रीति रिवाज : हिन्दू धर्म के प्रमुख रीति रिवाज Topik-1
हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मर्त्यु तक अनेक रीति रिवाज होते है , मानव जीवन के 16 संस्कार जो जन्म से म्रत्यु तक होते है , जन्म से सम्बन्धित रिवाज , विवाह से सम्बन्धित रिवाज , मृत्यू से सम्बन्धित रिवाज होते है हिन्दू धर्म के प्रमुख रीति रिवाज निम्नलिखित है ——
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रीति रिवाज
- 1 मानव जीवन के सोलह संस्कार ————
- मनुष्य को अच्छे संस्कारो वाला बनाने के लिए ये 16 संस्कार अनिवार्य मने गये है
- गर्भाधान / बीजारोपण ——
- शिशु का गर्भ में पहला दिन मानव जीवन का पहला संस्कार
- पुंसवन ——
- गर्भ में स्थित शिशु को पुत्र रूप देने के लिए देवताओ की स्तुति करना
- यह गर्भावस्था के तीसरे माह में किया जाने वाला संस्कार
- सिमंतोनयन———–
- गर्भावस्था की 7 माह के दोरान निरोग सन्तान की प्राप्ति हेतु किया जाने वाला संस्कार
- जात क्रम ——–
- जन्म लेते ही होने वाला पहला संस्कार
- इस संस्कार में शिशु को पहली बार पेय पदार्थ पिलाया जाता है
- नामकरण ———
- जन्म के 8-9 दिन पश्चात बच्चे को प्रथम स्नान करवाकर उसका नाम रखना
- निष्क्रमण ———
- जन्म के 6 माह पश्चात बच्चे को प्रथम बार घर से बाहर निकालकर भगवान सूर्यदेव और चन्द्रमा के दर्शन करवाना
- अन्नप्राशन ———-
- शिशु को जन्म के पश्चात पहली बार अन्न का आहार देना
- जन्म के 6 मास में अनाप्राशन किया जाता है
- झडुला/चुडाकर्म ————-
- जन्म के 2 वर्ष बाद अपने आराध्य देव के सामने पहली बार बल उतरवाना
- कर्नबोध ——-
- जन्म के 5 वर्ष पश्चात शिशु के दोनों कान बिंधे जाते है
- विद्यारम्भ ———-
- 5 से 6 वर्ष की आयु के पश्चात शिक्षा हेतु विद्यालय भेजना
- उपनयन /जनेऊ/यज्ञोपवित संस्कार ——-
- 6 से 11 वर्ष की अवधि के दोरान अपने शरीर पर जनेऊ/यज्ञोपवित ग्रहण कर वेदों की शिक्षा हेतु तयार होना
- वेदोआरम्भ ——-
- जनेऊ संस्कार के पश्चात वेदों की शिक्षा हेतु गुरु के पास भेजना
- केशांत / गोदान ———
- किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश का संस्कार
- इस संस्कार में पहली बार दाडी-मुछ कटवाई जाती है
- समावर्तन /दीक्षांत संस्कार ———–
- शिक्षा समाप्ति पर किया जाने वाला संस्कार
- जिसमे विद्यार्थी अपने आचार्य को गुरूदक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर घर लोटता है
- पाणीग्रहण / विवाह संस्कार ———–
- गृहस्थआश्रम में प्रवेश के अवसर पर किया जाने वाला संस्कार या विवाह का संस्कार
- अंत्येष्ठी ————
- मानव जीवन का अंतिम संस्कार
- गर्भाधान / बीजारोपण ——
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- 2 जन्म से सम्बन्धित रीती-रिवाज —————-
- जीवन घुंटी ———
- पहली बार पेय पदार्थ पिलाना
- सुतक ——–
- शिशु के जन्म से लेकर प्रथम स्नान तक उस घर में कोई मांगलिक कार्यक्रम नही होना
- नावन/ नहाना ———-
- जन्म के 9 दिन पश्चात पहली बार स्नान करना
- दशोटन —-
- झडुला उतरने के पश्चात दिया गया भोज दशोटन कहलाता है
- जामणा ——
- सन्तान प्राप्ति के पश्चात महिला के ससुराल से आने वाली खाद्य सामग्री जामणा कहलाती है
- कुआ पूजन / पनघट पूजन ———-
- शिशु के जन्म के कुछ दिनों के बाद कुए को पूजने की एक रस्म आयोजित की जाती है
- इसे जलवा पूजन भी कहा जाता है
- जीवन घुंटी ———
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- 3 विवाह से सम्बन्धित रिवाज ———–
- लगन-पत्रिका ——-
- वधु पक्ष के लोगो द्वारा विवाह का समय , स्थान , तिथी इत्यादि तय कर वर पक्ष को बारात लेन का आमन्त्रण भेजना ,लगन-पत्रिका कहलाती है
- घृतपान ———
- वर एवं वधु के काकणडोर बाँधने हेतु विवाह से कुछ दिन पहले विनायक पूजन कर इन्हें घृतपान करवाया जाता है
- चाकपूजन ——-
- घृतपान के पश्चात महिलाओ द्वारा कुम्हार के घर जाकर मिटटी की पूजा करना
- मुंधना ——-
- विवाह में मिठाई बनाने में प्रयुक्त लकडियो की गाँव के चोक में पूजा करना
- परणेत ——–
- विवाह के अवसर पर गए जाने वाले गीत
- तेल चढ़ाना ——-
- घृतपान के पश्चात वर एवं वधु को पेरो से सिर तक पीठी लगाना , तेल चढ़ाना कहलाता है
- इसे ह्ल्दायत भी कहते है
- बनोला ——–
- विवाह के अवसर पर सगे-सम्बन्धियों द्वारा दिया गया भोज
- मेल / बढार ——–
- विवाह से पहले दिन वर पक्ष द्वारा दिया गया भोज
- रातिजोगा ——-
- विवाह से पहली रात महिलाओ द्वारा मांगलिक गीत गाना रातिजोगा कहलाता है
- रातिजोगा का अंतिम गीत कुकडी होता है
- पाट उतारना ——
- विवाह के दिन दुल्हे को मामा के सहयोग से लकड़ी की चोकी से निचे उतारना
- राइला ——–
- दुल्हे को नजर से बचाने हेतु उसकी बहिन द्वारा किया जाने वाला रिवाज
- धामेला ——
- बारात रवानगी के समय वर द्वारा अपनी माता का स्तनपान करना
- सामेला / मधुपर्क——
- वधु पक्ष के लोगो द्वारा बारात का स्वागत करना
- कंवारी जान भात —–
- बारात के पहुँचते ही वधु पक्ष द्वारा दिया गया प्रथम भोज
- बारात का डेरा देखने जाते समय महिलाओ द्वारा जला गीत गाया जाता है
- पडला —–
- विवाह के दिन वर पक्ष द्वारा वधु के लिए कपडे , गहने , मीठाइया इत्यादि ले जाना
- बान भरना ——–
- विवाह के समय दुल्हे के गाँव की महिलाओ द्वारा उसके ससुराल में तिलक लगाकर स्वागत करना
- ढूकाव ——
- वर को डेरे से तोरण तक लेन का रिवाज
- झेलेमेला की आरती ——-
- तोरण मारते समय वर की सास द्वारा की जाने वाली आरती
- इस समय महिलाये झील-मिल गीत गति है
- सहोई ——
- तोरण मारते समय वर एवं वधु का प्रभाव तय करने हेतु किया जाने वाला रिवाज
- गंठजोड़ ———
- वर को कमर पट्टा एवं वधु के मामा चुनड की गांठ देना गंठजोड़ कहलाता है
- विवाह के दिन वधु की माता द्वारा ओढ़ी गयी ओढनी चुनड कहलाती है
- हथलेवा ——-
- वर एवं वधु का दांया हाथ जुडवाना हथलेवा कहलाता है
- पाणीग्रहण ———
- विवाह के 7 वचनो में बंधना पाणीग्रहण कहलाता है
- पगधोई ———
- फेरो के पश्चात वधु के पिता द्वारा दुल्हे के पांव दूध से धोना पगधोई कहलाता है
- कन्यादान ———
- वधु के पिता द्वारा अपनी पुत्री को दुल्हे को समर्पित करना ,कन्यादान कहलाता है
- लोकई ———
- विवाह के दिन दुल्हे को खाना खिलने के लिए वधु पक्ष के लोगो द्वारा दी जाने वाली नेक राशी
- दुल्हे के खाना कहते समय महिलाओ द्वारा सिठने गीत गाये जाते है
- कन्यावल ———-
- दुल्हन के फेरो तक उसके सगे-सम्बंधियो द्वारा उपवास रखना
- मो-माटा ———-
- विवाह के अवसर पर घडा अथवा चरी में मिठाई डालकर वधु की सास हेतु भेजना मो-माटा कहलाता है
- समठावनी —–
- विवाह के अवसर पर वधु पक्ष के द्वारा वर पक्ष को दी जाने वाली उपहार एवं धनराशी
- थली-पूजन ——–
- विदाई के समय वधु की रशोई के आगे बैठकर पूजा करना
- थापा ताम ——-
- दुल्हन की विदाई के समय दुल्हे की पीठ पर बनाया गया मांडणा
- गोद भराइ / रंग भराइ ———
- दुल्हन की विदाई के समय वर पक्ष के लोगो द्वारा दुल्हन को कुछ धनराशी देना गोदभराइ कहलाता है
- इसोरी ——–
- वर एवं वधु द्वारा विदाई के समय जीवन रथ की परिक्रमा लगाना , इसोरी कहलाता है
- बार रोकना ———–
- बार रोकने के समय बहिन को दी जाने वाली नेक राशी खाल कहलाती है
- टावडा ——–
- घर में प्रवेश के बाद वधु द्वारा बर्तनों को एकत्रित करना , टावडा कहलाता है
- जात देना ———
- विवाह के पश्चात देवी-देवताओ की पूजा करना , जातदेना कहलाता है
- सोटा-सोंटी ——–
- विवाह के दिन वर-वधु द्वारा एक-दुसरे पर बेंत से वार करना
- जुआ-जुई——–
- काकनडोर खोलने हेतु खेला जाने वाला एक वैवाहिक खेल
- सुहाग-थाल ———
- वधु द्वारा अपनी ससुराल पक्ष की महिलाओ के साथ ससुराल में पहली बार भोजन करना सुहाग-थाल कहलाता है
- इसे हिरावनी भी कहा जाता है
- ओलंदी ——-
- दुल्हन द्वारा प्रथम बार ससुराल जाते समय साथ भेजी जाने वाली कन्या
- जानोटन ———
- विवाह के अवसर पर वर पक्ष द्वारा दिया गया भोज , जानोटन कहलाता है
- परणी जान भात ———–
- वधु पक्ष के द्वारा फेरो के समय आयोजित भोज , परणी जान भात कहलाता है
- गोना / मुकलावा ———
- विवाह समाप्ति के पश्चात दुल्हन को प्रथम बार ससुराल भेजना गोना / मुकलावा कहलाता है
- लगन-पत्रिका ——-
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- 4 मृत्यू के रिवाज ————–
- पनिवाडा ——–
- मृत व्यक्ति की सुचना ग्रामवासियो तक पंहुचाना , पनिवाडा कहलाता है
- अर्थी ——–
- मृत व्यक्ति को सुलाकर / लेटाकर श्मसान तक ले जाना , अर्थी कहलाता है
- बेकुंठी ———
- मृत व्यक्ति को बैठाकर गाजे-बाजे के साथ श्मसान -घाट तक ले जाना बेकुंठी कहलाता है
- बेकुंठी के उपर से फेंकी गयी कोडिया व धनराशी , बखेर कहलाती है
- द्न्डोत ——-
- अर्थी / बेकुंठी के निचे से निकलना द्न्डोत कहलाता है
- आधेटा ———
- मृत व्यक्ति को श्मसान स्थल तक ले जाते समय आधी दुरी तय करने के पश्चात अर्थी की दिशा परिवर्तित करना , आधेटा कहलाता है
- पिंडदान ——–
- मृत व्यक्ति के उतराधिकारी द्वारा जो के आटे का पिंड चारो दिशाओ में फेंकना , पिंडदान कहलाता है
- काठ ——–
- मृत व्यक्ति को जलाने हेतु प्रयुक्त लकडिया , काठ कहलाती है
- लांपा ———-
- मृत व्यक्ति के उतराधिकारी द्वारा उसे मुखाअग्नि देना , लांपा कहलाता है
- कपालक्रिया ——–
- मृत व्यक्ति की खोपड़ी में घी डालकर जलाना ,कपालक्रिया कहलाती है
- भद्दर ——
- मृत व्यक्ति को सिर के बल समर्पित करना
- सांतरवाडा ———–
- अंतिम संस्कार के बाद ग्रामवासियों द्वारा मृतक के आश्रितों को ढाढस बंधाना
- खरडा ———
- मृतक व्यक्ति को श्रदांजली अर्पित करने हेतु बनाया गया बैठक स्थल
- फुल चुनना /धारी संस्कार ———-
- मृतक व्यक्ति के तीसरे दिन श्मसान स्थल से उसकी अस्थिया एकत्रित करना
- मोकाण ——–
- मृतक व्यक्ति के आश्रितों को उसके उसके रिश्तेदारों द्वारा संवेदना प्रकट करना
- डांगडी की रात ———-
- मृतक व्यक्ति के अंतिम दिन से पहली रात जिस पर भजन-कीर्तन का आयोजन होता है
- दोवनिया ———
- मृतक व्यक्ति के 12वे दिन घर के शुद्धिकरण हेतु हवन-पूजन कर घर में जल डालना
- मोसर ———–
- किसी मृत व्यक्ति के अंतिम दिन दिया गया म्रत्युभोज , मोसर कहलाता है
- जोसर ——-
- जीवित व्यक्ति का म्रत्युभोज , जोसर कहलाता है
- कांकड ——-
- मृतक व्यक्ति के गाँव की सीमा से लगने वाले अन्य गाँवो को म्रत्युभोज पर आमंत्रित करना ,कांकड कहलाता है
- पट्टी ———–
- मृतक व्यक्ति के सीमावर्ती गाँवो से सीमा लगने वाले गाँवो को म्रत्युभोज पर आमंत्रित करना , पट्टी कहलाता है
- राबपेय —-
- मोसर समाप्ति के पश्चात मृतक व्यक्ति के आश्रितों को खाना खिलने हेतु किया जाने वाला रिवाज राबपेय कहलाता है
- पहरावनी / ओढावनी ———
- मृतक व्यक्ति के आश्रीतो के रिश्तेदारों द्वारा साफा पहनाकर दिया जाने वाला सहयोग (वितीय) , पहरावनी कहलाता है
- गंगाप्रसादी ——–
- गंगाप्रसादी मृत्यू का अंतिम रिवाज है
- गंगाजल वितरित कर मृतक व्यक्ति के दिनों को पूरा करना गंगाप्रसादी कहलाता है
- पनिवाडा ——–