मेवाड़ का इतिहास : गुहिल राजवंश Topik-23
हमने पीछे के भाग में मेवाड़ का इतिहास शुरू से लेकर महाराणा प्रतापसिंह तक का इतिहास पढ़ा था ,महाराणा प्रताप का शासन काल 1572-1597 ई. तक था , 9 मई 1540 ई. को कटारगढ़ के बादल महल की जुनी कचहरी में इनका जन्म हुआ , 28 फरवरी 1572 ई. को इनका राज्याभिषेक हुआ , इन्होने मानसिंह के सामने 21 जून 1576 को राजसमन्द में हल्दीघाटी युद्ध लडा , 19 जनवरी 1597 ई. को महाराणा प्रताप की चावंड में मृत्यू हुई थी , महाराणा प्रताप की म्रत्यु के बाद इनका पुत्र अमरसिंह शासक बना , आगे का मेवाड़ का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है
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- महाराणा प्रताप की मृत्यू 19 जनवरी 1597 ई. को चावण्ड में हुई
- महाराणा प्रताप के पुत्र अमरसिंह प्रथम शासक बने
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मेवाड़ का इतिहास
- महाराणा अमरसिंह प्रथम ( 1597-1620 ई. ) ——————
- राज्याभिषेक —————
- 19 जनवरी 1597 ई. में
- चावण्ड में
- अमरसिंह ने सेना को मजबूती प्रदान करने के लिए मेवाड़ में एक अलग सेन्य विभाग का गठन किया
- इस सेन्य विभाग का अध्यक्ष ————— हरिदास
- अमरसिंह के समय मेवाड़ पर भेजे गये प्रमुख सेन्य अभियान —————
- 1599 ई. में सलीम के नेतृत्व में
- 1605 ई. में परवेज के नेतृत्व में
- 1608 ई. में महावत खा के नेतृत्व में
- 1613 ई. में जहागीर स्वयं अजमेर में रहा
- 1613 में खुर्रम ( शाहजहा ) के नेतृत्व में
- 1613 ई. में अब्दुर्रहीम के नेतृत्व में
- मुग़ल सेना द्वारा लम्बे समय तक घेरा डाले रखने के कारण मेवाड़ की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी जिससे विवस होकर अमरसिंह को संधि करनी पड़ी
- मुग़ल – मेवाड़ संधि ———-
- 5 फरवरी 1615 ई. को
- स्थान ————— गोगुन्दा
- यह संधि अमरसिंह व जहागीर के मध्य हुई थी
- इस संधि पत्र पर मेवाड़ की तरफ से महाराणा अमरसिंह व जहागीर की तरफ से खुर्रम ( शाहजहा ) ने हस्ताक्षर किये थे
- इस संधि की प्रमुख शर्ते —————
- मेवाड़ ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की
- महाराणा को मुगल दरबार में उपस्थिति की छुट दी गयी अथार्त अमरसिंह के स्थान पर इनका पुत्र मुगल दरबार में उपस्थित हो सकता है
- पुराने दुर्गो का जीर्णोद्धार नही किया जायेगा
- और नये दुर्गो का निर्माण नही किया जायेगा
- मुग़ल मेवाड़ वैवाहिक सम्बन्ध में छुट दी गयी
- महाराणा शाही सेना में 1000 सेनिक रखेगा
- 19 फरवरी 1615 ई. में शाहजहा कर्णसिंह को ले जाकर बादशाह जहागीर की सेवा में उपस्थित किया
- मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाला मेवाड़ का प्रथम शासक ————— अमरसिंह प्रथम था
- कथन —————
- कर्नल जेम्स टॉड ने अमरसिंह को इस वंश का सुयोग्य वंशधर कहा है
- G.H. ओझा ने अमरसिंह को वीर पिता का वीर पुत्र कहा है
- अमरसिंह प्रथम का काल मेवाड़ का अभ्युदय ( निर्माण काल ) काल कहलाता है
- अमरसिंह के काल को चावण्ड चित्रकला शेली का स्वर्णकाल माना जाता है
- अमरसिंह की 26 जनवरी 1620 ई. में मृत्यू हुई
- इनका अंतिम संस्कार आहड़ में किया गया
- यही पर महासतियो का टिला नामक स्थान पर अमरसिंह की छतरी बनी हुई है
- इस स्थान को मेवाड़ के महाराणाओ का श्मसान घाट भी कहा जाता है
- अमरसिंह का पुत्र कर्णसिंह मुग़ल दरबार में उपस्थित होने वाले मेवाड़ के प्रथम प्रतिनिधि थे
- राज्याभिषेक —————
- महाराणा कर्णसिंह ( 1620-1628 ई. ) —————
- राज्याभिषेक —————
- 26 जनवरी 1620 ई. को
- उदयपुर में
- निर्माण कार्य —————
- कर्ण विलास महल निर्माण
- पिछोला झील में जगमंदिर व जगमहल की नीव रखी
- उदयपुर शहर के परकोटे का निर्माण करवाया
- बड़ा दरीखाना का निर्माण करवाया
- चन्द्रमहल का निर्माण
- दिलखुश महल
- सुखमहल का निर्माण करवाया
- जहागीर के पुत्र खुर्रम ( शाहजहा ) द्वारा विद्रोह किया गया , खुर्रम को कर्णसिंह ने जगमंदिर में शरण दी
- इसी जगमंदिर में 1857 की क्रांति के समय स्वरूप सिंह ने अंग्रेजो को शरण दी थी
- खुर्रम ने उदयपुर में गफूर बाबा की मजार बनवाई
- जहागीर ने कर्णसिंह को 1000 का मनसब प्रदान किया था
- कर्णसिंह की मृत्यू मार्च 1628 ई. को हुई थी
- राज्याभिषेक —————
- महाराणा जगतसिंह प्रथम (1628 -1652 ई. ) —————–
- 28 अप्रैल 1652 ई. को उदयपुर में राज्याभिषेक हुआ
- निर्माण कार्य —————–
- जगतसिंह प्रथम ने जगदीश मन्दिर का निर्माण करवाया
- जगतसिंह की धाय मा नोजू बाई मन्दिर का निर्माण करवाया
- जगतसिंह ने चितेरो की ओवरी / तस्वीरा रो कारखानों नामक चित्रशाला का निर्माण करवाया
- रूपसागर तालाब का निर्माण करवाया
- मोहन मन्दिर का निर्माण करवाया
- जगदा बावड़ी का निर्माण करवाया
- चितोडगढ़ दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाया जिसके कारण मेवाड़-मुग़ल संधि का सर्वप्रथम उल्लंघन हुआ
- जगदीश मन्दिर —————–
- उदयपुर
- निर्माण —————–
- 13 माय 1652 ई. में
- जगतसिंह प्रथम द्वारा
- अर्जुन की देखरेख में निर्मित
- वास्तुकार —————–
- भाणा
- मुकुंद
- इसे सपनो का मन्दिर भी कहा जाता है
- यह मन्दिर पंचायतन शेली व बेसर शेली में निर्मित है
- इस मन्दिर में विष्णु जी की प्रतिमा स्थित है
- दिन में 5 बार पूजा की जाती है
- इस मन्दिर की ओरंगजेब से रक्षा करते हुए नरुजी बारहठ ने अपने प्राणों का बलिदान किया
- मन्दिर के पास नरुजी बारहठ का स्मारक बना हुआ है
- जगन्नाथ प्रशस्ति —————–
- जगतसिंह प्रथम ने लिखवाई थी
- लेखक —————– कृष्ण भट्ट
- मेवाड़ी भाषा में लिखी गयी
- जगतसिंह प्रथम के काल में पिछोला झील ( उदयपुर ) में स्थित जगमंदिर का निर्माण पूर्ण करवाया गया
- जगतसिंह प्रथम के समकालीन मुगल बादशाह —————– शाहजहा था
- जगतसिंह प्रथम ने देवलिया ( प्रतापगढ़ ) के सामंत जसवंतसिंह और उसके पुत्र महासिंह की उदयपुर में दोनों की हत्या की गयी क्युकी इन्होने मेवाड़ महाराणा के आदेशो की अवहेलना की थी
- शाहजहा इस हत्याकांड से नाराज होकर प्रतापगढ़ और शाहपुरा को मेवाड़ से प्रथक रियासत के रूप में स्थापीत किया
- कुछ ऐसा मानते है की दुर्गो का जीर्णोद्धार करवाने के कारण प्रथक रियासत स्थापित की
- जगतसिंह प्रथम के कवि विश्वनाथ ने जगतप्रकाश ग्रन्थ की रचना की जो 14 सर्गो में विभक्त है
- 10 अक्टूबर 1652 ई. को जगतसिंह प्रथम की मृत्यू हुई थी
- महाराणा राजसिंह ( 1652-1680 ई. ) —————–
- पिता —————– जगतसिंह प्रथम
- माता —————– जना दे
- राज्याभिषेक —————– 4 जनवरी 1653 ई.
- उपाधि —————–
- विजय काटकतु
- हिन्दू धर्म रक्षार्थ
- राजसिंह के समकालीन मुगल बादशाह —————–
- शाहजहा
- ओरंगजेब
- शाहजहा ने अजमेर यात्रा के दोरान चितोडगढ़ दुर्ग में निर्माण कार्य का निरिक्षण हेतु शादुल्ला खा को भेजा
- 1653 ई. में नव निर्माण कार्य को ध्वस्त करने हेतु शाहजहा ने अब्दुला बेग के नेतृत्व में सेना भेजी
- 1656 ई. में शाहजहा के चारो पुत्रो के बीच उतराधिकार संघर्ष शुरू हुआ
- दारा
- सुजा
- मुराद
- ओरंगजेब
- इस संघर्ष के समय दारा शिकोह ने राजसिंह से ओरंगजेब के विरुद्ध सहायता की प्रार्थना की थी परन्तु राजसिंह ने अस्वीकार कर दिया
- मुगलों के उतराधिकार संघर्ष के दोरान 1658 ई. में राजसिंह ने मांडलगढ़ पर अधिकार किया
- मांडलगढ़ दुर्ग किशनगढ़ शासक रूपसिंह के अधीन था
- यंहा का किलेदार राघवसिंह था
- मेवाड़ का एकमात्र शासक राजसिंह था जिसने फरवरी 1653 ई. में एकलिंगनाथ जी मन्दिर में रत्नों का तुलादान किया था
- मई 1658 ई. में राजसिंह ने मुगल ठिकानो पर अधिकार करने के उद्देश्य से टीका दोड प्रारम्भ की
- 1658 ई. में ओरंगजेब के शासक बनते ही राजसिंह ने अपने पुत्र सुल्तान सिंह को मुग़ल दरबार में सेवा हेतु भेजा
- ओरंगजेब ने प्रारम्भ में राजसिंह को 4000 का मनसबदार बनाया था
- राजसिंह के निर्माण कार्य —————–
- राजसमन्द झील का निर्माण —————–
- राजसिंह ने अकाल राहत कार्य योजना के अंतर्गत इस झील का निर्माण करवाया
- सिंचाई के उद्देश्य से इस झील का निर्माण करवाया
- गोमती नदी के पाणी को रोककर इस झील का निर्माण करवाया गया
- इस झील के उतरी किनारे को नोचोकी पाल कहा जाता है
- यंही पर घेवर माता का मन्दिर स्थित है
- यंही पर राजप्रशस्ति स्थित है
- राजप्रशस्ति की रचना —————–
- रचनाकार —————– रणछोड़भट्ट तेलंग
- यह प्रशस्ति काले संगमरमर की 25 शिलाओ से बनी है
- यह संस्कृत भाषा में है
- यह चंपू शेली में है
- यह प्रशस्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रशस्ति है
- इस प्रशस्ति में मेवाड़ – मुगल संधि का उल्लेख मिलता है
- इस प्रशस्ति में राजसिंह से जगतसिंह द्वितीय तक का इतिहास उल्लेखित है
- श्रीनाथ जी मन्दिर का निर्माण —————–
- सिहाड़ गाँव ,नाथद्वारा
- निर्माण शुरू —————– 1669 ई.में
- निर्माण पूर्ण —————– 1672 ई. में
- इस मन्दिर में प्रतिष्ठित मूर्ति श्री वृन्दावन ( उतरप्रदेश ) से गोपाल दामोदर व रामावतार पुजारी लेकर आये थे
- द्वारिकाधीश मन्दिर का निर्माण —————– कांकरोली ( राजसमन्द )
- अम्बा माता मन्दिर का निर्माण —————– उदयपुर
- राजसिंह द्वारा जनासागर तालाब का निर्माण करवाया गया जो बाड़ी गाँव उदयपुर में है
- इस तालाब को बड़ी तालाब भी कहा जाता है
- राजसिंह की रानी रामरस दे ने उदयपुर में त्रिमुखा बावड़ी / जया बावड़ी का निर्माण करवाया
- राजसिंह के काल में ही नाथद्वारा चित्रशेली का प्रारम्भ माना जाता है
- राजसिंह ने उदयपुर में देबारी घाट का किला बनवाया
- राजसिंह ने राजसमन्द में सर्वऋतू महल का निर्माण करवाया
- राजसिंह ने उदयपुर में रुगासागर तालाब कका निर्माण करवाया
- राजसिंह ने फरवरी 1653 ई. में एकलिंगनाथ जी मन्दिर में रत्नों का तुलादान किया था
- राजसमन्द झील का निर्माण —————–
- ओरंगजेब व राजसिंह के बीच खराब सम्बन्धो का कारण —————–
- चारुमती विवाद ( 1660 ई. ) —————–
- राजसिंह ने ओरंगजेब की इच्छा के विरुद्ध किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमती से विवाह किया
- चारुमती से ओरंगजेब विवाह करना चाहता था
- चारुमती वैष्णव सम्प्रदाय की अनुयायी थी
- चारुमती का भाई मानसिंह था व किशनगढ़ शासक रूपसिंह की पुत्री थी
- 1669 ई. में ओरंगजेब ने मन्दिर तुडवाने के आदेश जारी किये लेकिन राजसिंह ने नये मन्दिरों का निर्माण करवाया —–
- श्रीनाथ जी मन्दिर —————– सिहाड गाँव ( नाथद्वारा )
- द्वारिकाधीश मन्दिर —————- कांकरोली ( राजसमन्द )
- अम्बा माता मन्दिर —————– उदयपुर
- 1678 ई. में दुर्गादास राठोड व अजीत सिंह को सरक्षण दिया
- राजसिंह ने दुर्गादास राठोड को अजीतसिंह के लालन-पालन हेतु केलवा की जागीर दी थी
- ओरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को राजसिंह ने सरंक्षण दिया
- ओरंगजेब ने 1679 ई. में जजिया कर लगाया जिसका राजसिंह ने विरोध किया
- जजिया कर —– गैर मुसलमानो पर लगने वाला एक धार्मिक कर था
- ओरंगजेब दिल्ली से राजसिंह पर आक्रमण करने हेतु आया
- अजमेर पहुचकर ओरंगजेब ने अपने सेनापति शहजादे खा व हसन अली खा को नियुक्त किया
- मुगल सेना के मेवाड़ पहुचते ही राजसिंह गोगुन्दा की पहाडियों में पहुचे
- राजसिंह के सेनापति सलुम्बर के रतनसिंह चुण्डावत थे
- रतनसिंह चुण्डावत की पत्नी हाडी रानी सहल कंवर थी
- युद्ध में जाते समय रतनसिंह को सेनाणी के तोर पर हाडी रानी सहल कंवर ने अपना सिर काटकर दिया था
- मेघराज मुकुल ने इस घटना पर कविता की रचना की —–
- चुण्डावत मांगी सेनाणी , सिर काट दे दियो क्षत्राणी
- मुगलों का यह आक्रमण असफल रहा लेकिन मांडलगढ़ पर अधिकार किया
- 22 अक्टूबर 1680 ई. को कुम्भलगढ़ के पास ओढा गाँव में राजसिंह की विष के माध्यम से ओरंगजेब ने हत्या करवाई थी
- चारुमती विवाद ( 1660 ई. ) —————–
- महाराणा जयसिंह (1680-1698 ई. ) —————–
- अगले भाग —————– Topik-24 में