जयपुर का इतिहास : कछवाहा राजवंश Topik-27
हमने पीछे के भाग में जयपुर का इतिहास शुरू से लेकर भगवंतदास तक पढ़ा था , भगवंतदास के समकालीन मुग़ल बादशाह अकबर था , अकबर ने भगवंतदास को गुजरात अभियान पर भेजा , गुजरात के इब्राहीम हुसेन मिर्जा को पराजीत किया , 1589 ई. में भगवंतदास की लाहोर में मृत्यू हुई , आगे का जयपुर का इतिहास निम्नलिखित है ——-
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जयपुर का इतिहास
- मानसिंह कछवाहा प्रथम ( 1589-1614 ई. ) —————–
- जन्म —————-
- 1550 ई.
- मोजमाबाद में
- 12 वर्ष की आयु में 1562 ई. में अकबर की सेवा में उपस्थित हुआ
- अकबर ने मानसिंह कछवाहा प्रथम को 7000 का मनसब प्रदान किया
- राजपुत शासको में सर्वाधिक मनसब मानसिंह कछवाहा प्रथम का था
- मुगल दरबार में यह मनसब प्राप्त करने वाला दूसरा व्यक्ति मिर्जा अजीज कोका था
- मानसिंह कछवाहा प्रथम के समकालीन मुग़ल शासक —————-
- अकबर
- जहागीर
- मानसिंह ने बंगाल , उड़ीसा , बिहार ,काबुल व गुजरात पर अधिकार किया और उसे मुग़ल साम्राज्य का भाग बनाया
- मानसिंह कछवाहा प्रथम के निर्माण कार्य / स्थापत्य कला —————-
- शिलादेवी मन्दिर का निर्माण करवाया —————- आमेर
- जगताशिरोमणी मन्दिर —————- आमेर
- मानसिंह प्रथम की पत्नी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह प्रथम की स्मृति में जगतशिरोमणी मन्दिर का निर्माण करवाया
- पंच महल —————- बेराठ ( जयपुर )
- यह महल अकबर की विश्राम स्थली के रूप में बनाया गया
- बिहार में —————- माननगर बसाया
- यंहा पर रोहतासगढ़ के भव्य महलो का निर्माण करवाया
- गोविन्द देव जी का मन्दिर —————- वृन्दावन
- गया जी ( बिहार ) में —————- महादेव मन्दिर का निर्माण करवाया
- बैकंटपुर ( पटना ) में —————- हरिहर मन्दिर का निर्माण
- बंगाल में —————————- अकबरपुर नगर बसाया
- यह आमेर दुर्ग का आधुनिक निर्माता था
- कदमी महलो का आधुनिक निर्माता
- मानसिंह प्रथम द्वारा लाहोर से —————- ब्ल्यू पोटरी कला को आमेर लाया गया
- इन्ही के काल में मीनाकारी कला का आगमन हुआ
- पुष्कर में ——————————– मानमहल
- मानसिंह कछवाहा प्रथम की प्रमुख रचनाये ( साहित्य ) —————-
- राय मुरारी दास —————-
- मान-प्रकास
- मान चरित्र
- जगननाथ —————- मानप्रकाश कीर्ति मुक्तावली
- दलपतराज —————-
- पवन-पश्चिम
- पत्र-प्रशस्ति
- मानसिंह प्रथम के काल में ही इनके भाई माधोसिंह के आश्रित कवी विट्ठल नाथ पुंडरिक ने निम्नलिखित ग्रन्थ की रचना की ———
- विट्ठलनाथ पुंडरिक —————-
- रागमंजरी
- रामचन्द्रोदय
- रागमाला
- दुनी-प्रकाश
- नर्तन मंजरी
- राय मुरारी दास —————-
- मानसिंह कछवाहा प्रथम के दरबारी विद्वान —————-
- हापा बारहठ
- जगननाथ
- हरनाथ
- राय मुरारीदास
- विट्ठलनाथ पुंडरिक
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- मानसिंह कछवाहा प्रथम के प्रमुख सैनिक अभियान —————-
- गुजरात अभियान ( 1572 ई. ) —————-
- इस अभियान में मानसिंह प्रथम ने सरनाल का युद्ध जीता
- इसी अभियान के दोरान —-
- बांसवाडा शासक —-प्रतापसिंह व
- डूंगरपुर शासक —–आसकरण
- इन दोनों को मानसिंह कछवाहा प्रथम ने पराजीत कर अकबर के अधीन किआ
- काबुल अभियान ( 1581 ई. ) —————-
- इस अभियान में मानसिंह प्रथम ने हाकिम खा सुर को पराजीत किया
- 1585 ई. में मानसिंह प्रथम को काबुल का सूबेदार नियुक्त किया गया
- 1589 ई. में मानसिंह प्रथम को सिंध ( सिस्तान ) का सूबेदार नियुक्त किया गया
- बिहार अभियान ( 1587 ई. ) —————-
- इस अभियान के दोरान मानसिंह प्रथम ने बिहार शासक पूर्णमल को पराजीत किया
- खड़गपुर शासक संग्रामसिंह को पराजीत किया
- इस अभियान में मानसिंह प्रथम ने हाजीपुर शासक गणपत को पराजीत किया
- उड़ीसा अभियान ( 1592 ई. ) —————-
- इस अभियान में मानसिंह प्रथम ने उड़ीसा शासक नासिर खा को पराजीत किया
- बंगाल अभियान ( 1594 ई. )—————-
- इस अभियान में मानसिंह प्रथम ने कुच बिहार के शासक लक्ष्मीनारायण को पराजीत किया
- पूरी बंगाल के राजा केदार को पराजीत कर 1604 ई. में जस्सोर नामक स्थान से शिलादेवी शीलादेवी की मूर्ति आमेर लेकर आये
- मानसिंह प्रथम —————- 3 बार ( 1594-1605 ई. तक ) बंगाल के गवर्नर बने
- बंगाल की राजधानी टंडा से हटाकर राजमहल को बनाया
- 1596 ई. को मानसिंह प्रथम अजमेर लोटे
- बंगाल की सुबेदारी 1596-1599 ई. तक जगतसिंह प्रथम को सोंपी
- बंगाल की सुबेदारी —————-मानसिंह प्रथम ( 1594-1605 ई. तक )
- 1594-96 तक —————- मानसिंह प्रथम
- 1596-99 तक —————- जगतसिंह प्रथम
- 1599 ई. में जगतसिंह प्रथम की मृत्यू हुई
- 1599-1605 —————- महासिंह
- महासिंह , मानसिंह प्रथम के पुत्र थे
- 1605 ई. में अकबर की मृत्यू के बाद मानसिंह प्रथम ने बंगाल की सुबेदारी छोड़ी
- अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए दुसरे दुतमंडल / शिष्ठमंडल का नेतृत्व देकर मानसिंह प्रथम को भेजा था
- प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी युद्ध में मुग़ल सेना का नेतृत्व मानसिंह प्रथम ने किया था
- अकबर ने मानसिंह प्रथम को प्रथम श्रेणी का मनसबदार बनाया था
- जहागीर के समय मानसिंह मुग़ल दरबार में दूसरी श्रेणी का मनसबदार बनाया गया
- जहागीर के शासन काल में 1614 ई. में अहमदनगर अभियान के दोरान एलिचपुरा ( महाराष्ट्र ) नामक स्थान पर मानसिंह प्रथम की मृत्यू हुई
- मानसिंह प्रथम की मृत्यू —————- 16 जुलाई 1614 ई. को हुई
- मानसिंह प्रथम के उतराधिकारी भावसिंह थे
- गुजरात अभियान ( 1572 ई. ) —————-
- जन्म —————-
- भावसिंह कछवाहा ( 1614-1621 ई. )—————-
- यह जहागीर के समकालीन था
- भावसिंह को 2000 का मनसब प्रदान किया गया
- मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ( 1621-1667 ई. ) —————-
- सर्वाधिक लम्बी अवधि तक शासन करने वाला आमेर शासक मिर्जा राजा जयसिंह था
- मिर्जा राजा जयसिंह ने 3 मुगल बादशाहों के काल में अपनी सेवाए दी थी —————-
- जहागीर —————- ( 1605-1627 ई. )
- शाहजहा —————- ( 1627-1658 ई. )
- ओरंगजेब —————- ( 1658-1707 ई. )
- मिर्जा राजा की उपाधि —————- शाहजहा ने कंधार अभियान पर भेजते समय दी थी
- मिर्जा राजा जयसिंह कालीन स्थापत्य कला —————-
- आमेर में —————-
- दीवान-ए-खास
- दीवान-ए-आम
- केसर क्यारी
- जयसिंह ने चिल्ह का टीला नामक पहाड़ी पर जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया
- इस जयगढ़ दुर्ग में तोपखाने का निर्माण करवाया
- जयसिंह ने कंधार में जगा महल का निर्माण करवाया
- आमेर में —————-
- मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी साहित्यकार —————-
- कवी बिहारी —————-
- रचना —— बिहारी सतसई
- राय कवी —————-
- रचना ——– जयसिंह चरित्र
- कुलपति मिश्र —————-
- ये कवी बिहारी का भांजा थे
- इन्होने कुल 52 ग्रंथो की रचना की थी
- कवी बिहारी —————-
- मिर्जा राजा जयसिंह के प्रमुख सेनिक अभियान —————-
- जहागीर ने मिर्जा राजा जयसिंह को मराठो के विरुद्ध दक्षिण-भारत अभियान पर भेजा था
- शाहजहा ने जयसिंह को जाटो के विरुद्ध भेजा था
- शाहजहा ने जयसिंह को कंधार अभियान पर भेजते समय मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की
- शाहजहा के चारो पूत्रो के बीच उतराधिकार संघर्ष में जयसिंह ने दारासिकोह का साथ दिया था
- दारा सिकोह ने मज्ज्म-उल-बहरीन नामक पुस्तक की रचना की जिसका अर्थ है —- दो समुन्दरो का मिलन
- दारा सिकोह ने 52 उपनिषदों का फारसी में अनुवाद करवाया जिसे सिर्र-ए-अकबर भी कहा जाता है
- ओरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह को शिवाजी के विरुद्ध भेजा
- 25 जून 1658 ई. को मथुरा ( उतरप्रदेश ) में मिर्जा राजा जयसिंह ने ओरंगजेब से मुलाकात कर इनकी अधीनता स्वीकार की
- मराठा के विरुद्ध ओरंगजेब काल में अभियान —————-
- शिवाजी व शम्भाजी के विरुद्ध ओरंगजेब ने मिर्जा राजा जयसिंह व दिलेर खा के नेतृत्व में 30 सितम्बर 1664 ई. को सेना भेजी
- मिर्जा राजा जयसिंह ने मराठो के तिन प्रमुख दुर्गो का —-
- वज्रगढ़
- माची ( शिवाजी का शस्त्रागार )
- एवं पुरन्दर का 2 माह तक घेराव
- इन तीनो दुर्गो का 14 अप्रैल 1665 ई. तक घेराव रखा
- इस कारण विवश होकर शिवाजी ने मिर्जा राजा जयसिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा —————-
- पुरंदर की संधि ( 11 जून 1665 ) —————-
- यह संधि मिर्जा राजा जयसिंह व शिवाजी के मध्य हुई थी
- इस संधि के तहत पहली बार शिवाजी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार की
- संधि की शर्ते —————-
- शिवाजी के पास स्थित कुल 35 दुर्गो में से 23 दुर्ग मुगलों को देने होंगे
- शिवाजी का पुत्र शम्भाजी मुग़ल सेवा में उपस्थित होगा एवं 5000 का मनसब रखेगा
- 4 लाख वार्षिक आय वाला हुण का क्षेत्र मुगलों को सोंपा जायेगा
- आवश्यकता होने पर / बुलाने पर शिवाजी को स्वयं को मुग़ल सेवा में उपस्थित होना होगा
- इस संधि का आँखों देखा हाल का वर्णन इटली के यात्री मनुची ने अपने ग्रन्थ सटोरियो-डो-मोगोर में किया है
- 19 मई 1666 ई.को शिवाजी मुगल दरबार में शामिल होने हेतु आगरा ( उतरप्रदेश ) आये लेकिन उचित मान-सम्मान न मिलने पर एवं बंधक बनाये जाने के भय से पुन: लोट गये
- मिर्जा राजा जयसिंह ने 11-15 मार्च 1659 ई. में दोराई ( अजमेर ) युद्ध मेंओरंगजेब की सेना में हरावल सेनापति के रूप में युद्ध किया
- मिर्जा राजा जयसिंह ने जोधपुर शासक जसवन्तसिंह को भी ओरंगजेब की तरफ मिलाया
- बीजापुर अभियान —————
- 1666 ई. में
- मिर्जा राजा जयसिंह को ओरंगजेब ने बीजापुर अभियान पर आदिल शाह के विरुद्ध भेजा था
- यह मिर्जा राजा जयसिंह का अंतिम सैनिक अभियान था
- मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यू —————
- मिर्जा राजा जयसिंह व इनके पुत्र पृथ्वीसिंह को ओरंगजेब ने विष देकर ओरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) में 1667 ई. में हत्या की
- गोपीनाथ शर्मा के अनुसार ————— ओरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) में 1667 ई. में हुई
- बोर्ड पुस्तक के अनुसार ————— 1668 ई. में हुई
- जादुनाथ सरकार के अनुसार मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यू उसी प्रकार हुई जिस प्रकार एलिजाबेथ के दरबार में बालासिंघम की हुई थी
- रामसिंह प्रथम ( 1667-1689 ई. ) —————
- रामसिंह को ओरंगजेब ने कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नही दी थी
- क्युकी रामसिंह की हवेली ( जयपुर भवन ) जयपुर में बंदी शिवाजी की निगराणी का दायीत्व ओरंगजेब ने रामसिंह को सोंपा था
- किन्तु शिवाजीयंहा से भागने में सफल हुए थे
- विशन सिंह ( 1689-1700 ई. ) —————
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- यह आमेर के प्रथम शासक थे जिनके शासन काल में आमेर की किलेबंदी की गयी
- ओरंगजेब ने विशनसिंह के पुत्र विजयसिंह का नाम बदलकर जयसिंह रखा
- और सवाई की उपाधि प्रदान की
- विशनसिंह के उतराधिकारी सवाई जयसिंह
- सवाई जयसिंह द्वितीय ( 1700-1743 ) —————
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