मेवाड़ का इतिहास : गुहिल राजवंश Topik-20
हमने पीछे के भाग में मेवाड़ का इतिहास शुरू से लेकर महाराणा कुम्भा तक का इतिहास पढ़ा था , कुम्भा का शासन काल 1433-1468 ई. तक माना जाता है , 1468 ई. में कुम्भा के पुत्र उदा ने मामादेव कुंड के पास ( कुम्भलगढ़ ) में महाराणा कुम्भा की हत्या कर दी , उदा मेवाड़ का प्रथम पित्रह्नता शासक था , कुम्भा के बाद मेवाड़ का शासक राणा उदा बना , आगे का मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है
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राणा कुम्भा तक का इतिहास ——— राणा शाखा के भाग-1 में है
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मेवाड़ का इतिहास
- राणा उदा ( उदयकरण ) ( 1468-1473 )——————
- राणा कुम्भा का पुत्र था
- इसे मेवाड़ का पित्रहंता शासक भी कहा जाता है इसने अपने पिता राणा कुम्भा की हत्या की थी
- कुम्भा के समय उदा का भाई रायमल — ईडर ( गुजरात ) में था
- 1473 ई. में रायमल ने मेवाड़ सरदारों की सहायता से उदा को राजगद्दी से हटाया
- महाराणा रायमल ( 1473-1509 ) ——————
- रायमल के प्रमुख दरबारी विद्वान ——–
- गोपाल भट्ट
- महेश भट्ट
- अर्जुन नामक प्रख्यात पंडित
- रायमल ने सिंचाई हेतु राम और शंकर नामक तालाबो का निर्माण करवाया
- रायमल की पत्नी श्रंगार देवी ने चितोडगढ़ दुर्ग में घोसुण्डी बावड़ी का निर्माण करवाया
- रायमल ने टोडा के शासक सुरताण को शरण दी थी
- सुरताण की पुत्री का नाम तारा था जिसका विवाह रायमल के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर पृथ्वीराज के साथ हुआ
- कुंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी तारा के नाम पर अजयमेरु दुर्ग का नाम बदलकर तारागढ़ रखा
- तेज धावक क्षमता के कारण पृथ्वीराज को उड़ना राजकुमार भी कहा जाता है
- रायमल के कुल 11 रानिया व 13 पुत्र थे
- रायमल ने अपनी पुत्री आनंदी बाई का विवाह सिरोही के शासक जगमाल के साथ किया
- रायमल के जीवनकाल में ही उसके तीनो पुत्रो के मध्य उतराधिकार को लेकर संघर्ष हुआ
- पृथ्वीराज सिसोदिया ( उड़ना राजकुमार )
- जयमल
- संग्रामसिंह
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राणा सांगा का राजयोग बलिष्ठ बताया
- सारंगदेव के कहने पर तीनो भाई भिंमल गाँव में चारणी पुजारिन से मिले
- चारणी पुजारिन ने राणा सांगा के शासक बनने की भविष्य-वाणी की
- पृथ्वीराज सिसोदिया ने नाराज होकर संग्रामसिंह पर वार किया लेकिन संग्रामसिंह यंहा से बचकर सेवंत्री गाँव में बिदा राठोड की शरण में पहुंचा
- बिदा राठोड राणा सांगा की रक्षा करते हुए जयमल के सामने वीरगति को प्राप्त हुआ
- तत्पश्चात राणा सांगा ने अजमेर में करमचन्द पंवार के पास शरण ली थी
- पृथ्वीराज की मृत्यू विष की गोलिया खाने से हुई
- जयमल राजाओ के सामने लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ
- रायमल के प्रमुख दरबारी विद्वान ——–
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- राणा सांगा / संग्रामसिंह प्रथम ( 1509-1528 ) —————–
- पिता —————– रायमल
- माता —————– रतनी कंवर
- पत्नी —————– हाडा रानी कर्मावती
- पुत्र —————–
- रतनसिंह
- भोजराज
- विक्रमादित्य
- उदयसिंह
- उपनाम —————– एक आँख का शासक
- उपाधि —————– हिन्दुपत
- राणा सांगा को इतिहास में अपने युद्धों के लिए जाना जाता है
- राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे जिसके कारण कर्नल जेम्स टॉड ने सांगा को सेनिक भागनावेश की संज्ञा दी
- राणा सांगा का दिल्ली सल्तनत के साथ सम्बन्ध —————–
- राणा सांगा के समकालीन दिल्ली में तिन शासक आये —
- सिकन्दर लोदी
- इब्राहीम लोदी
- बाबर
- सिकन्दर लोदी ने राणा सांगा पर कभी आक्रमण नही किया
- इब्राहीम लोदी साम्राज्यवादी विस्तार निति का शासक था जिसके तहत मेवाड़ पर आक्रमण किये ——
- खातोली का युद्ध —————–
- 1517 ई. में
- स्थान —- बूंदी
- खातोली वर्तमान में कोटा में है
- राणा सांगा और इब्राहीम लोदी के मध्य
- इस युद्ध में इब्राहीम लोदी ने स्वय भाग लिया था
- विजेता ——-राणा सांगा
- खातोली युद्ध का बदला लेने के लिए इब्राहीम लोदी ने मेवाड़ पर दूसरी बार आक्रमण किया
- बाड़ी का युद्ध —————–
- 1518 ई. में
- स्थान —— धोलपुर
- राणा सांगा और इब्राहीम लोदी के मध्य हुआ
- इस युद्ध में इब्राहीम लोदी ने मिंया माखन के नेतृत्व में सेना भेजी थी
- विजेता ———- राणा सांगा
- खातोली का युद्ध —————–
- इब्राहम लोदी की लगातार दो बार पराजय होने से नाखुश होकर आलम खा लोदी व दोलत खा लोदी ने दिल्ली में मुश्लिम सल्तनत को बचाने हेतु मोहमद जहीरुद्दीन बाबर को भारत आगमन के लिए आमंत्रित किया
- बाबर ने भारत आकर इब्राहीम लोदी को दिल्ली से हटाने हेतु आक्रमण किया जिसे पानीपत का प्रथम युद्ध कहते है
- पानीपत का प्रथम युद्ध —————–
- 1526 ई. में
- स्थान ——— पानीपत ( हरियाणा )
- बाबर और इब्राहीम लोदी के मध्य
- विजेता ———बाबर
- भारत में सर्वप्रथम गोला-बारूद का प्रयोग इसी युद्ध में हुआ
- पानीपत का प्रथम युद्ध जीतकर बाबर ने दिल्ली व आगरा पर अधिकार किया
- पानीपत का प्रथम युद्ध —————–
- राणा सांगा ने बाबर के शासक बनते ही दिल्ली से लगने वाली सीमाओं को सुद्रढ़ करते हुए रणथम्भोर व बयाना में सेनिक चोकी स्थापित की
- फरवरी 1526 ई. में बाबर ने इसक-आका के नेतृत्व में बयाना दुर्ग पर आक्रमण हेतु सेना भेजी थी
- बयाना का किलेदार निजाम खा का भाई आलमखा था
- आलम खा ने बाबर के पक्ष में मिलकर बयाना दुर्ग इसक-आका को सुपुर्द किया
- बाबर के दुर्ग का रक्षक —— मेहँदी ख्वाजा था
- बयाना का युद्ध —————–
- फरवरी 1527 ई. में
- स्थान ——- भरतपुर
- बाबर के सेनापति इश्क-आका व मेहँदी ख्वाजा
- और राणा सांगा के मध्य युद्ध हुआ
- विजेता ——— राणा सांगा
- बयाना पराजय का बदला लेने हेतु बाबर ने राणा सांगा पर खानवा नामक स्थान पर आक्रमण किया
- राणा सांगा के समकालीन दिल्ली में तिन शासक आये —
- खानवा युद्ध —————–
- 17 मार्च 1527 ई. में
- स्थान ——खानवा
- खानवा , भरतपुर जिले की रूपवास तहसील में स्थित है
- विजेता ——— बाबर
- इस युद्ध के पश्चात बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की थी
- गाजी का अर्थ होता है —- काफिरों का नाशक
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- खानवा युद्ध से पूर्व की प्रमुख घटनाये ————-
- बाबर ने सेना के समक्ष जोशीला भाषण दिया
- बाबर ने इस युद्द को जिहाद घोषित किया
- बाबर ने शराब न पिने की शपथ ली
- बाबर ने मुस्लिम व्यापारियों पर लगने वाला तमगा कर ( चुंगी कर ) हटा लिया था
- मोहम्मद सरीफ नामक फकीर ने बाबर के पराजय की भविष्यवाणी की थी
- बाबर ने इस युद्ध में तोपखाने का प्रयोग किया —
- बाबर के तोपची / तोपखाने का प्रमुख —-
- उस्ताद अली
- मुस्तफा कमाल
- तोप चलाने वालो को तोपची कहते थे
- बाबर ने इस युद्ध में रूमी पद्दति से तोपों को सजाया था
- बाबर के तोपची / तोपखाने का प्रमुख —-
- खानवा युद्ध राजस्थान इतिहास का प्रथम युद्ध जिसमे तोपखाने का प्रयोग हुआ
- बाबर ने इस युद्ध में तुलुगमा युद्ध पद्दति को अपनाया ——
- तुलुगमा पद्दति ——-
- तुलुगमा का अर्थ रक्षित सेना होता है
- सेना की एक टुकड़ी जो युद्ध के अंतिम समय में भाग लेती थी
- यह पद्दति बाबर ने मध्य एशिया की उज्बेग जाती से सीखी थी
- बाबर ने बंदूक चलाना ईरानियों से सिखा था
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- राणा सांगा ने इस युद्ध से पूर्व प्राचीन पाती-परवण प्रथा को पुनर्जीवित किया
- पाती परवण ——-
- इसके अंतर्गत युद्ध में भाग लेने हेतु राजाओ को आमन्त्रण पत्र भेजा जाता था
- सभी हिन्दू राजाओ का एक ही छत के निचे एकत्रित होना
- खानवा युद्ध में राणा सांगा का साथ देने वाले प्रमुख शासक ———
- बीकानेर ——-कल्याणमल ( राजा राव जेतसी ने अपने पुत्र को भेजा )
- मारवाड़ ( जोधपुर ) ——- मालदेव -4000 की सेना ( राव गांगा ने अपने पुत्र को भेजा )
- आमेर ——–पृथ्वीराज कछवाहा
- मेड़ता ——– विरमदेव
- गोगुन्दा ——– झाला सज्जा
- सादड़ी ——– झाला अज्जा
- वागड ( डूंगरपुर ) ——— उदयसिंह
- इडर ———— भारमल
- चन्देरी ———– मेदिनीराय
- जगनेर ———– अशोक परमार
- रायसेन ( मध्यप्रदेश ) ——- सिलहदी तंवर
- युद्ध से पूर्व सिल्हदी तंवर ने बाबर और राणा सांगा के मध्य पत्र व्यवहार का कार्य किया था
- सांगा के साथ विस्वासघात करने वाले —–
- सिलहदी तंवर ( रायसेन )
- खानजादा ( नागोर )
- राणा सांगा का साथ देने वाले प्रमुख मुस्लिम सेनानायक ——-
- हसन खा मेवात ——— मेवात का शासक
- महमूद लोदी ————- यह इब्राहीम लोदी का छोटा भाई था
- खानजादा —————- नागोर का शासक
- खानवा युद्ध में राणा सांगा के घायल होने पर झाला अज्जा ने इनकी जान बचाई
- झाला अज्जा का सहयोग झाला भन्ना व रावत रतनसिंह ने किया था
- घायल सांगा को बसवा ( दोसा ) ले जाया गया जंहा सांगा का प्राथमिक उपचार किया
- सांगा ने होश आने पर कहा ——-
- में जब तक बाबर को पराजीत नही कर देता तब तक मेवाड़ की पवित्र धरती पर कदम नही रखूंगा
- चन्देरी के युद्ध (1528 ) में भाग लेने के लिए जाते समय सांगा के ही युद्ध विरोधी सरदारों ने इन्हें विष दे दिया था
- अत: सांगा की कालपी ( उतरप्रदेश ) नामक स्थान पर 30 जनवरी 1528 ई. को मृत्यू हुई थी
- बसवा में राणा सांगा का स्मारक बना हुआ है
- राणा सांगा का अंतिम संस्कार मांडलगढ़ ( भीलवाडा ) में किया गया जंहा इनकी 8 खम्भों की छतरी बनी हुई है
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- राणा सांगा ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भोजराज का विवाह मीरा बाई जी से किया
- 1523 ई. में भोजराज की मृत्यू हुई
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- .खानवा युद्ध की पराजय का कारण ——
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार पराजय का प्रमुख कारण रायसेन के सिल्हदी तंवर का युद्ध के समय विशाल सेना के साथ बाबर से मिल जाना
- डॉ गोपीनाथ शर्मा के अनुसार राणा सांगा का स्वयं युद्ध भूमि में उतर जाना पराजय का कारण था
- बाबर द्वारा इस युद्ध में तुलुगमा युद्ध पद्दति अपने जो राणा सांगा की हार का कारण बनी
- राणा सांगा की पुराणी युद्ध पद्दति होना
- राणा सांगा की सेना में एकरूपता नही होना
- बाबर द्वारा तोपखाने का प्रयोग करना
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- .राणा सांगा का मालवा के साथ सबंध ————-
- राणा सांगा के समकालीन मालवा का शासक महमूद खिलजी द्वितीय था
- राणा सांगा के समकालीन ही मांडू व चन्देरी का राजपूत सरदार मेदिनिराय था
- मुस्लिम सरदार महमूद खिलजी द्वितीय को निर्बल समझते हुए उसे राजगद्दी से हटाकर उसके भाई साहेब खा को मालवा शासक बनाया
- महमूद खिलजी द्वितीय ने मेदिनिराय की सहायता से पुन: राजगद्दी प्राप्त की
- सिकन्दर लोदी , गुजरात शासक मुजफ्फर शाह एवं साहेब खा तीनो संयुक्त रूप से महमूद खिलजी द्वितीय को हटाने हेतु आक्रमण किया लेकिन मेदिनिराय ने इसे असफल किया
- महमूद खिलजी द्वितीय ने मेदिनिराय को मालवा का प्रधानमंत्री बनाया
- मालवा के मुस्लिम सरदारों के प्रभाव में आकर महमूद खिलजी द्वितीय ने कुछ समय पश्चात मेदिनिराय को हटाकर उसके क्षेत्र मांडू व चन्देरी पर अधिकार करना चाहा
- मेदिनिराय मांडू का कार्यभार अपने पुत्र नत्थू को सोंपकर मेवाड़ महाराणा सांगा की शरण में आया
- महमूद खिलजी द्वितीय ने नत्थू की हत्या कर मांडू पर अधिकार किया एवं पूर्ण रूप से मालवा का शासक बना
- राणा सांगा ने मेदिनिराय को गागरोण व चन्देरी की जागीर दी
- गागरोंण का युद्ध ——–
- 1519 ई. में
- स्थान ———- झालावाड
- मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय और राणा सांगा के मध्य
- इस युद्ध में महमूद खिलजी द्वितीय के साथ गुजरात की सेना थी जिसका नेतृत्व आसाफ खा ने किया
- आसाफ खा इस युद्ध में मारा गया
- विजेता ——— राणा सांगा
- इस युद्ध का मुख्य कारण चन्देरी के शासक मेदिनिराय को राणा सांगा ने शरण देना
- राणा सांगा ने मेदिनिराय को गागरोण का शासक बनाया
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- राणा सांगा का गुजरात के साथ सम्बन्ध ————-
- राणा सांगा के समकालीन गुजरात शासक मुजफ्फरशाह था
- मुजफ्फरशाह के साथ शत्रुता का कारण ——
- धार्मिक कट्टरता
- गुजरात शासक व महमूद खिलजी द्वितीय द्वारा मेदिनिराय के पुत्र नत्थू की हत्या करना
- गागरोंण युद्ध में मालवा के महमूद खिलजी द्वितीय का सहयोग करना
- ईडर राज्य में राणा सांगा व मुजफ्फरशाह का हस्तक्षेप
- ईडर राज्य में हस्तक्षेप ———-
- ईडर शासक भाना था
- भाना का पुत्र ——–
- सूर्यमल्ल
- भीम
- भाना की मृत्यू के पश्चात इडर का शासक सूर्यमल्ल बना
- सूर्यमल्ल के पश्चात रायमल बना
- रायमल की अल्पायु का फायदा उठाकर भीम इडर का शासक बना
- भीम की मृत्यू के पश्चात उसका पुत्र भारमल शासक बना
- रायमल राणा सांगा की शरण में जाकर उनकी सहायता से ईडर का शासक बना
- भारमल का सहयोग गुजरात के मुजफ्फरशाह ने किया
- राणा सांगा के सहयोग से रायमल इडर का शासक बना
- 1514 , 1516 में गुजरात शासक मुजफ्फरशाह ने निजाम-उल-मुल्क के नेतृत्व में इडर पर अधिकार किया एवं निजाम-उल-मुल्क को यंहा का प्रशासक नियुक्त किया
- राणा सांगा ने मलिक हुसेन को पराजीत कर पुन: इडर का शासक रायमल को बनाया
- ईडर में पुन: पराजय के पश्चात 1520 ई. में मुजफ्फरशाह ने एयाज अली के नेतृत्व में वागड के रास्ते मेवाड़ पर आक्रमण हेतु सेना भेजी
- इस आक्रमण के समय डूंगरपुर शासक गज्जा लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ
- गुजरात व मांडू की सेना मेवाड़ में लूटपाट करते हुए मंदसोर पंहुची जंहा राणा सांगा ने 1521-22 ई. में आक्रमण किया
- राणा सांगा के सामने गुजरात सेना ने आत्मसमर्पण करते हुए एयाज अली के सहयोग से सांगा के साथ संधि की
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- राणा सांगा के चार पुत्र ——-
- रतनसिंह
- भोजराज
- विक्रमादित्य
- उदयसिंह
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- राणा रतनसिंह ——–
- अगले भाग —- Topik-21 में