प्राचीन सभ्यताएं : राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएं एवं प्रमुख पुरातात्विक स्थल Topik-40
कालीबंगा , आहड़ , बैराठ , गणेश्वर , बालाथल इत्यादि प्राचीन सभ्यताएं का उल्लेख निम्नलिखित है , राजस्थान के इतिहास को तिन भागो में विभाजित किया गया है प्राग-ऐतिहासिक , आद्द-ऐतिहासिक और ऐतिहासिक काल में बांटा गया , प्रमुख सभ्यताए -पाषाण कालीन , ताम्रयुगीन , कास्य युगीन , लोह युगीन इत्यादि निम्न प्रकार है ——-
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- राजस्थान इतिहास ———-
- प्राग-ऐतिहासिक काल स्थल ——
- इस काल के लिखित साक्ष्य उपलब्ध नही थे
- आद्द-ऐतिहासिक काल स्थल ——–
- इस काल के लिखित साक्ष्य तो उपलब्ध है लेकिन इन्हें पढ़ नही सकते
- लिपि : सर्पिलाकार / गो-मूत्र लिपि
- ऐतिहासिक काल स्थल ——-
- इस काल के लिखित साक्ष्य भी उपलब्ध है और इनको पढ़ा भी जा सकता है
- प्राग-ऐतिहासिक काल स्थल ——
- पाषण कालीन सभ्यता ————
- इस समय पत्थरों के ओजारो का प्रयोग होने के कारण इसे पाषण कालीन सभ्यता कहा गया
- यह तिन भाग में विभाजित है —-
- पूर्व पाषाण कालीन ———
- इस काल में मानव अग्नि से परिचित था
- लेकिन पहिये से परिचित नही था
- मध्य पाषाण कालीन ———-
- इस काल में मानव कर्षि व पशुपालन से परिचित था
- उतर पाषाण कालीन ———–
- इस काल में मानव पहिये से परिचित था
- पूर्व पाषाण कालीन ———
- ताम्र युगीन सभ्यता —————-
- इस युग में ताम्बे के ओजारो का प्रयोग होता
- कांस्य युगीन सभ्यता —————-
- इस युग में कांसे के उपकरण प्रयोग में लिया
- टीन व ताम्बा से कांसा बनाया गया
- लोह युगीन सभ्यता —————-
- लोहे के ओजारो का प्रयोग
- नोह ( भरतपुर )
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प्राचीन सभ्यताएं
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कालीबंगा —————-
- यह सभ्यता हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे स्थित है
- ऋगवेद में इस नदी को द्वेषवती नदी कहा गया
- इस नदी के अन्य नाम ——–सरस्वती नदी / नट आदि
- कालीबंगा सिन्धी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ ——– काली मिटटी की चुडिया
- कालीबंगा के बारे में सर्वप्रथम जानकारी देने वाला प्रथम व्यक्ती ——– L.P.टेस्सीटोरी ( इटली ) था
- इस बात की पुष्ठी करने वाला ——– ओरिन स्टिंन
- कालीबंगा का खोजकर्ता ——– अम्लानंद घोष ने 1952 ई. में की
- उत्खनन कर्ता ——– 1961-1969 ई.
- B.V.लाल ——–ब्रजवासी लाल
- B.K.थापर ——- बाल कृष्ण थापर
- कालीबंगा का काल ——– दो भागो में विभक्त है
- प्रथम काल ———– 2400-2250 ई. पु.
- दूसरा काल ———– 2250-1750 ई. पु.
- B.K.थापर ने रेडिओ कार्बन पद्दति ( C-14 ) से कालीबंगा का कालक्रम 2300 ई. पु. बताया है
- कालीबंगा सभ्यता का उपनाम ——– दिन-हीन सभ्यता
- डॉक्टर दसरथ शर्मा ने कालीबंगा सभ्यता को सेंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा है
- K.U.R. कैनेडी ने इस सभ्यता के विनाश का कारण संक्रामक रोग से माना है
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में खुदाई किया गया प्रथम पुरातत्व स्थल ——— कालीबंगा
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में खुदाई किया गया दूसरा पुरातत्व स्थल ——— रोपड़ ( पंजाब )
- 1961 ई. में कालीबंगा सभ्यता पर 90 पैसे का डाक-टिकट जारी किया गया
- कालीबंगा सभ्यता की सर्वप्रथम खुदाई 2 टीलो में की गयी ——– ——–
- पूर्वी टीला ———-
- इसे नगर टीला भी कहा जाता है
- यंहा से नगर के प्रमाण मिले है
- पश्चिमी टीला ———-
- इसे दुर्ग टीला भी कहा जाता है
- यंहा से गढ़ी के प्रमाण मिले है
- पूर्वी टीला ———-
- यह दोहरी प्राचीर युक्त स्थल माना जाता है
- कालीबंगा का 5 स्तर पर उत्खनन का कार्य किया गया
- यंहा से 2 सभ्यताओ के प्रमाण मिले है ——–
- हड़प्पा कालीन
- प्राक हड़प्पा कालीन
- प्राचीर में उतरी दरवाजा ——– उच्च वर्ग हेतु बनाया गया
- दक्षिणी दरवाजा ——– सामान्य वर्ग हेतु बनाया गया
- कालीबंगा से शवाधान की तिन पद्दतिया प्राप्त हुई है ——– ——–
- पूर्ण शवाधान पद्दति ——–
- इसमें आयताकार कब्र एवं कंकाल प्राप्त हुआ है
- कंकाल के साथ दैनिक जीवन में उपयोग की वस्तुए मिली जो पुनर्जन्म में विशवास को दर्शाती है अथार्त यंहा के लोग पुनर्जन्म में विशवास रखते थे
- आंशिक शवाधान पद्दति ———-
- इसमें गोल कब्र प्राप्त हुई है
- और इसके साथ भी देनिक उपयोग की वस्तुए प्राप्त हुई
- कलश शवाधान पद्दति ———–
- इसमें कलश एवं मानव अस्थिया प्राप्त हुई जो दाह संस्कार का प्रमाण है
- यंहा के लोग दाह संस्कार भी करते थे
- पूर्ण शवाधान पद्दति ——–
- कालीबंगा सभ्यता के अवशेष ——–
- दोहरे जुते हुए खेत का प्रमाण
- यंहा विश्व में सबसे प्राचीनतम जुते हुए खेतो के प्रमाण मिले है
- मिश्रित फसलो के प्रमाण ( गेहू,जौ )
- एक साथ दो फसलो के प्रमाण —–गेंहू व जो
- अन्य फसले ——–
- चावल
- कपास
- राई
- नारियल
- बाजरा
- चना
- सरसों
- निकटतम पाडा ( चने की फसल )
- विरलतम पाडा ( सरसों की फसल )
- 6 प्रकार के म्रदभांड मिले है
- अलंकृत ईंटो का फर्श
- कच्ची एवं पक्की ईंटे प्राप्त हुई
- दूमंजिला भवन के प्रमाण मिले
- समकोण पर काटती सडको के प्रमाण
- सोपान अथवा सीढ़िया
- नगर नियोजन पद्दति के प्रमाण
- जल निकास पद्दति ——–
- लकड़ी की नालियो के द्वारा जल की निकासी की जाती थी इसके प्रमाण मिले है
- शोषक कूप ——–
- गंदे पाणी को शोकने के लिए शोषक कूप के प्रमाण मिले है
- स्वास्तिक के प्रमाण मिले ——–
- स्वास्तिक चिन्ह होता है जो मांगलिक कार्यो का सूचक है
- 4 प्रकार की मुहरे प्राप्त हुई है ——–
- चोकोर
- आयताकार
- गोल
- बेलनाकार
- कालीबंगा का मेसोपोटामिया के साथ सम्बन्ध था इसका प्रमाण यंहा बेलनाकार मुहरे प्राप्त होना
- पशुओ के प्रमाण ——–
- ऊंट
- कुता
- गाय
- बैल
- भैंस
- बकरी
- यंहा का प्रिय जानवर ——— कुता था
- कालीबंगा से भूंकप के प्रमाण मिले है
- मकानों में दरारे पड़ी हुई
- ताम्र बैलगाड़ी ——–
- ताम्बे के पशु मिले
- म्धुच्छिस्ट पद्दति का प्रमाण
- छिद्रयुक्त बालक की खोपड़ी मिली
- इन छिद्रों से हाइड्रोसिफिलिस रोग की जानकारी
- यंहा पर शल्य- चिकित्सा का कार्य किया जाता था
- ईरानी तंदूर चूल्हा
- युग्म शव
- अग्नि कुंड प्राप्त हुआ
- अग्नि वेदिकाओ के प्रमाण मिले
- बली प्रथा का प्रमाण
- सिल बट्टा मिले
- माप-तोल के बाट मिले
- आभूषन
- धार्मिक जीवन ——– ——–
- आयताकार चबुतरे पर 7 अग्नि वेदिकाए प्राप्त हुई
- एक सिक्का मिला जिस पर एक तरफ महिला / देवी का चित्र अंकित था जो मात्रस्तात्त्मक परिवार का संकेत देता है
- इस सिक्के के दूसरी तरफ व्याघ्र / चिता का चित्र अंकित था
- दोहरे जुते हुए खेत का प्रमाण
- कालीबंगा कास्य युगीन सभ्यता का प्रमुख स्थल माना जाता है
- कालीबंगा से सिन्धु लिपि के प्रमाण मिले है
- सिन्धु लिपि ——–
- यह लिपि बाए से दाए और दाए से बाए अथार्त दोनों तरफ लिखी जाती है
- सिन्धु लिपि के अन्य नाम ——–
- बोस्त्रोफेदन लिपि
- सर्पिलाकार लिपि
- गोमुत्राकार लिपि
- भाव चित्रात्मक लिपि
- सिन्धु लिपि को पढने का प्रथम प्रयास वेडेंन ने किया था परन्तु इसे पढ़ा नही जा सका
- कालीबंगा से मिटटी के स्केल और पत्थर के बटखरे प्राप्त हुए
- यह बटखरे दशमलव पद्दति पर आधारित है
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आहड़ सभ्यता ———————
- उदयपुर
- यह स्थल आयड नदी / बेडच नदी / बनास नदी के किनारे स्थित है
- आयड नदी उदयसागर झील में गिरती है
- यंहा से निकलने के बाद आयड नदी को बेडच नदी कहा जाता है
- आहड़ सभ्यता के प्राचीन नाम ———
- ताम्र्वती नगरी
- आघाट पुर ( 11 वि शताब्दी में कहा )
- आघाट दुर्ग ( गोपीनाथ शर्मा ने )
- आहड़ सभ्यता के उपनाम —————
- बनास संस्कृति / आहड़ संस्कृति
- धिरज सांकलिया ने कहा
- मृतको का टीला
- बनास संस्कृति / आहड़ संस्कृति
- आहड़ सभ्यता का वर्तमान नाम ———- धुलकोट
- इस सभ्यता को स्थानीय भाषा में धुलकोट कहा जाता है जिसका अर्थ रेत का टिला होता है
- खोजकर्ता ———–
- अक्षय कीर्ति व्यास
- 1953 ई. में खोज की
- प्रथम उत्खनन ———-
- 1956 ई. में किया गया
- उत्खनन कर्ता — रतनचन्द्र अग्रवाल
- द्वितीय उत्खनन ————–
- 1961 ई. में किया गया
- उत्खनन कर्ता —– H.D. सांकलिया और V.N. मिश्र
- धुलकोट नामक स्थान पर व्यापक उत्खनन का कार्य किया गया
- P.C. चक्रवर्ती राजस्थान सरकार की तरफ से उत्खनन के समय उपस्थित थे
- आहड़ सभ्यता के अवशेष ——————–
- सर्वप्रथम आहड़ सभ्यता के प्रमाण आहड़ स्थान से प्राप्त हुए
- आहड़ सभ्यता में सर्वाधिक उत्खनन का कार्य धुलकोट टीले पर किया गया
- आहड़ सभ्यता लगभग 4000 वर्ष पुराणी है
- लाल व काले मरदभांड प्राप्त हुए
- म्रदभांड पकाने की उलटी तपाई विधि के प्रमाण मिले
- टेराकोटा पद्दति से निर्मित एक बैल के अवशेष प्राप्त हुए जिसे बनाशियन बुल की संज्ञा दी गयी
- आहड़ सभ्यता की खुदाई तिन स्तरों में की गयी ———-
- प्रथम स्तर ———
- स्फाटिक पत्थरों के अवशेष मिले
- ये ओजार बनाने वाले पत्थर थे
- द्वितीय स्तर ———-
- ताम्बे से निर्मित वस्तुओ के प्रमाण मिले
- ताम्बा गलाने की भट्टी
- ताम्बे के शस्त्र
- ताम्बे के आभूषन
- ताम्बे से निर्मित वस्तुओ के प्रमाण मिले
- तीसरा स्तर ———–
- लोहा के अवशेष प्राप्त हुए
- प्रथम स्तर ———
- आहड़ से 6 यूनानी मुद्राए एवं 3 मोहरे प्राप्त हुई ———-
- इन मोहरों पर एक तरफ यूनानी विद्वान अपोलो का चित्र अंकित था
- दूसरी तरफ त्रिशूल , तीर व तरकश अंकित था
- एक ही घर में 6 चूल्हे प्राप्त हुए ———-
- यह ग्रामीण सभ्यता थी जिसमे परिवार संयुक्त थे और सामूहिक भोज होता था
- इन चूल्हों पर महिला के हाथ के निशान मिले है
- कच्ची ईंटो से निर्मित मकान के प्रमाण मिले है
- आयताकार मकान
- ढलवा छते
- दिवार पर पलस्तर / लिपाई के प्रमाण मिले
- बजरी व मिटटी से बने फर्श का प्रमाण
- विशाल कक्ष को दो भागो में बाँटने की पद्दति का प्रमाण मिला
- ज्वार , चावल , गेंहू की फसल के प्रमाण मिले
- माणक , लडिया , हार और कानो के आभूषन इत्यादि आभूषन प्राप्त हुए
- गोर एवं कोठे ———-
- अन्न-भंडारण के पात्र
- इस सभ्यता में मिटटी से निर्मित अनाज संग्रहित करने के पात्र जिन्हें स्थानीय भाषा में गोर -कोठे कहा जाता था
- बिना हत्थे के छोटे जल-पात्र मिले
- इनकी समानता — ईरान / बलूचिस्तान से की गयी
- मिटटी से निर्मित दीपक के अवशेष प्राप्त हुए जो धार्मिक प्रवर्ती को दर्शाते है
- प्रमुख ताम्बे के उद्दोग मिले
- इन्हें पशुओ की जानकारी थी
- आहड़ सभ्यता के लोग कृषि से परिचित थे
- चार मानव मुर्तिया प्राप्त हुई
- अपोलो देवता और त्रिशुल अंकित मुद्राए मिली
- लहंगा पहने महिला की खंडित मूर्ति प्राप्त हुई
- गले हुए ताम्बे के ढेर मिले
- लोहे की 79 वस्तुए प्राप्त हुई
- ईरानी शेली की धुप्धानिया प्राप्त हुई
- तिन सभ्यताओ के प्रमाण मिले
- ताम्र युगीन सभ्यता
- कास्य युगीन सभ्यता
- लोह युगीन सभ्यता
- आहड़ सभ्यता का 8 स्तर पर उत्खनन का कार्य किया गया
- पुनर्जन्म में विशवास था
- आहड़ से 3 प्रकार की शवाधान पद्दतियो के प्रमाण मिले
- बैराठ सभ्यता ——————–
- अगले भाग में ——————–Topik-41 में