हस्तकला : राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प कला Topik-25
राजस्थान की हस्तकला बहुत ही आकर्षक है , हाथो से बनाये गये आकर्षक वस्तुओ को बनाने की कला हस्तशिल्प कला कहलाती है जेसे : प्रिंटिंग ( अजरक प्रिंटिंग , जाजम प्रिंटिंग , दाबू प्रिंटिंग , सांगानेरी प्रिंटिंग ) ,पोटरी ( ब्लू पोटरी / नीली पोटरी , ब्लेक पोटरी , सुनहरी पोटरी / गोल्डन पोटरी , डबल वर्क पोटरी / कागजी पोटरी ) , काशिदाकारी कला , बंधेज कला ( लहरिया , पोमचा , मोठडा , चुनरी ) , मूर्तिकला इत्यादि सम्मिलित है जो निम्न प्रकार है ———
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राजस्थान की प्रमुख हस्तकला
- हाथो के द्वारा कलात्मक एवं आकर्षक वस्तुए बनाना , हस्तशिल्प कला कहलाता है
- राजस्थान में हस्तशिल्प कला का सबसे बड़ा केंद्र बोरानाडा ( जोधपुर ) में है
- राजस्थान में ओधोगिक निति 1988 के तहत इस निति में हस्तशिल्प कला को बढ़ावा दिया गया
- हस्तकला एक प्रकार का लघु उधोग की श्रेणी में आता है
- हस्तकला को सरंक्षण ————— राजसीको द्वारा दिया गया
- राजसीको द्वारा ————— 3 जून 1961
- राजसीको ————— जयपुर
- राजसीको द्वारा ————— 3 जून 1961
- राजस्थान सरकार हस्त निर्मित वस्तुओ को ————— राजस्थली
- राजस्थान में स्थापित शिल्पग्राम —————
- हवाला शिल्पग्राम ————— उदयपुर
- जवाहर कला केंद्र ————— जयपुर
- वास्तुकार —- चार्ल्स कोरिया
- पाल शिल्पग्राम ————— जोधपुर
- दरी उधोग को बढ़ावा देने हेतु स्थापित शिल्पग्राम —————
- बस्सी ————— चितोडगढ़
- उमराव ————— बूंदी
- धारियाबाद ————— प्रतापगढ़
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- पोटरी कला —————
- इस कला के अंतर्गत मिटटी के बर्तनों पर चित्रकारी का कार्य किया जाता है
- यह कला मूलत पर्शिया ( ईरान ) की है
- अकबर पोटरी कला को पर्शिया ( ईरान ) से लेकर लाहोर ( पाकिस्तान ) आये
- लाहोर से इस कला को मानसिंह प्रथम राजस्थान लाये
- ब्ल्यू पोटरी / नीली पोटरी —————
- जयपुर
- जादूगर ——- कृपाल सिंह शेखावत
- मऊ गाँव ( सीकर ) का निवासी
- कृपालसिंह को 1974 ई. में पदम् श्री से सममानित किया गया
- इन्हें शिल्प गुरु अवार्ड भी मिला
- कृपाल सिंह ने 25 रंगो का प्रयोग करके एक नइ पोटरी विकसित की जिसे कृपाल पोटरी कहा जाता है
- गुरु —— भूरसिंह शेखावत थे
- भूरसिंह शेखावत को गाँवो का चितेरा कहा जाता है
- ब्ल्यू पोटरी कला के वर्तमान पुरुष कलाकार 2024में ——
- खेमराज
- सत्यनारायण
- प्रभुलाल
- ब्ल्यू पोटरी महिला कलाकार ———-
- स्व. नाथीबाई
- मीनाक्षी राठौड़
- ब्ल्यू पोटरी कला के पांच तत्व ————-
- हरे रंग का काच ( कहिरा )
- गोंद ( साजी )
- सोडियम कार्बोनेट
- कवार्टज
- मुलतानी मिटटी
- इन्हें एक मटके में 800 डिग्री सेंटिग्रेड पर तपाया जाता है
- ब्ल्यू पोटरी को आमेर लेन का श्रेय ————— मानसिंह प्रथम
- ब्ल्यू पोटरी का सर्वाधिक विकास ————— रामसिंह द्वितीय के काल में हुआ
- रामसिंह द्वितीय के काल में कालू व चुडामण ने दिल्ली के भोला कुम्हार से प्रशिक्षण प्राप्त कर इस कला को पुन: जीवित किया
- ब्लेक पोटरी —————
- कोटा
- इस कला में चीनी मिटटी के बर्तनों पर काले रंग की प्रधानता में चित्रकारी की जाती है
- गमलेदाना , कप , प्लेट , दोने इत्यादि पर इस पोटरी का कार्य किया जाता है
- सुनहरी पोटरी / गोल्डन पोटरी —————
- बीकानेर
- जेसलमेर
- डबलवर्क / कागजी पोटरी —————
- अलवर
- सांगानेर ( जयपुर )
- कागजो को गलाकर बर्तन बनाने की कला , पेपरमेशी कहलाता है
- इस कला में छिद्रयुक्त कागज के बर्तनों पर चित्रकारी का कार्य किया जाता है
- तरल पदार्थो का प्रयोग इस पोटरी से निर्मित पदार्थो पर नही किया जाता
- इसे सजावटी पोटरी भी कहा जाता है
- ब्ल्यू पोटरी / नीली पोटरी —————
- मीनाकारी कला —————
- इस कला के अंतर्गत आभुषनो में रंग भराई का कार्य किया जाता है
- हस्तकला की आत्मा ————— मीनाकारी कला है
- एशिया की सबसे बड़ी मीनाकारी मंडी ————— जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क , सीतापुरा ( जयपुर )
- यह कला मूलत ईरान की है
- अकबर इस कला को लाहोर ( पाकिस्तान ) लेकर आया
- मानसिंह प्रथम मीनाकारी कला को लाहोर से आमेर लेकर आये
- मीनाकारी कला का जादूगर ————— कुदरत सिंह
- 1988 ई. में कुदरत सिंह को इस कला के लिए पदम श्री पुरुष्कार मिला
- वर्तमान 2024 में मीनाकारी कला के कलाकार ————–
- हरिसिंह
- गोभासिंह
- श्यामसिंह
- किशनसिंह
- मीनाकारी 2 प्रकार की होती है ——————
- कच्ची मीनाकारी —————
- मुरादाबादी
- अलवर और जयपुर की प्रसिद्ध
- कच्ची मीनाकारी में पीतल के आभुषनो में रंग भराई का कार्य किया जाता है
- ताम्बे की मीनाकारी ———- भीलवाडा में की गयी
- पक्की मीनाकारी —————
- तारकशी
- नाथद्वारा ( राजसमन्द )और रेनवाल ( जयपुर ) की प्रसिद्ध है
- पक्की मीनाकारी में चांदी के आभुषनो पर रंग भराई का कार्य किया जाता है
- कच्ची मीनाकारी —————
- कुंदनगिरी —————
- जयपुर
- इस कला के अंतर्गत आभुषनो पर रतन / कांच की जड़ाई का कार्य किया जाता है
- कोप्तागिरी कला —————
- जयपुर और अलवर
- यह कला मूलत दमिरक ( पंजाब ) की है
- इस कला के अंतर्गत फौलादी वस्तुओ को आकर्षक दिखाने हेतु सोने-चांदी के तारो का लेप कीया जाता है
- तहनिशा कला —————
- उदयपुर
- इस कला के अंतर्गत फौलादी वस्तुओ को खोदकर धातु भरना
- कारीगर ———- सीलमगिर
- बरक का कार्य —————
- जयपुर
- कारीगर ———– पन्नीगर
- यह कार्य सवाई जयसिंह के काल में प्रारम्भ हुआ
- चांदी के तारो से बनाया जाता है जिसका प्रयोग मिठाई को आकर्षक दिखाने के लिए किया जाता है
- जेसे : काजू-कतली पर चांदी की बरक लगाई जाती है
- वर्क का कार्य —————
- शेखावाटी क्षेत्र और जयपुर
- मिररवर्क —————
- चौहटन ( बाड़मेर )
- गोंद उत्पादन में
- इसका सर्वाधिक कार्य ——– जेसलमेर में होता है
- थेवा कला —————
- प्रतापगढ़
- थेवा कला में हरे रंग के कांच पर सोने की नक्काशी का कार्य किया जाता है
- हरे रंग का कांच ——- बेल्जियम से आयात किया जाता है
- जनक ————— नाथूराम जी सोनी
- प्रतापगढ़ शासक सावंतसिंह के काल में थेवा कला का प्रारम्भ हुआ
- सावंतसिंह ने नाथूराम जी सोनी परिवार को राज-सोनी की उपाधि प्रदान की
- इनका लिम्का बुक में 2011ई. में नाम दर्ज हुआ
- थेवा कला ने G.I. टैग प्राप्त किया
- 2002 में थेवा कला पर 5 रु का डाक टिकट जारी किया गया
- महेश विजयराज सोनी को 2015 में थेवा कला हेतु पदम श्री पुरुष्कार से सममानित किया गया
- वर्तमान प्रमुख कलाकार ——- गिरीश कुमार
- थेवा कला प्रशिक्षण संसथान ————— प्रतापगढ़ में 2004 में स्थापित किया गया
- थेवा कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य ————— जस्टिन वर्कि ने किया
- आला थेवा ——– थेवा कला में हरे रंग के अतिरिक्त अन्य रंगो का प्रयोग करना
- हरिनारायण मारोठिया ने ————— रंगीन कांच पर थेवा कला का कार्य किया
- उस्ताकला —————
- बीकानेर
- ऊंट कीखाल / बाल पर सोने की नक्काशी का कार्य किया जाता है
- ऊंट की खाल को मुलायम बनाकर कुपा -कुपिया बनाना तथा उस पर सोने की नक्काशी करना , उस्ता कला कहलाती है
- उस्ता कला का अन्य नाम ————— मुन्वव्ती कला
- उस्ता कला मूलत ईरान की है
- अकबर ईरान से लाहोर लेकर आये
- बीकानेर शासक अनूपसिंह के काल में मोहम्मद उस्ता परिवार लाहोर से बीकानेर आया
- राजस्थान में इस कला को प्रसिद्ध करने वाले प्रथम व्यक्ति ————— कादर बक्श
- उस्ता कला का विदेशी कलाकार ————— A.H. मुलर ( जर्मनी का )
- उस्ता कला के प्रमुख कलाकार ————— हिमामुद्दीन उस्ता को 1986 ई. में पदम् श्री पुरुष्कार मिला
- वर्तमान कलाकार ————–
- हनीफ उस्ता ————— ख्वाजा साहब की दरगाह पर चित्राकन
- जलीम उस्ता
- लालसिंह भाटी ————— गेंडे की खाल पर उस्ता कला का कार्य किया
- महिला कलाकार ————
- ज्योतिस्वरूप शर्मा
- ममता शर्मा ————— उस्ता कला पर शोध कार्य
- ईलाहीबक्श ने ऊंट की खाल पर ————— बीकानेर महाराजा गंगासिंह का चित्र बनाया जो U.N.O. में सुरक्षित है
- उस्ता कला के प्रशिक्षण हेतु स्थापित संस्थाए —————
- कैमल हेयर हाइड ट्रेनिग सेंटर ———-
- बीकानेर
- स्थापना ——- 15 अगस्त 1975 ई. में
- प्रथम निर्देशक ——– हिशामुद्दीन उस्ता
- प्रथम प्रशिक्षनार्थी ————— असगर खान
- कैमल हेयर हाइड ट्रेनिग सेंटर ———-
- मथेरणा कला —————
- आगे के भाग में ————— Topik-26 में
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