जोधपुर का इतिहास : राठौड़ राजवंश Topik-34
हमने पीछे के भाग में जोधपुर का इतिहास शुरू से लेकर जसवंतसिंह प्रथम तक का इतिहास पढ़ा था , 1678 ई. को जसवंतसिंह प्रथम की अफगानिस्तान के जमरूद नामक स्थान पर मृत्यू हुई ,जसवंत सिंह प्रथम की मृत्यू के समय इनकी 2 रानिया गर्भवती थी —जसवंत दे ने 19 फरवरी 1679 ई. को अजीतसिंह को जन्म दिया और नरुका रानी ने दलखमन को जन्म दिया जिनकी मृत्यू हुई , ओरंगजेब ने जसवंतसिंह की मृत्यू के उपरांत इनकी रानी जसवन्त दे और इनके पुत्र अजीतसिंह को मनसब के बहाने दिल्ली बुलाकर इन्हें रूपसिंह की हवेली में नजरबंद किया था ,गोराधाय ( इसे मारवाड़ की पन्ना धाय कहते है ) , दुर्गादास राठोड एवं मुकुंददास खिची ने कालबेलिया के वेश में दिल्ली पहुचकर 23 जुलाई 1679 ई. को अजीतसिंह व रानी जसवन्त दे को मुक्त करवाया था और महाराणा राजसिंह के पास शरण ली थी , 1678 -1707 ई. तक ओरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित किया , मार्च 1707 ई. में जोधपुर प्रशासक जफर कुली खा को पराजीत किया ,और 19 मार्च 1707 ई. को अजीतसिंह ने जोधपुर गढ़ में प्रवेश किया , अजीतसिंह 1708 ई. में देबारी समझोते के पश्चात वास्तविक रूप से जोधपुर के शासक बनते है आगे का जोधपुर का इतिहास निम्नलिखित है ——
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जोधपुर का इतिहास
- अजित सिंह ( 1707 -1724 ई. ) ————-
- जन्म —————– 19 फरवरी 1679
- पिता —————– जसवंतसिंह प्रथम
- माता —————– जसवंत दे
- ओरंगजेब ने जसवंतसिंह की मृत्यू के उपरांत इनकी रानी जसवन्त दे और इनके पुत्र अजीतसिंह को मनसब के बहाने दिल्ली बुलाकर इन्हें रूपसिंह की हवेली में नजरबंद किया था
- दुर्गादास राठोड ने अजीतसिंह एवं जसवंत दे को मुक्त कराया और राजसिंह की शरण में आये
- मेवाड़ के महाराणा राजसिंह ने अजीत सिंह और दुर्गादास को सरंक्षण दिया था
- महाराणा राजसिंह द्वारा अजीतसिंह को केलवा की जागीर दी गयी
- अजीतसिंह का पालन-पोषण मुकुंदराव खिंची के सरंक्षण में गोरा धाय द्वारा किया गया
- 1707 ई. में ओरंगजेब की मृत्यू के बाद दुर्गादास राठोड की सहायता से अजीतसिंह जोधपुर के शासक बने
- दुर्गादास राठोड ————
- जन्म ————-
- 13 अगस्त 1638 ई. में
- सालवा गाँव में
- विरासत गाँव ————- लूणवा
- ये जसवंतसिंह प्रथम के मंत्री आसकरण राठोड के पुत्र थे
- अजीतसिंह ने दुर्गादास राठोड के प्रति दुर्व्यवहार किया जिसके कारण दुर्गादास ने मेवाड़ के महाराणा की सेवा की
- मेवाड़ महाराणा ने दुर्गादास राठोड को विजयपुर की जागीर दी गयी
- उपनाम ——-
- मारवाड़ का चाणक्य
- मारवाड़ का अणबिंदिया मोती
- राठोड़ो का युलिसिज ( कर्नल जेम्स टॉड )
- राठोड वंश का उद्धारक
- दुर्गादास राठोड वीरता एवं स्वामिभक्ति हेतु प्रसिद्ध थे
- दुर्गादास राठोड की मृत्यू क्षिप्रा नदी के किनारे , उज्जेन ( मध्यप्रदेश ) में 22 नवम्बर 1718 ई. को हुई थी
- यही क्षिप्रा नदी के किनारे दुर्गादास राठोड का स्मारक बना हुआ है
- राजस्थान में दुर्गादास राठोड का स्मारक मसुरिया पहाड़ी , जोधपुर पर बना हुआ है
- जन्म ————-
- अजीत सिंह ने अपनी पुत्री इंद्र कुंवरी का विवाह मुग़ल बादशाह फर्रुखशियार के साथ किया था
- यह अंतिम राजपूत – मुग़ल विवाह माना जाता है
- फर्रुखशियार ने अजीत सिंह को राजेशवर की उपाधि प्रदान की
- अजीत सिंह ने अपनी दूसरी पुत्री सूरज कुंवरी का विवाह सवाई जयसिंह के साथ किया था
- G.H. ओझा ने अजीत सिंह को कान का कच्चा शासक कहा है
- अजीत सिंह के निर्माण कार्य ————-
- मेहरानगढ़ में फतेह महल का निर्माण करवाया
- जसवंतसिंह प्रथम का स्मारक बनवाया
- मंडोर में एक थम्बिया महल का निर्माण करवाया
- इसे प्रहरी मीनार भी कहते है
- 1724 ई. में बख्तसिंह ने अजीत सिंह की हत्या कर दी
- बख्तसिंह अजीत सिंह का पुत्र था
- राठोड़ो के दुसरे पितृहन्ता
- अजीत सिंह के साथ मोर , बन्दर एवं अन्य पशु-पक्षी जिन्दा जले थे
- बखतसिंह हत्या के पश्चात नागोर चला गया
- अजीत सिंह के बाद जोधपुर का शासक अभयसिंह बने
- अभयसिंह ( 1724-1741 ई. ) ————-
- अभयसिंह के काल में खेजडली घटना हुई थी
- खेजडली घटना ————-
- 28 अगस्त 1730 ई. में हुई
- अभयसिंह के हाकिम गिरधरदास ने खेजडली गाँव में वृक्षों की कटाई करवाई
- अमृता देवी विशनोई व इनके पति रामोजी विशनोई के नेतृत्व में 363 लोगो ने बलिदान दिया जिसे खड़ाना कहा जाता है
- प्रथम खड़ाना ———- 1661 ई. में जोधपुर के रामसडी गाँव में हुआ था
- 294 पुरुष + 69 महिलाए = 363 शहीद
- यह घटना भाद्रपद शुक्ल दशमी को हुई थी
- इनकी स्मृति में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 को खेजडली गाँव में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला का आयोजन होता है
- अभयसिंह का साहित्य क्षेत्र ————-
- सूरज प्रकाश ————- कवी करणीदान
- अभयोदय ————- जगजीवन भट्ट
- राजरूपक ————- वीरभाणा
- अमरचन्द्रिका ————- सुरती मिश्र
- बिहारी सतसई पर टिका की थी
- अभयसिंह ने फतेह पोल का निर्माण करवाया
- रामसिंह ( 1749-1751 ई. )
- बख्तसिंह ( 1751-1752 ई. )
- विजयसिंह ( 1752-1793 ई. ) ————-
- विजयसिंह शासक बनते ही अभयसिंह के पुत्र रामसिंह से विवाद प्रारम्भ हुआ —-
- विवाद स्थल——-नागोर
- विजयसिंह व रामसिंह के मध्य
- रामसिंह का साथ मराठाओ ने दिया
- विजयसिंह का साथ बीकानेर के गजसिंह एवं किशनगढ़ के बहादुरसिंह ने दिया था
- युद्ध अनिर्णायक रहा
- नागोर सन्धि ———
- 2 फरवरी 1756 ई. को हुई
- विजयसिंह एवं रामसिंह के मध्य हुई थी
- फतेहचंद सिंघवी व देवीसिंह की मध्यस्थता से यह संधि हुई
- इस संधि के तहत विजयसिंह ने रामसिंह को सोजत , मारोठ एवं जालोर सुपुर्द किया और मराठाओ को 50 लाख रूपये दिए
- विवाद स्थल——-नागोर
- विजयसिंह ने 1766 ई. में रेख-बाव कर लगाया
- 1766 ई. में विजयसिंह ने नाथद्वारा ( राजसमन्द ) जाकर वैष्णव धर्म को अपनाया
- विजयसिंह ने जोधपुर में मास मदिरा पर प्रतिबंध लगाया
- 1781 ई. में विजयसिंह ने मुग़ल बादशाह की अनुमति से सिक्को की टकसाल स्थापित की
- विजयसिंह ने जोधपुर गंगश्याम मन्दिर का निर्माण करवाया
- इन्होने जोधपुर में बालकृष्ण मन्दिर का निर्माण करवाया
- विजयसिंह को जहागीर का नमूना भी कहा जाता है
- विजयसिंह ने गुलाबराय को अपनी पासवान बनाया
- गुलाबराय को मारवाड़ की नूरजहा / राजस्थान की नूरजहा भी कहा जाता है
- गुलाबराय अणदाराम जाट की सेविका थी
- गुलाबराय ने 2 तालाबो का निर्माण करवाया —–
- गुलाब बाग का झालरा
- राणीसर तालाब
- विजयसिंह के समकालीन जयपुर के शासक सवाई प्रतापसिंह थे
- तुंगा का युद्ध —-1787 ई.
- पाटण का युद्ध —– 1790 ई.
- इन दोनों युद्धों में सवाई प्रतापसिंह का सहयोग किया ये दोनों युद्ध मराठाओ के विरुद्ध लड़े गये
- डांगावास का युद्ध —————-
- 1790 ई. में
- मेड़ता सिटी , नागोर
- विजयसिंह एवं मराठाओ ( लकवा दादा + डी बोइंन ) के मध्य
- विजेता ————- मराठा
- डांगावास युद्ध के पश्चात मराठाओ के साथ जनवरी 1791 ई. में सांभर संधि की
- डी-बोइंन की सेना को चेरी फोज ( लड़ाकू फोज ) कहा जाता था
- 1793 ई. में विजयसिंह की मृत्यू हुई
- विजयसिंह शासक बनते ही अभयसिंह के पुत्र रामसिंह से विवाद प्रारम्भ हुआ —-
- भीमसिंह ( 1793-1803 ई. ) ————-
- भीमसिंह की सगाई मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी के साथ हुई थी
- परन्तु विवाह से पहले ही भीमसिंह की मृत्यू हो गयी
- भीमसिंह के काल की रचना ————-
- भीम-प्रबंध ——
- भीम-प्रबंध की रचना हरिवंश भट्ट ने की थी
- यह संस्कृत भाषा में 20 सर्गो वाला ग्रन्थ है
- अलंकार समुच्चय ——– कवि रामकरन ने रचना की
- भीम-प्रबंध ——
- भीमसिंह ने अपना उतराधिकारी मानसिंह राठोड को बनाया
- 19 अक्टूबर 1803 ई. को भीमसिंह की मृत्यू हुई
- मानसिंह राठोड ( 1803-1843 ई. ) ————-
- मानसिंह ने जयपुर के जगतसिंह द्वितीय के साथ कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर गिंगोली का युद्ध किया
- जोधपुर के भीमसिंह राठोड की सगाई मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी के साथ हुई थी
- भीमसिंह की विवाह से पहले ही मृत्यू हुई
- अब मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने अपनी पुत्री की सगाई जयपुर के जगतसिंह द्वितीय के साथ कर दी
- कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर जगतसिंह द्वितीय ( जयपुर ) और मानसिंह राठोड ( जोधपुर ) के मध्य गिंगोली का युद्ध हुआ
- बाद में अमीर खा पिंडारी के कहने पर कृष्णा कुमारी को जहर दिया गया
- आसनाथ की भविष्यवाणी के परिणाम स्वरूप मानसिंह राठोड शासक बने
- मानसिंह ने आयसदेव नाथ को जयपुर बुलवाया और नाथ सम्प्रदाय को अपनाया
- मानसिंह ने जोधपुर में महामंदिर का निर्माण करवाया
- यह मन्दिर नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख मन्दिर माना जाता है
- मानसिंह राठोड ने मेहरानगढ़ ( जोधपुर ) में 1805 ई. में मान प्रकाश पुस्तकालय का निर्माण करवाया गया
- 1819 ई. में जोधपुर में मानसिंह राठोड की मुलाकात कर्नल जेम्स टॉड से हुई
- मानसिंह ने 1818 ई. में अंग्रेजो के साथ सहायक संधि कर अंग्रेजो की अधीनता स्वीकार की
- मानसिंह राठोड ने 1841 ई. में त्याग प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था
- मानसिंह ने जयपुर के जगतसिंह द्वितीय के साथ कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर गिंगोली का युद्ध किया
- तख्तसिंह ( 1843 -1873 ई. ) ————-
- तख्तसिंह के सम्मान में 17 तोपों की सलामी दी जाती थी
- आगरा दरबार में
- 1870 ई. में अजमेर दरबार के पश्चात तोपों की सलामी संख्या घटाकर 15 कर दी गयी
- मेयो कोलेज की स्थापना में तख्तसिंह ने 1 लाख रूपये का चंदा दिया था
- मारवाड़ में प्रचलित कन्या-वध प्रथा पर तख्तसिंह ने रोक लगाई थी
- इस प्रथा के लिए त्याग पता जिम्मेदार थी अथार्त त्याग प्रथा के कारण कन्या-वध होता था
- 1857 की क्रांति के समय तख्तसिंह ने अंग्रेजो का साथ दिया था
- तख्तसिंह के काल में बिथोड़ा का युद्ध हुआ था —–
- बिथोड़ा युद्ध में तख्तसिंह का सेनापति ओनाडसिंह पंवार मारा गया था
- नसीराबाद सैनिक छावनी से भागे अंग्रेज परिवारों को तखतसिंह ने शरण दी थी
- जोधपुर जाते समय अंग्रेज अधिकारी कर्नल पेननी का ह्रदयघात से निधन हो गया
- तख्तसिंह के निर्माण कार्य ————-
- जोधपुर में बिजोलिया महल का निर्माण करवाया
- कायलाना महलो का निर्माण करवाया
- पहाड़ी तलहटी महलो का निर्माण करवाया
- चामुण्डा माता मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया
- तख्तसागर तालाब का निर्माण करवाया
- मेहरानगढ़ में सीणगार चोकी / श्रंगार चौकी का निर्माण करवाया
- श्रंगार चौकी में जोधपुर के राजाओ का राजतिलक होता था
- 1873 ई. में तख्तसिंह की मृत्यू हुई
- तख्तसिंह के सम्मान में 17 तोपों की सलामी दी जाती थी
- जसवंत सिंह द्वितीय ( 1873-1895 ई. ) ————-
- इन्होने जसवन्त सागर तालाब का निर्माण करवाया
- यह जोधपुर का सबसे हरा-भरा क्षेत्र है
- इनके छोटे भाई सवाई प्रताप सिंह ने कायलाना झील / प्रताप सागर झील का निर्माण करवाया
- जसवंत सिंह द्वितीय के काल में पहली बार जोधपुर राज्य में जनगणना का कार्य हुआ
- जसवंत सिंह द्वितीय ने बिगोड़ी कर लगाया
- इस कर से प्राप्त राशी से बालसमंद नहर का निर्माण करवाया
- 1887 ई. में विक्टोरिया के 50 वर्ष का शासनकाल पूर्ण होने की अवधि में जुबली गोल्डन समारोह आयोजित किया
- जसवंत सिंह द्वितीय 1889-1891 ई. में 600 घुड़सवारो की एक सैन्य टुकड़ी बनाई जिसे सरदार रिसाला कहा गया
- जसवंत सिंह द्वितय ने जोधपुर से मालवा तक रेलवे लाइन बिछाने में योगदान दिया
- जसवंत सिंह द्वितीय का प्रधानमंत्री ——– सर प्रताप सिंह था
- 1873 ई. में जोधपुर में सुशासन स्थापित करने के लिए महकमा खास का गठन किया
- जसवंत सिंह द्वितीय का दरबारी विद्वान ————- यशवंत मुरारीदान बारहठ थे
- मुरारीदान बारहठ का ग्रन्थ ——– यशवंत यशोभुषण
- मुरारी दान ने जसवंत सिंह द्वितीय को कविराजा की उपाधि दी थी
- नमक संधि ————-
- 1879 ई. में
- जसवंत सिंह द्वितीय एवं अंग्रेजो के बीच यह संधि हुई
- इस संधि के तहत खारे पाणी की झीलों पर अंग्रेजो का अधिकार हुआ
- नोट —–
- प्रथम नमक संधि 1873 ई. में हुई थी
- अंग्रेजो व तख्तसिंह के बीच हुई किन्तु असफल रही
- जसवंत सिंह द्वितीय के काल में स्वामी दयानंद सरस्वती ने जोधपुर की यात्रा की
- जोधपुर शासक जसवंत सिंह द्वितीय की प्रेमिका नन्ही भगतन / नन्ही जान ने जगननाथ रसोइया के सहयोग से दयानंद सरस्वती को जहर दिया
- 1883 ई. में अजमेर में दयानंद सरस्वती जी का निधन हुआ
- 1895 ई. में जसवंत सिंह द्वितीय की मृत्यू हुई
- इन्होने जसवन्त सागर तालाब का निर्माण करवाया
- सरदार सिंह ( 1895-1911 ई. ) ————-
- सरदार सिंह ने 1900 ई. में चीन के बोक्सर विद्रोह का दमन करने में अंग्रेजो की सहायता की
- अत: मारवाड़ के ध्वज में चायना 1900 अंकित करवाने का सम्मान मिला
- सरदार सिंह ने अपने पिता जसवंत सिंह द्वितीय की स्मृति में 1906 ई. में मेहरानगढ़ के पास जसवंत थड़ा का निर्माण करवाया
- जसवंत थड़ा पूर्णत सफेद संगमरमर से बना है
- जसवंत थड़ा को राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है
- 1910 ई. में एडवर्ड रिलीफ फंड का गठन किया गया जिसमे 29000 रूपये का प्रावधान था
- यह रुपया जोधपुर की असहाय जनता को पेंसन के रूप में दिया गया
- 24 नवम्बर 1895 ई. को लार्ड एलिगन द्वारा जसवंत फिमेल अस्पताल का उद्घाटन करवाया
- 26 नवम्बर 1895 ई. में सरदार सिंह ने एलिगन से राजपूत स्कूल का उद्घाटन करवाया
- सरदार सिंह पोलो के शौकीन होने के कारण इनके काल में जोधपुर को पोलो का घर कहा जाता
- सरदार सिंह ने 1900 ई. में चीन के बोक्सर विद्रोह का दमन करने में अंग्रेजो की सहायता की
- सुमेर सिंह ( 1911-1918 ई. ) ————-
- सुमेर सिंह ने अंग्रेजो द्वारा 1911 में आयोजित दिल्ली दरबार में भाग लिया
- प्रथम विश्व युद्ध के समय जोधपुर शासक सुमेर सिंह थे
- सुमेर सिंह इस विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजो का सहयोग करते हुए फ़्रांस में मोर्चा संभाला
- इनके शासन काल में टेलीफोन सेवा का सर्वाधिक प्रचार-प्रसार हुआ
- उम्मेद सिंह (1918-1947 ई. ) ————-
- उम्मेद सिंह ने उम्मेद पेलेस का निर्माण अकाल राहत योजना के अंतर्गत करवाया
- उम्मेद पेलेस / छितर पेलेस ————-
- यह विश्व का सबसे बड़ा आवासीय भवन माना जाता है
- यह छितर पत्थरों से बना है
- उम्मेद भवन में कुल 343 कमरे है
- अकाल राहत कार्य के दौरान निर्माण हुआ
- निर्माण अवधि ————- 1928-1943 ई.
- वास्तुकार ————- जेकब स्विंटन
- घडियो का संग्रहालय है
- उम्मेद सिंह ने उम्मेद चिकिस्तालय का निर्माण करवाया
- इन्होने जंवाई बांध का निर्माण करवाया
- विशाल इमारतो के निर्माण के कारण उम्मेद सिंह को मारवाड़ का शाहजहा भी कहा जाता है
- उपनाम ————- आधुनिक मारवाड़ का निर्माता
- महाराजा हनवंत सिंह ( 1947-1949 ई. ) ————-
- जोधपुर का अंतिम शासक ————- हनुवंत सिंह थे
- राजस्थान के एकमात्र शासक हनुवंत सिंह थे जो मोहमद अली जिन्ना से मुलाकात कर पाकिस्तान में मिलना चाहते थे
- इन्होने भारत में विलेय पत्र पर हस्ताक्षर किये
- वृहद राजस्थान के निर्माण के समय जोधपुर के शासक हनुवंत सिंह थे
- हनुवंत सिंह के समय 30 मार्च 1949 ई. को जोधपुर रियासत का विलेय किया गया
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