राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता : पाबूजी , रामदेवजी , गोगाजी , हडबूजी इत्यादि Topik-3
राजस्थान में पंच पीर – गोगाजी , रामदेवजी , पाबूजी , हडबुजी एवं मेहाजी मंगलिया थे , ये हिन्दुओ के 5 देवता जिन्हें मुसलमान भी पीर कहके पूजते इसलिये इन्हें पंच पीर कहा जाता , साधारण समाज में जन्म लेकर जिन्होंने अच्छे कार्य (गोरक्षा , महिलाओ की रक्षा ) करते हुए अपना बलिदान दिया हो लोकदेवता कहलाते है , राजस्थान के लोक देवता निम्नलिखित है ———
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- साधारण समाज में जन्म लेकर जिन्होंने अच्छे कार्य (गोरक्षा , महिलाओ की रक्षा ) करते हुए अपना बलिदान दिया हो , लोकदेवता कहलाते है
- झुंझार ———
- गोरक्षा करते हुए अपने प्राणों का त्याग किया हो
- खवी ———
- पितृ पूजा से ख्याति प्राप्त लोकदेवता
- खारा मामा ————-
- इनको जानवरों की बली दी जाती
- शराब का भोग लगता है
- मीठा मामा ————
- साधारण श्रेणी / साधारण भोग
- अवतार ———-
- रामदेवजी ——-भगवान श्री कृष्ण के अवतार
- पाबूजी राठोड—–भगवान लक्ष्मण के अवतार
- कल्ला जी राठोड ——- शेषनाग जी के अवतार
- सर्पदंश के ईलाज हेतु पूजे जाने वाले लोक-देवता ———
- गोगाजी चोहान
- वीर तेजाजी
- केसरिया कुंवर जी
- कल्ला जी राठोड
- हरिराम जी बाबा
- पीर ————
- ऐसे लोकदेवता जो सभी धर्मो में समान रूप से पूजे जाते है
- पंचपीर ———–
- हिन्दुओ के 5 देवता जिन्हें मुस्लिम समाज में पीर मानकर पूजते है उन्हें पंचपीर कहा जाता है
- रामदेव जी
- पाबूजी
- गोगाजी
- हडबू जी
- मेहा जी मांगलिया
- हिन्दुओ के 5 देवता जिन्हें मुस्लिम समाज में पीर मानकर पूजते है उन्हें पंचपीर कहा जाता है
1 गोगाजी —————-
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- जन्म ————— 943 ई.
- जन्मस्थान ———- ददरेवा ( चुरू )
- पिता ————— जेवर सिंह
- माता ————— बाछल दे
- जती —————- राजपूत
- गोत्र —————- चोहान
- पत्नी ———
- प्रथम विवाह ———-सुरियल ——–कजरीवन की पुत्री ( U.P.)
- दूसरा विवाह ——– केलम दे ——– बुढोजी राठोड की पुत्री
- गोगाजी के कुल 47 पुत्र थे
- गुरु ——————गोरखनाथ जी ( सर्पो की सिद्धि प्राप्त )
- सवारी ————— नीली घोड़ी ( गोगा बप्पा )
- मोसेरे भाई ———– अर्जन-सर्जन
- इनकी माता का नाम कांधल दे था
- प्रतीक चिन्ह ———– पत्थर की मूर्ति पर सांप का चित्रण
- धज्जा —————– सफेद रंग की
- गीत —————– छांवली
- पुजारी ————— चायल
- उपनाम ———–
- जाहरपीर ( महमूद गजनवी ने कहा ) इसका शाब्दिक अर्थ —-साक्षात् देवता
- राजा मंडूलिक
- जिंदा पीर
- सांपो के देवता
- गोगाजी का जन्म गोरखनाथ जी द्वारा दिए गये गूगल फल से हुआ था
- गोगाजी ने नागदेवता तक्षक को पराजित कर अपनी पत्नी कलम दे को पुन : जीवित करवाया था
- मोसेरे भाई अर्जन-सर्जन से जमीनी विवाद के कारण सांचोर ( जालोर ) नामक स्थान पर महमूद गजनवी ने इनकी गाये लुटी
- गोगाजी गायो की रक्षा करते हुए महमूद गजनवी के सामने वीरगति को प्राप्त हुए
- गोगाजी व गजनवी के युद्ध का वर्णन कवि मेह ने अपने ग्रन्थ ——रावसाल में किया है
- गोगाजी की शीर्ष मेडी ————-ददरेवा ( चुरू )
- गोगाजी की धुरमेडी ————— गोगामेडी ( नोहर )
- गोगामेडी—————
- गोगामेडी , नोहर
- निर्माण ——- फिरोज तुगलक
- आधुनिक निर्माता ——— बीकानेर महाराजा गंगासिंह
- गोगामेडी की आक्रति ————- मकबरेनुमा है
- मेला ———
- गोगानवमी ( भाद्रपद कृष्ण 9 )
- मेले में गोगा नृत्य का आयोजन होता है
- पुजारी को चायल कहते है —–
- पुजारी ——-11 माह ———मुस्लिम ( कायमखानी )
- पुजारी ——–1 माह ——— हिन्दू (मैहर -मेघवाल / भोपा )
- मुख्य दरवाजे पर बिस्मिल्ला शब्द अंकित
- कृषक खेत में बुवाई करने से पहले गोगाजी के नाम की हल और हाली ( किसान ) पर राखी बांधते है जिसे गोगा राखी / गोगा राखडी कहा जाता है
- गोगाजी की समाधि गोगामेडी में स्थित
- गोगाजी की शीर्ष मेडी ———-
- ददरेवा ( चुरु )
- इस स्थान पर नीली घोड़ी ( गोगा बप्पा ) का अस्तवल
- गुरु गोरखनाथ की प्रतिमा स्थित है
- गोगाजी की घोड़ी पर सवार प्रतिमा है
- गोरखाना तालाब स्थित है
- गोगाजी की ओल्डी ————
- किलोरियो की ढाणी , सांचोर
- निर्माण ——राजाराम कुम्हार
- इस स्थान पर गोगाजी की गाये गजनवी ने लुटी थी
- गोगाजी का थान प्रत्येक गाँव में होता है
- गोगाजी का थान खेजड़ी वृक्ष के निचे होता है
- इसलिए कहावत है ——-गाँव-गाँव खेजड़ी ,गाँव-गाँव गोगो
- गोगाजी के ज्येष्ठ पुत्र ——–केसरिया कंवर जी थे
- राजस्थान से बाहर गोगाजी की मान्यता हरियाणा , पंजाब , एवं हिमाचल प्रदेस में है
- गोगाजी को गुजरात में रेबारी जाती के लोग गोगा महाराज कहते है
- गोगाजी का प्रमुख वाध-यंत्र ———-डेरू
- डेरू —आम की लकड़ी से निर्मित
- 2 बाबा रामदेव जी ————
- जन्म ———— 1405 ई. / विक्रम संवत -1409 भाद्रपद शुक्ल 2 ( बाबे री बीज )
- जन्म स्थान ——–उन्डूकाश्मीर ( बाड़मेर )
- पिता ————-अजमल जी
- माता ————–मेणा दे
- पत्नी ————– नेतल दे ( अमरकोट , पाकिस्तान )
- बहिन ————- सुगना बाई , लाछा
- धर्म बहिन ——— डाली बाई ( मेघवाल जाती की )
- भाई ————– बिरमदेव ( बलरामजी का अवतार )
- गुरु ————— बलिनाथ जी ( बालिनाथ जी की गुफा —-मसुरिया पहाड़ी , जोधपुर )
- वंश —————अर्जुन वंशीय
- सवारी ————- लीला घोडा ( घोड़े का नाम -रेवंत )
- जाती ————– राजपूत
- गोत्र ————— तंवर
- समाधि ————-
- 1458 को
- रुनेचा ( जेसलमेर )
- भद्रपद शुक्ल एकादशी को
- रामदेवजी को श्री कृष्ण का अवतार मन जाता है
- उपनाम———–
- रुनेचा रा धणी
- रामसा पीर
- लिले घोड़े वाले बाबा
- साम्प्रदायिक सदभावना के लोकदेवता
- ठाकुरजी
- कुष्ठ रोग के निवारक देव
- पीरो का पीर ( मक्का के 5 पीरो ने पंचपिपली नामक स्थान पर कहा था )
- भारत का सबसे बड़ा लोकदेवता
- सहयोगी ———
- हरजी भाटी
- लक्की बंजारा
- रतना राइका
- रामदेवजी द्वारा किये गये महत्वपूर्ण कार्य ———–
- सातलमेर ( पोकरण ) नामक स्थान पर भेरव राक्षश का वध किया
- कामडिया पंथ की स्थापना की
- रामदेव जी ने रुनेचा में व्याप्त भेद-भाव को मिटाने के लिए जो आन्दोलन चलाया उसे कामडिया पंथ कहा जाता है
- इस पंथ की महिलाये रामदेवजी के मेले में तेरहताली नृत्य करती है
- शुद्धि आन्दोलन के प्रवर्तक
- शुद्धि आन्दोलन ———- जिन हिन्दू धर्म के लोगो को जबरन मुस्लिम बना दिया गया था रामदेवजी ने पुन: हिन्दू धर्म में दीक्षित करवाया जिसे शुद्धि आन्दोलन कहा जाता है
- इन्होने छुवाछुत का विरोध किया
- कुष्ठ रोग का निवारण
- पर्चा / चमत्कार के माध्यम से रामदेवजी ने लोगो के दुःख दर्द का निवारण किया
- रामदेवजी एकमात्र ऐसे लोकदेवता जो कवि भी थे
- इनका ग्रन्थ ——- ” चोबीस बाणीया ” ( इसे बाबा री पर्ची भी कहते है )
- यह ग्रन्थ सदुकड़ी भाषा में लिखा गया है
- रामदेवजी ने मूर्तिपूजा व तीर्थ यात्रा का विरोध किया
- इसी कारण इनके पग्ल्ये पूजे जाते है
- रामदेवजी ने पोकरण नामक स्थान अपनी बहिन सुगना बाई को दहेज़ में दिया था
- और रुनेचा की स्थापना की थी
- सुगना बाई का विवाह पूंगलगढ़ ( बीकानेर ) के शासक विजयसिंह के साथ हुआ
- मेला ————-
- भाद्रपद शुक्ल 2 से लेकर ———–भाद्रपद शुक्ल 11 तक
- रुनेचा ( जेसलमेर ) में भरता है
- इसे मारवाड़ का कुम्भ कहा जाता है
- भाद्रपद शुक्ल 2 को ——-बाबा री बीज कहते है
- भाद्रपद शुक्ल 11 को ——-समाधि ली थी
- समाधि ———-
- भाद्रपद शुक्ल दशमी / एकादशी के दिन
- रामसरोवर झील के किनारे जीवित समाधि ली थी
- यही पर 1 दिन पहले इनकी धर्म बहिन डाली बाई ने जीवित समाधि ली
- रिखिया ——
- रामदेवजी के मेघवाल समाज के भक्त रिखिया कहलाते है
रामदेव जी से सम्बन्धित शब्दावली ————
शब्दावली | विवरण |
---|---|
छोटा मन्दिर | थान / देवरा कहलाता है कदम्भ वृक्ष के निचे |
पगल्या | पदचिन्ह |
ताख / आलिया | पगल्या रखने का स्थान |
ध्वजा ( पंचरंगी ) | नेज्जा |
पैदल-यात्री | जातरू |
जयकारे | बादली |
जागरण | जम्मा |
गीत | ब्याव्ले सभी लोकदेवता में सबसे लम्बा गीत है |
गीत गाने वाले / भक्त | रिखिया |
घोडले | कपड़े का घोडा |
धागा | पातरी / फुल्डी |
आण | रामदेवजी की कसम |
पूजा-स्थल | विवरण |
---|---|
खुन्डियास | अजमेर राजस्थान का छोटा रामदेवरा |
सुरता- खेडा | चितोड़गढ़ |
बिरान्टिया | पाली |
कठोती | नागोर |
जूनागढ़ | गुजरात भारत का छोटा रामदेवरा |
मसुरिया पहाड़ी | जोधपुर |
रामदेवरा मन्दिर | रुनेचा / रामदेवरा ( जेसलमेर ) रामदेवजी का सबसे बड़ा मन्दिर पूजा ——पग्ल्ये पूजे जाते ध्वजा ——-नेजा ( 5 रंग की होती है ) |
- राजस्थान से बाहर रामदेव जी की सर्वाधिक मान्यता ——–गुजरात व मध्यप्रदेश में है
- रामसरोवर / रामदेव मन्दिर का आधुनिक निर्माता ——–बीकानेर के महाराजा गंगासिंह
- रामसरोवर के किनारे पर्चा बावड़ी है
- रामदेव जी का फड——–
- कामडिया जाती के भोपो द्वारा
- रावनह्त्था वाध-यंत्र के साथ बांची जाती है
- जेसलमेर , बीकानेर में सर्वाधिक प्रचलन
- रम्मत लोकनाट्य के प्रारम्भ से पूर्व रामदेवजी के भजन गाये जाते है
- राजस्थानी लोक साहित्य में रामदेवजी का गीत / भजन सबसे लम्बा / बड़ा है
- 3 केसरिया कुंवर जी ——————
- गोगाजी का ज्येष्ठ पुत्र
- मन्दिर ———-
- खेजड़ी वृक्ष के निचे
- सफेद धज्जा युक्त होता है
- सांपो के देवता
- इनके पुजारी मुख से जहर को चूसकर बाहर निकलता है
- पूजा स्थल ——–
- ददरेवा ( चुरू )
- ब्रह्मसर ( हनुमानगढ़ )
- मेला ——— भाद्रपद कृष्ण 8 को भरता है
- 4 मेहाजी मांगलिया —————–
- जन्म ——–14 वी सदी में
- जन्म स्थल / पूजा स्थल ——– बापीणी ( जोधपुर )
- पिता ———गोपाल राव सांखला
- गोत्र ———- सांखला
- जाती ——— राजपूत
- कर्नल जेम्स टॉड ने मेहाजी का गोत्र पंवार बताया है
- मेहाजी मांगलिया का घोडा ———- किरड़काबरा
- मेहाजी मांगलिया जेसलमेर के भाटि शासक रणगदेव से गायो की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
- मन्दिर ———–
- बापीणी गाँव ( जोधपुर )
- पुजारी ——मांगलिया राजपूत
- इस मन्दिर के पुजारी के वंश में कभी वर्दी नही होती है बल्कि पुत्र गोद लेकर वंश आगे बढ़ाते है
- मेला ——मेहाजी की अष्टमी ( भाद्रपद कृष्ण 8 )
- 5 पाबूजी —————
- जन्म —————1296
- जन्मस्थान ———- कोलुमंड गाँव ( जोधपुर )
- पिता ————— धांधल जी
- माता ————– कमला दे
- पत्नी —————
- फूलनदे / सुप्यार दे
- अमरकोट ( पाकिस्तान ) के सूरजमल सोढा की पुत्री
- जाती —————राजपूत
- गोत्र —————- राठोड
- सवारी ————– केसर कालवी ( घोड़ी )
- अवतार ———— लक्ष्मण जी का मन जाता है
- पाबूजी राठोड मारवाड़ में राठोड वंश के संस्थापक राव सिंहा के वंशज थे
- उपनाम —————-
- हाड-फाड़ के लोकदेवता
- प्लेग रोग का निवारक देव
- ऊँटो का देवता
- गोरक्षक देवता
- सर्रा रोग के निवारक देव
- ऊंट पालक जाती राइका / रेबारी के आराध्य देव
- प्रतीक चिन्ह ————-
- अश्वरोही
- हाथ में भाला
- झुकी हुई पाग
- मन्दिर —————– कोलुमंड ( जोधपुर )
- मेला ——————-
- चेत्र अमावश्या
- इस मेले में थाली नृत्य का आयोजन होता है
- पाबूजी के सहयोगी ————
- चांदा
- हरमल
- डेमा
- सलजी
- सावंत जी
- पाबूजी राठोड देवली चारणी की गायो की रक्षा करते हुए देंचु ( जोधपुर ) नामक स्थान पर अपने बहनोई जायल के शासक जींदराव खिंची के सामने 1276 में वीरगति को प्राप्त हुए
- पाबू प्रकाश——–
- यह ग्रन्थ पाबूजी की जीवनी है
- पाबू प्रकाश के रचयिता ओसिया मोडजी है
- पाबूजी ने सात थोरी भाइओ की रक्षा गुजरात के अन्ना बाघेला नामक शासक से की थी
- अत: थोरी /नायक जाती इनको आराध्य देव मानती है
- सभी लोकदेवताओ में सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ पाबूजी की है
- पाबूजी की फड़ का वाचन करते समय रावणह्त्था वाध-यंत्र बजाय जाता है
- एवं थोरी /नायक जाती के लोग फड का वाचन करते समय सारंगी वाध-यंत्र का प्रयोग करते है
- पवाडे / पवाडा ——–
- वीर पुरुषो की लोकगाथाए पवाडा कहलाती है
- पाबूजी के पवाडे पढते समय माठ वाध-यंत्र का प्रयोग करते है
- मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लेन का श्रेय पाबूजी को दिया जाता है
- ऊंट के बीमार होने पर लोकदेवता पाबूजी की पूजा की जाती है
- 6 हडबुजी ————-
- जन्म ————— भुंडेल गाँव ( नागोर )
- पिता ————— मेहाजी सांखला
- जन्म ————— 15 वी सदी में
- जाती ————— राजपूत
- गोत्र —————- सांखला
- गुरु —————- योगी बालीनाथ
- वाहन ————— सियार
- पूजा स्थल / समाधि स्थल ——— बेंगटी गाँव ( जोधपुर )
- जोधपुर शासक राव जोधा ने इन्हें गाड़ी एवं बेंगटी गाँव उपहार स्वरूप दिया था
- हडबुजी इस गाड़ी से पंगु गायो के लिए हर चारा लाते थे
- रामदेवजी और हडबूजी मोसेरे भाई थे
- हडबूजी ने रामदेवजी के 8 दिन बाद जीवित समाधि ली थी
- मन्दिर —————
- बेंगटी गाँव ( जोधपुर )
- निर्माण ——-
- 1721 में
- अजितसिंह
- हडबूजी के मन्दिर में बेलगाडी की पूजा की जाती है
- उपनाम ———–
- शकुन-शास्त्र के ज्ञाता
- गायो का सेवक देवता
- सन्यासी देवता
- अपंग / पंगु गायो के सेवक
- 7 देवनारायण जी —————-
- जन्म ————विक्रम संवत 1300 /सन 1243
- जन्मस्थान ——- मालेसर की डूंगरी , गोडा-दंडावता , आसींद (भीलवाडा )
- लालन-पालन ——- देवास ( मध्यप्रदेश )
- पिता ————— सवाई भोज
- माता ————— सेठु खटयाणी
- पत्नी —————-
- पीपल दे
- धार ( मध्यप्रदेश ) के शासक जयसिंह की पुत्री
- बचपन का नाम ————- उदयसिंह
- सवारी ———————- लिलागर ( घोडा )
- अवतार ——————— विष्णु के अवतार
- गीत ———————— बगडावत
- देवनारायण जी ने भिन्नाय शासक दुर्जनशाल की हत्या कर अपने पिता की मोत का बदला लिया एवं गोरक्षा की
- देवनारायण जी ने भिन्नाय शासक अपने भाई मेहंदु को बनाया
- देवनारायण जी को आयुर्वेद का जनक कहा जाता है
- इन्होने नीम की पतियों व गो मूत्र से ओषधि निर्माण किया
- सभी रोग के निवारक देव
- फड़ ———-
- देवनारायण जी की फड़ सबसे लम्बी व सबसे बड़ी फड़ है
- यह फड़ 30 फिट लम्बी व 5 फिट चोडी है
- सबसे छोटी फड़ भी देवनारायण जी की फड है क्युकी इस फड़ पर डाक टिकट जारी किया गया
- सर्वप्रथम 2 सितम्बर 1992 को देवनारायण जी की फड़ पर डाक टिकट जारी किया गया
- देवनारायण जी की फड़ का वाचन करते समय जंतर वाध-यंत्र का प्रयोग किया जाता है
- देवनारायण जी की फड़ का वाचन गुर्जर जाती के भोपो द्वारा किया जाता है
- राजस्थान में देवनारायण जी फड़ सबसे बड़ी और सबसे छोटी मणि जाती है
- देवनारायण जी के मन्दिर इंट व नीम की पतियों की पूजा होती है
- भोग के रूप में छाछ व दलीया चढाया जाता है
- देवनारायण जी पर फिल्म बनी ——–जिसमे देवनारायण जी का किरदार नाथुसिंह गुर्जर ने निभाया
- देवनारायण जी गुर्जर जाती के आराध्य देव
- इनकी मृत्यू देवमाली ,ब्यावर में हुई
देवनारायण जी के प्रमुख पूजा स्थल ———
पूजा स्थल | विवरण |
---|---|
गोठ-दंडावता , आसींद ( भीलवाडा ) | जन्म स्थल |
देवडूंगरी , चितोडगढ़ | मन्दिर निर्माण —-राणासांगा राणा सांगा के आराध्य देव — देवनारायण जी |
देवमाली , ब्यावर | समाधि स्थल / प्राणों का त्याग इस स्थान पर देवनारायण जी का मुख्य मेला भरता है भाद्रपद शुक्ल 7 को लगता है |
गुजरियावास | नागोर |
देवधाम | टोंक |
- 8 कल्लाजी राठोड ————
- जन्म ———
- विक्रम संवत –1601
- सन —-1544
- जन्म स्थान ———सामियाना गाँव , मेड़ता सिटी / ( नागोर )
- पिता ————– आसकरण राठोड
- माता ————– श्वेत कंवर
- गुरु ————— योगी भेरवनाथ
- पत्नी ————–
- कृष्णा /कृष्णदे
- शिवगढ़ शासक कृष्णदास की पुत्री
- उपनाम ———–
- चार हाथ वाले लोकदेवता
- दो सिर वाले लोकदेवता
- कणधम
- कल्याण
- केहर
- शेषनाग का अवतार
- केसर व अफीम का स्वामी
- कल्लाजी की छतरी ————– भेरव पोल , चितोडगढ़
- कल्लाजी का मंदिर ————– सामलिया गाँव , डूंगरपुर
- कल्लाजी की प्रधान पीठ ———-
- रुनेला / रवेला , उदयपुर
- यंहा कृष्णदे सती हुई थी
- आश्विन शुक्ल 9 को मेला भरता है
- प्रत्येक रविवार को छोटा मेला भरता है
- कल्लाजी राठोड के द्वारा गोयरा , पागल कुता , मानसिक रोग एवं भुत-प्रेत इत्यादी का निवारण किया जाता है
- कल्लाजी राठोड मेवाड़ महाराणा उदयसिंह के दरबार में थे
- जयमल इनके चाचा थे
- भक्त शिरोमणी मीरा बाई इनकी बुआ थी
- इनकी मूर्ति पर भीलो द्वारा केसर व अफीम चढाई जाती है
- अकबर के सामने चितोडगढ़ की रक्षा हेतु फ़रवरी 1568 को वीरगति को प्राप्त हुए
- जन्म ———
- 9 रूपनाथ जी / झरडा जी —————-
- पाबूजी राठोड के भतीजे थे
- हिमाचल प्रदेश में इनकी पूजा बालकनाथ के रूप में होती है
- जिंजराव / जींदराव खिंची की हत्या कर पाबूजी की मोट का बदला लिया था
- राजस्थान में इनके पूजा स्थल ————-
- कोलुमंड गाँव ( जोधपुर )
- नोखा ( बीकानेर )
- 10 वीर तेजाजी ——————
- जन्म ———————-
- विक्रम संवत -1130
- सन —1074ई.
- माघ शुक्ल 14 को
- जन्म स्थान ———————- खरनाल ( नागोर )
- पिता —————————- ताहड़ जी
- माता —————————- रामकुंवारी
- लालन-पालन ——————– बख्शो जी व सुगणा ने
- बहिन ————————– राजल , बुंगरी
- पत्नी —————————-
- पेमल दे
- पनेर ( अजमेर ) के रामचन्द्र जी की पुत्री
- विवाह स्थल ———————-नागधार ( पुष्कर )
- गुरु —————————– गुंसाई नाथ जी
- सवारी ————————– लीलण / सीणगारी
- खेत —————————- खाबडा / धोरा
- सरोवर ————————– गेंण तालाब
- गीत —————————- तेजाटेर
- कर्मस्थली ———————– बासी डूंगरी ( बूंदी )
- छोटा मन्दिर ——————— थान
- पुजारी ————————– घोडला
- जाती ————————–जाट
- गोत्र ————————– धोलिया
- वंश ————————– नागवंश
- उपनाम ————
- काला -बाला का देवता
- गोरक्षक देवता
- सर्पो का देवता
- कृषि उपकारक देवता
- अजमेर जिले के प्रमुख देवता
- राजस्थान के सर्वाधिक लोकप्रिय देवता
- मेला ———–
- वीर तेजा पशु मेला —–परबतसर ( नागोर )
- धार्मिक मेला ——– खरनाल ( नागोर )
- भाद्रपद शुक्ल 10 ( तेजा दशमी )
- नोट : गहलोत सरकार ने 2019 में तेजा दशमी पर राजकीय अवकाश की घोषणा की
- वर्ष 2011 में तेजाजी पर 5 रु का डाक टिकट जारी किया
- प्रतीक चिन्ह ——
- अश्वरोही
- हाथ में तलवार
- जीभ पर सर्प द्वारा डंक मारते हुए
- तेजाजी प्रथम लोकदेवता जिन्होंने सर्पदंश का ईलाज आयुर्वेद से किया
- सर्पदंश चिकित्शाल्य : भावता ( नागोर )
- यहा तेजाजी के भोपे शरीर से जहर अपने मुख से बाहर निकालते है
- सर्पदंश चिकित्शाल्य : भावता ( नागोर )
- सहरिया जनजाती तेजाजी को अपना इष्ट देव मानती है
- तेजाजी का फड़ वाचन करते समय रावनहत्था वाध-यंत्र का प्रयोग किया जाता है
- किसानो के आराध्य देव –तेजाजी
- पनेर ( अजमेर ) ——
- पेमल यही की थी अथार्थ तेजाजी का ससुराल
- यंहा पर तेजाजी के मन्दिर का पुजारी कुम्हार जाती का व्यक्ति होता है
- तेजाजी ने मणडावरिया ( अजमेर ) नामक स्थान पर मेर के मीणाओ को पराजित कर लाच्छा गुजरी की गाये आजाद करवाई
- लच्छा गुजरी पेमल की सहेली थी
- सेंदरिया-मसुदा ( अजमेर ) नामक स्थान पर तेजाजी को बासक नामक सांप ने डंक मारा
- सुरसुरा ( अजमेर ) नामक स्थान पर भाद्रपद शुक्ल 10 को तेजाजी वीरगति को प्राप्त हुए
- यही पर पेमल सती हुई
- जन्म ———————-
तेजाजी के प्रमुख मन्दिर ———
खंडवाल में ( नागोर ) | सिताबाड़ी ( बारा ) |
भांवता ( नागोर ) | बासी डूंगरी ( बूंदी ) |
परबतसर ( नागोर ) | बुढातित ( कोटा ) |
सेंदरिया ( अजमेर | ब्यावर |
पनेर ( अजमेर ) | सुरसुरा ( अजमेर ) |
- 11 तल्लिनाथ जी ———–
- इनका जन्म जोधपुर जिले के शेरगढ़ ठिकाने में हुआ
- शेरगढ़ ठिकाना ( जोधपुर ) के ठाकुर
- वास्तविक नाम ————–गांगदेव
- पिता ———————– बिरमदेव
- गुरु ———————— जालन्धर नाथ
- तल्लिनाथ जी का प्रमुख मन्दिर ——————-
- पंचमुखी पहाड़ी -पंचोटा गाँव ( जालोर )
- मन्दिर के आस-पास का खुला क्षेत्र ——-औरण कहलाता है
- प्रकृति प्रेमी लोकदेवता
- ये प्रथम लोकदेवता थे जिन्होंने वृक्ष काटने पर रोक लगाई थी
- जालोर जिले में किसी व्यक्ति को कोई जहरीला कीड़ा काटने पर तल्लिनाथ जी की तांती / धागा / डोरा बांधते है
- 12 मल्लिनाथ जी —————-
- जन्म ——————-
- विक्रम संवत —-1415
- सन ——-1358
- जन्म स्थान ————– तिलवाडा ( बाड़मेर )
- पिता ——————– राव तीडा जी ( सलखा जी )
- माता ——————– जीणा दे
- पत्नी ——————— रूपा दे
- रूपादे का मन्दिर मालाजाल गाँव ( बाड़मेर ) में है
- गुरु ———————- उगमसिंह भाटि
- उपनाम ———–
- त्राता ( रक्षक )
- चमत्कारी पुरुष
- सिद्ध लोकदेवता
- मालाणी का धणी
- 1378 ई. में मल्लीनाथ जी ने दिल्ली शासक फिरोजशाह तुगलक एवं मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन को पराजीत कर गोरक्षा की थी
- 1394 ई. में राव चुडा को मंडोर विजय में सहायता प्रदान की थी
- 1399 ई. में कुंडा पंथ की स्थापना की
- इनकी मृत्यू चेत्र शुक्ल 2 को हुई
- मारवाड़ क्षेत्र में इन्हें चेचक व बोदरी नामक रोग के निवारक देवता के रूप में पूजा जाता है
- मेला ———–
- मल्लिनाथ पशु मेला
- चेत्र कृष्ण 11 से चेत्र शुक्ल 11 तक
- लूणी नदी के तट पर
- राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला
- इस मेले में थारपारकर व कांकरेज नस्ल के पशुओ का सर्वाधिक क्रय-विक्रय होता है
- मल्लिनाथ पशु मेला
- मल्लीनाथ जी के नाम पर बाड़मेर क्षेत्र को मालाणी कहा जाता है
- जन्म ——————-
- 13 मामदेव —————
- बरसांत के लोकदेवता
- प्रतीक चिन्ह ——————- तोरण ( गाँव के बाहर खेजड़ी वृक्ष के निचे होता है )
- सवारी ———————— भेंसा / पाडा
- मामदेव को प्रसन्न करने के लिए भेंसे की बली दी जाती है
- मामदेव राजस्थान में एक विशिष्ठ लोकदेवता जिनका मन्दिर नही होता बल्कि काष्ठ का एक कलात्मक तोरण द्वार गाँव के बाहर होता है
- हरजीगाँव ( जालोर ) ——— मामादेव को मिटटी के घोड़े चढाये जाते है जो इस गाँव में बनते है
- 14 डुंगरजी-जवाहरजी ———-
- ये दोनों चाचा और भतीजा थे जो बाठोठ-पटोदा गाँव के जागीरदार थे
- जन्म —————————– बाठोठ-पटोदा ( सीकर )
- जाती —————————– शेखावत
- गोत्र —————————— कच्छवाह
- वास्तविक नाम ——————– बलजी-भुरजी
- इन्हें लूटपाट का लोकदेवता भी कहा जाता है
- जवाहर जी को इनके ससुराल झडवासा ( अजमेर ) से भेरोसिंह की सहायता से 1838 ई. में गिरफ्तार कर आगरा जेल में रखा
- 1846 में लोटिया जाट , करनीया मीणा , सांवता नाइ , सेफू भील इत्यादि की सहायता से आगरा जेल से भाग गए
- 1846 में सेवर ( भरतपुर ) जेल को लुटा
- 1847 में नसीराबाद छावनी को लुटा ( अजमेर )
- नसीराबाद से प्राप्त धनराशी से धनोप माता मन्दिर ( भीलवाडा ) का निर्माण एवं पुष्कर सीढियो का निर्माण करवाया
- इन्हें धाडवी / धडायती भी कहा जाता जिसका अर्थ —- काफिलो को लुटने वाला
- उपनाम ———–
- धाडवी / धडायती
- लूट-पाट का लोकदेवता
- रोबिनहुड
- शेखावाटी क्षेत्र के लोकदेवता
- 1857 के क्रन्तिकारी
- यह अमीरों व अंग्रेजो को लूटकर उनका धन गरीबो में बाँट देते थे इस कारण इन्हें रोबिन हुड कहा गया
- छावली गीत ———– डूंगरजी व जवाहर जी की आराधना में छान्वली गीत गाया जाता है
- 15 ईल्लो जी —————
- ये होलिका के पति थे
- राजस्थान में इन्हें छेड़-छाड़ का लोकदेवता माना जाता है
- सर्वाधिक मान्यता ———— जालोर , बाड़मेर , बालोतरा
- ईल्लोजी के मन्दिर में नगन आदमकद प्रतिमा लगी है
- ईल्लो जी द्वारा शरीर पर राख लगाये जाने के कारण होली के अगले दिन धुलंडी का त्यौहार मनाया जाता है
- ईल्लो जी जीवन भर कुंवारे रहे
- ईल्लो जी की सवारी————बालोतरा
- ईल्लो जी की बारात———— जालोर
- ये सवारी और बारात होली के अवसर पर आयोजित
- कुछ समय मातम में बदल जाती है
- बाँझ महिलाये सन्तान प्राप्ति हेतु ईल्लोजी की स्मृति में ईल्ला-ईल्ली नृत्य करती है
- 16 बिग्गा जी ——————-
- जन्म ——-रिडी गाँव ( बीकानेर )
- जाती ——जाखड
- मेला ——–
- 14 अक्टूबर
- बिग्गा गाँव ( डूंगरगढ़ )
- गोरक्षा करते हुए मुस्लिम आक्रंताओ के सामने राढेली जोह्डा में 1336 ( विक्रम संवत -1393) में युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए
- 17 पनराज जी ————
- जन्म ———–पनरासर – नग्गा गाँव ( जेसलमेर )
- तोतले बोलने वाले बच्चो के लोकदेवता
- ब्रहामणों की गायो की रक्षा करते हुए मुस्लिम आक्रांताओ के सामने वीरगती को प्राप्त
- मेला ———–
- भाद्रपद शुक्ल 10
- माघ शुक्ल 10
- 19 भोमिया जी ————-
- भूमि के रक्षक लोकदेवता
- भूमि रक्षक देवी —–दुर्गा माता है
- दक्षिणी राजस्थान में इन्हें क्षेत्रपाल के रूप में पूजा जाता है
- कुछ प्रमुख भोमिया —-
- नाहरसिंह भोमिया –जयपुर
- हरदिन भोमिया —नागोर
- सूरजमल भोमिया –दोसा
- लकड़ा भोमिया –जेसलमेर
- 20 झुंझार जी ———-
- ईम्लोहा गाँव ( सीकर )
- मन्दिर में ——-कुल 5 मुर्तिया है —–
- तिन भाई की + वर-वधु की
- रामनवमी को मेला भरता है
- मिर्गी रोग के निवारक देव
- 21 फता जी ——————–
- सांधू गाँव ( जालोर )
- ग्राम रक्षक देवता
- मेला —
भाद्रपद शुक्ल 9 को
- 22 भंवर बाबा —————
- नागला जहाज ( भरतपुर )
- भतुल्या / भभुल्या का देव
- 23 देव बाबा —————-
- नागला जहाज , भरतपुर
- ग्वालो के देवता
- मेला ——भाद्रपद शुक्ल 5-6
- गुर्जर – मीणा जाती के प्रमुख देवता
- 24 भूरिया बाबा ———-
- मीणा जनजाती के आराध्य देव
- मीणा जनजाति इनकी झूठी कसम नही खाती
- मुख्य मन्दिर ———
- अरनोद -प्रतापगढ़ ———
- मेला —– प्रतिवर्ष वैशाख शुक्ल 11 – ज्येष्ठ कृष्ण 2
- मुख्य मेला —– वैशाख पूर्णिमा
- मीणा जनजाति का लक्खी मेला
- नोट : राजस्थान का लक्खी मेला —–केलादेवी मेला ( त्रिकुट पर्वत , करोली ) में आयोजित होता है
- नागदा रेलवे स्टेशन , पाली ———–
- चोटिला / चान्दिला पर्वत —सिरोही
- यंहा सुकडी नदी प्रवाहित होती है जिसे गंगा की पावणी / गंगा पातित कहा जाता है
- मीणा जनजाति अपने पूर्वजो की अस्थिया यंहा पर विसर्जित करते है
- मेला ——–13 अप्रैल – 15 अप्रैल
- अरनोद -प्रतापगढ़ ———
- 25 हरिराम बाबा ———–
- जन्म ————————
- 1902 ई.
- विक्रम संवत —–1959
- पिता ———————— रामनारायण
- माता ————————चन्दणी देवी
- जन्म स्थान ——————- झोरडा गाँव ( नागोर )
- जहरीले जानवर के दंश का ईलाज मंत्रोच्चार से किया जाता है
- हरिराम बाबा का मन्त्र —————- कांटा कहलाता है
- हरिराम बाबा के मन्दिर में बम्बी की पूजा होती है
- सांप के बिल को बम्बी कहते है
- मेला ——– भाद्रपद शुक्ल 4-5
- जन्म ————————
- 26 वीर बावसी —————-
- प्रतापसिंह मंडेला के पुत्र
- गोडावड क्षेत्र में मान्यता
- प्रमुख मन्दिर ——- काला टोकरा गाँव
- मेला ————— चेत्र शुक्ल 5
- इन्होने गोरक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया
- इनके मेले में गुलाबी -बाब नृत्य का आयोजन होता है
- इस नृत्य में गणगोर एवं वीर बावसी की गाथाये गयी जाती है
- 27 आलम जी ————
- मूलनाम ————- जेतलमल राठोड
- पूजा स्थल ———— राडधोरा – ढोंगी नामक रेत का टिल्ला
- इसे आलम जी का धोरा भी कहते है
- मेला ——-भाद्रपद शुक्ल 2 को भरता है
- आलम जी का धोरा घोड़ी प्रजनन केंद्र के रूप में विख्यात है