वाद्य यंत्र : राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र Topik : 37
वाद्द यंत्र का प्रयोग संगीत को लय एवं गति प्रदान करने के लिए होता है , वाद्द यंत्र चार प्रकार के होते है : तत्त वाद्द यंत्र , सुषिर वाद्द यंत्र , ताल वाद्द यंत्र , घन वाद्द यंत्र इन वाद्द यंत्र का विस्तार पुर्वक अध्ययन करेंगे ————
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र
- लोकसंगीत को लय एवं गति प्रदान करने का एक साधन वाद्द यंत्र है
- वाद्द यंत्र से स्वरों की उत्पति होती है
- स्वरों की उत्पति के आधार पर वाद्द यंत्रो के प्रकार —————
- तत्त वाद्द यंत्र
- तारो से ध्वनी / स्वर की उत्पति
- अवनद्द / ताल वाद्द यंत्र
- चमड़े से निर्मित ऐसे वाद्द यंत्र जिनको चौट कर आवाज उत्पन की जाती है
- चमड़े के भाग से स्वर की उत्पति
- सुषिर वाद्द यंत्र
- फूंक मारकर ध्वनी / स्वर की उत्पति
- घन वाद्द यंत्र
- धातु से निर्मित
- चौत या आघात से स्वर स्वर की उत्पति
- तत्त वाद्द यंत्र
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- तत्त वाद्द यंत्र ——————–
- ऐसे वाद्द यंत्र जिनमे तारो से ध्वनी उत्पन की जाती है
- रावणहत्था वाद्द यंत्र ——————–
- यह वाद्दयंत्र अधकटे नारियल से बना होता है
- रावणहत्था को ——— गज की सहायता से बजाया जाता है
- इस वाद्द यंत्र में कुल तारो की संख्या ———- 9 होती है
- इसमें एक तार ———- घोड़े की पूंछ का बना होता है , जिसे पुखावज कहा जाता है
- शेष अन्य तार ———- तरब कहलाते है
- लोकदेवता के फड़ के वाचन के समय यह वाद्द यंत्र बजाया जाता है
- जेसे : डुंगजी-जवाहरजी
- रामदेवजी तथा पाबूजी की फड़ वाचन में हल वाद्द यंत्र का प्रयोग किया जाता है
- देवनारायण जी की फड़ का वाचन करते समय जंतर वाद्द यंत्र बजाया जाता है
- रवाब वाद्द यंत्र ——————–
- कुल तारो की संख्या ———- 4-5 होती है
- यह टोंक , अलवर , मेवाड़ में बजाया जाता है
- यह नरबबी जाती द्वारा बजाया जाता है
- रबाज वाद्द यंत्र
- जंतर वाद्द यंत्र ——————–
- कुल तारो की संख्या ——— 5-6 होती है
- देवनारायण जी की फड़ का वाचन करते समय गुर्जर जाती के भोपो द्वारा जंतर वाद्द यंत्र बजाया जाता है
- यह वीणा वाद्दयंत्र का आरम्भिक रूप है
- यह वीणा जेसी आकृति का होता है
- इसे खड़े होकर गले में लटकाकर बजाया जाता है
- क्षेत्र ———
- अजमेर
- भीलवाडा
- नागोर
- सुरिन्दा वाद्द यंत्र ——————
- इसमें कुल तारो की संख्या ——— 10 होती है
- यह मुख्यत: ——— लंगा जाती द्वारा बजाया जाता है
- कामयचा वाद्दयंत्र ——————
- कुल तारो की संख्या ——— 16 तार
- प्रथम तिन तार ——— रोंदा कहलाते है
- अगले नो तार ——— लोहे के बने होते है जिसे ———झाड़ कहते है
- अंतिम 4 तार ——— तरब / झीले कहते है
- यह ईरानी वाद्द यंत्र है
- इसे सारंगी की रानी कहा जाता है
- इस वाद्द यंत्र को पश्चिमी राजस्थान में सरवट भी कहा जाता है
- यह मांगनियार जाती के लोगो द्वारा प्रयोग किया जाता है
- योगी व नाथमुनियो द्वारा प्रयुक्त वाद्द यंत्र
- कुल तारो की संख्या ——— 16 तार
- सारंगी वाद्द यंत्र ——————
- कुल तारो की संख्या ——— 27 तार
- ये सभी तार बकरे की आंत से बने होते है
- इसे गज की सहायता से बजाया जाता है
- गज के तार ——— घोड़े की पूंछ के बाल होते है
- सभी तत वाद्द यंत्रो में ——— सर्वश्रेष्ट एवं सुरीला वाद्द यंत्र है
- शास्त्रीय संगीत में सारंगी का प्रयोग किया जाता है
- सागवान की लकड़ी एवं आंत के तारो से बना होता है
- यह लंगा जाती एवं मांगनियार जाती द्वारा बजाया जाता है
- सारंगी के प्रकार ————
- आलू सारंगी
- गुजराती सारंगी
- डेढ़ पसली सारंगी
- सिन्धी सारंगी ———— इसे सर्वश्रेष्ट सारंगी माना गया है
- जोगिया की सारंगी
- धानी सारंगी
- सारंगी को कामयचा का राजा कहा जाता है
- कुल तारो की संख्या ——— 27 तार
- भपंग वाद्द यंत्र ——————
- मेवात क्षेत्र में बजाया जाता है
- प्रमुख कलाकार ————-
- जहूर खां
- उमर फारुख मेवाती
- यह डमरू की आकृति के समान होता है
- अपंग वाद्द यंत्र ——————
- लोकी से निर्मित
- इकतारा वाद्द यंत्र ——————
- कुल तारो की संख्या ——— 2 तार
- उपनाम ———-
- आदि वाद्द
- मूल वाद्द
- मीरा बाई और नारद जी का सम्बन्ध इसी वाद्दयंत्र से है
- नाथ , साधू , सन्यासी द्वारा प्रयुक्त वाद्द यंत्र
- एक हाथ से इकतारा तथा दुसरे हाथ से खड़ताल बजाई जाती है
- दौतारा वाद्द यंत्र
- स्वरमंडल वाद्द यंत्र / सुरमंडल वाद्द यंत्र ——————
- कुल तार ——— 21-26 तार
- पश्चिमी राजस्थान में मांगनियार जाती द्वारा प्रयुक्त वाद्द यंत्र
- इसे मृतको का किला व सूरज मंडल भी कहा जाता है
- दुकाको वाद्द यंत्र ——————
- यह वाद्द यंत्र दीपावली के अवसर पर बजाया जाता है
- भील जनजाति के लोगो द्वारा बजाया जाता है
- तंदूरा वाद्द यंत्र ——————
- इस वाद्द यंत्र में कुल तार ——— 4 तार होते है
- उपनाम ———–
- चौतारा
- वेनो
- गुर्जरी वाद्द यंत्र ——————
- यह वाद्द यंत्र रावणहत्था से मिलता – जुलता वाद्द यंत्र है
- आकृति में रावणहत्था से आधा वाद्द यंत्र है
- टोंटो वाद्द यंत्र
- चिकारा वाद्द यंत्र
- किरा वाद्द यंत्र
- रावणहत्था वाद्द यंत्र ——————–
- ऐसे वाद्द यंत्र जिनमे तारो से ध्वनी उत्पन की जाती है
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- अवनद्द / ताल वाद्द यंत्र ——————
- ऐसे वाद्द यंत्र जिनको चमड़े से मन्डकर बनाया जाता है एवं चोट करने पर ध्वनी उत्पन होती है
- नगाड़ा वाद्द यंत्र —————-
- इसे गजशाही एवं गौरव का प्रतीक वाद्द यंत्र कहा जाता है
- इसे युद्ध वाद्द भी कहा जाता है
- छोटा नगाड़ा ——– मादा एवं
- बड़ा नगाड़ा ——– नर कहलाता है
- प्रसिद्ध वादक ——– रामकिशन सोलंकी ( पुष्कर से )
- टामक / दमामा वाद्द यंत्र —————-
- भरतपुर , सवाई माधोपुर में प्रचलित वाद्द यंत्र
- अन्य नाम ————-
- बम्ब
- धौसा
- यह आकृति में सबसे बड़ा वाद्द यंत्र है
- कढाई की आकृति के समान एक बड़ा नगाड़ा होता है
- वर्तमान में इस वाद्द यंत्र का प्रयोग ——– जाट एवं गुर्जर जाती द्वारा किया जाता है
- यह भैंस की खाल से निर्मित होता है
- डमरू वाद्द यंत्र —————-
- भगवान शिव का वाद्द यंत्र
- डमरू की तुलना ——– बालू घड़ी से की जाती है
- डेरू वाद्द यंत्र —————-
- यह आम की लकड़ी से निर्मित होता है
- गोगाजी का वाद्द यंत्र है
- मांदल वाद्द यंत्र —————-
- शिव-पार्वती को समर्पित वाद्दयंत्र
- ढीबको वाद्द यंत्र —————-
- इस वाद्द यंत्र का प्रचलन गोडावड क्षेत्र में है
- तासा वाद्द यंत्र —————-
- मुसलमानों में मोहर्रम मास में ताजिये निकालते समय इसका प्रयोग किया जाता है
- इस वाद्द यंत्र को गले में लटकाकर बजाया जाता है
- माठ वाद्द यंत्र —————-
- पाबूजी के भोपो / नायको द्वारा पावडे इसी वाद्द यंत्र के साथ गाये जाते है
- पावडे ——- वीर गाथाओं को पावडे कहा जाता है
- चंग वाद्द यंत्र —————-
- शेखावाटी क्षेत्र में
- मृदंग / पखावज वाद्द यंत्र —————-
- निर्माण ———-
- बड
- सुपारी
- सवन
- बिना के पेड़ो के तने से निर्मित
- रावल , भवाई , राबिया जाती के लोगो द्वारा इस वाद्द यंत्र का नृत्य में प्रयोग किया जाता है
- निर्माण ———-
- ढोल वाद्द यंत्र —————-
- इसके दो भाग होते है
- नर
- मादा
- इसके दो भाग होते है
- डुगडुगी वाद्द यंत्र
- कुंडी वाद्द यंत्र
- शिल्पी वाद्द यंत्र
- घेरा वाद्द यंत्र
- डफ / ढफ / डफली वाद्द यंत्र
- ढोलक वाद्द यंत्र
- खंजरी वाद्द यंत्र
- नोबत वाद्द यंत्र
- ढाक वाद्द यंत्र
- कमर वाद्द यंत्र
- वाद्द यंत्र बनाने का प्रशिक्षण ——– राजस्थान संगीत संस्थान , जयपुर द्वारा दिया जाता है
- राजस्थान संगीत संस्थान ——————
- जयपुर
- स्थापना ——– 1950 ई. में
- प्रथम निर्देशक ——– ब्र्हानंद
- इस संस्थान ने 1980 में यह कार्य कोलेज निर्देशाल्य को सोंपा
- संगीत की अधिष्ठात्री देवी ——– सरस्वती जी है
- संगीत की उत्पति ——– ओंकार शब्द से मानी जाती है
- राजस्थान संगीत संस्थान ——————
- नगाड़ा वाद्द यंत्र —————-
- सुषिर वाद्द यंत्र —————-
- अगले भाग में —————- Topik-38 में
- ऐसे वाद्द यंत्र जिनको चमड़े से मन्डकर बनाया जाता है एवं चोट करने पर ध्वनी उत्पन होती है