चौहान वंश : रणथम्भोर का चौहान वंश Topik-13
हमने पीछे के भाग में चौहान वंश का इतिहास शुरू से लेकर पृथ्वीराज चौहान तृतीय तक का इतिहास पढ़ा था , पृथ्वीराज का शासन काल 1178-1192 ई. तक था , इन्होने मोहमद गोरी से 2 युद्ध किये , तराइन का प्रथम युद्ध ( 1191 ई. ) व द्वितीय युद्ध ( 1192 ई. ) में किये , तराइन के दुसरे युद्ध में गोरी विजयी हुआ और पृथ्वीराज को बंदी बनाकर इनकी हत्या करवाई , पृथ्वीराज के बाद इनका पुत्र गोविन्दराज चौहान ने रणथम्भोर के चौहान वंश की स्थापना की , आगे का इतिहास निम्नलिखित है ——-
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रणथम्भोर का चौहान वंश
चौहान वंश
- गोविन्दराज चौहान ——————
- यह पृथ्वीराज चौहान तृतीय का पुत्र था
- गोविन्दराज ने 1194 ई. में रणथम्भोर के चोहान वंश की स्थापना की
- इसने मोहमद गोरी की अधीनता स्वीकार की थी
- यह गोरी और ऐबक के समकालीन था
- इनकी कुलदेवी शाकम्भरी माता थी
- वल्लंन देव चौहान ——————
- यह सुल्तान इल्तुतमिश के समकालीन था
- इसने सूल्तन इल्तुतमिश को कर देना बन्द कर दिया
- अत: इल्तुतमिश ने रणथम्भोर पर अधिकार कर लिया
- वल्लंन देव को पहाड़ो में शरण लेनी पड़ी
- यह रणथम्भोर पर पहला मुस्लिम आक्रमण था
- प्रहलाद ——————
- वीरनारायण ——————
- प्रहलाद और वीरनारायण दोनों कमजोर शासक थे
- इन्होने वन में रहकर ही तुर्कों का प्रतिरोध किया था
- वीरनारायण की हत्या दिल्ली में इल्तुतमिश ने की थी
- बाग़भट्ट ——————
- यह रजिया सुल्ताना के समकालीन था
- रजिया ने रणथम्भोर दुर्ग को खाली किया
- बाग़भट्ट ने इस दुर्ग पर अधिकार किया
- यह रणथम्भोर के चौहान वंश का प्रथम प्रतापी शासक माना जाता है
- जयसिम्हा / जेत्रसिंह ——————
- जेत्रसिंह के समय दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद की सेना ने 1248 ई. में नायब-ए-ममालिक बलबन के नेतृत्व में 3 बार आक्रमण किये परन्तु असफल रहा
- बलबन ने झाईंन के दुर्ग पर अधिकार किया और इसे लुटा था
- झाईंन का दुर्ग , रणथम्भोर दुर्ग की कुंजी कहलाता है
- जयसिम्हा के समकालीन दिल्ली के शासक ————
- नासिरुद्दीन महमूद
- बलबन
- हम्मीर देव चौहान ( 1282-1301 ) ——————
- यह रणथम्भोर के चौहान वंश का सबसे प्रतापी शासक और अंतिम शासक था
- पिता —————— जयसिम्हा
- माता —————— हिरा देवी
- पत्नी —————— रंगदेवी
- पुत्री —————— परमला / देवल दे
- गुरु —————— राघव देव
- आश्रित कवी ———- विजयादित्य
- दरबारी साहित्यकार ————- बीजा द्वितय
- जानकारी के स्रोत ——————
- पदम नाभ —————— कान्हड देव प्रबंध
- अमीर खुसरो —————- खजाइ-उल-फतुह
- चद्रशेखर —————— हम्मीर हठ
- जोधराज सारंगधर —————— हम्मीर रासो
- नयन चन्द्र सूरी —————- हम्मीर महाकाव्य
- भाउंड व्यास —————— हमीरायण
- केलाश अमृत —————— हम्मीर प्रबंध
- हम्मीर ने नो कोटियजन यज्ञ किया था जिसमे पुरोहित विश्वरूप था
- हम्मीर भगवान शिव का उपासक था
- हम्मीर ने अपने पिता जयसिम्हा के 32 वर्षो के शासन की स्मृति में 32 खम्भों की छतरी का निर्माण करवाया
- यंहा हम्मीर न्याय देने का कार्य करता था
- अत: 32 खम्भों की छतरी को न्याय की छतरी भी कहा जाता है
- हम्मीर ने अपनी पुत्री पदमला के नाम से दुर्ग में पदमला तालाब का निर्माण करवाया
- हम्मीर ने जोगिमहल का निर्माण करवाया
- हम्मीर ने अपने जीवन में कुल 17 युद्ध किये थे
- इन 17 युद्धों में 16 में हम्मीर विजयी रहा
- 17 वे युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के विरुद्ध युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ
- हम्मीर के समय दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने रणथम्भोर के विरुद्ध 2 बार सेन्य अभियान किये
- जलालुद्दीन ने झाईंन दुर्ग पर अधिकार किया
- झाईंन दुर्ग को बचाने के लिए हम्मीर ने सेनापति गुरुदास सेनी को भेजा था परन्तु वह वीरगति को प्राप्त हुआ
- जलालुद्दीन ने रणथम्भोर का घेरा उठाते समय अपने सेनापति मलिक अहमद चप को कहा था की —-
- ऐसे 10 दुर्गो को भी में मुसलमान की दाड़ी के एक बाल के बराबर भी नही समझता
- अलाउदीन खिलजी के रणथम्भोर पर आक्रमण के मुख्य कारण ——————
- राजनितिक महत्वाकांक्षा —————-
- इसका उल्लेख अमीर खुसरो द्वारा लिखित खजाइन-उल-फतुह में मिलता है
- नव मुसलमानों के नेता मोहम्मद शाह और केह्ब्रु को हम्मीर द्वारा शरण देना
- इसका उल्लेख पदमनाभ ने अपने ग्रन्थ कान्हडदेव प्रबंध में किया है
- कान्हडदेव प्रबंध में लिखा है की गुजरात से लोटती शाही सेना के दो भागो में लूट के बंटवारे को लेकर आपस में युद्ध हुआ इसमें पराजीत होकर मोहम्मद शाह और केह्ब्रु ने हम्मीर के पास शरण ली थी
- चद्रशेखर द्वारा लिखित हम्मीर हठ में अलाउदीन के हरम की बेगम —–चिमना बेगम और मोहम्मद शाह के बीच प्रेम प्रसंग था और मोहम्मद शाह को हम्मीर द्वारा शरण देना इस युद्ध का कारण बताया है
- राजनितिक महत्वाकांक्षा —————-
- इस युद्ध में अलाउदीनके मुख्य सेनापति —————-
- उलगु खां
- नुसरत खां
- हम्मीर के सेनापति —————-
- भीमसिंह
- धर्मसिंह
- नुसरत खां और भीमसिंह की युद्ध के दोरान मृत्यू हुई
- अलाउदीन खिलजी की और से हम्मीर के विरुद्ध प्रयुक्त किये गये प्रमुख यंत्र —————-
- पाशेब
- गरगच
- मंजनीक
- अरार्दा
- हमीर की तरफ से प्रयोग किया गया यंत्र —————- ढेलुकी
- अलाउदीन की और से संधि प्रस्ताव किये जाने पर हम्मीर ने रणमल और रतिपाल को संधि की शर्ते निश्चित करने के लिए भेजा
- रणमल और रतिपाल के विश्वासघात करने के कारण अलाउदीन की रणथम्भोर पर विजय हुई
- इस समय रणथम्भोर दुर्ग में साका किया गया
- जिसमे जोहर ( जल जोहर ) का नेतृत्व रानी रंगदेवी / गंगदेवी ने किया
- और केसरिया का नेतृत्व हम्मीर देव चौहान ने किया
- यह राजस्थान का प्रथम साका माना जाता है
- पदमला नामक तालाब में यह जल-जोहर किया गया
- नयनचन्द्र सूरी के हम्मीर महाकाव्य के अनुसार युद्ध में विजय की आशा न रहने पर हम्मीर ने स्वयं अपना शीश काटकर भगवान शिव को अर्पित किया था
- 13 जुलाई 1301 को रणथम्भोर दुर्ग पर अलाउदीन खिलजी का अधिकार हो गया
- अलाउदीन ने रणमल , रतिपाल और मोहम्मद शाह को मृत्यू दंड दिया था
- हम्मीर देव चौहान रणथम्भोर का अंतिम चौहान शासक था