मेवाड़ का इतिहास : महाराणा प्रताप Topik-22
हमने पीछे के भाग में मेवाड़ का इतिहास शुरू से लेकर महाराणा उदयसिंह तक का इतिहास पढ़ा था ,इस पार्ट में महाराणा प्रताप का इतिहास पढ़ेंगे , उदयसिंह का शासन काल 1540-1572 ई. तक माना जाता है , उदयसिंह ने दिल्ली के अफगान शासक शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की थी , उदयसिंह के समकालीन दिल्ली का मुग़ल शासक अकबर था , 25 फरवरी 1568 ई. को अकबर ने चितोडगढ़ पर अधकार किया था ,
28 फरवरी 1572 ई. को उदयसिंह की गोगुन्दा ( उदयपुर ) में होली के दिन मृत्यू हुई थी , उदयसिंह ने भटियानी रानी धीर बाई के पुत्र जगमाल को उतराधिकारी घोषित किया था जबकि जयेष्ट पुत्र महाराणा प्रताप था , उदयसिंह की मृत्यू के बाद महाराणा प्रताप अपने नाना अखेराज सोनगरा की सहायता से शासक बना , आगे का मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है
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- उदयसिंह की दो रानीया ————
- रानी भटियानी / धीर बाई ————
- इनसे प्राप्त पुत्र का नाम ———-जगमाल था
- उदयसिंह ने जगमाल को अपना उतराधिकारी घोषित किया था
- जयंता बाई ———
- इनसे प्राप्त पुत्र —————- प्रताप / कीका / कुका था
- जयंता बाई पाली शासक अखेराज सोनगरा की पुत्री थी
- प्रताप अपने नाना अखेराज सोनगरा की सहायता से मेवाड़ का शासक बना था
- रानी भटियानी / धीर बाई ————
- उदयसिंह ने जगमाल को उतराधिकारी घोषित किया था जबकि उदयसिंह का ज्येष्ठ पुत्र प्रताप था
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महाराणा प्रताप ( 1572-1597 ई. ) —————–
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- जन्म —————–
- 9 मई 1540 ई. को
- विक्रम संवत 1597 ( ज्येष्ठ शुक्ल 3 ) को
- जन्म स्थान —————– कुम्भलगढ़ के कटारगढ़ के बादल महल की जुनी कचहरी में
- माता —————– जयंता बाई ( अखेराज सोनगरा की पुत्री )
- पिता —————– महाराणा उदयसिंह
- बचपन का नाम —————– कीका
- रानीया —————–
- अजब दे पंवार ( रामरख पंवार की पुत्री )
- छिहर बाई
- पुत्र —————– अमरसिंह प्रथम ( अजब दे पंवार से प्राप्त पुत्र )
- राज्याभिषेक —————–
- 28 फरवरी 1572 ई.
- गोगुन्दा में हुआ
- राजतिलक —————– रामरख पंवार द्वारा किया गया
- महाराणा प्रताप के ससुर थे ( अजब दे पंवार के पिता )
- सलुम्बर के कृष्णदास चुण्डावत द्वारा प्रताप के कमर पर राजकीय तलवार बांधी गयी
- राज्याभिषेक उत्सव —————–
- कुम्भलगढ़ ( राजसमन्द )
- 1572 ई. में मनाया गया
- इस उत्सव में भाग लेने के लिए मारवाड़ के राव चन्द्रसेन भी पंहुचे थे
- प्रिय घोडा —————– चेतक
- चेतक का भाई नटक था
- प्रताप का प्रिय हाथी —————–
- रामप्रसाद
- लूना
- महाराणा प्रताप के उपनाम —————–
- हल्दीघाटी का शेर
- मेवाड़ केसरी
- हिंदुआ सूरज
- पाथल
- कीका
- महाराणा प्रताप के समकालीन दिल्ली का शासक अकबर था
- अकबर ने सुलह-ए-कुल निति अपनाई
- अकबर ने प्रताप को समझाने हेतु 4 दुतमंडल / शिष्टमंडल भेजे ———
- जलाल खा कोरची (1572 ई. में )
- मानसिंह कछवाहा ( 1573 ई. में ) —————
- डूंगरपुर अभियान से लोटते समय उदयसागर झील की पाल पर मानसिंह ने प्रताप से भेंट की थी
- यही पर मानसिंह के लिए शाही भोज का आयोजन किया गया
- इस बात का उल्लेख निम्नलिखित ग्रंथो में मिलता है —
- सदाशिव का ग्रन्थ ——- राज रतनाकर
- रणछोड़ भट्ट तेलंग का ग्रन्थ ——— अमर काव्य वंशावली
- भगवंतदास ( 1573 ई. में )
- टोडरमल ( 1573 ई. में )
- जन्म —————–
- हल्दीघाटी युद्ध —————–
- 18 / 21 जून 1576 ई. में
- स्थान —————– राजसमन्द
- यह महाराणा प्रताप और मानसिंह प्रथम के मध्य हुआ
- परिणाम —————– अनिर्णायक
- अप्रत्यक्ष रूप से अकबर इस युद्ध में पराजीत हुवा क्युकी वह अपने मूल उद्देश्य को पूर्ण नही कर पाया
- इस युद्ध की योजना अजमेर में अकबर के किले में बनाई गयी
- मुगल सेना का मुख्य सेनापति —————– मानसिंह प्रथम
- मुगल सेना का सहायक सेनापति —————– आसफ खा
- इस युद्ध में मुगल सेना के विभिन्न भागो के नेतृत्वकर्ता —————–
- अग्रभाग ( हरावल ) —————– सेयद हाशिम बारहा
- मध्य भाग ( ढोलाण ) —————– मानसिंह
- पश्च भाग ( चन्द्रावल ) —————– मिहतर खा
- मानसिंह ने मांडलगढ़ में मुग़ल सेना को पहाड़ी युद्ध का प्रशिक्षण दिया था
- मानसिह युद्ध में जाते समय निम्नलिखित स्थानों पर रुका था ( प्रवास का क्रम ) —————–
- अजमेर
- मांडलगढ़
- मोलेला
- खमनोर
- हल्दीघाटी
- मुगल सेना के प्रमुख हाथी —————–
- मर्दाना
- गजराज
- गजमुक्ता
- रणमदार
- मानसिंह का हाथी —————– मर्दाना था
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- प्रताप की सेना का मुख्य सेनापति —————– हकीम खा सूरी
- इस युद्ध में प्रताप की सेना के विभिन्न भागो के नेतृत्वकर्ता —————–
- अग्रभाग ( हरावल ) —————– हकीम खा सूरी
- मध्य भाग ( ढोलाण ) —————– प्रताप
- पश्च भाग ( चन्द्रावल ) —————–पूंजा भील
- प्रताप युद्ध में जाते समय निम्नलिखित स्थानों पर रुका था ( प्रवास का क्रम ) —————–
- कुम्भलगढ़
- लोहसिंह
- गोगुन्दा
- हल्दीघाटी
- लोहसिंह में प्रताप ने शस्त्रागार स्थापित किया था
- और केलवाडा को आपातकालीन केंद्र बनाया था
- इस युद्ध में भाग लेने वाले मेवाड़ी हाथी —————–
- रामप्रसाद
- लुणा
- चक्रवाप
- युद्ध के दोरान मुग़ल सेना में जोश मिहतर खा ने बादशाह अकबर के आने की झूठी सुचना देकर भरा
- युद्ध के दोरान महाराणा प्रताप ने अपनी तलवार से बहलोल खा के घोड़े सहित दो टुकड़े कर दिए थे
- महाराणा प्रताप का मुकुट झाला बिदा ने धारण किया
- इस युद्ध में झाला बिदा ने प्रताप की रक्षा की थी
- प्रताप युद्ध भूमि से बाहर निकलकर बलीचा गाँव ( राजसमन्द ) पंहुचे जंहा चेतक ने अंतिम स्वांस ली थी
- बलीचा ( उदयपुर ) में चेतक का चबूतरा तथा चेतक पर सवार महाराणा प्रताप की मूर्ति बनी है
- गिरधर आसिया द्वारा रचित ग्रन्थ संगत रासो के अनुसार —– महाराणा प्रताप व उनके भाई शक्ति सिंह की मुलाकात बलीचा गाँव में हुई थी
- शक्तिसिंह ने अपना घोडा केटक / नटक महाराणा प्रताप को सोंपा
- तत्पश्चात महाराणा प्रताप कोल्यारी गाँव पंहुचे
- युद्ध में घायल सेनिको का महाराणा प्रताप ने यहा कोल्यारी नामक गाँव में प्राथमिक उपचार करवाया
- युद्ध भूमि में लड़ते हुए राजपूत सरदार वीरगति को प्राप्त हुए —-
- झाला बिदा
- रामसिंह ( ग्वालियर )
- रामदास राठोड
- कृष्णदास चुण्डावत
- हरसिंह आडा इत्यादि वीरगति को प्राप्त
- मानसिंह प्रथम ,आसफ खा व जगन्नाथ कच्छवाह इत्यादि सेनानायक गोगुन्दा ( उदयपुर ) पंहुचे
- इस युद्ध के बाद प्रताप ने आवरगढ़ को अपनी राजधानी बनाया
- तत्पश्चात कुम्भलगढ़ पहुचते है
- महाराणा प्रताप ने स्वभूमिविध्वंश की निति एवं छापामार पद्दति अपनाते हुए गोगुन्दा में रसद सामग्री के आवाजाही के रस्ते बन्द किये
- रसद सामग्री की कमी के कारण मुगल सेना गोगुन्दा से अजमेर लोटी
- प्रताप ने गोगुन्दा पर अधिकार कर यंहा का कार्यभार मांडण कुम्पावत को सोंपा
- हल्दीघाटी युद्ध के उपनाम ———–
- बदायुनी —————– गोगुन्दा का युद्ध
- अबुल-फजल —————– खमनोर का युद्ध
- A.L.श्रीवास्तव —————– लोहसिंह का युद्ध
- इन्होने हल्दीघाटी को —————– बादशाह बाग कहा है
- कर्नल जेम्स टॉड —————– मेवाड़ की थर्मोपल्ली
- कर्नल जेम्स टॉड ने महाराणा प्रताप को —————– हल्दीघाटी का शेर कहा है
- गोपीनाथ शर्मा —————– स्थगित युद्ध / अनिर्णायक युद्ध
- अन्य नाम —————–
- रक्ततलाई
- हाथियों का युद्ध
- बनास का युद्ध
- स्वतंत्रता सेनानियों का तीर्थ स्थल
- बदायुनी ने अपने ग्रन्थ मुन्तखब-उत-तवारीख में इस युद्ध का आँखों देखा हाल ( सजीव )का वर्णन किया है
- बदायुनी ने मेवाड़ी सेना 3000 और मुगल सेना 5000 बताई है
- इस युद्ध के बाद अकबर ने मानसिंह प्रथम के मुग़ल दरबार में प्रवेश पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगाया
- और मानसिंह के घोड़े को शाही दाग से मुक्त किया
- मानसिंह ने महाराणा प्रताप का हाथी रामप्रसाद अकबर को भेंट किया
- अकबर ने इस हाथी का नाम बदलकर पीरप्रसाद रखा
- राज प्रशस्ति में हल्दीघाटी युद्ध का विजेता प्रताप को बताया गया है
- वर्तमान में मेवाड़ फाउंडेशंन संस्थान द्वारा भामाशाह और हकीम खा सूरी सम्मान दिया जाता है
- हल्दीघाटी युद्ध के बाद अकबर ने जानकारी प्राप्त करने हेतु महमूद नामक व्यक्ति को मेवाड़ भेजा था
- अकबर शाही सेना सहित 13 अक्टूबर 1576 ई. को गोगुन्दा पंहुचे
- नवम्बर 1576 ई. तक अकबर मेवाड़ में महि गाँव के पास रुके रहे
- अकबर ने मानसिंह को प्रताप को पकड़ने हेतु भेजा लेकिन मानसिंह असफल रहा
- नवम्बर 1576 में अकबर निराश होकर मेवाड़ से मालवा गये
- अकबर के लोटते ही प्रताप ने मुजाहिद बेग की हत्या कर गोगुन्दा पर पुन: अधिकार किया और कार्यभार मांडण कुम्पावत को सोंपा
- मुग़ल बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप को कैद करने हेतु शाहबाज खा कोकुम्भलगढ़ व आस-पास के क्षेत्रो में तिन बार मेवाड़ अभियान पर भेजा ——
- प्रथम आक्रमण —————-
- 15 अक्टूबर 1577 ई.
- इस आक्रमण में प्रताप की सेना पराजीत होती है
- 3 अप्रैल 1578 ई. को शाहबाज ने कुम्भलगढ़ जीता
- 4 अप्रैल 1578 ई. को शाहबाज ने गोगुन्दा व उदयपुर पर अधिकार किया
- प्रथम आक्रमण में शाहबाज खा महाराणा प्रताप को कैद करने में असफल रहा
- दूसरा आक्रमण —————-
- 15 दिसम्बर 1578 ई.
- असफल आक्रमण
- तीसरा आक्रमण —————-
- 15 नवम्बर 1579 ई.
- असफल आक्रमण
- प्रथम आक्रमण —————-
- कुम्भलगढ़ का युद्ध —————-
- 3 अप्रैल 1578 ई.
- इस युद्ध में मुग़ल सेनापति शाहबाज खा ने मेवाड़ी सेना को पराजीत कर कुम्भलगढ़ पर अधिकार किया
- इस समय महाराणा प्रताप ने भाण सोनगरा को किले का दायित्व सोंपकर छाछ्न की पहाडियों में शरण ली
- महाराणा प्रताप की भामाशाह से मुलाकात —————-
- 1577 ई. में
- पाली के भामाशाह और उनके भाई ताराचंद ने चुलिया गाँव में प्रताप से भेंट की थी
- महाराणा प्रताप को 25 लाख रूपये व 20 हजार स्वर्ण मुद्राए दान में दी थी
- यह दान की गयी राशी मालवा से लुटकर लाई गयी थी
- इस दान की गयी राशी से प्रताप का 12 वर्ष का सेन्य खर्च चला था और सेना संगठित की
- प्रताप ने रामा महासाहनी के स्थान पर भामाशाह को प्रधानमंत्री बनाया
- भामाशाह —————-
- जन्म ——- 28 जून 1576 ई.
- कावड़िया ( ओसवाल ) जाती में
- पाली
- इन्हें मेवाड़ का उद्धारक और मेवाड़ का रक्षक कहा जाता है
- 1578 ई. के बाद 2 वर्ष प्रताप के भटकाव का काल माना जाता है
- इसी काल का उल्लेख कन्हेयालाल सेठिया ने अपनी कविता पाथळ ( प्रताप ) और पीथळ ( पृथ्वीराज राठोड ) में किया है
- अकबर ने 1580 ई. में अब्दुर्ररहीम खाने खाना के नेतृत्व में प्रताप को कैद करने हेतु सेना भेजी लेकिन असफल रहा
- रहीम खाने खाना ने कहा ——-
- तुर्की राज्य का अंत हो जायेगा लेकिन महाराणा प्रताप का धर्म व राज्य शाश्वत रहेगा
- रहीम खाने खाना ने कहा ——-
- 1580-84 तक महाराणा प्रताप पर मुगल सेना का आक्रमण नही हुआ
- अकबर ने मेवाड़ पर मुगल शासन चलाने एवं प्रताप को कैद करने हेतु 4 सैनिक चोकीया स्थापित की —————-
- देवारी ( उदयपुर )
- दिवेर ( राजसमन्द )
- देसुरी ( पाली )
- देवल ( डूंगरपुर )
- प्रताप के पुत्र अमरसिंह ने 1580 ई. में मुगलों की शेरपुर चोकी पर अधिकार किया था
- दिवेर का युद्ध ( 1582 ई. ) —————-
- स्थान —————- दिवेर ( राजसमन्द )
- दिवेर की मुग़ल चोकी का अधिकारी सेरिमा सुल्तान खा था
- यह युद्ध सुल्तान खा व महाराणा प्रताप के मध्य हुआ
- इस युद्ध में दिवेर सरदार सुल्तान खा मारा गया
- विजेता —————- महाराणा प्रताप
- कर्नल जेम्स टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ का मेराथन कहा है
- इस युद्ध से प्रताप की विजयो के क्रम का प्रारम्भ होता है
- चावण्ड का युद्ध —————-
- 1585 ई. में
- स्थान —————- उदयपुर
- यह युद्ध महाराणा प्रताप और लुणा चावंड के मध्य हुआ
- विजेता —————- महाराणा प्रताप
- 1585 ई. में महाराणा प्रताप ने चावण्ड को अपनी आपातकालीन राजधानी बनाया
- महाराणा प्रताप ने चावण्ड में चामुण्डा माता का मन्दिर बनवाया
- प्रताप ने बदनोर में हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया
- अकबर ने महाराणा प्रताप के विरुद्ध 5 दिसम्बर 1584 ई. को जगन्नाथ कच्छवाहा के नेतृत्व में अंतिम सेनिक अभियान भेजा
- परन्तु 1585 ई. में मांडल नामक स्थान पर जगन्नाथ कच्छवाहा की मृत्यू हुई थी
- यही पर इनकी 32 खम्भों की छतरी बनी हुई है
- 1585-1597 ई. के मध्य 12 वर्षो में अकबर ने मेवाड़ पर कोई सेन्य अभियान नही भेजा क्युकी वह उतर-पश्चिम सेन्य अभियानों में व्यस्त था
- 1585 ई. से प्रताप की मृत्यू तक कोई मुग़ल आक्रमण नही हुआ
- 1585-1597 ई. के मध्य के काल में प्रताप ने चितोडगढ़ और मांडलगढ़ को छोडकर सम्पूर्ण मेवाड़ पर अधिकार कर लिया
- महाराणा प्रताप के निर्माण कार्य ———-
- हरिहर मन्दिर का निर्माण करवाया
- चावण्ड में चामुण्डा माता मन्दिर का निर्माण करवाया
- महाराणा प्रताप के काल में लिखित ग्रन्थ ———
- चक्रपाणी मिश्र द्वारा रचित ——
- विश्व वल्लभ ( 14 भागो में विभक्त )
- मुहूर्त माला
- राज्याभिषेक पद्दति
- हेमरतन सूरी द्वारा रचित ग्रन्थ ——
- गोरा बादल पदमिनी चरित चोपाई
- सीता चोपाई
- महिपाल चोपाई
- अमर कुमार चोपाई
- दुरसा आडा ने महाराणा प्रताप पर ——– विरुद्ध छत्री ग्रन्थ की रचना की
- माला सांदू ने प्रताप पर झुलणा ग्रन्थ की रचना की थी
- चक्रपाणी मिश्र द्वारा रचित ——
- महाराणा प्रताप की मृत्यू ———–
- 19 जनवरी 1597 ई. को महाराणा प्रताप की चावण्ड में मृत्यू हुई
- चावण्ड के पास बांडोली नामक स्थान पर केजड बांध की पाल पर महाराणा प्रताप की 8 खम्भों की छतरी बनी हुई है
- प्रताप की मृत्यू पर अकबर के दरबारी साहित्यकार दुरसा आडा ने लिखा की————
- तेरी मृत्यू पर अकबर ने नी:श्वासे छोड़ी , दांतों तले अंगुली दबाई व आँखों में आंसू लाये अत: हें गुहिलोत महाराणा प्रताप तेरी ही विजय हुई
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ( 1599-1620 ) —————
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