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राजस्थान इतिहास

मेवाड़ का इतिहास : गुहिल राजवंश Topik-18

गुहादित्य को मेवाड़ के गुहिल वंश का संस्थापक माना जाता है , मेवाड़ का इतिहास सर्वाधिक लम्बा इतिहास माना जाता है , क्युकी मेवाड़ के शासको ने एक ही स्थान पर सर्वाधिक समय तक शासन किया था गुहादित्य भील जाती के सहयोग से शासक बना था , मंडेला भील ने अपना अंगूठा काटकर गुहादित्य का राज्याभिशेख किया था , गुहादित्य ने 566 ई. में भीलो के सहयोग से गुहिल वंश की स्थापना की थी ,मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है —

 मेवाड़ का इतिहास

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  1. ये सूर्यवंशी माने जाते है
  2. गुहिल वंश के शासक स्वयं को भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज मानते है
  3. इस वंश के शासक स्वयं को एकलिंगजी का दीवान मानकर शासन करते है
  4. गुहिल वंश के शासक हिंदुआ सूरज कहलाते थे
  5. इस वंश के शासको ने विश्व में सर्वाधिक समय तक एक ही स्थान पर शासन किया
  6. मेवाड़ की ध्वजा पर लिखा होता है की —–
    • जो दृढ राखे धर्म को तांही राखे करतार
  7. अबुल-फजल के अनुसार गुहिल वंश , ईरानी बादशाह नोशेखा आदिल के वंशज है
  8. गुहिलो को ब्र्हामनो की सन्तान मानने वाले विद्वान ———–
    1. डॉ D.R.भण्डारकर
    2. गोपीनाथ शर्मा
    3. कुम्भलगढ़ प्रशस्ति
    4. आबू का अचलेश्वर शिलालेख
  9. गुहिल वंश को नागर ब्रहामनो की सन्तान बताने वाले विद्वान ————–
    1. कर्नल जेम्स टॉड
    2. श्यामलदास ने ग्रन्थ वीर विनोद में
  10. कर्नल जेम्स टॉड व मुहणोत नेणसी ने गुहिलो की 24 शाखाये बताई है —
    1. बागड़ के गुहिल
    2. काठीयावाड के गुहिल
    3. नेपाल के गुहिल आदि

मेवाड़ का इतिहास

  • गुहादित्य ( 566 ई. ) ————
    1. गुहादित्य को गुहिल वंश का संस्थापक माना जाता है
    2. गुहादित्य के अन्य नाम ———
      1. गुहेद्त
      2. गुहिल
      3. गुहा
    3. कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार गुहादित्य वल्लभी ( गुजरात ) के राजा शिलादित्य और रानी पुष्पावती का पुत्र था
    4. वल्लभी पर बाहय आक्रमण होने के कारण इस राज्य का पतन हुआ
    5. अत: रानी पुष्पावती ने नागर ब्रह्मणों के पास शरण ली
    6. यंही पर पुष्पावती द्वारा गुफा में जन्म देने के कारण इसे गुहादित्य कहा गया
    7. पुष्पावती अपने पति के प्रतीक चिन्ह के साथ सती हुई
    8. गुहादित्य का पालन-पोषण नागर ब्रह्मणों द्वारा किया गया
    9. इसी कारण इस वंश को नागर ब्रह्मणों की सन्तान भी कहा जाता है
    10. गुहिल वंश को नागर ब्रह्मणों की सन्तान बताने वाले कर्नल जेम्स टॉड के मत का समर्थन श्यामलदास ने अपने ग्रन्थ वीर विनोद में किया है
    11. गुहादित्य भील जाती के सहयोग से शासक बना था
    12. मंडेला भील ने अपना अंगूठा काटकर गुहादित्य का राज्याभिशेख किया था
    13. गुहादित्य ने 566 ई. में भीलो के सहयोग से गुहिल वंश की स्थापना की थी
  • नागादित्य द्वितीय
  • महेंद्र प्रथम
  • शिलादित्य द्वितीय
  • अपराजीत
  • महेंद्र द्वितीय ———–
    1. इन्होने भीलो पर अत्याचार किया
    2. इनकी हत्या भील जाती द्वारा की गयी
  • बप्पा रावल ( 734-53 ई. ) ———–
    1. यह गुहिल वंश का या गुहादित्य का 8 वा वंशज माना जाता है
    2. बप्पा रावल मेवाड़ का प्रथम शक्तिशाली शासक था
    3. जन्म —————— 734 ई. में
    4. जन्म स्थान ————–ईडर ( गुजरात )
    5. पिता —————— महेंद्र द्वितीय
      • महेंद्र द्वितीय का वध भीलो ने किया था
    6. वास्तविक नाम —————— कालभोज
    7. गुरु —————— हारित ऋषि
    8. उपाधि —————— हिंदुआ सूरज
    9. कुलदेवता —————— एकलिंग जी
    10. कुलदेवी —————— बाण माता
    11. बप्पा रावल को मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है
    12. बप्पा रावल की कुल 100 रानिया थी जिसमे 35 मुश्लिम रानिया थी
    13. रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज को अलग-अलग बताया गया है
    14. कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है
    15. एकलिंग प्रशस्ति में बप्पा रावल की दंत कथाओ का उल्लेख मिलता है
    16. बप्पा रावल का सम्बन्ध हारित ऋषि से माना गया है
    17. इसका पालन-पोषण हरित ऋषि के आश्रम में हुआ
    18. बप्पा रावल ने केलाश पूरी नामक स्थान पर एकलिंग जी के मन्दिर का निर्माण करवाया
    19. एकलिंग जी मन्दिर ——————
      1. यह पाशुपत सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र माना जाता है
      2. यंहा प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्ण 13 को मेले का आयोजन होता है
      3. इस मन्दिर में हीरो का नाग भी चढाया जाता है
    20. बप्पा रावल ने स्वयं को एकलिंगजी का दीवान मानकर शासन किया
    21. बप्पा रावल ने हारित ऋषि के आशीर्वाद से 734 ई. में मानमोरी नामक मोर्य शासक को पराजीत कर चितोडगढ़ पर अधिकार किया
    22. 734 ई. में मेवाड़ का शासक बनकर अपनी राजधानी नागदा को बनाया
    23. 735 ई. में बप्पा रावल ने इराक के शासक हज्जात को पराजीत किया
    24. 738 ई. में बप्पा रावल ने अरबी आक्रान्ता जुनेत को पराजीत किया
    25. मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध शासक दाहरसेन को पराजीत कर राजपुताना की तरफ बढ़ा लेकिन बप्पा रावल ने इसको पराजीत किया
    26. पाकिस्तान के रावल पिंड शहर में बप्पा रावल ने सेनिक चोकी स्थापित की
      • इस शहर का रावल पिंड नाम बप्पा रावल के नाम पर रखा गया
    27. बप्पा रावल ने गजनी ( अफगानिस्तान ) के शासक सलीम को पराजीत किया
    28. बप्पा रावल ने स्वर्ण के सिक्को का प्रचलन किया
      • राजस्थान में स्वर्ण के सिक्के चलाने वाला प्रथम शासक बप्पा रावल था
    29. बप्पा रावल के समकालीन ——————
      1. प्रतिहार शासक —————– नागभट्ट प्रथम थे
      2. चालुक्य / सोलंकी शासक ———विजयादित्य द्वितीय
    30. बप्पा रावल के निर्माण कार्य ——————
      1. एकलिंग नाथ जी का मन्दिर ———-
        1. केलाशपुरी , उदयपुर
        2. यंहा हारित ऋषि का आश्रम स्थित है
      2. आदिवराह मन्दिर का निर्माण —–
        • केलाशपूरी , उदयपुर
      3. सास-बहु मन्दिर का निर्माण ——-
        • नागदा , उदयपुर
    31. बप्पा रावल को अजमेर से 115 ग्रेन का सोने का सिक्का प्राप्त हुआ था
    32. 753 ई. में बप्पा रावल ने राजकार्य से सन्यास ले लिया था
    33. बप्पा रावल की मृत्यू 97 वर्ष की आयु में 810 ई. में हुई थी
    34. कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल की मृत्यू खुरासन में हुई थी
    35. बप्पा रावल की समाधि केलाशपूरी , उदयपुर में है
  • खुमाण
  • भरतभट्ट प्रथम
  • मत्रट
  • भरतभट्ट द्वितीय ————–
    • इसे तीनो लोको का तिलक कहा गया है
  • अल्लट ( 951-53 ई. ) —————
    1. यह भरतभट्ट द्वितीय का पुत्र था
    2. उपाधि ———– आलू रावल
    3. अल्लट ने हूणों को पराजीत किया
    4. प्रथम शासक जिसने अंतर्राष्ट्रीय विवाह किया ( हूण राजकुमारी से )
    5. हूण की राजकुमारी हरिया देवी से विवाह किया
    6. यह प्रथम शासक था जिसने नोकरशाही का गठन किया था
    7. अल्लट ने आहड को अपनी राजधानी बनाया
    8. अल्लट के शासनकाल में सारणैशवर मन्दिर का शिलालेख लिखा गया
    9. अल्लट ने जगत अम्बिका मन्दिर का निर्माण करवाया
    10. जगत अम्बिका मन्दिर ——–
      1. जगत गाँव , उदयपुर
      2. इस मन्दिर को शक्तिपीठ कहा जाता है
      3. इस मन्दिर का निर्माण अल्लट ने करवाया
      4. इसे मेवाड़ का खजुराहो भी कहा जाता है
  • नरवाहन
  • शालवाहीन द्वितीय
  • शक्ति कुमार ( 977-93 ई. ) —————
    1. इसके काल में परमार वंश के शासक मुंज ने आह्ड पर आक्रमण कर उसे नष्ट किया
    2. अत: शक्ति कुमार ने नागदा को अपनी राजधानी बनाया
    3. इस आक्रमण के समय राष्ट्रकूट शासक धवल ने शक्ति कुमार की सहायता की थी
    4. मुंज परमार के छोटे भाई नरसंवसाक के पुत्र भोज परमार त्रिभुवन नारायण मन्दिर का निर्माण करवाया
    5. त्रिभुवन नारायण मन्दिर ——–
      1. निर्माण ——- मुंज परमार का उतराधिकारी भोज परमार ने करवाया
      2. चितोडगढ़ में
      3. वर्तमान में इस मन्दिर को मोकल मन्दिर कहा जाता है
  • अम्बा प्रसाद
    • चोहान शासक वाकप्तिराज द्वितीय को पराजीत किया
    • इसका प्रमाण जयानक द्वारा रचित ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में मिलता है
  • शुचि वर्मा
  • हस्तपाल
  • वेरीसिंह ———-
    • आह्ड नगर के परकोटे का निर्माण करवाया
  • विजयसिंह
  • कर्णसिंह / रणसिंह ( 1058 ई. ) ————
    • इनके 2 पुत्र थे जिन्होंने इस वंश की अलग-अलग शाखा प्रारम्भ की
      1. क्षेमसिंह ———–
        1. रावल शाखा प्रारम्भ की
        2. इस शाखा को राघव शाखा / गुहिल शाखा भी कहा जाता है
        3. क्षेमसिंह के दो पुत्र थे
          1. सामन्तसिंह ——–
            1. कीर्तिपाल चोहान ने इसे पराजीत किया था
            2. सामन्तसिंह को वागड के गुहिल वंश का संस्थापक माना जाता है
          2. कुमारसिंह—–
            • इसने कीर्तिपाल को पराजीत कर पुन: मेवाड़ पर अधिकार किया था
      2. राहप ————
        1. इसने राणा शाखा की स्थापना की
        2. इस शाखा को सिसोदा / सिसोदिया शाखा भी कहा जाता है
        3. राहप ने सिसोदा गाँव की स्थापना की
  • रावल सामन्तसिंह ( 1181 ई. )—————-
    1. पृथ्वीराज तृतीय का बहनोई था
    2. पृथ्वीराज तृतीय ने अपनी बहन पृथ्वीबाईप्रभा का विवाह सामन्तसिंह के साथ किया था
    3. सामंतसिंह ने तराईन के प्रथम युद्ध (1191 ) में पृथ्वीराज तृतीय का सहयोग किया था
    4. इसी युद्ध में सामन्तसिंह वीरगति को प्राप्त हुआ था
    5. सामन्तसिंह के समय कीर्तिपाल चोहान ने आक्रमण किया और आहड पर अधिकार किया
    6. सामन्तसिंह के उतराधिकारी ( छोटे भाई ) कुमारसिंह ने आह्ड पर पुन: अधिकार किया
  • रावल जेत्रसिंह ( 1213-50 ई. ) —————-
    1. इनके समकालीन दिल्ली शासक इल्तुतमिश था
    2. रावल जेत्रसिंह का काल मध्यकालीन मेवाड़ का स्वर्ण काल माना जाता है
    3. इन्हें 5 आँख का शासक कहा जाता है
    4. राजधानी —————- चितोडगढ़
    5. चितोडगढ़ को राजधानी बनाने वाला प्रथम शासक था
    6. जेत्रसिंह ने भुताला के युद्ध में सुल्तान इल्तुतमिश को पराजीत किया था
    7. भुताला का युद्ध —————-
      1. यह युद्ध 1227 ई. में हुआ
      2. कारण —————- साम्राज्यवादी विस्तार निती
      3. स्थान —————- राजसमन्द
      4. जेत्रसिंह और इल्तुतमिश के मध्य हुआ
      5. विजेता —————- जेत्रसिंह
      6. इस युद्ध का उल्लेख जयसिंह सूरी द्वारा लिखित —- हम्मीर मद मर्दन नामक ग्रन्थ में मिलता है
      7. इस युद्ध में जेत्रसिंह के सेनापति —————-
        1. बालक
        2. मदन
    8. भुताला का युद्ध के पश्चात मुश्लिम सेनिको ने आह्ड व नागदा को क्षति पहुचाई जिसके कारण जेत्रसिंह ने चितोडगढ़ को राजधानी बनाया
    9. इल्तुतमिश के पश्चात दिल्ली का प्रमुख शासक नसीरूदीन महमूद बना
    10. नसीरुद्दीन का भाई जलालुद्दीन कन्नोज ( उतरप्रदेश ) का स्वामी था
    11. 1248 ई. में मेवाड़ शासक जेत्रसिंह ने जलालुद्दीन को शरण दी जिसके कारण नसीरुद्दीन ने आक्रमण किया परन्तु असफल रहा
    12. जेत्रसिंह ने सिंध के मुश्लिम शासक नसीरुद्दीन कुबाचा को पराजीत किया
    13. G.H. ओझा ( गोरीशंकर हिराचंद ओझा ) ने जेत्रसिंह को रणरसिक कहा है
    14. डॉ दसरथ शर्मा ने इसे मेवाड़ की नव शक्ति का संचारक माना है
    15. जालोर के चोहान शासक उदयसिंह ने अपने पुत्र चाचिग्देव की पुत्री का विवाह जेत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह के साथ किया
    16. अत: जेत्रसिंह के काल में जालोर के चोहान और मेवाड़ के बीच वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित हुए
  • रावल तेजसिंह ( 1250-73 ई. ) —————-
    1. इसकी रानी जयतल्ल देवी ने चितोडगढ़ में श्याम पार्शव मन्दिर का निर्माण करवाया
    2. तेजसिंह के शासन काल में मेवाड़ का प्रथम चित्रित ग्रन्थ श्रावक प्रतिकर्मण सूत्र चूर्णी की रचना की गयी
    3. चित्रकार कमलचंद्र ने 1260 ई. में इस ग्रन्थ की रचना की
    4. तेजसिंह की उपाधिय —————-
      1. प्रोढ़ प्रताप
      2. वरवल्लभ
    5. 1255-56 ई. में दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन ने कुतलग खा को कद करने हेतु मेवाड़ पर बलबन के नेतृत्व में सेना भेजी लेकिन असफल रहा
    6. 1260 ई. में तेजसिंह ने गुजरात के शासक बीसलदेव को पराजीत किया और उमापतिवार लब्ध प्रोड प्रताप की उपाधि धारण की ( इस उपाधि का अर्थ —- शक्तिशाली व उद्धारक शासक )
  • रावल समरसिंह ( 1273-1301 ई. ) —————-
    1. उपाधि —————- त्रिलोका ( तीन लोको का राजा )
    2. प्रमुख दरबारी विद्वान —————-
      1. भावशंकर
      2. दयाशंकर
    3. समरसिंह के शिल्पी —————-
      1. कर्मसिंह
      2. पदमसिंह
      3. केल्लसिंह
    4. समरसिंह के समकालीन दिल्ली के शासक —————-
      1. जलालुद्दीन खिलजी ( 1290-96 )
      2. अलाउद्दीन खिलजी ( 1296-1316)
    5. 1299 ई. में अलाउदीन खिलजी के सेनापति उलगु खा के गुजरात अभियान पर जाते समय समरसिंह ने उलगु खा को आर्थिक दंड दिया था
    6. समरसिंह के काल में कुल 8 शिलालेख प्राप्त हुए ——-
      1. आबू शिलालेख
      2. दरीबा शिलालेख
      3. चिरवा शिलालेख
      4. 5 चितोडगढ़ के शिलालेख
    7. रावल समरसिंह के प्रथम पुत्र रतनसिंह ने मेवाड़ में (1301-03)
    8. और दुसरे पुत्र कुम्भकर्ण ने नेपाल में गुहिल वंश की स्थपना की
    9. समरसिंह के काल में आबू के अचलेश्वर शिलालेख की रचना की गयी
    10. अचलेश्वर शिलालेख —————-
      1. 1285ई. में
      2. शुभचंद्र द्वारा रचना की गयी
      3. इस अभिलेख में समरसिंह तक के गुहिल शासको की जानकारी मिलती है
  • रावल रतनसिंह ( 1301-03 ) ——————-
    1. यह रावल शाखा का अंतिम शासक था
    2. रतनसिंह के समय 1303 ई. में चितोड़ पर अलाउदीन खिलजी का आक्रमण हुआ था
    3. इस आक्रमण का कारण —————-
      • राजनितिक महत्वाकांक्षा —— अमीर खुसरो के अनुसार
      • पदमिनी को प्राप्त करना ——मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ पदमावत में किया है
    4. पदमावत ग्रन्थ ——–
      1. इसकी रचना 1540 ई. में शेरशाह सूरी के समय मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा की गयी थी
      2. यह अवधि भाषा का ग्रन्थ है
    5. पदमिनी—————-
      1. यह सिहल द्वीप ( श्रीलंका ) के राजा गन्धर्वसेन और रानी चम्पावती की पुत्री थी
      2. पदमिनी की सुन्दरता का बखान हिरामण तोते ने किया
      3. रानी पदमिनी की जानकारी रतनसिंह को राघव चेतन ने दी थी
      4. रानी पदमिनी व रतनसिंह का गन्धर्व विवाह सम्पन्न हुआ
      5. गोरा व बादल ( चाचा- भतीजा ) एवं 1600 महिलाये पदमिनी के साथ मेवाड़ आई थी
      6. मलिक मोहम्मद जायसी के अनुसार हीरामण नामक तोते के माध्यम से रतनसिंह को पदमिनी की जानकारी प्राप्त हुई
      7. जादू टोन की विद्या का पता चलने पर राघव चेतन को रतनसिंह ने मेवाड़ छोड़ने का आदेश दिया था
      8. रतनसिंह के समकालीन दिल्ली का शासक अलाउद्दीन खिलजी था
      9. तांत्रिक राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को पदमिनी की जानकारी दी
      10. 28 जनवरी 1303 ई. को अलाउद्दीन खिलजी चितोड़ पर आक्रमण करने हेतु दिल्ली से रवाना हुआ
      11. अलाउद्दीन खिलजी को 7-8 माह की घेराबंदी के पश्चात् भी सफलता नही मिलने पर कूटनीति अपनाई
      12. अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय रतनसिंह के सेनापति गोरा व बादल थे
        1. गोरा व बादल दोनों क्रमश : पदमिनी के काका व भतीजा थे
        2. इस युद्ध में लड़ते हुए गोरा व बादल वीरगति को प्राप्त हुए
      13. अलाउद्दीन के आक्रमण के समय सिसोदा के सामंत लक्ष्मण सिंह सिसोदिया अपने 7 पुत्रो के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ था
      14. अलाउद्दीन ने 26 अगस्त 1303 को चितोड़ पर अधिकार किया
      15. इस समय चितोड़ का प्रथम व राजस्थान का दूसरा साका हुआ
      16. जिसमे जोहर का नेतृत्व रानी पदमिनी ने किया , 1600 महिलाओ के साथ जोहर किया
      17. केसरिया का नेतृत्व रावल रतनसिंह ने किया
      18. यह ईतिहास का सबसे बड़ा साका था
      19. प्रतिवर्ष चितोड़ दुर्ग में चेत्र कृष्ण 11 को जोहर मेले का आयोजन किया जाता है
      20. अलाउद्दीन की चितोड़ विजय का सजीव वर्णन अमीर खुसरो ने अपने ग्रन्थ खजाइन-उल-फतुह में किया है
      21. अमीर खुसरो के अनुसार अलाउद्दीन ने चितोड़ विजय के बाद तिस हजार ( 30000 ) से अधिक निर्दोष नागरिको का संहार करवाया
      22. अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में इस युद्ध के पश्चात् चितोडगढ़ दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद रखा
      23. चितोड़ विजय के बाद अलाउद्दीन ने गंभीरी नदी पर बांध बनवाया
      24. अलाउद्दीन ने चितोडगढ़ में धा बाई पीर की दरगाह पर शिलालेख लिखवाया
      25. अलाउद्दीन ने अपने पुत्र खिज्र खा को चितोड़ का प्रशासक नियुक्त किया
  • खिज्र खा——-
    1. 1303-13 ई. तक चितोड़ पर शासन किया
    2. अलाउद्दीन की मृत्यू के बाद 1313 ई. में खिज्र खा ने चितोड़ का कार्यभार मालदेव चोहान को सोंपा
  • मालदेव चोहान ——–
    1. 1313-20 ई. तक चितोड़ का शासन किया
    2. यह जालोर के शासक कान्हड दे का भाई था
    3. इसे मुंछाला राजा भी कहा जाता है
    4. सिसोदा के सामंत हम्मीर के साथ अपनी पुत्री का विवाह किया
    5. इसके बाद जेसासिंह ने चितोड़ पर अधिकार किया
  • जेसासिंह ———
    1. 1320-1326 ई. तक चितोड़ पर शासन किया
    2. सिसोदा के सामंत अरिसिंह के पुत्र हम्मीर ने 1326 ई. में चितोड़ पर आक्रमण कर जेसासिंह को पराजीत किया और चितोड़ पर अधिकार किया
  • हम्मीर ———-
    1. 1326 ई. में चितोड़ पर अधिकार किया
    2. सिसोदा / रना शाखा की स्थापना राहप ने की थी
    3. हम्मीर इन्ही के वंश में सिसोदा के सामंत अरिसिंह का पुत्र था
  • अब राणा शाखा की शुरुवात हुई
  • रावल शाखा का अंतिम शासक रावल रतनसिंह था

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