बीकानेर का इतिहास : राठौड़ वंश Topik-37
पिछले भाग में हमने बीकानेर का इतिहास शुरू से लेकर सुजान सिंह तक का इतिहास पढ़ा , सुजान सिंह के समय मराठो के विरुद्ध राजपूत शासको का हुरडा सम्मेलन 17 जुलाई 1734 ई. को हुआ , इस सम्मेलन में सुजान सिंह ने अपने पुत्र जोरावर सिंह को भेजा , सुजान सिंह के बाद जोरावर सिंह बीकानेर के शासक बने , आगे का बीकानेर का इतिहास का इतिहास निम्नलिखित है ————–
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बीकानेर का इतिहास
- जोरावर सिंह ( 1735-1746 ई. ) —————-
- मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार —————-
- जोरावर सिंह ने बीकानेर में वेद्द्क सागर का निर्माण करवाया
- और पूजा पद्दति नामक संस्कृत पुस्तकालय की स्थापना बीकानेर में जोरावर सिंह ने करवाई
- मुंशी देवी प्रसाद के अनुसार —————-
- गजसिंह ( 1746-1787 ई. ) —————-
- सफदरगंज के विद्रोह का दबाने के कारण मुग़ल बादशाह अहमद शाह ने गजसिंह को निम्नलिखित उपाधि प्रदान की —————-
- श्री राजराजेशवर महाराजाधिराज महाराजा शिरोमणी श्री गजसिंह जी
- और मही मरातिब की उपाधि प्रदान की
- 1753 ई. में बिदासर ( चुरू ) के पास दड़ीबा गाँव में ताम्बे की खांन निकली
- 1757 ई. में नोहरगढ़ ( बीकानेर ) की नीव रखी
- 1782 ई. में गजसिंह ने गजसिंहपूरा ( श्री गंगानगर ) की स्थापना की
- गोपीनाथ गाढण / काशीनाथ गाढण ने —————- गजसिंह जी रो रूपक ग्रन्थ की रचना की
- फतेहराम ने —————- गजसिंह जी रो गीत कवित दुहा की रचना की
- 4 अप्रैल 1787 ई. को गजसिंह की मृत्यू हुई
- मंडलावत के संग्रामसिंह स्वामी भक्ति के लिए प्रसिद्ध था
- संग्रामसिंह गजसिंह के साथ 1787 ई. में सता हुआ
- सफदरगंज के विद्रोह का दबाने के कारण मुग़ल बादशाह अहमद शाह ने गजसिंह को निम्नलिखित उपाधि प्रदान की —————-
- राजसिंह ( 25 अप्रैल 1787 ई. )
- सूरत सिंह ( 1787-1828 ई. ) —————-
- 21 अक्टूबर 1787 ई. को वास्तविक राज्यभिषेक हुआ
- सूरत सिंह ने 1799 ई. में सूरतगढ़ ( श्री गंगानगर ) का निर्माण करवाया
- सूरतसिंह ने फतेहगढ़ का निर्माण करवाया
- 1804 ई. में सुरत सिंह ने सूरतगढ़ में राजपूत स्कूल की स्थापना की
- यह स्कूल पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा स्कूल है
- 1805 ई. में सूरतसिंह ने जावंता भाटी को पराजीत कर भटनेर पर अधिकार किया
- मंगलवार के दिन पराजीत किया इसलिये भटनेर का नाम बदलकर हनुमानगढ़ रखा
- और यंहा पर हनुमान जी का मन्दिर बनवाया
- चांदी के गोले दागे —————-
- चुरू के शासक शिवसिंह पर बीकानेर के शासक सूरत सिंह ने अमरचंद सुराणा के नेतृत्व में आक्रमण किया
- आक्रमण के दोरान गोले-बारूद समाप्त होने पर शिवसिंह ने चुरू के किले की रक्षा हेतु चांदी के गोले दागे
- सूरत सिंह ने 1807 ई. में गिंगोली युद्ध में जयपुर के जगतसिंह का साथ दिया था
- सुरतसिंह का पुत्र मोतीसिंह था
- मोतीसिंह की मृत्यू पर इनकी पत्नी दीप कंवरी सती हुई
- यह बीकानेर राजघराने की अंतिम सती थी
- सूरतसिंह के दरबारी साहित्यकार दयालदास ने —————- दयालदास री ख्यात की रचना की
- सूरत सिंह ने 1818 ई. में अंग्रेजो की सहायक संधि को स्वीकार किया
- 9 मार्च 1818 ई. को चार्ल्स मेंटकोफ़ के साथ सूरत सिंह की तरफ से काशीनाथ ओझा ने अंग्रेजो के साथ संधि की
- 24 मार्च 1828 ई. को सूरत सिंह की मृत्यू हुई
- रतनसिंह ( 1828-1851 ई. ) —————-
- राज्याभिषेक —————- 5 अप्रैल 1828 ई. में हुआ
- अकबर द्वितीय ने रतनसिंह को माहि मरातिब की उपाधि प्रदान की
- वाराणसी का युद्ध —————-
- 1829 ई. में हुआ
- यह युद्ध जेसलमेर के गजसिंह और बीकानेर के रतनसिंह के मध्य हुआ
- विजेता —————- गजसिंह ( जेसलमेर )
- मेवाड़ शासक जवान सिंह ने अपने विश्वसनीय व्यक्ति सेठ जोरावरमल को भेजकर जैसलमेर और बीकानेर के मध्य संधि करवाई
- इस संधि के समय अंग्रेज सैनिक अधिकारी लेफ्टिनेट बोइले भी उपस्थित थे
- रतनसिंह के काल में लिखित ग्रन्थ —————-
- रतन विलास —————- बिठु ओझा द्वारा रचित
- रतन रूपक —————- सागरदान करणी दनोत द्वारा रचित
- 1844 ई. में रतनसिंह ने कन्या वध प्रथा पर रोक लगाई
- रतनसिंह ने गया ( बिहार ) में पुत्रियो को न मारने हेतु राजपूतो को शपथ दिलाई
- 1844 ई. में रतनसिंह ने आण जारी की थी
- भूमिहीन लोगो की पुत्रियों के विवाह पर अधिकतम 100 रूपये के खर्च का प्रावधान किया
- और विवाह पर अधिकतम त्याग राशी 10 रूपये का प्रावधान किया
- कन्यावध प्रथा के लिए जिम्मेदार त्याग प्रथा थी
- आंगल-सिक्ख युद्ध और आंगल-अफगान युद्धों में इन्होने रतनसिंह ने अंग्रेजो का साथ दिया था
- रतनसिंह ने शेखावाटी के जवाहर जी को सरंक्षण दिया था तथा अंग्रेजो के आदेश के बाद भी जवाहर जी को अंग्रजो को नही सोंपा था
- 1851 ई. में रतनसिंह की मृत्यू हुई
- सरदार सिंह ( 1851-1872 ई. ) —————-
- सरदार सिंह के काल में स्फिनर्स हौर्स सेना का गठन किया गया
- 1857 की क्रांति के समय बीकानेर के शासक सरदार सिंह थे
- सरदार सिंह ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजो का साथ दिया था
- राजपुताना के एकमात्र शासक सरदार सिंह थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को दबाने हेतु अंग्रजो की सहायता के लिए अपनी सेना को राजपुताना से बाहर ( पटियाला , सिरसा , रेवाड़ी ) भेजी
- सरदार सिंह ने सती प्रथा व समाधि प्रथा पर रोक लगाई —————-
- सती निवारण अधिनियम – 1829 ई. ———- लार्ड विलियम बेन्टिक
- समाधि निवारण अधिनियम – 1861 ई. ——– लुडलो के प्रयासों से
- सरदार सिंह ने महाजनों पर लगाये गये बाछ कर को माफ़ किया
- मृत्यूभोज पर लापसी का प्रावधान किया
- सरदार सिंह ने बीकानेर में रसिक शिरोमणी मन्दिर का निर्माण करवाया
- सरदार सिंह ने सरदारशहर की स्थापना की
- सरदार सिंह ने प्राचीन सिक्को के उपर लिखे नाम में परिवर्तन किया
- प्राचीन सिक्को पर ———-
- एक तरफ —– बादशाह / शाह आलम शब्द अंकित था
- दूसरी तरफ —- जुर्ब श्री बीकानेर
- परिवर्तित नाम नये सिक्के ——–
- एक तरफ —— ओरंगराय हिन्द
- दूसरी तरफ —– कविन विक्टोरिया 1859 अंकित करवाया
- प्राचीन सिक्को पर ———-
- 1872 ई. में सरदार सिंह की मृत्यू हुई
- डूंगर सिंह (1872-1887 ई. ) —————-
- प्रारम्भिक शासनकाल बर्टन कौंसिल द्वारा संचालित किया गया
- यह प्रथम शासक थे जिन्होंने हिमालय का पाणी मरुस्थल में लाने की कल्पना की थी
- डूंगर सिंह ने 800 ऊँटो का एक सैनिक काफिला तैयार किया था
- अंग्रेजो की सहायता हेतु डूंगर सिंह ने इस काफिले को ईरान भी भेजा था
- डूंगर सिंह के निर्माण कार्य —————-
- बीकानेर में —————-
- डूंगरगढ़ क़स्बा बसाया
- शिवबाड़ी नामक स्थान पर पिता लालसिंह के नाम पर लालेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाया
- गुलाब शवेर मन्दिर का निर्माण करवाया
- गणेश मन्दिर बनवाया
- सूर्य मन्दिर का निर्माण
- बीकानेर दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया
- बीकानेर दुर्ग में सुनहरी बुर्ज एवं चीनी बुर्ज का निर्माण करवाया
- बद्रिनारायण मन्दिर बनवाया
- सरदार निवास महल का निर्माण
- लाल निवास महल का निर्माण करवाया
- हरिद्वार में —————- गंगा मन्दिर बनवाया
- काशी ( उतरप्रदेश ) में —————- डुंगरेश्व्र मन्दिर बनवाया
- द्वारिका ( गुजरात ) में —————- मुरली मनोहर मन्दिर बनवाया
- बीकानेर में —————-
- डूंगरसिंह के काल में बीकानेर में पापड़ व भुजिया उद्दोग स्थापित किये गये
- 1878 ई. में डूंगरसिंह ने अफगानिस्तान आक्रमण में अंग्रेजो का सहयोग किया था
- 1879 ई. में डूंगर सिंह ने अंग्रेजो के साथ नामक संधि की थी
- डूंगर सिंह ने 1884 ई. में बीकानेर में डाक घर की स्थापना की
- 1887 ई. में डूंगर सिंह की मृत्यू हुई
- महाराजा गंगासिंह ( 1887-1943 ई. ) —————-
- अगले भाग में —————- Topik-38 में