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राजस्थान इतिहास

मेवाड़ का इतिहास : राणा शाखा Topik-19

हमने पीछे के भाग में मेवाड़ का इतिहास शुरू से लेकर रावल रतनसिंह तक पढ़ा था , रावल रतनसिंह मेवाड़ के रावल शाखा का अंतिम शासक था , जिनका शासन काल 1301-1303 ई. तक माना जाता है , रतनसिंह ने रानी पदमिनी से विवाह किया था , रावल रतनसिंह के समय चितोड़ पर अलाउदीन खिलजी का आक्रमण हुआ और अलाउद्दीन ने चितोड़ पर अधिकार किया अब आगे राणा शाखा का इतिहास पढ़ते है , आगे का मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है —

मेवाड़ का इतिहास

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मेवाड़ का इतिहास

  • राणा हम्मीर ( 1326-1364 ) ——————
    1. यह गुहिल वंश की राणा शाखा का प्रथम शासक था
    2. रावल शाखा का अंतिम शासक रावल रतनसिंह था जिसके बाद खिज्र खा ने 1303-13 तक शासन किया
    3. अलाउद्दीन की मृत्यू के बाद मालदेव को चितोड़ का कार्यभार सोंपा
    4. मालदेव ने 1313-20 तक शासन किया 1320-26 तक जेससिंह ने शासन किया
    5. जेसासिंह को पराजीत कर 1326 ई. में राणा हम्मीर ने चितोड़ पर अधिकार किया था
    6. हम्मीर सिसोदा गाँव का निवासी था
    7. यह अरिसिंह का पुत्र और लक्ष्मणसिंह का पोत्र था
    8. महाराणा कुम्भा ने अपने ग्रन्थ रसिक प्रिया में इसे विषम घाटी पंचानंन और वीर राजा कहा है
    9. हम्मीर को छापामार / गुरिला पद्दति का जनकमाना जाता है
    10. इसे मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है
    11. इसने सिंगोली के युद्ध में दिल्ली के सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक को पराजीत किया
    12. सिंगोली का युद्ध ————
      1. 1336 ई. में
      2. स्थान —— चितोडगढ़
      3. राणा हम्मीर व मोहम्मद बिन तुगलक के मध्य
      4. विजेता —— राणा हम्मीर
      5. इस युद्ध के पश्चात दिल्ली सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक को तिन माह तक बंदी बनाया
      6. राणा हम्मीर ने 50 लाख रूपये , अजमेर , रणथम्भोर एवं भीलवाडा लेकर तुगलक को रिहा किया
    13. हम्मीर ने अन्नपूर्णा माता के मन्दिर का निर्माण करवाया
    14. कर्नल जेम्स टॉड ने हम्मीर के लिए लिखा है ——
      • भारत में हम्मीर ही एक प्रबल राजा बचा है बाकि राजवंश नष्ट हो गये
    15. 1364 ई. में राणा हम्मीर की मृत्यू हुई
  • महाराणा क्षेत्रसिंह / खेता (1364-1382 ई. ) ——————-
    1. महाराणा खेता ने मालवा के शासक दिलावर खा को पराजीत किया
    2. अत: इन्ही के काल में मेवाड़-मालवा संघर्ष की शुरुवात हुई
    3. राणा क्षेत्रसिंह के समय दिल्ली का सुल्तान फीरोज तुगलक था
    4. राणा खेता ने मांडल , छप्पन , बदनोर एवं जहाजपुर का विलय मेवाड़ में किया
    5. इसने बूंदी पर अधिकार किया
    6. राणा खेता की अवेध पत्नी खातींन से प्राप्त पुत्र ——–
      1. चाचा
      2. मेरा थे
    7. 1382 ई. में राणा खेता की मृत्यू हुई थी
  • महाराणा लक्ष्मणसिंह / लाखा ( 1382-1421 ) ——————–
    1. राणा लाख के दरबारी विद्वान ———-
      1. धनेश्वर भट्ट
      2. झोटिंग भट्ट
    2. लाख के समय जावर में जस्ते व चांदी की खानों की जानकारी प्राप्त हुई
    3. राणा लाखा गोरवदान / गरिमादान पद्दति का जंनक था
    4. राणा लाखा के काल में पीछु बंजारे ने उदयपुर में पिछोला झील का निर्माण करवाया
    5. राणा लाखा के समकालीन दिल्ली का सुल्तान ग्यासुदीन तुगलक था
    6. राणा लाखा ने ग्यासुदीन तुगलक को पराजीत किया था
    7. जब बूंदी का शासक हम्मजी / हम्मीर था उस समय राणा लाखा बूंदी के तारागढ़ पर अधिकार नही कर पाया इसलिए अपने वचन पूर्ण करने के लिए मिटटी का तारागढ़ बनाया गया
      • इस मिटटी के तारागढ़ की रक्षा करते हुए कुम्भकर्ण हाडा वीरगति को प्राप्त हुआ
    8. लाख ने बूंदी के शासक बरसिंह हाडा को अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया था
    9. तेमुरलंग के भारत पर आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक राणा लाखा था
    10. मेवाड़ के शासक राणा लाख के समय तेमुरलंग के प्रतिनिधि खिज्र खा द्वारा 1414 ई. में भारत में सैय्यद वंश की स्थापना की
    11. राणा लाखा के समकालीन मारवाड़ शासक राव चुडा था जिसका पुत्र रणमल राठोड व पुत्री हंसा बाई थी
    12. हंसा बाई का विवाह पहले मेवाड़ के राजकुमार राणा चुंडा ( राणा लाखा का जयेष्ट पुत्र ) के साथ प्रस्तावित था
    13. हंसा बाई का विवाह सशर्त राणा लाखा के साथ हुआ —
      1. शर्त —— हंसा बाई का पुत्र ही मेवाड़ का उतराधिकारी बनेगा
      2. जबकि राणा लाखा का जयेष्ट पुत्र राव चुंडा था
    14. हंसा बाई के पुत्र का नाम मोकल था
    15. लाखा के जयेष्ट पुत्र का नाम कुंवर चुंडा था
    16. राजकुमार राणा चुंडा ने जीवनभर विवाह न करने और मेवाड़ की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली थी
    17. इसी कारण इन्हें मेवाड़ का भीष्म पितामह एवं मेवाड़ का राम कहा जाता है
  • महाराणा मोकल ( 1421-1433 ) ——————
    1. माता —————— हंसा बाई
    2. पिता —————— महाराणा लाखा
    3. मोकल का सरंक्षक रणमल राठोड ( मामा ) था
    4. तुलादान पद्दति का जंनक
      • मोकल ने अपने जीवन काल में कुल 25 बार तुलादान किया था
    5. मोकल के प्रमुख दरबारी विद्वान ——————
      1. विष्णु भट्ट
      2. योगेश्वर भट्ट
    6. मोकल के प्रमुख शिल्पी ——————
      1. धन्ना
      2. पन्ना
      3. मन्ना
      4. बिसल
    7. मोकल के निर्माण कार्य ——————
      1. मोकल ने त्रिभुवन नारायण मन्दिर का जीर्णोधार करवाया तथा इसका नाम बदलकर समधेश्वर मन्दिर नाम रखा
        • त्रिभुवन नारायण मन्दिर को वर्तमान में मोकल मन्दिर कहा जाता है
      2. मोकल ने एकलिंग नाथ जी मन्दिर के चारो तरफ परकोटे का निर्माण करवाया
      3. झालावाड में वराह / विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया
      4. मोकल ने मेवाड़ में वेदशालाओ को स्थापित किया
    8. रामपुरा का युद्ध ——————
      1. 1428 ई. में
      2. यह युद्ध राणा मोकल व नागोर के फिरोज खा के मध्य हुआ
      3. विजेता —————— मोकल
    9. जिलवाडा का युद्ध ——————
      1. 1433 ई. में
      2. यह युद्ध राणा मोकल और गुजरात के शासक अहमदशाह के मध्य हुआ
      3. विजेता —————— राणा मोकल
    10. रणमल राठोड ने मोकल के काल में मेवाड़ में राठोड़ो का प्रभाव बढ़ाते हुए उच्च पदों पर राठोड़ो की नियुक्तिया करना शुरू कर दिया
    11. राठोड़ो के बढ़ते प्रभाव से नाखुश होकर चाचा , मेरा , व महपा पंवार नामक मेवाड़ी सरदारों ने राणा मोकल की हत्या जिलवाडा युद्ध के समय की थी
    12. मोकल के समय ही कुंवर चुंडा मांडू के होशंगशाह की सेवा में चला गया था
    13. चुंडा के भाई राघवदेव की हत्या रणमल राठोड ने करवाई थी इसी कारण मेवाड़ी सरदार रणमल के विरोधी हो गये थे
    14. राणा मोकल का उतराधिकारी —————— राणा कुम्भा
  • महाराणा कुम्भा ( 1433-1468 ) ——————
    1. जन्म —————— 1403 ई. में
    2. पिता —————— मोकल
    3. माता —————— सोभाग्य देवी
    4. पत्नी —————— कुम्भ्लमेरू
    5. पुत्र ——————
      1. रायमल
      2. उदा
    6. पुत्री ——————
      • रमा बाई —–
        • संगीत व साहित्य में निपुण होने के कारण जावर शिलालेख में रमाबाई को वागीश्वरी कहा गया
    7. राज्याभिषेक —————— 1433 ई. में चितोडगढ़ में
    8. गुरु —————— हिरनाद आर्य
    9. संगीत गुरु —————— सारंग व्यास
    10. सहायक संगीत गुरु —————— कान्हा व्यास
    11. राणा कुम्भा की उपाधिया ——————
      • कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में कुम्भा की उपाधियो का उल्लेख मिलता है
        1. राणों रासो
        2. राणों राय
        3. अभिनव भरताचार्य
        4. शेल गुरु
        5. हाल गुरु ( पहाड़ी राज्य का शासक होने के कारण )
        6. छाप गुरु ( छापामार युद्ध पद्दति अपनाने के कारण )
        7. चाप गुरु ( धनुर्विद्या में पारंगत होने के कारण )
        8. टोडरमल ( संगीत की तिन विधाओ में पारंगत होने के कारण )
        9. दान गुरु
        10. नरपति
        11. हिन्दू सुरताण
        12. नाटक राज कर्ता ( नाटको की रचना करने के कारण )
        13. युद्ध गुरु
        14. साहित्य गुरु
        15. स्थापत्य गुरु
        16. शेव गुरु
        17. अश्वपति
        18. राव राय इत्यादि
    12. कुम्भा के काल को मेवाड़ का स्वर्ण काल माना जाता है
    13. कुम्भा को मेवाड़ में स्थापत्य कला का जनक भी कहा जाता है
    14. कवी श्यामलदास के ग्रन्थ वीर-विनोद में मेवाड़ क्षेत्र के 84 दुर्गो में से 32 दुर्गो का निर्माता कुम्भा को माना है
    15. राणा कुम्भा के पिता के हत्यारे चाचा , मेरा , महपा पंवार एवं अक्का इन चारो ने कुम्भा के शासक बनते ही मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम की शरण में गये
    16. कुम्भा ने पिता के हत्यारों का बदला लेने हेतु महमूद खिलजी प्रथम पर आक्रमण किया
    17. सारंगपुर का युद्ध —————
      1. 1437 ई. में
      2. स्थान ————– मध्यप्रदेश
      3. यह युद्ध राणा कुम्भा और मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम के मध्य हुआ
      4. विजेता ————– राणा कुम्भा
      5. कुम्भा की इस विजय को मालवा विजय कहा जाता है
      6. इस विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने चितोडगढ़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
      7. कुम्भा ने इस युद्ध में चाचा व मेरा की हत्या की थी
    18. मालवा अभियान के दोरान सिसोदिया सरदार राघवदेव ( राणा लाखा का पुत्र था , कुंवर चुंडा का भाई ) और रणमल राठोड के बीच विवाद हुआ
    19. जिसके तहत रणमल राठोड ने राघवदेव की हत्या कर दी
    20. इस घटना के पश्चात मेवाड़ में राठोड़ो की प्रबलता बढने लगी
    21. इससे मेवाड़ सरदार असंतुष्ट हुए
    22. 1438 ई. में दासी भारमली के सहयोग से राणा कुम्भा ने रणमल राठोड की हत्या करवाई
    23. रणमल राठोड की हत्या की सुचना इसके पुत्र जोधा को लगने पर जोधा मेवाड़ छोडकर मंडोर भाग गया
    24. राणा कुम्भा ने जोधा का पीछा करते हुए राणा चुंडा के नेतृत्व में मंडोर सेना भेजी
    25. राव जोधा का निर्वासित काल ———
      1. मंडोर
      2. काहुनी गाँव ( बीकानेर )
      3. भद्राजुण
      4. सिवाणा
      5. वागड
      6. सोजत ( पाली )
        • यंहा पर राव जोधा और राणा कुम्भा के मध्य संधि हुई जिसे आवल-बावल की संधि कहते है
    26. सोजत ( पाली ) में हंसा बाई के सहयोग से दोनों पक्षों में संधि हुई
    27. आवल-बावल की संधि ————–
      1. 1453 ई. में
      2. स्थान ————– सोजत ( पाली )
      3. राणा कुम्भा और राव जोधा के मध्य
      4. इस संधि के तहत मेवाड़ व मारवाड़ राज्य की सीमओं का निर्धारण किया गया
      5. इस संधि को करवाने में हंसा बाई की महत्वपूर्ण भूमिका थी
      6. राव जोधा ने अपनी पुत्री श्रंगार देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ हुआ
    28. राणा कुम्भा का मालवा के साथ सम्बन्ध ————–
      1. मालवा शासक होशंगशाह का मंत्री महमूद खिलजी प्रथम था
      2. मालवा शासक होशंगशाह के पुत्र उमरखा को राजगद्दी से पदच्युत कर महमूद खिलजी प्रथम मालवा का शासक बना
      3. उमरखा राणा कुम्भा की शरण में आया
      4. सारंगपुर युद्ध के समय 1437 ई. में कुम्भा के सोतेले भाई खेमकरण ने सादड़ी पर अधिकार किया
      5. लेकिन कुम्भा ने उसे पराजीत कर पुन : सादड़ी पर अधिकार किया
      6. खेमकरण मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम की शरण में आया
      7. 1442 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने कुम्भलगढ़ व चितोडगढ़ पर आक्रमण किया परन्तु असफल रहा
      8. महमूद खिलजी प्रथम ने वाण माता मूर्ति को खंडित किया
      9. महमूद खिलजी प्रथम ने मांडलगढ़ पर तिन बार असफल आक्रमण किया ( 1446 ई. , 1446 ई. ,1456 ई. में )
      10. 1455 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने अजमेर में राणा कुम्भा के कीलेदार गजाधर सिंह को पराजीत कर यंहा अधिकार किया
      11. और किलेदार नियामतुल्ला खा को नियुक्त कर इसे सेफ खा की उपाधि दी
      12. 1444 ई. में राणा कुम्भा के बहनोई अचलदास ( वल्हंणसी ) खिंची पर महमूद खिलजी प्रथम ने आक्रमण कर गागरोंन दुर्ग ( झालावाड ) पर अधिकार किया
    29. राणा कुम्भा का गुजरात से सम्बन्ध ————–
      1. राणा कुम्भा के समकालीन गुजरात में कुल 5 शासक आये
      2. 1455 ई. में गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह ने कुम्भलगढ़ पर असफल आक्रमण किया
      3. चंपानेर की संधि ————–
        1. 1456 ई. में
        2. मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम और गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह के मध्य
        3. इस संधि में कुतुबुद्दीन शाह को निमन्त्रण महमूद खिलजी प्रथम द्वारा चाँद खा के माध्यम से भेजा गया
      4. चम्पानेर संधि के तहत गुजरात व मालवा की संयुक्त सेना ने 1457 ई. में कुम्भा पर आक्रमण किया जिसे बदनोर युद्ध कहा जाता है
      5. बदनोर युद्ध / बेराठगढ़ का युद्ध ————–
        1. 1457 ई. में
        2. स्थान ————– भीलवाडा
        3. मध्य ——
          1. एक तरफ—– राणा कुम्भा
          2. दूसरी तरफ —- महमूद खिलजी प्रथम + गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह
        4. विजेता ————– राणा कुम्भा
        5. कुम्भा ने बदनोर विजय के उपलक्ष में कुशाल माता मन्दिर का निर्माण बदनोर ( भीलवाडा ) में करवाया
        6. 1458 ई. में राणा कुम्भा ने नागोर शासक शम्स खा के उपर आक्रमण किया
        7. शम्स खा ने अपनी पुत्री नगा का विवाह गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह के साथ किया और सेनिक सहायता मांगी
        8. 1458 ई. में शम्स खा व गुजरात की सयुंक्त सेना को राणा कुम्भा ने पराजीत कर नागोर पर अधिकार किया
        9. 1458 ई. में आबू के कुंथनदेव की सहायता से कुतुबुद्दीन शाह ने राणा कुम्भा पर आक्रमण किया परन्तु असफल रहा
        10. 25 दिसम्बर 1458 ई. को कुतुबुद्दीन शाह की मृत्यू हुई थी
        11. कुतुबुद्दीन शाह की मृत्यू के पश्चात गुजरात शासक दाउद खा बना
        12. 1459 ई. में दाउद खा के स्थान पर गुजरात शासक फतेह खा बना जो मुहम्दशाह बेगडा के नाम से प्रसिद हें
        13. 1460 ई. में मुहम्मद शाह बेगडा ने जूनागढ़ ( गुजरात ) शासक मंडूलिक पर आक्रमण किया
        14. मंडूलिक राणा कुम्भा का दामाद था
        15. कुम्भा की पुत्री रमा बाई / वागेश्वरी का पति मंडूलिक था
        16. 1460 ई. में कुम्भा व मंडूलिक की सेना ने मुहम्मद शाह बेगडा को पराजीत किया
    30. राणा कुम्भा की स्थापत्य कला ———–
      1. श्यामलदास द्वारा रचित ग्रन्थ वीर-विनोद में राणा कुम्भा को स्थापत्य गुरु कहा गया है
      2. वीर विनोद के अनुसार मेवाड़ के कुल 84 दुर्गो में से 32 दुर्गो का निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था
      3. श्यामलदास ——
        1. मेवाड़ महाराजा सज्जनसिंह के आश्रित कवी
        2. उपाधि —-
          1. कविराजा ( सज्जनसिंह ने प्रदान की )
          2. केसर-ए-हिन्द
          3. महाम्होपध्याय
  • राणा कुम्भा की स्थापत्य कला ———–
    1. कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण ——-
      1. राजसमन्द
      2. अपनी रानी कुम्भल देवी के नाम पर इसका निर्माण करवाया
      3. प्रमुख वास्तुकार / शिल्पी ———–मंडन
      4. यह भोराठ के पठार की जरगा चोटी पर स्थित है
      5. इसे मेवाड़ के महाराणाओ की शरण स्थली भी कहा जाता है
      6. कुम्भलगढ़ दुर्ग के अंदर स्थित लघु दुर्ग कटारगढ़ को मेवाड़ की आँख भी कहा जाता है
      7. कुम्भलगढ़ दुर्ग में मामादेव मन्दिर की दीवार पर कुम्भलगढ़ प्रशस्ति लगी है
        • कुम्भलगढ़ प्रशस्ति की रचना अत्री व महेश द्वारा की गयी
    2. चितोडगढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता ——-
      1. इस दुर्ग को कुम्भा के काल में चित्रकूट कहा जाता था
      2. मूल निर्माता —– चित्रांगद मोर्य
    3. विजय स्तम्भ का निर्माण ——-
      1. 1437 ई. में
      2. चितोडगढ़ दुर्ग में
      3. मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम को पराजीत किया
      4. मालवा विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने 9 मंजिला विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
      5. इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है
      6. इसे बनाने की प्रेरणा बयाना ( भरतपुर ) के विष्णु स्तम्भ से मिली
      7. इस विजय स्तम्भ का जीर्णोद्धार मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह ने करवाया
    4. बासन्ती दुर्ग ( माउन्ट आबू ,सिरोही )
    5. भोमट दुर्ग ( सिरोही )
    6. मचान का दुर्ग ———
      1. मेरवाडा में
      2. इसका निर्माण कुम्भा ने मेरो के दमन के लिए करवाया था
    7. अचलगढ़ दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया
    8. बेराठगढ़ दुर्ग का निर्माण , भीलवाडा
    9. कुम्भ श्याम मन्दिर ——-
      1. इस मन्दिर का निर्माण तिन दुर्गो में करवाया —-
        1. चितोडगढ़
        2. कुम्भलगढ़
        3. अचलगढ़
      2. ये मन्दिर पंचायतन शेली में निर्मित थे
    10. कुशाल माता / बदनोर माता का मन्दिर निर्माण ——-
      • बेराठगढ़ विजय के उपलक्ष में बदनोर ( भीलवाडा ) में कुशाल माता मन्दिर का निर्माण करवाया
    11. बिरला मन्दिर ——-
      1. दिल्ली में
      2. राणा कुम्भा ने दिल्ली के सुल्तान सेय्यद मोहम्मद शाह को पराजीत कर दिल्ली में बिरला मन्दिर का निर्माण करवाया
    12. बिरला मन्दिर ———–
      1. जयपुर
      2. इसका निर्माण गंगाप्रसाद बिडला ने करवाया
      3. उतर भारत का प्रथम वातानुकूलित मन्दिर
      4. इस मन्दिर में लक्ष्मी नारायण की पूजा होती है
      5. यह मन्दिर सफेद संगमरमर से निर्मित है
    13. कुम्भलगढ़ में मामादेव कुंड का निर्माण करवाया
      • जबकि मामदेव कुंड सिवाना दुर्ग , बाड़मेर में स्थित है
    14. एकलिंग जी में विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया जिसे मीरा मन्दिर कहा जाता है
    15. श्रंगार चंवरी मन्दिर ——-
      1. चितोडगढ़ में
      2. इस मन्दिर का निर्माण राणा कुम्भा के काल में वेलका द्वारा करवाया गया
      3. यह जेन मन्दिर है
      4. यह मन्दिर राणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई / वागीश्वरी का विवाह स्थल है
    16. रणकपुर का जेन मन्दिर ——-
      1. 1439 ई. में निर्मित
      2. इसका निर्माण कुम्भा के मंत्री सेठ धरनकशाह ने मथाई नदी के किनारे करवाया
      3. इसका प्रमुख शिल्पी / वास्तुकार ——- देपाक था
      4. यह मन्दिर पूर्णत सफेद संगमरमर से निर्मित है
      5. इस मन्दिर में 1444 स्तम्भ हें अत: इसे स्तम्भों का वन भी कहते है
      6. इस मन्दिर को चोमुखा मन्दिर भी कहा जाता है
      7. यह मन्दिर जेन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है
    17. कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति ———
      1. विजय स्तम्भ की 9 वि मंजिल पर राणा कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति की रचना करवाई
      2. इस प्रशस्ति की रचना कवी अत्री ने शुरू की
      3. लेकिन इस प्रशस्ति की रचना पूर्ण कवी अत्री के पुत्र कवी महेश ने की
  • राणा कुम्भा का साहित्य रचना ( कुम्भा द्वारा लिखित ग्रन्थ ) में प्रमुख योगदान ——–
    • संगीतराज——-
      1. यह 5 भागो में विभक्त है
        1. गीत रतन कोष
        2. वाद्द रतन कोष
        3. नाट्य / नृत्य रतन कोष
        4. रस रतन कोष
        5. पाठ्य रतन कोष
      2. संगीत रतनाकर
      3. संगीत मीमांसा
      4. कामराज रतिसार
      5. सूड प्रबंध ( सुधा प्रबंध )
      6. चण्डी शतक की टिका
      7. रसिक प्रिया ( जयदेव द्वारा रचित गीत गोविन्द की टिका है )
      8. नृत्य रतनकोष
  • कुम्भा के प्रमुख दरबारी विद्वान ————-
    1. प्रमुख जेन विद्वान ———
      1. भुवन चन्द्र
      2. जयचन्द्र सूरी
      3. सोमदेव
      4. सोमसुन्दर
      5. महेशचन्द्र सूरी
    2. प्रमुख वास्तुकार / शिल्पी ———
      1. मंडन
      2. नाथा
      3. गोविन्द
      4. पोमा
      5. पूंजा
      6. अत्रीभट्ट
      7. महेशभट्ट
      8. दाना
    3. मंडन ———
      1. यह वास्तुशास्त्री था
      2. मंडन की प्रमुख रचनाये / ग्रन्थ ——-
        1. वेद्द मंडन —
          • इस ग्रन्थ में बिमारिओ / व्याधियो का निदान बताया गया है
        2. शकुन मंडन —
          • शकुन शास्त्र का वर्णन
        3. कोदण्ड मंडन ——
          • इस ग्रन्थ में धनुर्विद्या के बारे में जानकारी दी गयी है
        4. देव मूर्ति प्रकरण / प्रसाद मंडन —–
          • इस ग्रन्थ का सम्बन्ध देवालय निर्माण की जानकारी से है
        5. राज वल्लभ मंडन —-
          1. यह 14अध्याओ में विभक्त ग्रन्थ है
          2. इस ग्रन्थ में आवासीय भवन से सम्बन्धित जानकारी है
        6. रूप मंडन ——
          1. यह ग्रन्थ 6 अध्यायों में विभक्त है
          2. यह ग्रन्थ मूर्ति कला निर्माण से सम्बन्धित
          3. छठे अध्याय में जेन धर्म की मुर्तियो से सम्बन्धित वर्णन है
        7. रुपावतार मंडन ——-
          • मूर्ति कला से सम्बन्धित
        8. वास्तु मंडन ——
          • भवन निर्माण में वास्तु का उपयोग का वर्णन
        9. वास्तु शास्त्र ——
          • इस ग्रन्थ में वास्तु कला का वर्णन
    4. नाथा—–
      1. यह मंडन का भाई था
      2. इसने ग्रन्थ —— वास्तुमंजरी की रचना की थी
    5. गोविन्द ——-
      1. यह मंडन का पुत्र था
      2. गोविन्द द्वारा रचित ग्रन्थ —-
        1. कलानिधि
        2. उद्धार धोरिणी
        3. द्वार दीपिका
  • राणा कुम्भा की हत्या ——
    1. 1468 ई. में
    2. मामादेव कुंड के पास , कुम्भलगढ़ (राजसमन्द ) में
    3. कुम्भा के पुत्र उदा द्वारा की गयी
    4. कुम्भा जीवन के अंतिम समय में उन्माद रोग से ग्रसित हो गया था
  • मेवाड़ का प्रथम पित्रहंता शासक ——–राणा उदा
  • कर्नल जेम्स टॉड ने कुम्भा के लिए कहा
    • कुम्भा में लाखा जेसी प्रेम कला एवं हम्मीर जेसी शक्ति थी जिसने मेवाड़ झंडे को घग्घर नदी के तट तक फहराया
  • राणा उदा / उदयकरण ——-
    • अगले भाग में ——- Topik- 20 में

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