हस्तकला : राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प कला Topik-26
हमने राजस्थान की प्रमुख हस्तकला के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की हस्त कला के बारे में अध्ययन किया जेसे : पोटरी कला , मीनाकारी कला , थेवा कला , उस्ता कला , मिररवर्क , कोप्तागिरी कला , कुंदनगिरी कला के बारे में अध्ययन किया अब आगे की कला का अध्ययन करते है ——
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राजस्थान की प्रमुख हस्तशिल्प कला
- मथेरणा कला —————-
- बीकानेर
- इस कला के अंतर्गत किसी भी धार्मिक या पोरोणिक स्थल पर धार्मिक या पोरोणिक ग्रंथो का भीती चित्रण किया जाता है
- प्रमुख कलाकार ———-
- रामलाल
- मुन्नालाल
- मुकुंद
- यह जैन धर्म से प्रभावित कला है
- कला का कलाकार —– मथेरण
- मथेरण राज परिवार के निजी चित्र भी बनाते थे
- काष्ठ कला —————-
- जनक —————- प्रभात जी सुथार
- इस कला में लकड़ी से वस्तुओ का निर्माण किया जाता है
- पातरे-तिपरणी ————
- पीपाड़ – जोधपुर
- ये जैन धर्म के साधुओ के भोजन हेतु निर्मित लकड़ी के बर्तन होते है
- चौपडा – बाजोट ————
- बाड़मेर
- कठपुतली कला ————
- उदयपुर , चितोडगढ़ , कोटपुतली , जयपुर
- अरडू की लकड़ी से निर्मित होती है
- यह कला नट-भाट जाती में लोकप्रिय है
- इस कला का जादूगर —————- दादा पदम् जी
- इस कला का जनक / अंतराष्ट्रीय प्रसिद्धि दिलाने वाला —————- देवीलाल सांभर
- स्थानक —————- कठपुतली कला का मुख्य सूत्रधार
- कठपुतली संग्रहालय —————- उदयपुर
- इस कला का सरंक्षण —————- भारतीय लोक कला मंडल , उदयपुर ने किया है
- कावड , बेवाण ———-
- बस्सी गाँव , चितोडगढ़
- लकड़ी से निर्मित मन्दिर नुमा आकृति कावड कहलाती है
- कावड में मूर्ति स्थापित करते ही यह बेवाण कहलाती है
- बेवाण स्थापित —————- झलझुलनी एकादशी
- बेवाण के उपनाम —————-
- देव विमान
- चलता फिरता मन्दिर
- मिनिएचर वुडन टेमप्ल
- गणगोर ———–
- बस्सी गाँव , चितोडगढ़
- जनक —————- प्रभात जी सुथार
- चन्दन काष्ठ कला ———–
- चुरू
- लकड़ी पर कलात्मक शील्प ———
- जेठाना , अजमेर
- चेले ———-
- लकड़ी के तराजू
- लकड़ी का कार्य करने वाला व्यक्ति —————- खाती / सुथार कहलाता है
- बरसाद ———– सुथार को वर्ध उपरांत दिया गया अनाज
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- फड चित्रण —————-
- शाहपुरा
- सूती / रेजे कपड़े पर लोकदेवता / लोकदेवी / ऐतिहासिक व्यक्ति एवं ऐतिहासिक स्थल की जानकारी अंकित करना , फड चित्रण कहलाता है
- फड चित्रण में अकिक पत्थर काम में लिया जाता है
- अकिक पत्थर कच्छ , भुज में पाया जाता है
- प्रमुख चितेरा ———-
- श्रीलाल जोशी —————-
- इन्हें 2006 ई. में पदम श्री मिला
- 2007 में शिल्पगुरु अवार्ड मिला
- प्रदीप मुखर्जी —————-
- इन्होने 108 लघु चित्रों की फड रामचरितमानस का चित्रण किया
- श्रीलाल जोशी —————-
- प्रमुख चितेरी ————-
- पार्वती जोशी
- गोतम देवी
- फड चित्रण का जन्म —————- मेवाड़ चित्रशेली के भीती चित्रण से माना जाता है
- फड ठंडी करना ———
- फड के जीर्ण शीर्ण होने या फटने पर फड को पुष्कर सरोवर में विसर्जित किया जाता है जिसे फड ठंडी करना कहते है
- राजस्थान की सर्वाधिक लोकप्रिय फड —————- पाबूजी की फड
- देवनारायण जी की फड —————-
- 30 फिट लम्बी है
- 5 फिट चोडी है
- 2 सितम्बर 1992 को फड पर डाक टिकट जारी किया गया इसलिए यह फड सबसे छोटी है
- इस फड को जंतर वाद्द यंत्र के साथ अविवाहित भोपा भोपन वाचन करते है
- राजस्थान की सबसे लम्बी फड —————- देवनारायण जी की फड
- राजस्थान की सबसे बड़ी फड —————- देवनारायण जी की फड
- राजस्थान की सबसे छोटी फड —————- देवनारायण जी की फड
- भेसासुर की फड ———-
- इस फड का वाचन नही किया जाता
- दर्शन —————- बावरी जाती
- रामदला व क्रष्णदला फड ——–
- हाडोती क्षेत्र में
- बिना वाद्द यंत्र के पढ़ी जाती है
- अमिताभ बच्चन की फड ——
- इस फड का वाचन
- रामलाल व पतासी देवी ने न्युयोर्क में किया था
- इस फड का वाचन
- कोरोना फड ———– कल्याणमल जोशी
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- वस्त्र से सम्बन्धित हस्तशिल्प कला —————-
- बंधेज —————-
- शेखावाटी , जयपुर
- कपड़ो पर रंग चढ़ाने की एक तकनीक , बंधेज कला कहलाती है
- बंधेज का सर्वप्रथम उल्लेख —————- बाणभट्ट द्वारा रचित —– हर्षचरित ग्रन्थ में मिलता है
- बंधेज का जनक —————-
- बाघा भाटी सीकर
- फुल भाटी सीकर
- बंधेज का कार्य करने वाला —————- बंधारा / चडावा कहलाता है
- राजस्थान में बंधेज चढ़ाने का कार्य चडवा जाती के लोगो द्वारा किया जाता है
- बंधेज के कार्य में प्रयुक्त उपकरण —————- टीपणा
- यह मूलत —————- मुल्ल्तान ( पाकिस्तान ) की कला है
- बंधेज की सबसे बड़ी मंडी —————- जोधपुर में है
- बारीक़ बंधेज —————- सवाई माधोपुर
- शिकार अलंकृत बंधेज —————- बूंदी
- बंधेज का प्रमुख कलाकार —————- तेय्यब खां ( जोधपुर )
- बंधेज कार्य के लिए तेय्यब खां को 2002 में पदम् श्री से सम्मानित किया गया
- बंधेज के प्रमुख केंद्र —————-
- जोधपुर
- जयपुर
- सुजानगढ़
- शेखावाटी
- लहरिया —————-
- राजस्थान में जयपुर का लहरिया प्रसिद्ध है
- विवाहित महिलाये श्रावण मास एवं तीज त्यौहार के अवसर पर लहरदार ओढनी ओढती है , जिसे लहरिया कहा जाता है
- सतरंगी लहरिया —————- सुजानगढ़
- मोती लहरिया —————- सीकर ( जयपुर )
- पंचरंगी लहरिया —————- ( जयपुर )
- सर्वाधिक मांगलिक लहरिया अथार्त मांगलिक अवसर पर सर्वाधिक प्रचलित लहरिया
- समुंद्री रंग का लहरिया —————- जयपुर
- लहरिया के प्रकार —————-
- खत
- पाटली
- जालदार
- पलु
- नगीना
- फोहनिदार
- पंचलड़
- मोठडा —————-
- राजस्थान में जोधपुर का प्रसिद्ध है
- लहरिया की लहरदार धारिया जब एक दुसरे को काटती है ( क्रोसिंग छपाई ) , मोठडा कहा जाता है
- इसमें क्रोसिंग छपाई की जाती है
- ओढनी , साफा , पगड़ी
- वर्ष 2011 में मोठडा को गिनीज बुक में दर्ज किया गया
- पोमचा —————-
- राजस्थान में जयपुर का पोमचा प्रसिद्ध है
- यह जच्चा स्त्री का वस्त्र होता है अथार्त जिस स्त्री को बच्चा हुआ है उसके द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र
- पोमचा वंश वर्दी का प्रतीक माना जाता है
- प्राय पोमचा पीले रंग का होता है
- स्त्री को पुत्र की प्राप्ति होने पर —————- पीले रंग का पोमचा —– ननिहाल पक्ष द्वारा लाया जाता है
- स्त्री को पुत्री की प्राप्ति होने पर —————- गुलाबी रंग का पोमचा —— ननिहाल पक्ष द्वारा ( पीहर पक्ष )
- हाडोती क्षेत्र में विधवा महिलाये —————- काले रंग की ओढनी ओढती है जिसे चीड का पोमचा कहा जाता है
- मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा रचित —————- पदमावत ग्रन्थ में पोमचा का उल्लेख मिलता है
- चुनरी —————-
- बूंदों के आधार पर बनी बंधेज की डिजाइन , चुनरी कहलाती है
- चुनरी ——-
- जयपुर
- जोधपुर
- सुजानगढ़
- मेड़ता ( नागोर )
- धनक / धानका —————-
- बूंदी
- साफा और पगड़ी —————- जोधपुर का प्रसिद्ध
- साफा —— साफा चोड़ा कम और लम्बा अधिक होता है
- पगड़ी ——– पगड़ी चोड़ा अधिक और लम्बी कम होती है
- बावरा ——– पंचरंगी साफा है
- जोधपुर के बन्द गले के कोट को राष्ट्रिय पोशाक का दर्जा दिया गया है
- गोटा —————-
- प्रसिद्ध ——-
- खंडेला ( सीकर )
- भिन्नाय ( अजमेर )
- जयपुर का
- रंग —————- पिला
- गोटा बनाने वाला व्यक्ति को ———
- लिलधर
- निलधर
- रंगरेज कहा जाता है
- गोटा बेचने वाला व्यक्ति —– बिदाईती कहलाता है
- गोटे के प्रकार —————-
- लप्पा – लप्पी
- लप्पा —- चौड़ा गोटा होता है
- लप्पी —– पतला गोटा होता है
- बिजिया —————- फूल आकृति
- चंपाकली —————- बेलनुमा गोटा
- जरदोजी —————- किनारे -किनारे
- किरण —————- घूँघट
- लहर गोटा —— यह जयपुर का प्रसिद्ध है
- लप्पा – लप्पी
- कलाकार ——
- मुकेश
- गोखरू
- प्रसिद्ध ——-
- बातिक का कार्य —————-
- खंडेला ( सीकर )
- कपडा पर मोम से चित्रकारी करना , बातिक कहलाता है
- प्रमुख कलाकार ———
- R.B. रायजादा
- उमेश चन्द्र शर्मा —————- मास्टर ऑफ़ क्राप्टमेन
- उमेश चन्द्र 1984 में प्रशिक्षक नियुक्त किया
- प्रिंटिंग / ब्लोक प्रिंटिंग / हाथ से कपडे पर छपाई —————-
- अगले भाग में —————- Topik———27 में