जयपुर का इतिहास : कछवाहा राजवंश Topik-26
जयपुर को प्राचीन समय में ढूंढाड के नाम से जाना जाता था , जयपुर में कछवाहा वंश का संस्थापक दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण को माना जाता है , दुल्हेराय का शासन काल 1137-1170 ई. तक था , यह मूलत: नरवर ( मध्यप्रदेश ) के सोढासिंह के पुत्र था , दुल्हेराय ने अपनी राजधानी दोसा को बनाया , जयपुर का इतिहास निम्नलिखित है —
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- सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार कछवाहा रघुकुल शासक कुर्म के वंशज थे अथार्त रघुवंशी थे
- आमेर शिलालेख में कछवाहो के लिए रघुकुल तिलक शब्द का प्रयोग किया गया है
- आमेर अभिलेख से इस वंश के प्रारम्भिक शासको की जानकारी मिलती है
- इस वंश के शासक सूर्यवंशी माने जाते है तथा स्वयं को भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज मानते है
- कछवाहा वंश के राजकीय ध्वज में 5 रंग ( पंचरंगी ) दर्शाए गये है —————–
- लाल , पिला , सफेद , हरा , नीला
- इस ध्वजा में सूर्य की आकृति अंकित है
- आमेर वंश का राज्वाक्य —————– यतो धर्म: स्तुत: जय
- कछवाहा वंश के राज चिन्ह में श्री राधा-कृष्ण के चित्र के निचे यतो धर्म: स्तुत: जय अंकित मिलता है
- आमेर / जयपुर का प्राचीन नाम —————– ढूंढाड
- कछवाहा वंश की कुलदेवी —————–
- जमुवाय माता / बडवाय माता
- मन्दिर ——– जमुवा रामगढ़ ( जयपुर )
- निर्माण —— दुल्हेराय ने
- जमुवा रामगढ़ का प्राचीन नाम ——- मांच प्रदेश था
- यंहा मीणा जाती का शासन था
- मीणाओ को दुल्हेराय ने पराजीत कर यहा जमुवाय माता का मन्दिर बनवाया
- यंहा गुलाब / फूलो के अत्यधिक उत्पादन के कारण इसे ढूंढाड का पुष्कर भी कहा जाता है
- कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी —————–
- शीलादेवी
- मन्दिर ———- आमेर ( जयपुर )
- निर्माण ——– मानसिंह प्रथम
- इस मन्दिर की मूर्ति बंगाल के राजा केदार को पराजीत कर जस्सोर नामक स्थान से मानसिंह लेकर आये थे
- मन्दिर का जीर्णोद्धार ——– रामसिंह द्वितीय
- देवी के मन्दिर में ढाई प्याले शराब चढाई जाती है जिसे चरनामृत कहा जाता है
- कछवाहा राजवंश की राजधानिया —————–
- दोसा ——–
- 1137 ई.
- दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण
- जमुवा रामगढ़ ——
- दुल्हेराय
- आमेर ——-
- 1207 ई.
- कोकिलदेव
- जयपुर ——–
- 1727 ई.
- सवाई जयसिंह
- दोसा ——–
- अफगानों ( शेरशाह सूरी ) की अधीनता स्वीकार करने वाला कछवाहा वंश का प्रथम शासक —————–
- रतनसिंह कछवाहा
- 1543 ई. में
- मुगलों की अधीनता स्वीकार करने वाला प्रथम शासक —————–
- भारमल
- 1562 ई. में
- कुश के वंशज नल ने नरवर ( मध्यप्रदेश ) को अपनी राजधानी बनाया
- नल का 33 वा वंशज सोढासिंह था
- सोढासिंह नरवर ( मध्यप्रदेश ) का शासक बना
- सोढासिंह का पुत्र —————– दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण था
- दुल्हेराय का विवाह लालसोट के चोहान शासक रालपसी की पुत्री सुजान कंवर के साथ हुआ
- 1137 ई. में दुल्हेराय ने दोसा के पास बडगुर्जरो को पराजीत कर कछवाहा वंश की नीव डाली
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जयपुर का इतिहास
- दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण ( 1137-1170 ई. ) —————–
- यह मूलत: नरवर ( मध्यप्रदेश ) के सोढासिंह के पुत्र था
- मूल नाम —————– तेजकरण
- इसे राजस्थान में कछवाहा वंश का संस्थापक माना जाता है
- दुल्हेराय ने दोसा के बडगुर्जरों को पराजीत कर दोसा पर अधिकार किया
- दोसा को अपनी राजधानी बनाया
- जमुवा नामक स्थान पर रामगढ़ दुर्ग बनवाया
- जमुवा रामगढ़ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया
- यंही पर अपनी कुलदेवी अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर बनवाया
- इसे जमुवाय माता भी कहा जाता है
- जमुवा रामगढ़ का प्राचीन नाम ——- मांच प्रदेश था
- यंहा मीणा जाती का शासन था
- मीणाओ को दुल्हेराय ने पराजीत कर यहा जमुवाय माता का मन्दिर बनवाया
- यंहा गुलाब / फूलो के अत्यधिक उत्पादन के कारण इसे ढूंढाड का पुष्कर भी कहा जाता है
- दुल्हेराय ने लालसोट के चोहान शासक रालाह्न्सी / रालपसी की पुत्री सुजान कंवर / मारुनी से विवाह किया
- दुल्हेराय का पुत्र —————– कोकिल देव था
- दुल्हेराय ने निम्नलिखित को पराजीत किया था —————–
- गेटोर —————– गेता मीणा
- झोटवाडा ————– झोटा मीणा
- आमेर —————– आलमसिंह
- कवी कल्लोल के साहित्य ढोला-मरू से भी दुल्हेराय के समकालीन स्थितियों की जानकारी मिलती है
- कोकिल देव ( 1170 -1207 ई. ) —————–
- कोकिल देव ने भट्टों मीणा को पराजीत कर आमेर पर अधिकार किया
- आमेर को अपनी राजधानी बनाया
- आमेर का प्राचीन नाम—————– अम्बिका नगर था
- आमेर दुर्ग का निर्माण प्रारम्भ करवाया
- आमेर दुर्ग का वास्तविक / आधुनिक निर्माता —— मानसिंह प्रथम
- कोकिल देव ने गेटोर , मेड , बेराठ इत्यादि क्षेत्रो पर यादवो को पराजीत कर अधिकार किया
- कुंवर शेखा ने शेखावाटी में कछवाहा वंश की स्थापना की थी
- कुंवर शेखा की छतरी परसरामपुरा ( नवलगढ़ ) में स्थित है
- इस छतरी में बने भीती-चित्र शेखावाटी के प्राचीनतम भीती-चित्र माने जाते है
- नरु नामक व्यक्ती द्वारा आमेर के दक्षिण-पूर्व में नरुका शाखा का प्रारम्भ किया गया
- कोकिल देव ने भट्टों मीणा को पराजीत कर आमेर पर अधिकार किया
- प्रजुन देव
- मलसी
- राजदेव / रामदेव ( 1207-1227 ई. ) —————–
- राजदेव ने आमेर दुर्ग में कदमी महलो का निर्माण करवाया
- इन महलो में आमेर के शासको का राज्याभिषेक होता था
- इन महलो का वास्तविक व आधुनिक निर्माता —————– मानसिंह प्रथम
- राजदेव ने आमेर दुर्ग में कदमी महलो का निर्माण करवाया
- किल्हण —————–
- महाराणा कुम्भा का सामन्त था
- कुन्तल —————–
- आमेर दुर्ग में कुन्तला तालाब का निर्माण करवाया
- उदयकरण
- नृसिंह
- उद्वरण
- चन्द्रसेन
- पृथ्वीराज कछवाहा ( 1503-1527 ई. ) —————–
- पृथ्वीराज कछवाहा नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी थे
- इनके गुरु —————– चतुरानाथ
- पृथ्वी
- पृथ्वीराज कछवाहा ने बीकानेर के शासक लूणकरण की पुत्री बाली बाई से विवाह किया
- बाली बाई वैष्णव मतावलंबी थी
- बाला बाई के गुरु —————– कृष्णदास पेयहारी
- पृथ्वीराज कछवाहा के शासन काल में कृष्णदास पेयहारी ने शास्त्रयुद्ध में चतुरानाथ को पराजीत किया था
- कृष्णदास पेयहारी ने रामानन्दी सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलता जी जयपुर में स्थापित की
- गलता जी —————–
- गालव ऋषि की तपोभूमि
- धार्मिक द्रष्टि से ढूंढाड का पुष्कर कहा जाता है
- इसे मंकी वेळी / बंदरो की घाटी कहा जाता है
- पृथ्वीराज कछवाहा ने आमेर में लक्ष्मी-नारायण मन्दिर का निर्माण करवाया
- पृथ्वीराज कछवाहा ने 12 कोटडी प्रथा शुरू की
- इनके 12 पुत्र थे
- अपने राज्य को 12 प्रशासनिक केन्द्रों में विभाजित कर प्रत्येक पुत्र को समान राज्य दिया
- बाला बाई के आग्रह पर पृथ्वीराज ने अपने पुत्र पूर्णमल को उतराधिकारी घोषित किया
- खानवा युद्ध में महाराणा सांगा की सहायता करते हुए 1527 ई. में वीरगति को प्राप्त हुआ
- पूर्णमल
- भीमदेव ( 1536 ई. तक ) —————–
- रतनसिंह ( 1536-47 ) —————–
- रतनसिंह ने शेरशाह सूरी की अधीनता स्वीकार की
- जिसके कारण इनके भाई आसकरण ने ही रतनसिंह की हत्या कर दी
- अफगानों ( शेरशाह सूरी ) की अधीनता स्वीकार करने वाला कछवाहा वंश का प्रथम शासक था
- रतनसिंह भीमदेव का पुत्र था
- सांगा —————–
- रतनसिंह का पुत्र था
- भारमल , सांगा का छोटा भाई था
- सांगा ने सांगानेर की स्थापना की थी
- सांगा ने अपने मामा बीकानेर के शासक जैतसी के सहयोग से मोजमाबाद पर अधिकार किया
- सांगा की निसंतान मृत्यू हुई
- भारमल कछवाहा ( 1547-1574 ई. ) —————–
- भारमल के समकालीन मुगल बादशाह अकबर थे
- भारमल व अकबर की सर्वप्रथम भेंट 1556 ई. में मजनू खा की सहायता से दिल्ली में हुई थी
- भारमल व अकबर की दूसरी भेंट / राजस्थान में सर्वप्रथम भेंट 20 जनवरी 1562 ई. को चगताई खा के माध्यम से सांगानेर में हुई थी
- मुगलों की अधीनता स्वीकार कर इनके साथ सर्वप्रथम वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने वाला प्रथम शासक भारमल था
- भारमल ने 1562 ई. में साम्भर नामक स्थान पर अपनी पुत्री हरखा बाई / हरकू बाई / मरियम उज्जमानी का विवाह अकबर से किया
- अकबर ने हरकू बाई को मरियम उज्जमानी की उपाधि प्रदान की
- अकबर व हरकू बाई से प्राप्त सन्तान —————– सलीम ( जहागीर )
- इस विवाह के पश्चात अकबर ने भारमल को 5000 का मनसबदार बनाया
- अमीर-उल-उमरा का पद प्रदान किया और राजा की उपाधि से सम्मानित किया
- बीकानेर अभिलेखागार में भारमल के वंश वृक्ष के अनुसार हरका बाई को मानमति व शाही बाई भी कहा गया है
- भारमल ने अपने पुत्र भगवंतदास एवं पोत्र मानसिंह प्रथम को अकबर की सेवा में नियुक्त किया
- अकबर ने भारमल के सहयोग से 3 नवम्बर 1570 ई. को नागोर दरबार लगाया
- जनवरी 1574 ई. को भारमल की मृत्यू हुई
- भगवंतदास ( 1574-1589 ई. ) —————–
- भगवंतदास के समकालीन मुग़ल बादशाह —————– अकबर था
- अकबर ने 1572 ई. में भगवंतदास को गुजरात अभियान पर भेजा
- खरनाल का युद्ध —————–
- स्थान —————– गुजरात
- यह युद्ध भगवंतदास व गुजरात के इब्राहीम हुसेन मिर्जा के मध्य हुवा था
- विजेता —————–भगवंतदास
- इस युद्ध में भगवंतदास के साथ इनका पुत्र मानसिंह प्रथम भी उपस्थित था
- 1582 ई. में अकबर ने भगवंतदास को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया
- भगवंतदास ने अपनी पुत्री मान बाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम / जहागीर के साथ करवाया
- मान बाई को सुल्तान-ए-निस्सा व शाह-आलम की उपाधि प्रदान की गयी
- मानबाई के पुत्र का नाम —————– खुसरो था
- खुसरो ने अपने पिता जहागीर के काल में विद्रोह किया
- सिक्खों के पांचवे गुरु अर्जुन देव ने खुसरो को आशीर्वाद दिया था
- अत: जहागीर ने अर्जुन देव की हत्या करवा दी थी
- मान बाई ने 1604 ई. में सलीम ( जहागीर ) व खुसरो के अत्याचारों से दुखी होकर आत्महत्या की
- इस विवाह के पश्चात अकबर ने भगवंतदास को 5000 का मनसबदार बनाया तथा अमीर-उल-उम्र का पद प्रदान किया
- 1589 ई. में लाहोर में भगवंतदास की मृत्यू हुई
- मानसिंह कछवाहा ( 1589-1614 ई. ) —————–
- अगले भाग —————– Topik-27 में
- FAQ —
- प्रशन – जयपुर राजवंश की स्थापना किसने की ?
- उतर – जयपुर में कछवाहा वंश का संस्थापक दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण को माना जाता है
- दुल्हेराय का शासन काल 1137-1170 ई. तक था
- यह मूलत: नरवर ( मध्यप्रदेश ) के सोढासिंह के पुत्र था
- दुल्हेराय ने अपनी राजधानी दोसा को बनाया
- उतर – जयपुर में कछवाहा वंश का संस्थापक दुल्हेराय / धोलेराय / तेजकरण को माना जाता है
- प्रशन – जयपुर राजवंश के कुलदेवता कोन थे ?
- उतर –
- जयपुर के कछवाहा वंश की कुलदेवी जमुवाय माता थी जिन्हें बड्वाय माता भी कहा जाता है
- जमुवाय माता / बडवाय माता
- मन्दिर ——– जमुवा रामगढ़ ( जयपुर )
- निर्माण —— दुल्हेराय ने
- जमुवा रामगढ़ का प्राचीन नाम ——- मांच प्रदेश था
- यंहा मीणा जाती का शासन था
- मीणाओ को दुल्हेराय ने पराजीत कर यहा जमुवाय माता का मन्दिर बनवाया
- प्रशन – जयपुर राजवंश के आराध्य देव / इष्ट देवता कोन थे ?
- उतर
- जयपुर के कछवाहा राजवंश की आराध्य देवी शिलादेवी थी
- मन्दिर ———- आमेर ( जयपुर )
- निर्माण ——– मानसिंह प्रथम
- इस मन्दिर की मूर्ति बंगाल के राजा केदार को पराजीत कर जस्सोर नामक स्थान से मानसिंह लेकर आये थे
- मन्दिर का जीर्णोद्धार ——– रामसिंह द्वितीय
- देवी के मन्दिर में ढाई प्याले शराब चढाई जाती है जिसे चरनामृत कहा जाता है
- प्रशन – जयपुर राजवंश की स्थापना किसने की ?