वेशभूषा : राजस्थान के पगड़िया ,वस्त्र ,आभूषन Topik-7
राजस्थान की वेशभूषा सुंदर एवं आकर्षक है , राजस्थान की पगड़िया जो विभिन्न ऋतुओ के अनुसार पहनी जाती है , अलग-अलग क्षेत्रो में अलग पगड़ी बाँधी जाती है , राजस्थान के वस्त्र —– इसमें पुरुषो एवं महिलाओ द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र का वर्णन , राजस्थान के आभूषन — इस भाग में महिलाओ द्वारा पहने जाने वाले विभिन्न प्रकार के आभूषन जो अलग-अलग अंगो में पहने जाते है का वर्णन है , राजस्थान की वेशभूषा का विस्तार निम्नलिखित है
.
.
.
राजस्थान की वेशभूषा
- राजस्थान की पगड़िया ————-
- पगड़ी पुरुषो के सिर पर बंधी जाती है जो मान-सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक होती है
- पगड़ी गोरव और प्रतिष्ठा का सूचक मणि जाती है
- राजस्थान में पगड़ी का संग्रहालय ——— बागोर हवेली (उदयपुर )
- बागोर हवेली में विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी सुरक्षित है
- उपनाम ——- पाग , साफा , अम्लो , बागा , घुमालो , पेचा
- अवसर विशेष की पगड़िया ————-
- लहरिया पगड़ी ———–
- तीज के त्योंहार पर पहने जाने वाली पगड़ी
- मंदिल पगड़ी ———–
- दशहरे के अवसर पर पहने जाने वाली पगड़ी
- मोठडे की पगड़ी ———–
- विवाह /अन्य उत्सव पर पहने जाने वाली पगड़ी
- पाग ———
- पाग उस पगड़ी को कहा जाता है जो लम्बाई में बड़ी है
- पेचा ———-
- जरीदार पगड़ी को पेचा कहा जाता है
- पेचा के केवल एक ही रंग होता है
- यदि बहुरंग हो तो उस पगड़ी को मंदिल कहा जाता है
- ऋतुओ के अनुसार पहने जाने वाली पगड़ी ————
- बसन्त ऋतू में ——–गुलाबी पगड़ी
- ग्रीष्म ऋतू में ——–बहरिया पगड़ी
- वर्षा ऋतू में ———-मलय गिरी पगड़ी
- शरद ऋतू में ———–गुल-ए-अनार पगड़ी
- हेमंत ऋतू में ———– मोलिया पगड़ी
- शिशिर ऋतू में ——— केशरिया पगड़ी
- होली के अवसर पर —– फुल पति की छपाई वाली पगड़ी
- मेवाड़ क्षेत्र की प्रमुख पगड़िया ———-
- राजस्थान में मेवाड़ की पगड़ी और जोधपुरी साफा प्रसिद है
- मेवाड़ के महारानाओ की पगड़ी बाँधने वाले व्यक्ति को छावदार कहा जाता था
- अकबर के काल में मेवाड़ में ईरानी पद्दति की अटपटी पगड़ी का प्रचलन था
- ब्रखारमा पाग ——- मेवाड़ की सभी पगड़ियो में सर्वाधिक प्रचलित पाग
- महाराणा उदयसिंह के काल में ——-उदयशाही पगड़ी
- महाराणा अमरसिंह प्रथम के काल में —–अमर शाही पगड़ी
- महाराणा अरिसिंह के काल में ———-अरसी शाही पगड़ी
- महाराणा भीमसिंह के काल में ———-भीम शाही पगड़ी
- महाराणा स्वरूप सिंह के काल में ———–सवरूप शाही पगड़ी
- जोधपुरी साफा ———–
- जोधपुरी साफा का प्रचलन महाराजा जसवन्तसिंह 2nd के काल से माना जाता है
- मारवाड़ के प्रधानमन्त्री —– सर प्रतापसिंह ने जोधपुरी साफा को देश-विदेश में पहचान दिलाई
- राठोडी पेंच ———-
- राजस्थान में राजपूतो द्वारा सर्वाधिक पसंद की जाने वाली पगड़ी
- राजस्थानी लोकगीत अला में इसका उल्लेख मिलता है
- राजाशाही / झाडशाही /जयपुरी पगड़ी ———
- जयपुर राज्य में प्रचलित पगड़ी
- यह पगड़ी लाल रंग के लहरिया से बनी होती थी जो केवल राजाओ के द्वारा पहनी जाती थी
- मारवाड़ की प्रमुख पगड़िया ———
- जसवंत शाही
- चुंडावतशाही
- भीमसिंह शाहजहानी
- मन शाही
- राठोडी
- विजयशाही पगड़ी
- जोधपुर में चुनडी का साफा सर्वाधिक प्रयोग किया जाता
- मारवाड़ में खिडकिया पाग सर्वाधिक प्रचलन में रही लेकिन वर्तमान में इस पाग का प्रयोग गणगोर में इशरजी को पहनाई जाती है
- रोबीला साफा मारवाड़ का प्रसिद साफा है
- लहरिया पगड़ी ———–
.
.
.
- राजस्थान के वस्त्र —————
- पुरुषो के वस्त्र ———–
- साफा —-सिर पर पहना जाने वाला वस्त्र
- पगड़ी —-सिर पर पहना जाने वाला वस्त्र
- पोत्या —– भील जनजाती द्वारा सिर पर बांधा गया सफेद वस्त्र
- फेंटा ——- भील पुरुषो का रंगीन साफा
- खपटा ——- सहरिया जनजाती के पुरुषो का साफा
- पांछ —–गरासिया जनजाती का साफा
- अंगोछा —–पुरुषो द्वारा गले में डाला गया वस्त्र
- फालु —— भील जनजाती के लोगो द्वारा शरीर ढकने हेतु प्रयुक्त अंगोछा
- पंछेवड़ा —— सर्दियों से बचाव हेतु ओढा जाने वाला मोटा वस्त्र
- खेसले ———- ओढने का एक वस्त्र जो लेटा गाँव (जालोर ) का प्रसिद
- घुग्घी/घुग्गी ——– बरसात से बचने हेतु ओढा जाने वाला वस्त्र
- जामा————– कमर से उपर घुटनों तक लम्बा ,पहना गया पुरुषो का वस्त्र
- पायजामा———– कमर से निचे पावो तक लम्बा पहना गया वस्त्र
- ब्रीचेस ————-चूड़ीदार पायजामा
- सुथना ————-छोटे बचो द्वारा सर्दियों में पहना गया पायजामा
- चोंगा ————– जामा व पायजामा के उपर से बिना बाहों का पहना गया वस्त्र
- कुर्ता ————— पुरुषो का कमर से उपर का वस्त्र
- अंगरखी ——–
- पुरुषो द्वारा कमर से उपर पहना गया वस्त्र जिसमे जेवडी(रस्सी) लगी होती थी
- गाँव की भाषा में अंगरखी को बुगतरी कहा जाता था
- इस वस्त्र का सर्वाधिक प्रचलन गुर्जर जाती में अजमेर , जयपुर व सवाई माधोपुर जिले में है
- राजस्थान में फार्रुखशियार बुग्तरी विख्यात है
- बुगतरी को अचकन व तनसुख भी कहा जाता है
- धोती ——-
- 4 मीटर लम्बी ,90 सेमी चोडा वस्त्र जो पुरुषो द्वारा कमर पर बांधा जाता है
- देपाडा ————– आदिवासिओ की तंग धोती
- खोयतु / लंगोट ——–भील पुरुषो द्वारा कमर पर बंधा गया वस्त्र
- भाखला / भाखली ——सर्दियों में पुरुषो के ओड़ने का वस्त्र
- आत्मसुख ————–
- सर्दियों से बचाव हेतु पहना जाने वाला मोटा वस्त्र
- सबसे प्राचीन आत्मसुख सिटी पेलेश जयपुर में स्थित है
- आड़बन्द ———– यह एक लंगोटी है जो कटीबन्द या कोपीन की रस्सी से युक्त होती है
- गुलिबन्द———–
- इस वस्त्र को मफलर भी कहा जाता है
- सर्दी से बचाव हेतु कान पर रखा जाने वाला वस्त्र
- पटीयारी ——बकरी के बालो से बना दरीनुमा मोटा वस्त्र
- ताखी ———-छोटे बच्चो का सिर ढकने का वस्त्र
- महिलाओ के वस्त्र ———–
- कांचली ——–महिलाओ द्वारा कमर से उपर पहना गया वस्त्र जिसमे बांहें होती है
- कुर्ती ———–कमर से उपर पहना गया वस्त्र जिसमे बांहे नही होती
- कापड़ी ———महिलाओ का कमर से उपर का वस्त्र
- लहंगा ———–महिलाओ द्वारा कमर से निचे पांवों तक लम्बा , पहना गया वस्त्र
- घाघरा / पेटीकोट ——महिलाओ द्वारा पहना गया कमर से निचे का वस्त्र जो लहंगे के अंदर पहना जाता है
- पेसवाज ————-महिलाओ द्वारा गेल से लगाकर पांवों तक पहना गया एकसमान वस्त्र
- तिलका ————-मुस्लिम महिलाओ द्वारा पहनी गयी सफेद रंग की वेशभूषा
- बुर्का ————— मुस्लिम महिलाओ द्वारा पहनी गयी काले रंग की वेशभूषा
- जरी / बरी ———-
- विवाह के दिन महिलाओ द्वारा पहनी जाने वाली वेशभूषा
- प्रसिद ——–जयपुर
- पिला —————
- महिलाओ द्वारा जलवा /कुआ पूजन के दिन पहनी गयी वेशभूषा
- संतान के रूप में लड़का होने पर पिला का रंग ——-केसरिया
- लड़की होने पर पिला का रंग ————गुलाबी होता है
- सांठो ——– रजाई के निचे ओढा जाने वाला वस्त्र
- कटकी ————-
- अविवाहित कन्याओ की लाल व काले रंग के मिश्रण की ओढनी
- इसे पावली भात की ओढनी भी कहते है
- मीणा जनजाती की महिलाओ की ओढनी ——–
- केरिभांत की ओढनी
- ताराभंत की ओढनी
- पपीताभांत की ओढनी
- ज्वारा भांत की ओढनी
- जामसाईं —— आदिवासी महिलाओ की साड़ी
- रेनसाईं ——–आदिवासी महिलाओ के घाघरे की छींट
- नान्दना ——-
- आदिवासी महिलाओ के घाघरे
- प्रसिद ——भीलवाडा
- कछावु ———आदिवासी /भील महिलाओ का घुटनों तक लम्बा घाघरा
- पीरिया ———-भील जनजाती की महिलाओ द्वारा पहनी गयी पीले रंग की साड़ी
- सिंदरी ———-भील जनजाती की महिलाओ की लाल रंग की साड़ी
- फड़का———-कथोडी जनजाति की महिलाओ द्वारा मराठी अंदाज में पहनी गयी लाल रंग की साड़ी
- झलुकी ———-गरासिया जनजाति की महिलाओ द्वारा कमर से उपर कमीज / पुरुषो जेसी वेशभूषा पहनना
- सलूका ———-सहरिया जनजाति की महिलाओ द्वारा कमर से उपर कमीज / पुरुषो जेसी वेशभूषा पहनना
- चंवरी ——आदिवासिओ में दुल्हन के द्वारा पहनी गयी गुलाबी रंग की साड़ी
- शरारा —— कन्याओ द्वारा कमर से निचे पहना गया वस्त्र जो घेर / सलवार जेसा हो
- मामा चुनड —–विवाह पर वधु द्वारा मामा की तरफ से ओढ़ी गयी ओढनी
- चिढ का पोमचा ——-हाडोती क्षेत्र में विधवा महिलाओ द्वारा ओढ़ी गयी काले रंग की ओढनी
- अवोचन वस्त्र ——–प्र्दान्सिन ओरतो के लिए सिर पर ओढने का सफेद वस्त्र
- लालर————–विधवा स्त्रियो की ओढनी को लालर कहते है
- सालू ———–सधवा महिलाओ की कीमती ओढनी एवं वस्त्र
- लोई ———स्त्रियो के ओढने का ऊनि वस्त्र
- पुरुषो के वस्त्र ———–
.
.
.
- राजस्थान के आभूषन—————-
- धातु से निर्मित ऐसी वस्तु जिसका प्रयोग महिला / पुरुष सुन्दरता बढ़ाने हेतु करते है , आभूषन कहलाते है
- आभुश्नो का सर्वाधिक प्रयोग मेवाड़ / हाडोती क्षेत्र में आदिवासिओ द्वारा किया जाता है
- राजस्थान में सर्वाधिक आभूषन चांदी से निर्मित होते है
- राजस्थान में सोने के आभुषनो का सर्वाधिक प्रचलन मारवाड़ क्षेत्र में है
- दांत के प्रमुख आभूषन ———
- रखन————सोने / चांदी की प्लेट / लहर जो दांतों पर चढ़ाई जाती है
- चुंप / चांप ——यह सोने / चांदी की कील होती है जो दो दांतों के बीच में लगाई जाती है
- धोंस ———–दांतों का एक विशेष आभूषन
- मेख ——-स्त्री – पुरुष द्वारा दांतों पर लगाई जाने वाली चुंप
- कील
- कमर के प्रमुख आभूषन ————
- तरुड़ी / तगड़ी —— सोने व चांदी का आभूषन
- कंदोरा
- कन्दोरी / करघनी
- कणकती
- कन्डोर
- जंजीर
- वेसन
- नगरी
- झालरा
- लूंब
- सटका
- हालम
- कणकावली
- धाकड़ी
- सिनामा
- मेखाला
- सिर / मस्तिष्क के प्रमुख आभूषन ————
- गोफन
- चुडारतन
- शीशफूल
- टिका-टिको-भलको
- टिकड़ी-टिकड़ा
- रखडी
- बोर / बोरला
- दामिनी
- सांकल
- हाकल
- मांग
- मांगटिका
- सुरली
- मेमंद
- गेडी
- सरी
- बिस्फुल
- पतरी
- मवती
- फुलगुघर
- सोहली
- काचर
- गले के प्रमुख आभूषन ————-
- मादलिया
- तिमनिया
- चेन
- कंठी
- ठुस्सी
- नेक्लेश
- मंगलसुत्र
- हार
- रानिहार
- चन्द्रहार
- हंसरहार
- सोहनहार
- नलहार
- मोतीहार
- मालामोहनमाला
- कंठमाला
- वरमाला
- मटरमाला
- हमेरमाला
- टेवटा
- चम्पाकली
- पंचलड़ी
- मंडली
- हंसली
- बड़ा
- तुलसी
- जंजीर
- खुन्गाली
- हालरो
- कान के प्रमुख आभूषन ————-
- झुमका
- झेला
- झमेला
- झोला
- झोले
- कर्णफूल
- टोटीफुल
- फुल
- टॉप्स
- छेल्कड़ी
- सुरलिया
- एरनहार
- पीपलपन्ना
- मोरकवर
- भुचारिया
- अन्घोठिया
- नाक के प्रमुख आभूषन ——-
- बारी
- बांका
- कांटा
- चुनरी
- चोंप
- फ़िनी
- नथ
- लोंग
- लटकन
- बेसरी
- बाजु के प्रमुख आभूषन————-
- बाजुबन्द
- भुजबन्द
- टडडा
- टडडे
- बट्टा
- तकया
- आरतगजरा
- पेरो की कलाई के प्रमुख आभूषन ——–
- लंगर
- नेवरी
- आंवला
- झांझर
- टांका
- पायजेब
- कड़ा
- लच्छा
- नुपुर
- टिड़ो
- पेरो की अंगुलियों के प्रमुख आभूषन ———-
- फोलरी / पोलरी
- पगपान
- बिछुड़ी
- गोर
- हाथो की कलाई के प्रमुख आभूषन ———-
- राखी
- मोली
- चुडा (बगडी , नागोरी , कंकणी)
- चुडिया(बगडी , नागोरी , कंकणी)
- कड़ा
- चांटा
- गजरा
- हाथो की अंगुलियों के प्रमुख आभूषन ———
- छोला
- अरसी
- दमनी
- मुन्दनी
- ह्थपान
- बिठी
- अंगूठी
- आँख का आभूषन ——-
- बादली
- दांत के प्रमुख आभूषन ———