राजस्थान में प्रमुख भू- राजस्व पद्दतिया Topik-6
राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था सामन्ती व्यवस्था थी , जिसमे एक भाई राजा बनता अन्य भाइयो को भूमि दी जाती जिसे जागीर व ठिकाना कहते थे , जिन भाइयो को जागीर मिलती थी उसे सामंत कहा जाता था , ये जागीर इनको जीवन निर्वाह या प्रसाशनिक व्यवस्था सम्भालने के लिए दी जाती थी ,राजस्थान में पहले 19 रियासते 3 ठिकाने व 1 केन्द्रशासित प्रदेश था , इन रियासतों में राजा जमींदार एवं जागीरदारो सामन्तो द्वारा किसानो से बहुत प्रकार के कर वसूले जाते थे और लाग-बागे ली जाती थी ,, राजस्थान में प्रमुख भू- राजस्व पद्दतिया निम्नलिखित है ——-
.
.
.
- राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था सामन्ती व्यवस्था थी
- जिसमे एक भाई राजा बनता अन्य भाइयो को भूमि दी जाती जिसे जागीर व ठिकाना कहते थे
- जिन भाइयो को जागीर मिलती थी उसे सामंत कहा जाता था
- ये जागीर इनको जीवन निर्वाह या प्रसाशनिक व्यवस्था सम्भालने के लिए दी जाती थी
.
.
.
राजस्थान में प्रमुख भू- राजस्व पद्दतिया ——–
- लाटा पद्दति ——
- अन्न के ढेर के आधार पर भू-राजस्व का निर्धारण
- किसान ने जो अन्न उत्पादित किया है उसका एक ढेर लगा देता उसे बाँटकर भू-राजस्व लिया जाता
- कांकड कुंत पद्दति ——
- राजस्थान में किसानो का सर्वाधिक शोषण इसी पद्दति से हुआ
- खड़ी फसल को देखकर ही उपज का अनुमान लगाकर भू राजस्व का निर्धारण कर दिया जाता
- अभी फसल की कटाई भी नही हुई उससे पहले ही भू-राजस्व निर्धारित कर दिया जाता
- डोरी पद्दति ——-
- भूमि का मापन कर प्र्तिबिघा भूमिकर निर्धारण कर वसूली की जाती थी
- जेसे —- 1 बीघा का इतना रु तो किसी किसान के पास 5 बीघा जमीन थी तो उस रासी से 5 का गुना कर वसूली की जाती
- इस पद्दति के अंतर्गत हलगत व बिघेडी पद्दतिया भी शामिल की गयी
- मुकाता पद्दति ——
- इस पद्दति में प्रत्येक गाव के मुखिया को गाव के कर की वसूली की जिम्मेदारी दी जाती थी
- गाव का मुखिया किसानो से वसूली कर जागीरदार को देता था
.
.
.
.
.
- 2. राजस्थान में प्रमुख कर एवं लाग-बागे —–
- गृह कर —–
- गृह कर को विभिन्न रियासतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता था जेसे —–
- जयपुर में घर की बिछोती
- जोधपुर में घर गिनती किवाड़
- उदयपुर में घर बराड़
- बीकानेर में धुंवा बाछ
- गृह कर को विभिन्न रियासतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता था जेसे —–
- दूध लाग —–
- जागीरदार द्वारा प्रतिदिन प्रत्येक घर से 1 किलो दूध बारी-बारी लिया जाता था
- जलावन लकड़ी कर —–
- जयपुर में इसे दरख्त की बिछोती कहते
- जोधपुर —–कबाड़ा बाब
- उदयपुर —–खड लाकड
- बीकानेर —–काठ
- आयत-निर्यात कर ——
- जयपुर व जोधपुर में इसे ——शायर कहते
- बीकानेर ———जकात
- जेसलमेर ——–दान
- जल कर ——-
- इसमें 2 कर लिए जाते थे
- आबियाना —–सिंचाई कर
- खड्सिसर——पेयजल पर (तालाबो से)
- इसमें 2 कर लिए जाते थे
- जावा माल / रुपोटा——-
- यह कर पशुओ के क्रय-विक्रय पर लगता था
- खूंटा बंधी ——
- प्रति ऊंट पर लगने वाला कर
- खूंटा फिराई ——
- ऊंट क अतिरिक्त अन्य पशुओ पर लगने वाला कर
- जमी चोथ ——-
- भूमि के क्रय-विक्रय पर लगने वाला कर
- चंवरी / न्योता / विवाह कर ——-
- जागीरदार / पटेल / चोधरी के घर पर जब इनके लड़के/लड़की की शादी होती थी तब किसानो से यह कर वसूला जाता था
- 5 रु प्रति विवाह वसूला जाता था
- पंडित की पाग —–
- जागीरदार द्वारा शिक्षा के नाम पर लिया जाने वाला कर
- बिगोड़ी ——
- मारवाड़ में लिया जाने वाला भूमि कर
- अखराई ——
- जमा राशी की रसीद प्राप्त करने हेतु
- खादी ——
- रेगर जाती से लिया जाने वाला कर
- खरडा लाग ——-
- श्रमजीवी जातियों से लिया जाने वाला kr
- कमठा लाग ——
- भवन निर्माण हेतु जागीरदार द्वारा वसूली जाने वाली राशी
- खोला लाग ——
- किसी के पुत्र नही होता था तो दुसरे के पुत्र को गोद लेने पर वसूला जाने वाला कर
- नाता कर ——
- पुनर्विवाह करने पर लिया जाने वाला कर
- हिद भराई ——
- मालियों से लिया जाने वाला कर
- इंच कर ——-
- मालनियो से लिया जाने वाला कर
- नजराना ——–
- जागीरदार जब भी राजा के सामने जाता तो उसे भेंट स्वरूप कुछ न कुछ देना होता था उसे नजराना कहते है वो किसानो से वसूलता
- पान चराई ——
- गोचर भूमि में छोटे पशुओ को चराने पर लिया जाने वाला कर
- घास मरी ——
- गोचर भूमि में बड़े पशुओ पर लगने वाला चराई कर
- पोस्टकार्ड लाग ——-
- डाक खर्च किसानो से वसूला जाता
- किन्ना ——-
- वस्तु विनिमय पर लिया जाने वाला कर
- फलावट लाग ——-
- किसानो की फसल का आकलन करने के लिए लिया जाने वाला कर
- खिचड़ी लाग ——-
- जागीरदार व उसके साथी जिस गाव के निकट अपना शिविर लगाते थे उसी गाँव के लोगो द्वारा उनके भोजन की व्यवस्था की जाती थी जिसे खिचड़ी लाग कहते थे
- कोडी लाग ——-
- जागीरदार व उसके साथी जिस गाव के निकट अपना शिविर लगाते थे उसी गाँव के लोगो द्वारा ठाकुर के घोड़ो के लिए मोठ की व्यवस्था की जाती थी जिसे कोडी लाग कहते थे
- गनिम बराड ——–
- मेवाड़ में लिया जाने वाला युद्ध कर
- भोग लाग ———-
- यह बिजोलिया में चार सेर प्रति बीघा (4सेर/बीघा) लिया जाता था जिसे बाद में घटाकर ढाई सेर प्रति बीघा कर दिया था
- फाडया लाग ——–
- जागीरदार द्वारा जो फसल का हिस्सा लिया जाता उसे कपडे में लिया जाता उन कपड़ो की खरीद पर लिया जाने वाला कर
- अफीम लाग ——
- यह चितोड़ क्षेत्र में लिया जाता था
- पुल्ला लाग ——
- यह प्रति 300 पुल्लो पर एक रुपया की दर से लिया जाता था
- किरायत लोक री भाछ ———
- व्यवसायिक जातियों से लिया जाने वाला कर
- छटूद ———–
- जागीरदारों द्वारा अपनी कुल आय का छटा भाग राजा को दिया जाता था
- हबूब ———-
- रिक्त राजकोष की पूर्ति हेतु लिया जाने वाला कर
- गृह कर —–
.
.
.
.
.
- पट्टा रेख ——
- जागीर के पट्टे पर उस जागीर का आंकलित राजस्व अंकित होता था जिसे पट्टा रेख कहते थे
- हांसिल ——-
- भूमि कर व अन्य कर को मिलाकर जमा की गयी राशी हांसिल कहलाती थी
- खालसा भूमि ——–
- इस भूमि के अंतर्गत ही बापी भूमि और गैर बापी भूमि को शामिल किया गया
- बापी भूमि ——-
- इस भूमि पर किसान का वशानुगत अधिकार होता था
- किसान को अपनी भूमि बेचने अथवा गिरवी रखने का अधिकार था
- उसकी भूमि पर स्थित पेड़ो और घास-फूस पर उसी का अधिकार था
- बापी भूमि का भूमिकर गैर बापी भूमि से कम था
- गैर बापी भूमि ———
- इस भूमि पर किसान का वशानुगत अधिकार नही था
- किसान को अपनी भूमि बेचने अथवा गिरवी रखने का अधिकार नही था
- भूमि पर स्थित पेड़ो और घास-फूस पर किसान का अधिकार नही था
- बापी भूमि ——-
- इस भूमि के अंतर्गत ही बापी भूमि और गैर बापी भूमि को शामिल किया गया