जोधपुर का इतिहास : राठौड़ राजवंश Topik-33
हमने पीछे के भाग में जोधपुर का इतिहास शुरू से लेकर राव मालदेव तक का इतिहास पढ़ा था , राव मालदेव का शासन काल 1532-1562 ई. तक था ,इनका राज्याभिषेक 5 जून 1532 ई. को सोजत ( पाली ) में हुआ था , मालदेव राठोड को 52 युद्धों का विजेता माना जाता है , मालदेव की मृत्यू 1562 ई. में गुन्दोज गाँव में हुई थी , इनकी रूठी रानी उमा दे महासती हुई , मालदेव के बाद राव चन्द्रसेन शासक बने , आगे का जोधपुर का इतिहास का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है ———
.
.
जोधपुर का इतिहास
- राव चन्द्रसेन ( 1562-1581 ई. ) —————–
- यह राव मालदेव का पुत्र था
- राव मालदेव ने रानी स्वरूप देवी के आग्रह पर छोटे पुत्र चन्द्रसेन को उतराधिकारी घोषित किया
- राव चन्द्रसेन की उपाधिया—————–
- मारवाड़ का प्रताप
- प्रताप का पथ-प्रदर्शक
- प्रताप का अग्रगामी
- विस्मृत नायक
- राजस्थान का भुला-बिसरा राजा
- चन्द्रसेन के समकालीन मुग़ल बादशाह अकबर था
- चन्द्रसेन के भाई रामसिंह और उदयसिंह अकबर की शरण में गये थे
- अकबर ने हुसेन कुली खा के नेतृत्व में 1564 ई. में चन्द्रसेन के विरुद्ध सैन्य अभियान भेजा था
- अकबर ने जोधपुर पर अधिकार कर प्रशासक हुसेन कुली खा को नियुक्त किया
- चन्द्रसेन ने भद्राजुन में शरण ली और इसे प्रशासनिक केंद्र बनाया
- नागोर दरबार —————–
- 3 नवम्बर 1570 ई. में
- अकबर ने भारमल के सहयोग से नागोर के दुर्ग में यह दरबार लगाया था
- अकबर ने शुक्र तालाब का निर्माण करवाया
- उद्देश्य ———
- अकाल राहत कार्य के बहाने मारवाड़ के राजाओ को अधीन करना था
- नागोर दरबार में निम्नलिखित शासको ने अकबर की अधीनता स्वीकार की —–
- बीकानेर के राव कल्याणमल ने ——— बिना युद्ध किये अधीनता स्वीकार की
- जेसलमेर के हरराय भाटी ने ———–बिना युद्ध किये अधीनता स्वीकार की
- बूंदी के सुर्जन हाडा ने —————- युद्ध में पराजीत होकर अधीनता स्वीकार की
- चन्द्रसेन के भाई रामसिंह व उदयसिंह भी अधीनता स्वीकार करने हेतु नागोर दरबार में उपस्थित हुए
- नागोर दरबार में चन्द्रसेन भी उपस्थित हुए थे लेकिन उचित सम्मान नही होने के कारण बिना सुचना दिए भद्राजुन लोट आये थे
- चन्द्रसेन ने नागोर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार नही की
- चन्द्रसेन को आर्थिक संकट के कारण पोकरण का क्षेत्र जेसलमेर के शासक हरराय भाटी के पास गिरवी रखना पड़ा था
- कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के उत्सव के समय चन्द्रसेन भी उपस्थित हुए थे
- 1571 ई. में अकबर ने हुसेन कुली खा के नेतृत्व में सेना भेजी थी
- 30 अक्टूबर 1572 ई. को अकबर ने चन्द्रसेन के छोटे भाई रामसिंह को जोधपुर का प्रशासक बनाया
- मुग़ल सेनिक अभियान के समय राव चन्द्रसेन का निर्वासित काल —————–
- भद्राजुन
- सोजत ——–
- सोजत पर कल्लाजी राठोड का अधिकार था
- कल्लाजी राठोड राव चन्द्रसेन के भतीजे थे
- 1573 ई. में हुसेन कुली खा द्वारा सोजत पर अधिकार कर लिया गया
- 1579 ई. में चन्द्रसेन ने सोजत पर पुन: अधिकार किया
- सिवाणा ——–
- 1575 ई. में शाहबाज खा ने सिवाणा पर अधिकार किया था
- सिवाणा छोड़ते समय चन्द्रसेन ने सिवाणा का प्रशासक फता राठोड को बनाया था
- सारण की पहाड़िया ( सोजत )
- संचियाप ( पाली )
- संचियाप में ही राजपूत सरदार बेरीसाल द्वारा भोजन में विष दिए जाने के कारण 11 जनवरी 1518 ई. को चन्द्रसेन राठोड की मृत्यू हुई थी
- चन्द्रसेन का स्मारक ——–
- सारण की पहाड़िया , सोजत में बना हुआ है
- चन्द्रसेन की अश्वरोही प्रतिमा के साथ 5 महिलाये खड़ी है
- मारवाड़ में सर्वप्रथम छापामार युद्ध पद्दति से युद्ध राव चन्द्रसेन ने किया था
- इतिहासकार रामसिंह सोलंकी एवं विश्वेश्वर नाथ रेऊ ने चन्द्रसेन को ——– मारवाड़ का प्रताप कहा है
- मुहणोत नेणसी ने राव चन्द्रसेन को ——– राजस्थान का भुला-बिसरा शासक कहा है
- 1581-1583 ई. तक 2 वर्ष तक अकबर द्वारा जोधपुर को खालसा के अंतर्गत रखा गया था
- मोटाराजा उदयसिंह ( 1583-1595 ई. ) —————–
- उपाधि ——– मोटाराजा
- मोटाराजा की उपाधि अकबर ने प्रदान की थी
- मोटाराजा उदयसिंह ने अपनी पुत्री जगत गुसाई / जोधा बाई का विवाह अकबर के पुत्र सलीम के साथ किया था
- सलीम और जोधा बाई का पुत्र खुर्रम ( शाहजहा ) था
- मुगलों की अधीनता स्वीकार कर सर्वप्रथम वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने वाला मारवाड़ का प्रथम शासक मोटाराजा उदयसिंह था
- अकबर ने उदयसिंह को 1000 का मनसब प्रदान किया था
- मोटाराजा उदयसिंह के पुत्र किशनसिंह ने 1610 ई. में किशनगढ़ बसाया था
- किशनसिंह ने किशनगढ़ के राठोड वंश की स्थापना की थी
- उपाधि ——– मोटाराजा
- सुरसिंह ( 1595-1619 ई. ) —————-
- सुरसिंह 2 मुग़ल बादशाह के समकालीन था —————-
- अकबर
- जहागीर
- अकबर ने सुरसिंह को सवाई राजा की उपाधि एवं 2000 का मनसब प्रदान किया
- जहागीर ने सुरसिंह को 3000 और 5000 का मनसबदार बनाया था
- जहागीर के 10 वर्ष के शासन काल पूर्ण होने पर सुरसिंह ने जहागीर को 1615 ई. में 2 हाथी भेंट किये थे —————-
- रण रावत
- फोज श्रंगार
- सुरसिंह के निर्माण कार्य —————-
- सूरसागर तालाब का निर्माण करवाया
- मोतीमहल का निर्माण करवाया
- सूरजकुंड का निर्माण करवाया
- रामेश्वर महादेव मन्दिर का निर्माण करवाया
- सुरसिंह 2 मुग़ल बादशाह के समकालीन था —————-
- महाराजा गजसिंह ( 1619-1638 ई. ) —————-
- गजसिंह 2 मूगल बादशाह के समकालीन था ——–
- जहागीर
- शाहजहा
- जहागीर ने दक्षिणी भारत में बीजापुर और गोलकुंड के विरुद्ध गजसिंह के नेतृत्व में सैन्य अभियान भेजा था
- इस अभियान में गजसिंह ने हरावल का नेतृत्व किया था
- इस अभियान में वीरतापूर्ण प्रदर्शन के कारण जहागीर ने गजसिंह को दलथम्मन की उपाधि प्रदान की
- महाराजा की उपाधि जहागीर ने प्रदान की थी
- गजसिंह के दरबारी विद्वान —————-
- हेमकवी ने गुणभाषा चित्र की रचना की
- शिवदास गाड़ण ने गजगुणरूपक की रचना की
- गजसिंह के 2 पुत्र —————-
- अमरसिंह
- जसवंतसिंह
- गजसिंह का पुत्र अमरसिंह राठोड 1628 ई. में शाहजहा की शरण में चला गया
- शाहजहा ने जोधपुर रियासत से प्रथक कर नागोर का शासक अमरसिंह राठोड को बनाया
- अमरसिंह राठोड को कटार का धणी कहा जाता है
- अमरसिंह राठोड ने बक्सी सलावत खा की हत्या की थी जब मतीरे की राड के समय शाहजहा से नही मिलने दिया था तब हत्या कर दी
- मतीरे की राड —————-
- स्थान ——– जाखनिया ( नागोर ) एवं सिलवा गाँव ( बीकानेर ) की सीमा पर
- नागोर के अमरसिंह और बीकानेर के कर्णसिंह के मध्य मतीरे को लेकर युद्ध हुआ
- विजेता —————-कर्णसिंह
- मतीरे की राड का वर्णन काशी छत्राणी द्वारा लिखित ग्रन्थ —————- छत्रपति रासो में मिलता है
- गजसिंह 2 मूगल बादशाह के समकालीन था ——–
- महाराजा जसवंत सिंह प्रथम ( 1638-1678 ई. ) —————-
- जन्म —————— 1626 ई.
- धाय मा —————- रूपा धाय
- राज्याभिषेक ———————
- 1638 ई. में
- आगरा में हुआ
- जसवंतसिंह अल्पआयु होने के कारण जोधपुर मंत्री राजसिंह को नियुक्त किया गया
- राजसिंह आसोप के ठाकुर थे
- 1640 ई. में जसवंतसिंह प्रथम ने राजगद्दी संभाली
- शाहजहा ने जसवंतसिंह को 4000 जात एवं सवार का मनसब प्रदान किया
- महाराजा की उपाधि शाहजहा ने दी थी
- जसवंतसिंह प्रथम के समकालीन मुग़ल शासक ——————
- शाहजहा
- ओरंगजेब
- शाहजहा के चारो पुत्रो के बीच उतराधिकार संघर्ष शुरू हुआ ———
- दाराशिकोह
- सुजाशाह
- मुराद
- ओरंगजेब
- धरमत का युद्ध ———
- 16 अप्रैल 1658 ई. में
- स्थान ——— मध्यप्रदेश
- यह युद्ध दाराशिकोह एवं ओरंगजेब के मध्य हुआ
- विजेता ——— ओरंगजेब
- ओरंगजेब ने धरमत का नाम बदलकर फतियाबाद रखा था
- इस युद्ध में जसवंतसिंह ने दाराशिकोह का साथ दिया था परन्तु कासिम खा के विशवास घात के कारण पराजीत होकर जोधपुर लोट आये थे
- एक मान्यता के अनुसार इस समय इनकी रानी जसवंत दे / कर्मावती ने किले का फाटक नही खोला था
- सामुगढ़ का युद्ध ———
- 29 मई 1658 ई. में
- स्थान ——— उतरप्रदेश
- यह युद्ध भी दाराशिकोह एवं ओरंगजेब के मध्य हुआ
- इस युद्ध को जुलाई 1658 ई. में जीतकर ओरंगजेब ने राज्याभिषेक करवाया
- 13 अगस्त 1658 ई. में जसवंतसिंह प्रथम ने आगरा के निकट ओरंगजेब की सेवा में उपस्थित हुए
- ओरंगजेब ने जसवंतसिंह प्रथम को सम्मान स्वरूप कुछ समय के लिए गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया
- खजुहा का युद्ध ———
- 5 जनवरी 1659 ई. में
- स्थान ——— इलहाबाद के निकट , उतरप्रदेश
- यह युद्ध ओरंगजेब और उनके भाई शाहसुजा के मध्य हुआ
- इस युद्ध में जसवंतसिंह ने ओरंगजेब का साथ दिया था परन्तु स्वयं की सम्मानजनक स्थिति न पाकर विद्रोह करके जोधपुर लोट आये
- दौराई का युद्ध ———
- 14 मार्च 1659 ई. को हुआ
- स्थान ——— अजमेर
- यह युद्ध ओरंगजेब और दाराशिकोह के मध्य हुआ था
- विजेता ——— ओरंगजेब
- दोराई के युद्ध के पश्चात ओरंगजेब ने दाराशिकोह की हत्या की थी
- ओरंगजेब ने जसवंतसिंह को 1662-65 तक पुना का प्रशासक बनाया और शिवाजी के विरुद्ध भेजा था परन्तु जसवंतसिंह असफल हुए
- जसवंतसिंह की प्रमुख रचनाये ———
- भाषा-भूषण ———
- नगर प्रचारिणी सभा बनारस द्वारा प्रकाशित किया गया
- आनन्द विलास
- गीता महात्म्य
- नाइ का भेद ( नाटक )
- प्रबोध चन्द्रोदय ( नाटक )
- अपरोक्ष सिद्दांत
- सिद्दांत सार
- सिद्दांत बोध
- भाषा-भूषण ———
- जसवंतसिंह प्रथम के प्रमुख साहित्यकार ———
- जसवंतसिंह प्रथम के काव्य गुरु —————— सुरती मिश्र थे
- दलपत मिश्र ——— ——— जसवंत उधोग की रचना की
- नविन कवि ——— ——— जसवंत विलास की रचना की
- नरहरिदास ——— ——— अमरसिंह राठोड रा दुहा
- मुहणोत नेणसी ——— ———
- नेणसी री ख्यात ———
- यह डिंगल भाषा में है
- मारवाड़ के क्रमबद्ध इतिहास का उल्लेख इस ग्रन्थ में मिलता है
- इसमें मारवाड़ की जनसंख्या का भी उल्लेख है
- मारवाड़ री परगना री विगत ———
- इस ग्रन्थ को राजस्थान का गजेटियर / जेवर भी कहा जाता है
- मुहणोत नेणसी को मुंशी देवीप्रसाद ने राजस्थान का अबुल-फजल कहा है
- इन्हें जनगणना का अग्रज भी माना जाता है
- 29 दिसम्बर 1667 ई. में मुहणोत नेणसी एवं सुन्दरदास को कैदकर 1 लाख रूपये के गबन का आरोप लगया था
- 1670 ई. में मुहणोत नेणसी ने आत्महत्या की थी
- नेणसी री ख्यात ———
- जसवंतसिंह प्रथम के निर्माण कार्य ——————
- जसवंतसिंह ने ओरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) के पास जसवंत नगर बसाया
- और जसवंत सागर तालाब का निर्माण करवाया
- जसवंतसिंह प्रथम की रानी अतिरंग दे ने जनासगर तालाब का निर्माण करवाया
- इस तालाब को शेखावत जी का तालाब भी कहते है
- जसवंतसिंह प्रथम की रानी जसवंत दे ने ——————
- रातानाडा में कल्याण सागर तालाब का निर्माण करवाया
- राइका बाग पैलेस का निर्माण करवाया
- यह स्वामी दयानंद सरस्वती का उपदेश स्थल
- कागा उधान , मंडोर
- अनार का बगीचा लगवाया जिसमे उन्नत किस्म के बीज काबुल से लाये गये
- इस बगीचे को संभालने वाला चतरा गहलोत था
- जसवंतसिंह ने ओरंगाबाद ( महाराष्ट्र ) के पास जसवंत नगर बसाया
- 1678 ई. को जसवंतसिंह प्रथम की अफगानिस्तान के जमरूद नामक स्थान पर मृत्यू हुई
- जसवंत सिंह प्रथम की मृत्यू पर ओरंगजेब ने कहा था ——————
- आज कुफ्र का दरवाजा ढह गया
- कुफ्र का अर्थ ——— धर्म विरोधी
- आज कुफ्र का दरवाजा ढह गया
- जसवंत सिंह प्रथम की मृत्यू के समय इनकी 2 रानिया गर्भवती थी
- जसवंत दे ने —-19 फरवरी 1679 ई. को ——– अजीतसिंह को जन्म दिया
- नरुका रानी ने ———— दलखमन ———- मृत्यू हुई
- ओरंगजेब ने जसवंतसिंह की मृत्यू के उपरांत इनकी रानी जसवन्त दे और इनके पुत्र अजीतसिंह को मनसब के बहाने दिल्ली बुलाकर इन्हें रूपसिंह की हवेली में नजरबंद किया था
- ओरंगजेब ने जोधपुर का प्रशासक अमरसिंह राठोड के पोत्र इन्द्रसिंह को बनाया
- गोराधाय ( इसे मारवाड़ की पन्ना धाय कहते है ) , दुर्गादास राठोड एवं मुकुंददास खिची ने कालबेलिया के वेश में दिल्ली पहुचकर 23 जुलाई 1679 ई. को अजीतसिंह व रानी जसवन्त दे को मुक्त करवाया था और महाराणा राजसिंह के पास शरण ली थी
- मेवाड़ महाराणा राजसिंह ने अजीतसिंह के लालन -पालन हेतु केलवा की जागीर सुपुर्द की
- दिसम्बर 1679 ई. में अजीतसिंह को कालिंद्री गाँव ( सिरोही ) ले जाया गया जंहा पुष्करणा ब्रहामन जयदेव के घर पर अजीतसिंह का पालन-पोषण हुआ
- 1679 से 1707 ई. तक ओरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित किया
- 1687 ई. में अजीतसिंह को सर्वप्रथम सभी मारवाड़ सरदारों के सामने उपस्थित किया गया
- 1681 ई. में अकबर द्वितीय ने खुद को बादशाह घोषित कर ओरंगजेब का विरोध किया
- 1687 ई. में इनायत खा से समझोता कर अजीतसिंह को सिवाना सुपुर्द किया
- फरवरी 1707 ई.. में ओरंगजेब की मृत्यू हुई
- अजीतसिंह जजाऊ युद्ध 1707 ई. में आजम के समर्थन में लड़े थे
- मार्च 1707 ई. में जोधपुर प्रशासक जफर कुली खा को पराजीत किया
- और 19 मार्च 1707 ई. को अजीतसिंह ने जोधपुर गढ़ में प्रवेश किया
- अजीतसिंह 1708 ई. में देबारी समझोते के पश्चात वास्तविक रूप से जोधपुर के शासक बनते है
- अजीतसिंह ( 1707-1724 ई. ) ——————
- अगले भाग में ——— ——— Topik-34 में