——–
- लक्ष्मणदास कामड़
- नारायणी देवी
- बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने तेरहताली नृत्य को सरंक्षित किया
- कामडिया पंथ की भेव पंचायत ने इस नृत्य को प्रतिबंधित किया
- राजस्थान के प्रमुख जनजातीय नृत्य —————-
- अगले भाग में —————- Topik—— 31 में