नृत्य : राजस्थान की नृत्य कला Topik-31
हमने राजस्थान की नृत्य कला के पिछले भाग में राजस्थान के प्रमुख धार्मिक नृत्य , राजस्थान के क्षेत्रीय नृत्य तथा इनके अलावा राजस्थान के प्रमुख व्यवसायिक नृत्य का अध्ययन किया अब हम राजस्थान के प्रमुख जनजातीय नृत्यो का अध्ययन करेंगे ——-
.
.
.
राजस्थान की नृत्य कला
राजस्थान के प्रमुख जनजातीय नृत्य —————-
- भील जनजाति के नृत्य —————
- गवरी / राई नृत्य —————-
- उदुपुर
- यह नृत्य सर्वाधिक लम्बी अवधि तक चलता है
- भाद्रपद मास में प्रारम्भ होकर आश्विन मास तक आयोजित होता है
- लगभग 40 दिन तक इस नृत्य का आयोजन होता है
- गवरी नृत्य सबसे प्राचीन नृत्य है यह नाट्य पर आधारित है ——- मेरु नाट्य पर आधारित है
- यह शिव – पार्वती को समर्पित नृत्य है , इस नृत्य से भेरूजी को प्रसन्न किया जाता है
- यह नृत्य भगवान शिव और भस्मासुर राक्षस की कथा पर आधारित है
- भगवान शिव का अभिनय करने वाला व्यक्ति ——- पुरिया कहलाता है
- इस नृत्य में एक तरफ पुरुष दूसरी तरफ महिलाये ऐसा उच्चारण करते है ——–
- पुरुष ————–
- एकी – एकी
- काली – काली
- मीणा – मीणा
- झम्टया – झम्टया
- महिलाये ———
- बेकी – बेकी
- गुजरी -गुजरी
- बंजारा – बंजारा
- खड्क्या – खड्क्या / कुडकुडिया – कुडकुडिया
- इस नृत्य के अंतिम दिन भील जनजाति के लोग कुम्हार के घर जाकर काली मिटटी के हाथी एवं घोड़े खरीदते है , जिसे घडावन कहा जाता है
- भगवान शिव – पार्वती की मुर्ति पवित्र सरोवर में विसर्जित करना , वलावन कहलाता है
- इस नृत्य के सभी पात्र सयुंक्त रूप से गवरी की गम्मत कहलाते है
- इस नृत्य में होने वाली सभी क्रियाओ को गवरी की गाई कहा जाता है
- नेजा / खेल ————–
- बांसवाडा
- यह युगल नृत्य है
- यह नृत्य भील जनजाति का एक खेल है जो होली के अवसर पे गाँव / गवाड के चौक में आयोजित होता है
- वर्तमान में यह नृत्य , नाटक का रूप ले चूका है
- इस नृत्य में खेजड़ी वृक्ष को लगाना और काँटों से ढकना ——- सुरडा कहलाता है
- युद्ध नृत्य ————–
- यह नृत्य भील जनजाति द्वारा दो गुटों में बंटकर किया जाता है
- यह नृत्य भीलो की वीरता एवं शोर्य का प्रतीक है
- वर्तमान में इस नृत्य पर राज्य सरकार ने रोक लगा दी है
- हाथीमन्ना नृत्य ————–
- यह नृत्य विवाह के अवसर पर बैठकर किया जाता है
- इस नृत्य में हाथ में तलवार रखी जाती है
- द्विचक्री नृत्य ————–
- यह नृत्य युगल नृत्य है जो दो अर्द्धवर्ताकार घेरो में आयोजित होता है
- आंतरिक घेरे में महिलाये रहती है
- बाह्यय घेरे में पुरुष रहते है
- एक दल गाता है
- दूसरा दल नाचता है
- घूमरा नृत्य ————–
- यह नृत्य गरबा से समानता रखता है
- गैर नृत्य
- रमणी नृत्य
- लाठी नृत्य
- गिलखिचरिया नृत्य
- गवरी / राई नृत्य —————-
.
.
.
- कालबेलिया जनजाति के नृत्य ————–
- कालबेलिया नृत्य ————–
- अजमेर , पाली
- प्राचीन समय में यह नृत्य ——– सपेरा – सपेरन की प्रेमकथा पर आधारित था
- जिसमे पुंगी / बीन वाद्द यंत्र का प्रयोग किया जाता था
- वर्तमान में यह नृत्य गीत पर आधारित है
- इस नृत्य की प्रमुख नृत्यांगना ——– गुलाबो सपेरा है
- गुलाबो को पदम् श्री पुरुष्कार से सम्मानित किया जा चूका है
- इस नृत्य को वर्तमान में शंकरिया नृत्य भी कहा जाता है
- पूर्व में शंकरिया नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना ——– कंचन सपेरा थी
- इस नृत्य को करते समय काले रंग की पोशाक / 80 कली का लहंगा पहना जाती है
- राजस्थान का एकमात्र ऐसा लोक नृत्य है जिसको यूनेस्को ने 2010-11 में विश्व – विरासत में शामिल किया है
- अन्य प्रमुख नृत्यांगना ————
- कमली
- राजकी
- मेना
- रेणु रंगीली
- बागडिया नृत्य —————-
- यह नृत्य महिलाओ व बच्चो द्वारा किया जाता है
- अपनी कला प्रस्तुत के बदले पैसे मांगते समय किया जाने वाला नृत्य
- पुंगी नृत्य —————-
- यह नृत्य पुंगी वाद्द यंत्र के साथ किया जाता है
- बिच्छुडा नृत्य —————-
- यह गीत पर आधारित नृत्य है
- इन्डोणी नृत्य —————-
- गीत पर आधारित नृत्य है
- पणिहारी नृत्य —————-
- गीत पर आधारित नृत्य
- छाग नृत्य
- नव नृत्य
- कालबेलिया नृत्य ————–
.
.
.
- सहरिया जनजाति के नृत्य —————-
- शिकारी नृत्य —————-
- यह नृत्य सहरिया जनजाति की वीरता एवं शोर्य का प्रतीक नृत्य है
- यह नृत्य पुरुषो द्वारा किया जाता है
- इन्द्र्परि नृत्य —————-
- यह नृत्य पुरुषो द्वारा महिलाओ की वेशभूषा पहनकर किया जाता है
- लहंगा —————-
- यह नृत्य केवल महिलाओ द्वारा किया जाता है
- झेला —————-
- यह फसली नृत्य है
- इस नृत्य में 2 खेतो के व्यक्तियो द्वारा गीत गाये जाते है
- महिलाये नृत्य करती है
- सांग —————-
- यह युगल नृत्य है
- शिकारी नृत्य —————-
.
.
.
- कंजर जनजाति के नृत्य —————-
- धाकड़ नृत्य —————-
- यह नृत्य कंजरो की वीरता का प्रतीक नृत्य है
- झालापाव एवं बीरा के युद्ध पर आधारित यह नृत्य है
- फुन्दी नृत्य / चकरी नृत्य —————-
- प्रसिद्ध ——– बूंदी व कोटा
- यह नृत्य कजली तीज पर आयोजित होता है
- कजली तीज ——– भाद्रपद कृष्ण 3
- यह नृत्य कंजर जनजाति की कन्याओ द्वारा किया जाता है
- कंजरतोडा नृत्य
- धाकड़ नृत्य —————-
.
.
.
- कथौडी जनजाति के नृत्य —————-
- होली नृत्य —————-
- यह नृत्य होली के अवसर पर किया जाता है
- पिरामिड बनाते हुए महिलाओ द्वारा नृत्य आयोजित किया जाता है
- मावलिया नृत्य —————-
- यह नृत्य नवरात्र के अवसर पर किया जाता है
- यह नृत्य पुरुषो द्वारा किया जाता है
- फड़का —————-
- यह नृत्य नही है
- कथौडी जनजाति की महिलाओ द्वारा मराठी अंदाज में पहनी गयी लाल रंग की साड़ी , फड़का कहलाती है
- कथौडी जनजाति का कार्य —————-
- ख़ैर के वृक्ष से कत्था तेयार करने का कार्य है
- कथौडी जनजाति का निवास —————-
- कोटडा ( उदयपुर )
- झाडोल ( उदयपुर )
- होली नृत्य —————-
.
.
.
- गरासिया जनजाति के नृत्य —————-
- वालर नृत्य —————-
- सिरोही
- इस नृत्य को गरासिया जनजाति की घुमर कहा जाता है
- यह दो प्रकार से आयोजित होता है ———–
- सिर्फ महिलाये ———-
- किसी वाद्द यंत्र का प्रयोग नही होता
- महिला + पुरुष ( दोनों द्वारा ) —————
- इसमें वाद्द यंत्र ——– नगाड़ा , डफली का प्रयोग होता है
- सिर्फ महिलाये ———-
- रायण नृत्य —————-
- गरासिया जनजाति के पुरुष हाथ में तलवार लेकर नकली युद्ध का प्रदर्शन करते है
- यह नृत्य गरासिया जनजाति की वीरता एवं शोर्य का प्रतीक नृत्य है
- इस नृत्य में शामिल पात्र ——– खुंट गरासिया कहलाते है
- लूर नृत्य —————-
- यह नृत्य विवाह के अवसर पर आयोजित होता है
- महिलाये आपस में दो दलों में बंटकर नृत्य करती है
- एक दल किशोरी के रिश्ते की मांग करते हुए नृत्य को करती है
- कुद नृत्य —————-
- यह नृत्य बिना किसी वाद्द यंत्र के किया जाता है
- सीधी पंक्ति में खड़े होकर कूदते हुए यह नृत्य किया जाता है
- इस नृत्य में युवक द्वारा युवती को भगाने की कला का प्रदर्शन किया जाता है
- मांदल नृत्य —————-
- यह नृत्य मांगलिक अवसर पर आयोजित किया जाता है
- ज्वारा नृत्य —————-
- इस नृत्य में मुख्य वाद्द यंत्र ——– डफली होता है
- मोरिया नृत्य
- गरासिया नृत्य
- वालर नृत्य —————-
.
.
.
- मेव जाती के नृत्य —————-
- रणबाजा नृत्य —————-
- भरतपुर , अलवर
- यह नृत्य पुरुषो द्वारा किया जाता है
- वाद्द यंत्र ——– नगाड़ा / ढोल
- मेव जाती की वीरता एवं शोर्य का प्रतीक नृत्य
- नृतक हाथ में तलवार लेकर इस नृत्य का आयोजन करता है
- रतवई नृत्य —————-
- यह नृत्य महिलाओ द्वारा सिर पर खारी रखकर किया जाता है
- यह नृत्य दुल्हन की विदाई के समय किया जाता है
- खारी / संदूक नृत्य —————-
- यह नृत्य दुलहन की विदाई के समय किया जाता है
- रणबाजा नृत्य —————-
.
.
.
.
- नट / भाट जाती के नृत्य —————-
- कठपुतली नृत्य —————-
- यह नृत्य कठपुतली खेल दिखाते समय आयोजित होता है
- इस नृत्य को नाचनिया नृत्य भी कहा जाता है
- इस नृत्य में वाद्द यंत्र ——– डमरू का प्रयोग होता है
- मोर / शारीरिक नृत्य
- अंगोछा नृत्य
- कठपुतली नृत्य —————-
- सुंघनी नृत्य —————-
- मीणा जनजाति एवं गाड़िया लोहार जाती द्वारा किया जाता है
- यह नृत्य मुख्यत: पाली में होता है
- यह नृत्य अत्यधिक मात्रा में इत्र लगाकर कन्याओ द्वारा पारदर्शी वस्त्र पहनकर पुरुषो को विवाह हेतु अपनी और आकर्षित करने के लिए किया जाता है
- यह नृत्य ——– सावन मास / मेलो में किया जाता है
- नृत्य में युवतियो द्वारा पहनी गयी पारदर्शी वेशभूषा को ——– खुसनी कहा जाता है
- युवतियो द्वारा अत्यधिक मात्र में इत्र का प्रयोग करने के कारण इस नृत्य को ——– रही नृत्य भी कहा जाता है
- इस नृत्य का आयोजन युवक – युवतियो के गन्धर्व विवाह हेतु किया जाता है
.
.
.
- अन्य महत्वपूर्ण नृत्य —————-
- हुन्दरी नृत्य —————-
- मेवाड़ में
- यह नृत्य भील एवं मीणा जनजाति की महिलाओ द्वारा किया जाता है
- लुम्बर नृत्य —————-
- जालोर
- हरनो नृत्य —————-
- मेवाड़ में
- यह नृत्य दीपावली के अवसर पर किया जाता है
- हुरंगा नृत्य —————-
- भरतपुर
- मोहिली नृत्य —————-
- प्रतापगढ़
- शुकर नृत्य —————-
- जालोर
- हुन्दरी नृत्य —————-