राजस्थान की प्रमुख प्रथाए : दहेज़ प्रथा , सती प्रथा , समाधि प्रथा , पर्दा प्रथा इत्यादि Topik-6
अपने पति के साथ सती होना सती प्रथा कहलाता , त्याग प्रथा , समाधि प्रथा , बल विवाह प्रथा कन्या वध प्रथा आदि , प्राचीन समय में समाज में अनेक प्रकार की कुप्रथाए प्रचलित थी , इन प्रथाओ से समाज के निम्न वर्ग के लोगो का शोषण होता था ,जेसे — बंधुआ मजदूर प्रथा , बेगार प्रथा ,डाकन प्रथा ,दहेज़ प्रथा , पर्दा प्रथा , डावरिया प्रथा इन प्रथाओ से समाज का शोषण किया जाता ,राजस्थान की प्रमुख प्रथाए निम्नलिखित है ——-
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1 सती प्रथा ————
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- अन्य नाम ——सहमरण-प्रथा / सहगमन-प्रथा / अन्वारोहन प्रथा
- किसी महिला के पति की मृत्यू होने पर महिला द्वारा पति की चिता के साथ बैठकर मृत्यू के वरण प्राप्त कर लेना , सती प्रथा कहलाता है
- भारत में सर्वप्रथम सती होने के साक्ष्य 510 ईस्वी में एरन शिलालेख से प्राप्त हुए है
- राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई में बूंदी रियासत ने इस प्रथा को गेर-क़ानूनी घोषित किया
- 1823 में कोटा रियासत ने इस प्रथा को गैर-क़ानूनी घोषित किया
- सती निवारण अधिनियम – 1829——–
- लार्ड विलियम बेन्टिक के प्रयाशो से सती निवारण अधिनियम – 1829 पारित किया गया जो सर्वप्रथम बंगाल में लागु हुआ
- इस कानून को पुरे देश में 1830 में लागु किया गया
- इस अधिनियम के तहत राजस्थान में सर्वप्रथम अलवर रियासत में सती-प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा
- राजस्थान में सर्वप्रथम सती होने के प्रमाण 804 ईस्वी में घण्टियाल अभिलेख जोधपुर से प्राप्त हुए
- राजस्थान की प्रथम सती ———–जोधपुर सेनापति की पत्नी सम्पल कंवर
- राजस्थान की अंतिम सती ———–दिवराला गाँव (सीकर ) निवासी मालसिंह की पत्नी रूपा कंवर (1987ई)
- राजस्थान सरकार द्वारा सती निवारण अध्यादेश – 1987 पारित किया गया
- महा सती प्रथा —————
- पति की किसी निशानी के साथ सती होने वाली महिला
- राजस्थान की एकमात्र महासती ———-उमादे / रूठी रानी (1562 ई) मालदेव राठोड की पत्नी
- माँ-सती ————-
- अपने पुत्र की चिता के साथ जिन्दा जलने वाली महिला
- केसर कंवर (बीकानेर )
- नोट ———
- घेवर माता एकमात्र ऐसी महिला जो बिना पति के सती हुई
- घेवर माता का मन्दिर राजसमन्द में है
- अनख ——–
- सती होने से पहले महिला द्वारा अपने परिवारजनों को निर्देशित करना
- बाल-विवाह प्रथा ————–
- बाल- विवाह के विरुद्ध सर्वप्रथम 1929 ई में अजमेर निवासी हरविलास शारदा ने प्रयाश कर अधिनियम पारित करवाया जिसे शारदा – एक्ट कहते है
- शारदा – एक्ट ——–
- शारदा एक्ट 1 अप्रैल 1930 को पुरे देश में लागु किया गया
- इस कानून के तहत विवाह योग्य की न्यूनतम आयु —-
- लड़का -18 वर्ष
- लडकी -14 वर्ष
- शारदा – एक्ट में संसोधन -1978 ——-
- बाल-विवाह अंकुश निवारण अधिनियम 1978
- इसके तहत विवाह योग्य न्यूनतम आयु —-
- लड़का —-21 वर्ष
- लडकी —–18 वर्ष
- इसके तहत विवाह योग्य न्यूनतम आयु —-
- बाल-विवाह अंकुश निवारण अधिनियम 1978
- शारदा एक्ट में संसोधन 2006 ———
- बाल विवाह प्रतिषेद अधिनियम 2006
- यह अधिनियम 10 जनवरी 2007 को अधिसूचित हुआ
- लागु ——1 नवम्बर 2007 को
- बल विवाह रोकने हेतु कठोर नियमो का प्रबंध
- बाल विवाह प्रतिषेद अधिनियम 2006
- विधवा पुनर्विवाह ———–
- लार्ड डल्होजी ने विधवा महिलाओ को दुर्दशा से मुक्ति देने हेतु विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 बनाया
- विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856
- विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 ——-
- ईशवरचन्द्र विद्यासागर के प्रयाशो से लार्ड डल्होजी ने बनाया
- इस अधिनियम को जुलाई 1856 में लार्ड केनिग द्वारा लागु किया गया
- ईशवरचन्द्र विद्यासागर ने सर्वप्रथम अपने पुत्र का विवाह विधवा महिला के साथ करवाया
- विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देने हेतु चाँदकरन शारदा ने विधवा-विवाह पुस्तक लिखी
- समाधि प्रथा ———–
- समाधि 3 प्रकार की होती है —
- जमीन समाधि /भू-समाधि
- जल समाधि
- अग्नि समाधि
- इस प्रथा पर सर्वप्रथम 1844 ई में जयपुर रियासत रामसिंह 2nd ने रोक लगाई
- लुडलो के प्रयासों से समाधि निवारण अधिनियम 1861 पारित किया गया जिसके तहत जीवित समाधि को आत्महत्या मन जायेगा
- समाधि 3 प्रकार की होती है —
- कन्यावध प्रथा ————-
- इस कुप्रथा के अंतर्गत परिवार में पुत्री का जन्म होने पर उसे अफीम देकर या गला दबाकर मार दिया जाता था
- कन्यावध पर राजस्थान में सर्वप्रथम अंग्रेज अधिकारी होल ने मेरवाड क्षेत्र की मेर जाती की बैठक में इस प्रथा पर रोक लगाई
- 1833 ई में राजस्थान में सर्वप्रथम कोटा रियासत में इस प्रथा पर रोक लगाई
- कोटा के तत्कालीन शासक उम्मेदसिंह थे
- 1834 ई में बूंदी रियासत ने इस प्रथा पर रोक लगाई
- त्याग प्रथा ————–
- राजपूत समाज में विवाह के अवसर पर भाट , ढोली आदि के द्वारा मुह बोली दान-दक्षिणा के लिए हठ करते थे जिसे त्याग प्रथा कहा जाता था
- इस त्याग प्रथा के कारण कन्या का वध कर दिया जाता था
- सर्वप्रथम 1841 ई में जोधपुर रियासत ने इस प्रथा पर रोक लगाई
- 1844 ई बीकानेर एवं जयपुर रियासत ने भी इस प्रथा पर रोक लगाई
- 1888 ई में वाल्टरकृत राजपूत हितकारिणी सभा ने इस प्रथा पर नियम बनाये
- दहेज प्रथा ————–
- दहेज का अर्थ —— धन /सम्पति
- विवाह के अवसर पर वधु पक्ष के द्वारा वर पक्ष को जो धन / सम्पति दी जाती थी उसे दहेज़ कहा जाता था
- दहेज निवारण अधिनियम 1961 ई. में भारत सरकार द्वारा लागु किया गया
- इस कानून के तहत दहेज़ प्रथा को गैर क़ानूनी घोषित किया
- दास प्रथा ————–
- युद्ध के समय दुश्मन राज्य की महिलाओ व पुरुषो को बंदी बनाकर दास-दासी के रूप में रखना
- दास-प्रथा का सर्वप्रथम उल्लेख ——– कोटिल्य के अर्थशास्त्र में किया गया है
- दास-दासियों का निवास स्थल ——राजलोक होता था
- अकबर ने सर्वप्रथम इस प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास किया
- 1832 में लार्ड विलियम बेन्टिक ने इस प्रथा को गैर-क़ानूनी घोषित किया
- राजस्थान में सर्वप्रथम 1832 ई में कोटा रियासत ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था
- राजा द्वारा किसी दासी को उपपत्नी स्वीकार करने पर उसे पड़दायत कहा जाता था
- राजा द्वारा किसी दासी को अंगूठी / आभूषन पहनने की अनुमति देने पर उस दासी को पासवान कहा जाता था
- चारी प्रथा ————–
- पेसो के बदले लडकी के वैवाहिक ठिकानो को लगातार बदलते रहना
- इसका प्रचलन खेराड क्षेत्र -टोंक-भीलवाडा में था
- संथारा प्रथा ————–
- जैन धर्म से सम्बन्धित प्रथा
- अन्न व जल का त्यागकर अपने प्राण त्यागना
- समुद्रगुप्त ने इसी विधि से अपने देह का त्याग किया था
- पर्दा प्रथा ————–
- मुस्लिम आक्रंताओ की बुरी नजर से बचने हेतु मध्यकालीन इतिहास में इस प्रथा का प्रचलन
- इस प्रथा का सर्वाधिक विरोध स्वामी दयानंद सरस्वती ने किया
- बेगार प्रथा / हाली प्रथा ————–
- कुछ समय के लिए राज्य के दुर्ग , महल अथवा जमींदारो का कार्य बिना मेहनताना दिए करवाना
- बूंदी में महिलाओ से भी बेगार करवाया जाता
- बाधित श्रम पद्दति अधिनियम 1976
- साग्ड़ी प्रथा / बंधुआ मजदूर प्रथा ————–
- सेठ – साहुकारो द्वारा पेसे उधार देकर किसी व्यक्ति को कम मेहनताना में स्थाई रूप से अपने पास बंधक बनाकर कार्य करवाना
- इस प्रथा की रोक हेतु ——–सागड़ी निवारण अधीनीयम 1961
- आन प्रथा ————–
- राज्य व राजा के प्रति स्थाई स्वामिभक्ति की शपथ लेना
- 1863 ई में अंग्रेज अधिकारियो द्वारा इस प्रथा पर रोक लगाई गयी
- डावरिया प्रथा ————–
- इस प्रथा में राजा महाराजा व जागीरदारों द्वारा अपनी लडकी की शादी में दहेज के साथ कुछ कुंवारी कन्याए भी दी जाती थी
- नाता प्रथा ————–
- यह एक पुनर्विवाह का ही प्रकार है
- महिलाओ का क्रय-विक्रय ————–
- इस प्रथा को सर्वप्रथम कोटा रियासत ने 1831 ई में रोक लगाई
- महिलाओ की खरीद-फरोसत पर वसूला जाने वाला कर चोगान कहलाता था
- डाकन प्रथा ————–
- राजस्थान में डाकन प्रथा का सर्वाधीक प्रचलन मेवाड़ क्षेत्र में भील जनजाति में था
- किसी महिला में बुरी आत्मा का प्रवेश बताकर उसे मार दिया जाता या घर / गाँव से बाहर निकाल दिया जाता था
- इस प्रथा पर रोक M.B.C. (मेवाड़ भील कोर ) के कमांडर J.C.बुर्क ने 1853 ई में लगाई
- छेड़ा-फाड़ना प्रथा ————–
- भीलो में तलाक देने की एक प्रथा
- जगडा प्रथा ————–
- भीलो में तलाक देने की एक प्रथा
- कुकडी-रस्म प्रथा ————–
- विवाह से पहले लडकी को अपने चरित्र की परीक्षा देना
- इस प्रथा का प्रचलन सांसी जनजाति में था
- मोताना प्रथा ————–
- भीलो / आदिवासिओ में मोट का हर्जाना वसूलना
- दंड लगाये गये व्यक्ति अथवा उसके द्वारा दी गयी राशी को चढोतरा कहते है
- दापा प्रथा ————–
- आदिवासी समुदायों में वर पक्ष द्वारा वधु के पिता को दापा (वधु मूल्य ) देना
- आटा-साटा ————–
- आदिवासिओ में प्रचलित विवाह प्रथा जिसमे लड़की के बदले में उसी घर की लडकी को बहु के रूप में लेते है