मेवाड़ का इतिहास : राणा शाखा Topik-19
हमने पीछे के भाग में मेवाड़ का इतिहास शुरू से लेकर रावल रतनसिंह तक पढ़ा था , रावल रतनसिंह मेवाड़ के रावल शाखा का अंतिम शासक था , जिनका शासन काल 1301-1303 ई. तक माना जाता है , रतनसिंह ने रानी पदमिनी से विवाह किया था , रावल रतनसिंह के समय चितोड़ पर अलाउदीन खिलजी का आक्रमण हुआ और अलाउद्दीन ने चितोड़ पर अधिकार किया अब आगे राणा शाखा का इतिहास पढ़ते है , आगे का मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है —
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राणा शाखा
मेवाड़ का इतिहास
- राणा हम्मीर ( 1326-1364 ) ——————
- यह गुहिल वंश की राणा शाखा का प्रथम शासक था
- रावल शाखा का अंतिम शासक रावल रतनसिंह था जिसके बाद खिज्र खा ने 1303-13 तक शासन किया
- अलाउद्दीन की मृत्यू के बाद मालदेव को चितोड़ का कार्यभार सोंपा
- मालदेव ने 1313-20 तक शासन किया 1320-26 तक जेससिंह ने शासन किया
- जेसासिंह को पराजीत कर 1326 ई. में राणा हम्मीर ने चितोड़ पर अधिकार किया था
- हम्मीर सिसोदा गाँव का निवासी था
- यह अरिसिंह का पुत्र और लक्ष्मणसिंह का पोत्र था
- महाराणा कुम्भा ने अपने ग्रन्थ रसिक प्रिया में इसे विषम घाटी पंचानंन और वीर राजा कहा है
- हम्मीर को छापामार / गुरिला पद्दति का जनकमाना जाता है
- इसे मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है
- इसने सिंगोली के युद्ध में दिल्ली के सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक को पराजीत किया
- सिंगोली का युद्ध ————
- 1336 ई. में
- स्थान —— चितोडगढ़
- राणा हम्मीर व मोहम्मद बिन तुगलक के मध्य
- विजेता —— राणा हम्मीर
- इस युद्ध के पश्चात दिल्ली सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक को तिन माह तक बंदी बनाया
- राणा हम्मीर ने 50 लाख रूपये , अजमेर , रणथम्भोर एवं भीलवाडा लेकर तुगलक को रिहा किया
- हम्मीर ने अन्नपूर्णा माता के मन्दिर का निर्माण करवाया
- कर्नल जेम्स टॉड ने हम्मीर के लिए लिखा है ——
- भारत में हम्मीर ही एक प्रबल राजा बचा है बाकि राजवंश नष्ट हो गये
- 1364 ई. में राणा हम्मीर की मृत्यू हुई
- महाराणा क्षेत्रसिंह / खेता (1364-1382 ई. ) ——————-
- महाराणा खेता ने मालवा के शासक दिलावर खा को पराजीत किया
- अत: इन्ही के काल में मेवाड़-मालवा संघर्ष की शुरुवात हुई
- राणा क्षेत्रसिंह के समय दिल्ली का सुल्तान फीरोज तुगलक था
- राणा खेता ने मांडल , छप्पन , बदनोर एवं जहाजपुर का विलय मेवाड़ में किया
- इसने बूंदी पर अधिकार किया
- राणा खेता की अवेध पत्नी खातींन से प्राप्त पुत्र ——–
- चाचा
- मेरा थे
- 1382 ई. में राणा खेता की मृत्यू हुई थी
- महाराणा लक्ष्मणसिंह / लाखा ( 1382-1421 ) ——————–
- राणा लाख के दरबारी विद्वान ———-
- धनेश्वर भट्ट
- झोटिंग भट्ट
- लाख के समय जावर में जस्ते व चांदी की खानों की जानकारी प्राप्त हुई
- राणा लाखा गोरवदान / गरिमादान पद्दति का जंनक था
- राणा लाखा के काल में पीछु बंजारे ने उदयपुर में पिछोला झील का निर्माण करवाया
- राणा लाखा के समकालीन दिल्ली का सुल्तान ग्यासुदीन तुगलक था
- राणा लाखा ने ग्यासुदीन तुगलक को पराजीत किया था
- जब बूंदी का शासक हम्मजी / हम्मीर था उस समय राणा लाखा बूंदी के तारागढ़ पर अधिकार नही कर पाया इसलिए अपने वचन पूर्ण करने के लिए मिटटी का तारागढ़ बनाया गया
- इस मिटटी के तारागढ़ की रक्षा करते हुए कुम्भकर्ण हाडा वीरगति को प्राप्त हुआ
- लाख ने बूंदी के शासक बरसिंह हाडा को अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया था
- तेमुरलंग के भारत पर आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक राणा लाखा था
- मेवाड़ के शासक राणा लाख के समय तेमुरलंग के प्रतिनिधि खिज्र खा द्वारा 1414 ई. में भारत में सैय्यद वंश की स्थापना की
- राणा लाखा के समकालीन मारवाड़ शासक राव चुडा था जिसका पुत्र रणमल राठोड व पुत्री हंसा बाई थी
- हंसा बाई का विवाह पहले मेवाड़ के राजकुमार राणा चुंडा ( राणा लाखा का जयेष्ट पुत्र ) के साथ प्रस्तावित था
- हंसा बाई का विवाह सशर्त राणा लाखा के साथ हुआ —
- शर्त —— हंसा बाई का पुत्र ही मेवाड़ का उतराधिकारी बनेगा
- जबकि राणा लाखा का जयेष्ट पुत्र राव चुंडा था
- हंसा बाई के पुत्र का नाम मोकल था
- लाखा के जयेष्ट पुत्र का नाम कुंवर चुंडा था
- राजकुमार राणा चुंडा ने जीवनभर विवाह न करने और मेवाड़ की सेवा करने की प्रतिज्ञा ली थी
- इसी कारण इन्हें मेवाड़ का भीष्म पितामह एवं मेवाड़ का राम कहा जाता है
- राणा लाख के दरबारी विद्वान ———-
- महाराणा मोकल ( 1421-1433 ) ——————
- माता —————— हंसा बाई
- पिता —————— महाराणा लाखा
- मोकल का सरंक्षक रणमल राठोड ( मामा ) था
- तुलादान पद्दति का जंनक
- मोकल ने अपने जीवन काल में कुल 25 बार तुलादान किया था
- मोकल के प्रमुख दरबारी विद्वान ——————
- विष्णु भट्ट
- योगेश्वर भट्ट
- मोकल के प्रमुख शिल्पी ——————
- धन्ना
- पन्ना
- मन्ना
- बिसल
- मोकल के निर्माण कार्य ——————
- मोकल ने त्रिभुवन नारायण मन्दिर का जीर्णोधार करवाया तथा इसका नाम बदलकर समधेश्वर मन्दिर नाम रखा
- त्रिभुवन नारायण मन्दिर को वर्तमान में मोकल मन्दिर कहा जाता है
- मोकल ने एकलिंग नाथ जी मन्दिर के चारो तरफ परकोटे का निर्माण करवाया
- झालावाड में वराह / विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया
- मोकल ने मेवाड़ में वेदशालाओ को स्थापित किया
- मोकल ने त्रिभुवन नारायण मन्दिर का जीर्णोधार करवाया तथा इसका नाम बदलकर समधेश्वर मन्दिर नाम रखा
- रामपुरा का युद्ध ——————
- 1428 ई. में
- यह युद्ध राणा मोकल व नागोर के फिरोज खा के मध्य हुआ
- विजेता —————— मोकल
- जिलवाडा का युद्ध ——————
- 1433 ई. में
- यह युद्ध राणा मोकल और गुजरात के शासक अहमदशाह के मध्य हुआ
- विजेता —————— राणा मोकल
- रणमल राठोड ने मोकल के काल में मेवाड़ में राठोड़ो का प्रभाव बढ़ाते हुए उच्च पदों पर राठोड़ो की नियुक्तिया करना शुरू कर दिया
- राठोड़ो के बढ़ते प्रभाव से नाखुश होकर चाचा , मेरा , व महपा पंवार नामक मेवाड़ी सरदारों ने राणा मोकल की हत्या जिलवाडा युद्ध के समय की थी
- मोकल के समय ही कुंवर चुंडा मांडू के होशंगशाह की सेवा में चला गया था
- चुंडा के भाई राघवदेव की हत्या रणमल राठोड ने करवाई थी इसी कारण मेवाड़ी सरदार रणमल के विरोधी हो गये थे
- राणा मोकल का उतराधिकारी —————— राणा कुम्भा
- महाराणा कुम्भा ( 1433-1468 ) ——————
- जन्म —————— 1403 ई. में
- पिता —————— मोकल
- माता —————— सोभाग्य देवी
- पत्नी —————— कुम्भ्लमेरू
- पुत्र ——————
- रायमल
- उदा
- पुत्री ——————
- रमा बाई —–
- संगीत व साहित्य में निपुण होने के कारण जावर शिलालेख में रमाबाई को वागीश्वरी कहा गया
- रमा बाई —–
- राज्याभिषेक —————— 1433 ई. में चितोडगढ़ में
- गुरु —————— हिरनाद आर्य
- संगीत गुरु —————— सारंग व्यास
- सहायक संगीत गुरु —————— कान्हा व्यास
- राणा कुम्भा की उपाधिया ——————
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में कुम्भा की उपाधियो का उल्लेख मिलता है
- राणों रासो
- राणों राय
- अभिनव भरताचार्य
- शेल गुरु
- हाल गुरु ( पहाड़ी राज्य का शासक होने के कारण )
- छाप गुरु ( छापामार युद्ध पद्दति अपनाने के कारण )
- चाप गुरु ( धनुर्विद्या में पारंगत होने के कारण )
- टोडरमल ( संगीत की तिन विधाओ में पारंगत होने के कारण )
- दान गुरु
- नरपति
- हिन्दू सुरताण
- नाटक राज कर्ता ( नाटको की रचना करने के कारण )
- युद्ध गुरु
- साहित्य गुरु
- स्थापत्य गुरु
- शेव गुरु
- अश्वपति
- राव राय इत्यादि
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में कुम्भा की उपाधियो का उल्लेख मिलता है
- कुम्भा के काल को मेवाड़ का स्वर्ण काल माना जाता है
- कुम्भा को मेवाड़ में स्थापत्य कला का जनक भी कहा जाता है
- कवी श्यामलदास के ग्रन्थ वीर-विनोद में मेवाड़ क्षेत्र के 84 दुर्गो में से 32 दुर्गो का निर्माता कुम्भा को माना है
- राणा कुम्भा के पिता के हत्यारे चाचा , मेरा , महपा पंवार एवं अक्का इन चारो ने कुम्भा के शासक बनते ही मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम की शरण में गये
- कुम्भा ने पिता के हत्यारों का बदला लेने हेतु महमूद खिलजी प्रथम पर आक्रमण किया
- सारंगपुर का युद्ध —————
- 1437 ई. में
- स्थान ————– मध्यप्रदेश
- यह युद्ध राणा कुम्भा और मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम के मध्य हुआ
- विजेता ————– राणा कुम्भा
- कुम्भा की इस विजय को मालवा विजय कहा जाता है
- इस विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने चितोडगढ़ दुर्ग में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
- कुम्भा ने इस युद्ध में चाचा व मेरा की हत्या की थी
- मालवा अभियान के दोरान सिसोदिया सरदार राघवदेव ( राणा लाखा का पुत्र था , कुंवर चुंडा का भाई ) और रणमल राठोड के बीच विवाद हुआ
- जिसके तहत रणमल राठोड ने राघवदेव की हत्या कर दी
- इस घटना के पश्चात मेवाड़ में राठोड़ो की प्रबलता बढने लगी
- इससे मेवाड़ सरदार असंतुष्ट हुए
- 1438 ई. में दासी भारमली के सहयोग से राणा कुम्भा ने रणमल राठोड की हत्या करवाई
- रणमल राठोड की हत्या की सुचना इसके पुत्र जोधा को लगने पर जोधा मेवाड़ छोडकर मंडोर भाग गया
- राणा कुम्भा ने जोधा का पीछा करते हुए राणा चुंडा के नेतृत्व में मंडोर सेना भेजी
- राव जोधा का निर्वासित काल ———
- मंडोर
- काहुनी गाँव ( बीकानेर )
- भद्राजुण
- सिवाणा
- वागड
- सोजत ( पाली )
- यंहा पर राव जोधा और राणा कुम्भा के मध्य संधि हुई जिसे आवल-बावल की संधि कहते है
- सोजत ( पाली ) में हंसा बाई के सहयोग से दोनों पक्षों में संधि हुई
- आवल-बावल की संधि ————–
- 1453 ई. में
- स्थान ————– सोजत ( पाली )
- राणा कुम्भा और राव जोधा के मध्य
- इस संधि के तहत मेवाड़ व मारवाड़ राज्य की सीमओं का निर्धारण किया गया
- इस संधि को करवाने में हंसा बाई की महत्वपूर्ण भूमिका थी
- राव जोधा ने अपनी पुत्री श्रंगार देवी का विवाह राणा कुम्भा के पुत्र रायमल के साथ हुआ
- राणा कुम्भा का मालवा के साथ सम्बन्ध ————–
- मालवा शासक होशंगशाह का मंत्री महमूद खिलजी प्रथम था
- मालवा शासक होशंगशाह के पुत्र उमरखा को राजगद्दी से पदच्युत कर महमूद खिलजी प्रथम मालवा का शासक बना
- उमरखा राणा कुम्भा की शरण में आया
- सारंगपुर युद्ध के समय 1437 ई. में कुम्भा के सोतेले भाई खेमकरण ने सादड़ी पर अधिकार किया
- लेकिन कुम्भा ने उसे पराजीत कर पुन : सादड़ी पर अधिकार किया
- खेमकरण मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम की शरण में आया
- 1442 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने कुम्भलगढ़ व चितोडगढ़ पर आक्रमण किया परन्तु असफल रहा
- महमूद खिलजी प्रथम ने वाण माता मूर्ति को खंडित किया
- महमूद खिलजी प्रथम ने मांडलगढ़ पर तिन बार असफल आक्रमण किया ( 1446 ई. , 1446 ई. ,1456 ई. में )
- 1455 ई. में महमूद खिलजी प्रथम ने अजमेर में राणा कुम्भा के कीलेदार गजाधर सिंह को पराजीत कर यंहा अधिकार किया
- और किलेदार नियामतुल्ला खा को नियुक्त कर इसे सेफ खा की उपाधि दी
- 1444 ई. में राणा कुम्भा के बहनोई अचलदास ( वल्हंणसी ) खिंची पर महमूद खिलजी प्रथम ने आक्रमण कर गागरोंन दुर्ग ( झालावाड ) पर अधिकार किया
- राणा कुम्भा का गुजरात से सम्बन्ध ————–
- राणा कुम्भा के समकालीन गुजरात में कुल 5 शासक आये
- 1455 ई. में गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह ने कुम्भलगढ़ पर असफल आक्रमण किया
- चंपानेर की संधि ————–
- 1456 ई. में
- मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम और गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह के मध्य
- इस संधि में कुतुबुद्दीन शाह को निमन्त्रण महमूद खिलजी प्रथम द्वारा चाँद खा के माध्यम से भेजा गया
- चम्पानेर संधि के तहत गुजरात व मालवा की संयुक्त सेना ने 1457 ई. में कुम्भा पर आक्रमण किया जिसे बदनोर युद्ध कहा जाता है
- बदनोर युद्ध / बेराठगढ़ का युद्ध ————–
- 1457 ई. में
- स्थान ————– भीलवाडा
- मध्य ——
- एक तरफ—– राणा कुम्भा
- दूसरी तरफ —- महमूद खिलजी प्रथम + गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह
- विजेता ————– राणा कुम्भा
- कुम्भा ने बदनोर विजय के उपलक्ष में कुशाल माता मन्दिर का निर्माण बदनोर ( भीलवाडा ) में करवाया
- 1458 ई. में राणा कुम्भा ने नागोर शासक शम्स खा के उपर आक्रमण किया
- शम्स खा ने अपनी पुत्री नगा का विवाह गुजरात शासक कुतुबुद्दीन शाह के साथ किया और सेनिक सहायता मांगी
- 1458 ई. में शम्स खा व गुजरात की सयुंक्त सेना को राणा कुम्भा ने पराजीत कर नागोर पर अधिकार किया
- 1458 ई. में आबू के कुंथनदेव की सहायता से कुतुबुद्दीन शाह ने राणा कुम्भा पर आक्रमण किया परन्तु असफल रहा
- 25 दिसम्बर 1458 ई. को कुतुबुद्दीन शाह की मृत्यू हुई थी
- कुतुबुद्दीन शाह की मृत्यू के पश्चात गुजरात शासक दाउद खा बना
- 1459 ई. में दाउद खा के स्थान पर गुजरात शासक फतेह खा बना जो मुहम्दशाह बेगडा के नाम से प्रसिद हें
- 1460 ई. में मुहम्मद शाह बेगडा ने जूनागढ़ ( गुजरात ) शासक मंडूलिक पर आक्रमण किया
- मंडूलिक राणा कुम्भा का दामाद था
- कुम्भा की पुत्री रमा बाई / वागेश्वरी का पति मंडूलिक था
- 1460 ई. में कुम्भा व मंडूलिक की सेना ने मुहम्मद शाह बेगडा को पराजीत किया
- राणा कुम्भा की स्थापत्य कला ———–
- श्यामलदास द्वारा रचित ग्रन्थ वीर-विनोद में राणा कुम्भा को स्थापत्य गुरु कहा गया है
- वीर विनोद के अनुसार मेवाड़ के कुल 84 दुर्गो में से 32 दुर्गो का निर्माण राणा कुम्भा ने करवाया था
- श्यामलदास ——
- मेवाड़ महाराजा सज्जनसिंह के आश्रित कवी
- उपाधि —-
- कविराजा ( सज्जनसिंह ने प्रदान की )
- केसर-ए-हिन्द
- महाम्होपध्याय
- राणा कुम्भा की स्थापत्य कला ———–
- कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण ——-
- राजसमन्द
- अपनी रानी कुम्भल देवी के नाम पर इसका निर्माण करवाया
- प्रमुख वास्तुकार / शिल्पी ———–मंडन
- यह भोराठ के पठार की जरगा चोटी पर स्थित है
- इसे मेवाड़ के महाराणाओ की शरण स्थली भी कहा जाता है
- कुम्भलगढ़ दुर्ग के अंदर स्थित लघु दुर्ग कटारगढ़ को मेवाड़ की आँख भी कहा जाता है
- कुम्भलगढ़ दुर्ग में मामादेव मन्दिर की दीवार पर कुम्भलगढ़ प्रशस्ति लगी है
- कुम्भलगढ़ प्रशस्ति की रचना अत्री व महेश द्वारा की गयी
- चितोडगढ़ दुर्ग का आधुनिक निर्माता ——-
- इस दुर्ग को कुम्भा के काल में चित्रकूट कहा जाता था
- मूल निर्माता —– चित्रांगद मोर्य
- विजय स्तम्भ का निर्माण ——-
- 1437 ई. में
- चितोडगढ़ दुर्ग में
- मालवा शासक महमूद खिलजी प्रथम को पराजीत किया
- मालवा विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने 9 मंजिला विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया
- इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है
- इसे बनाने की प्रेरणा बयाना ( भरतपुर ) के विष्णु स्तम्भ से मिली
- इस विजय स्तम्भ का जीर्णोद्धार मेवाड़ महाराणा स्वरूपसिंह ने करवाया
- बासन्ती दुर्ग ( माउन्ट आबू ,सिरोही )
- भोमट दुर्ग ( सिरोही )
- मचान का दुर्ग ———
- मेरवाडा में
- इसका निर्माण कुम्भा ने मेरो के दमन के लिए करवाया था
- अचलगढ़ दुर्ग का जीर्णोद्धार करवाया
- बेराठगढ़ दुर्ग का निर्माण , भीलवाडा
- कुम्भ श्याम मन्दिर ——-
- इस मन्दिर का निर्माण तिन दुर्गो में करवाया —-
- चितोडगढ़
- कुम्भलगढ़
- अचलगढ़
- ये मन्दिर पंचायतन शेली में निर्मित थे
- इस मन्दिर का निर्माण तिन दुर्गो में करवाया —-
- कुशाल माता / बदनोर माता का मन्दिर निर्माण ——-
- बेराठगढ़ विजय के उपलक्ष में बदनोर ( भीलवाडा ) में कुशाल माता मन्दिर का निर्माण करवाया
- बिरला मन्दिर ——-
- दिल्ली में
- राणा कुम्भा ने दिल्ली के सुल्तान सेय्यद मोहम्मद शाह को पराजीत कर दिल्ली में बिरला मन्दिर का निर्माण करवाया
- बिरला मन्दिर ———–
- जयपुर
- इसका निर्माण गंगाप्रसाद बिडला ने करवाया
- उतर भारत का प्रथम वातानुकूलित मन्दिर
- इस मन्दिर में लक्ष्मी नारायण की पूजा होती है
- यह मन्दिर सफेद संगमरमर से निर्मित है
- कुम्भलगढ़ में मामादेव कुंड का निर्माण करवाया
- जबकि मामदेव कुंड सिवाना दुर्ग , बाड़मेर में स्थित है
- एकलिंग जी में विष्णु मन्दिर का निर्माण करवाया जिसे मीरा मन्दिर कहा जाता है
- श्रंगार चंवरी मन्दिर ——-
- चितोडगढ़ में
- इस मन्दिर का निर्माण राणा कुम्भा के काल में वेलका द्वारा करवाया गया
- यह जेन मन्दिर है
- यह मन्दिर राणा कुम्भा की पुत्री रमा बाई / वागीश्वरी का विवाह स्थल है
- रणकपुर का जेन मन्दिर ——-
- 1439 ई. में निर्मित
- इसका निर्माण कुम्भा के मंत्री सेठ धरनकशाह ने मथाई नदी के किनारे करवाया
- इसका प्रमुख शिल्पी / वास्तुकार ——- देपाक था
- यह मन्दिर पूर्णत सफेद संगमरमर से निर्मित है
- इस मन्दिर में 1444 स्तम्भ हें अत: इसे स्तम्भों का वन भी कहते है
- इस मन्दिर को चोमुखा मन्दिर भी कहा जाता है
- यह मन्दिर जेन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है
- कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति ———
- विजय स्तम्भ की 9 वि मंजिल पर राणा कुम्भा ने कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति की रचना करवाई
- इस प्रशस्ति की रचना कवी अत्री ने शुरू की
- लेकिन इस प्रशस्ति की रचना पूर्ण कवी अत्री के पुत्र कवी महेश ने की
- कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण ——-
- राणा कुम्भा का साहित्य रचना ( कुम्भा द्वारा लिखित ग्रन्थ ) में प्रमुख योगदान ——–
- संगीतराज——-
- यह 5 भागो में विभक्त है
- गीत रतन कोष
- वाद्द रतन कोष
- नाट्य / नृत्य रतन कोष
- रस रतन कोष
- पाठ्य रतन कोष
- संगीत रतनाकर
- संगीत मीमांसा
- कामराज रतिसार
- सूड प्रबंध ( सुधा प्रबंध )
- चण्डी शतक की टिका
- रसिक प्रिया ( जयदेव द्वारा रचित गीत गोविन्द की टिका है )
- नृत्य रतनकोष
- यह 5 भागो में विभक्त है
- संगीतराज——-
- कुम्भा के प्रमुख दरबारी विद्वान ————-
- प्रमुख जेन विद्वान ———
- भुवन चन्द्र
- जयचन्द्र सूरी
- सोमदेव
- सोमसुन्दर
- महेशचन्द्र सूरी
- प्रमुख वास्तुकार / शिल्पी ———
- मंडन
- नाथा
- गोविन्द
- पोमा
- पूंजा
- अत्रीभट्ट
- महेशभट्ट
- दाना
- मंडन ———
- यह वास्तुशास्त्री था
- मंडन की प्रमुख रचनाये / ग्रन्थ ——-
- वेद्द मंडन —
- इस ग्रन्थ में बिमारिओ / व्याधियो का निदान बताया गया है
- शकुन मंडन —
- शकुन शास्त्र का वर्णन
- कोदण्ड मंडन ——
- इस ग्रन्थ में धनुर्विद्या के बारे में जानकारी दी गयी है
- देव मूर्ति प्रकरण / प्रसाद मंडन —–
- इस ग्रन्थ का सम्बन्ध देवालय निर्माण की जानकारी से है
- राज वल्लभ मंडन —-
- यह 14अध्याओ में विभक्त ग्रन्थ है
- इस ग्रन्थ में आवासीय भवन से सम्बन्धित जानकारी है
- रूप मंडन ——
- यह ग्रन्थ 6 अध्यायों में विभक्त है
- यह ग्रन्थ मूर्ति कला निर्माण से सम्बन्धित
- छठे अध्याय में जेन धर्म की मुर्तियो से सम्बन्धित वर्णन है
- रुपावतार मंडन ——-
- मूर्ति कला से सम्बन्धित
- वास्तु मंडन ——
- भवन निर्माण में वास्तु का उपयोग का वर्णन
- वास्तु शास्त्र ——
- इस ग्रन्थ में वास्तु कला का वर्णन
- वेद्द मंडन —
- नाथा—–
- यह मंडन का भाई था
- इसने ग्रन्थ —— वास्तुमंजरी की रचना की थी
- गोविन्द ——-
- यह मंडन का पुत्र था
- गोविन्द द्वारा रचित ग्रन्थ —-
- कलानिधि
- उद्धार धोरिणी
- द्वार दीपिका
- प्रमुख जेन विद्वान ———
- राणा कुम्भा की हत्या ——
- 1468 ई. में
- मामादेव कुंड के पास , कुम्भलगढ़ (राजसमन्द ) में
- कुम्भा के पुत्र उदा द्वारा की गयी
- कुम्भा जीवन के अंतिम समय में उन्माद रोग से ग्रसित हो गया था
- मेवाड़ का प्रथम पित्रहंता शासक ——–राणा उदा
- कर्नल जेम्स टॉड ने कुम्भा के लिए कहा
- कुम्भा में लाखा जेसी प्रेम कला एवं हम्मीर जेसी शक्ति थी जिसने मेवाड़ झंडे को घग्घर नदी के तट तक फहराया
- राणा उदा / उदयकरण ——-
- अगले भाग में ——- Topik- 20 में