बीकानेर का इतिहास : राठौड़ वंश Topik-35
बीकानेर का इतिहास — राव जोधा के आदेश पर राव बिका ने करणी माता के आशीर्वाद से बीकानेर राज्य की स्थापना की , बीकानेर को प्राचीन समय में जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाता था ,जांगल प्रदेश इसलिए कहा गया क्युकी यंहा जल व घांस की कमी तथा धुप की प्रबलता थी , राव बिका को बीकानेर के राठौड़ वंश का संस्थापक / आदिपुरुष व मूलपुरुष राव बिका को माना जाता है , राव बिका का शासन काल 1465-1504 ई. तक था , बीकानेर के शासको का राजतिलक गोदारा जाट परिवार द्वारा किया जाता था , आगे का बीकानेर का इतिहास निम्नलिखित है ———-
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बीकानेर का इतिहास
- बीकानेर को प्राचीन समय में जांगल प्रदेश के नाम से जाना जाता था
- जांगल प्रदेश का अर्थ होता है —— ऐसा क्षेत्र जंहा जल व घांस की कमी हो तथा धुप की प्रबलता हो
- बीकानेर राठोड वंश की कुलदेवी ———– नागणेची माता
- बीकानेर के राठौड़ वंश की आराध्य देवी ———– करणी माता
- राव जोधा के पुत्र सातलदेव एवं सुजा ने मारवाड़ राज्य का शासन किया
- राव जोधा के पुत्र बीरम और दुदा ने मेड़ता का शासन किया
- राव जोधा के पुत्र राव बिका ने बीकानेर में राठौड़ वंश की स्थापना कर शासन किया
- राव बिका ने 12 अप्रैल 1488 ई. को आखातीज ( वैशाख शुक्ल 3 ) के दिन रतिघाटी नामक स्थान पर बीकानेर शहर की स्थापना की
- राव बिका ने 1465 ई. में कोडमदेसर नामक स्थान पर बीकानेर राज्य की नीव रखी
- बीकानेर राजाओ का राज्यभिषेक पांडू गोदारा के वंशजो द्वारा किया जाता था
- राव बिका ( 1465-1504 ई. ) —————
- राव बिका को बीकानेर के राठौड़ वंश का संस्थापक / आदिपुरुष व मूलपुरुष राव बिका को माना जाता है
- राव बिका ने 1465 ई. में कोडमदेसर नामक स्थान पर बीकानेर राज्य की नीव रखी
- राव बिका ने 12 अप्रैल 1488 ई. को आखातीज ( वैशाख शुक्ल 3 ) के दिन रतिघाटी नामक स्थान पर बीकानेर शहर की स्थापना की
- प्रतिवर्ष आखातीज को बीकानेर स्थापना दिवस मनाया जाता है
- राव बिका , मारवाड़ के शासक राव जोधा के 5 वे पुत्र थे
- राव बिका ने जांगल प्रदेश पर अधिकार कर बीकानेर बसाया
- जांगल प्रदेश में जातो की 6 शाखाए उस समय शासन करती थी —–
- पुनिया
- गोदारा
- सारण
- असिंध
- बेनीवाल
- जोहिया
- सर्वप्रथम गोदारा जाट ने राव बिका की अधीनता स्वीकार की थी
- तथा बिका ने यह घोषणा की गोदारा जाट के 2 व्यक्तिओ द्वारा बीकानेर के राठौड़ शासको का राजतिलक किया जायेगा
- यंहा के जाट शासको ने बिका को धुंवा कर देना स्वीकार किया
- जांगल प्रदेश में जातो की 6 शाखाए उस समय शासन करती थी —–
- बीकानेर राजाओ का राज्यभिषेक पांडू गोदारा के वंशजो द्वारा किया जाता था
- बीकानेर राज्य की प्रथम राजधानी / प्रारम्भिक राजधानी————- कोडमदेसर थी
- राव बिका का प्रथम सैनिक अभियान————- जोहियो के विरुद्ध
- राव बिका का अंतिम सैनिक अभियान ————- रेवाड़ी ( हरियाणा ) में 1504 ई. में था
- करणी माता मंदिर ————-
- देशनोक ( बीकानेर )
- मन्दिर की नीव ————- राव बिका ने रखी
- करणी माता मन्दिर का आधुनिक निर्माता ————- महाराजा गंगासिंह
- करणी माता ने 151 वर्ष की आयु में घिनेरू की तलाई नामक दियात्रा गाँव ( बीकानेर ) में अपना देह त्याग किया
- इस स्थान पर करणी माता की गुफा बनी हुई है
- राव बिका ने बीकानेर के झंडे में खेजड़ी वृक्ष एवं जय जांगलधर बादशाह अंकित करवाया
- 1504 ई. में राव बिका की मृत्यू हुई
- नरा ( 1504-1505 ई. ) ————-
- यह राव बिका का पुत्र था
- नरा की जल्द ही म्रत्यु हुई
- राव लुणकर्ण ( 1505-1526 ई. ) ————-
- पिता ————- राव बिका
- माता ————- रंग कंवरी ( शेखा भाटी की पुत्री )
- उपाधि ————- कलयुग का कर्ण
- बिठू सुजा द्वारा रचित ग्रन्थ ————- जैतसी रो छंद में राव लूणकर्ण को कलयुग का कर्ण कहा गया
- जयसोम द्वारा रचित ग्रन्थ ————- क्रमचन्द्रकीर्तिनक में राव लूणकर्ण की दानशीलता का वर्णन किया गया है
- राव लूणकर्ण के समकालीन दिल्ली के शासक ————-
- सिकन्दर लोदी
- इब्राहीम लोदी
- राव लूणकर्ण ने हरियाणा के चायलवाडा ( सिरसा + हिंसार ) और फतेहाबाद पर अधिकार किया
- राव लूणकर्ण ने जैसलमेर के शासक राव जैतसी को पराजीत किया
- राव लूणकर्ण ने नागोर के शासक मुहमद खां को पराजीत किया
- राव लूणकर्ण ने अपनी पुत्री बाला बाई का विवाह आमेर के शासक पृथ्वीराज कच्छवाहा के साथ किया गया
- धोसी का युद्ध ————-
- 31 मार्च 1526 ई. में
- स्थान ————- हरियाणा
- यह युद्ध नारनोल ( हरियाणा ) के नवाब शेख अबिमिरा और राव लूणकर्ण के मध्य हुआ
- विजेता ————- अबिमिरा शेख
- इस युद्ध में लड़ते हुए राव लूणकर्ण वीरगति को प्राप्त हुए
- 1526 ई. में धोसी के युद्ध में शेख अबिमिरा से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
- राव लूणकर्ण के बाद राव जैतसी शासक बने
- राव जैतसीह ( 1526-1541 ई. ) ————-
- राव जैतसीह के समकालीन दिल्ली के शासक ————-
- बाबर
- हुमायु
- शेरशाह सूरी
- राव जैतसीह ने खानवा के युद्ध में राणा सांगा का साथ दिया था और अपने पुत्र कल्याणमल के नेतृत्व में सेना भेजी थी
- राव जेतसिंह के समकालीन लाहोर ( पाकिस्तान ) का शासक कामरान था
- कामरान ने भटनेर दुर्ग के स्वामी खेतसी को पराजीत किया
- भटनेर का युद्ध ( 1534 ई. ) ————-
- कामरान 1534 ई. में बीकानेर पर आक्रमण किया
- जेतसिंह बीकानेर का कार्यभार भोज रुपावत को सोंपकर सिरसा ( हरियाणा ) पंहुचे
- कामरान ने भोज रूपावत को पराजीत कर बीकानेर पर अधिकार किया
- इस युद्ध में कामरान की विजय हुई
- जेतसिंह सिरसा ( हरियाणा ) से अपनी सेना को संगठित कर 1534 ई. में रात्रिकालीन समय में कामरान की सेना पर आक्रमण कर बीकानेर पर पुन: अधिकार किया
- इस युद्ध की जानकारी ————-
- चोबिसी जी जैन मन्दिर के शिलालेख पर मिलती है
- बिठु सुजा द्वारा लिखित ग्रन्थ —– जैतसी रो छंद में मिलती है
- इस युद्ध की जानकारी ————-
- पाहेबा / साहेबा का युद्ध ————-
- 1541 ई. में हुआ
- स्थान ————- बीकानेर
- यह युद्ध राव जैतसीह और जोधपुर के शासक मालदेव के मध्य हुआ
- मालदेव के सेनापति जेता एवं कुंपा ने इस युद्ध में जोधपुर सेना का नेतृत्व किया
- इस युद्ध में लड़ते हुए राव जैतसीह वीरगति को प्राप्त हुआ
- विजेता ————- मालदेव
- इस युद्ध के पश्चात मालदेव ने बीकानेर पर अधिकार कर यंहा का कार्यभार कुंपा को सोंपा
- पाहेबा युद्ध में लड़ते हुए राव जैतसीह वीरगति को प्राप्त हुए
- राव जैतसीह के समकालीन दिल्ली के शासक ————-
- राव कल्याणमल राठौड़ ( 1544-1574 ई. ) ————-
- राव जैतसीह का बड़ा पुत्र था
- पाहेबा युद्ध के पश्चात जैतसीह के मंत्री नागराज ने कल्याणमल को सुरक्षित सिरसा ( हरियाणा ) पंहुचाया
- कल्याणमल ने 1544 ई. में गिरी सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की सहायता की
- गिरी सुमेल युद्ध के पश्चात 1544 ई. में ही शेरशाह सूरी की सहायता से कल्याणमल ने बीकानेर पर अधिकार किया
- 3 नवम्बर 1570 ई. को आयोजित नागोर दरबार में कल्याणमल अपने दोनों पुत्रो ( रायसिंह एवं पृथ्वीराज राठौड़ ) सहित उपस्थित हुआ और अकबर की अधीनता स्वीकार की
- कल्याणमल ने मुगलों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये ऐसा करने वाला बीकानेर का यह प्रथम शासक था
- कल्याणमल का पुत्र पृथ्वीराज राठौड़ साहित्यकार था
- अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को अपना दरबारी साहित्यकार नियुक्त किया
- अकबर ने पृथ्वीराज राठौड़ को गागरोंन का दुर्ग भेंट में दिया
- इसी गागरोंन दुर्ग में बैठकर पृथ्वीराज राठौड़ ने वेली किशन रुकमणी री ग्रन्थ की रचना की
- वेली किशन रुकमणी री ————-
- रचनाकार ——– पृथ्वीराज राठौड़
- भगवान श्री कृष्ण और रुकमणी के विवाह का वर्णन
- दुरसा आडडा ने इसे 5 वा वेद और 19 वा पुराण कहा है
- L.P. टेस्सीटोरी ने इसे डिंगल का हेरोइंस कहा है
- कल्याणमल के दुसरे पुत्र रायसिंह को अकबर ने दूसरी श्रेणी का मनसबदार बनाया
- 1574 ई. में कल्याणमल की मृत्यू हुई
- रायसिंह ( 1574-1612 ई. ) ————-
- अगले भाग में ————- Topik-36 में