राजस्थान में किसान आन्दोलन Topik-3
राजस्थान में किसान आन्दोलन के प्रमुख कारण — लगान , लाग-बाग एवं बैठ-बेगार थी , राजाओ द्वारा ठिकानेदार / जागीरदारों से जो भी कर वसूला जाता था उसका भार ठिकानेदारो द्वारा सीधा किसानो पर डाल दिया जाता था ,19-20 वि सदी में राजाओ का प्रभाव कम होने के कारण ठिकानेदारो द्वारा किसानो के खिलाफ दमनकारी निति का प्रयोग किया गया ,राजस्थान में किसान आन्दोलन का विस्तार निम्नलिखित है ———-
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राजस्थान में किसान आन्दोलन
- 1 बिजोलिया किसान आन्दोलन ——–
- बिजोलिया ( भीलवाडा )
- कारण ———- अत्यधिक कर एवं लाग-बागे
- बिजोलिया का प्राचीन नाम ——-विध्य्वल्ली/विज्यवल्ली
- मेवाड़ राज्य में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- आन्दोलन का प्रमुख कारण ——-
- 84 प्रकार के कर
- 74 लाग-बाग थी
- बिजोलिया ठिकाने का संस्थापक ———-अशोक परमार (गजनेर)
- खानवा युद्ध में महराना सांगा की सहायता करने पर बिजोलिया ठिकाना मिला था
- राजस्थान का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला आन्दोलन ———बिजोलिया किसान आन्दोलन
- भारत का प्रथम अहिंसक किसान आन्दोलन —————-बिजोलिया किसान आन्दोलन
- भीलवाडा के बिजोलिया से चितोडगढ़ के भेसरोड़गढ़ तक का भू-भाग उपरमाल क्षेत्र कहलाता है
- सर्वाधिक लम्बी अवधि तक चलने वाला किसान आँदोलन ——— बिजोलिया किसान आन्दोलन था
- 1897 ई. से लेकर 1941 ई. तक चला था
- आन्दोलन के समय ठिकानेदार ——— कृष्णसिंह
- बिजोलिया किसान आन्दोलन 3 चरणों में सम्पन्न हुआ ——-
- प्रथम चरण (1897-1916)————-साधू सीताराम दास
- द्वितीय चरण (1916-1927)————विजयसिंह पथिक
- तृतीय चरण (1927-1941)————जमनालाल बजाज
- 1 प्रथम चरण (1897-1916)———
- बिजोलिया के तत्कालीन ठाकुर ——-कृष्ण सिंह थे !
- इन्होने भुमिकरो में बढ़ोतरी की
- किसानो की कुल उत्पादन का 87% भाग करो में चला जाता था
- बिजोलिया में कुल 84 प्रकार के कर व लाग-बाग प्रचलित थी
- 1897 में गिरधारीपुरा गाँव में गोगाराम धाकड़ के घर मोसर के अवसर पर किसानो की सभा हुई
- किसानो ने 2 व्यक्तियों को कृष्ण सिंह की शिकायत लेकर महाराणा फतेहसिंह के पास उदयपुर भेजा
- नानजी पटेल
- ठाकरी पटेल को भेजा
- महाराणा ने बिजोलिया की जाँच हेतु हामिद हुसेन को भेजा जिसने किसानो के पक्ष में रिपोर्ट प्रस्तुत की
- कृष्ण सिंह ने नानजी और ठाकरी पटेल को देशनिकाला दिया
- कृष्ण सिंह द्वारा 1903 में चंवरी/न्योता/विवाह कर लगाया गया
- चंवरी कर — लड़की के विवाह पर 5 रु प्रति विवाह लिया जाता था
- इस कर के विरोध में किसानो ने भूमि को पडत छोड़ दिया अत इस कर को वापस लेना पड़ा
- 1903-04 ई. में किसान विवाह व खेती को बन्द कर ग्वालियर की तरफ कुच किया
- 1904 ई. में कृष्णसिंह व किसानो के मध्य समझोता हुआ जिसके तहत चंवरी कर समाप्त कर दिया गया और लगान को 1/2 के स्थान पर 2/5 कर दिया गया
- 1906 में कृष्ण सिंह की निसंतान मृत्यू के बाद कामा( भरतपुर ) के पृथ्वीसिंह बिजोलिया के ठाकुर बने
- पृथ्वीसिंह ने किसानो से उतराधिकार कर/तलवार बंधाई कर वसूल किया था
- 1914 में पृथ्वीसिंह की मृत्यू के पश्चात केसरी सिंह अल्प आयु में बिजोलिया के ठाकुर बने
- महाराणा फ़तेह सिंह ने अमरसिंह रानावत को केसरीसिंह का सरंक्षक नियुक्त किया
- अमरसिंह रानावत ने किसानो के पक्ष में रिपोर्ट प्रस्तुत की
- भूमिकर घटाकर 1/2 से 1/3 कर दिया था
- केसरीसिंह के समय ही किसानो से युद्ध कर वसूला गया
- साधू सीताराम दास ने प्रथम चरण का नेतृत्व किया
- ये बिजोलिया ठिकाने में पुस्तकालय अध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे
- इस पद का त्याग कर आन्दोलन का नेतृत्व किया
- बिजोलिया के तत्कालीन ठाकुर ——-कृष्ण सिंह थे !
- 2 दूसरा चरण (1916-1927) ———
- नेतृत्वकर्ता ——- विजयसिंह पथिक
- प्रचारिणी सभा के सम्मेलन के समय साधू सीताराम दास के आग्रह पर विजयसिंह पथिक ने बिजोलिया आन्दोलन का नेतृत्व स्वीकार किया
- विजयसिंह का मूल नाम ——– भूपसिंह
- विजयसिंह पथिक ने 1917 में उपरमाल पंचबोर्ड की स्थापना की जिसमे 13 सदस्य थे
- अध्यक्ष ———मन्नाराम पटेल
- माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से उपरमाल क्षेत्र में विद्यालयों की स्थापना की
- उपरमाल पंचबोर्ड / किसान पंचायत बोर्ड ————-
- 1917 ई. में विजयसिंह पथिक ने स्थापना की
- हरयाली अमावस्या के दिन स्थापित
- संस्थापक ——- विजयसिंह पथिक
- मुख्यालय ——- बैरिसाल गाँव
- कार्य ——— लगान एवं लाग-बाग़ का विरोध
- आर्थिक सहयोग ——
- जमनालाल बजाज
- हरिभाई किंकर
- सरपंच ——— मुन्नालाल पटेल
- सदस्य ———
- नानजी पटेल
- ठाकरी पटेल
- गोपाल निवास के नारायण पटेल ने सर्वप्रथम लाग-बाग देने से मना किया था तो नारायण पटेल को कैद किया गया
- नारा दिया ——— इन्हें छोड़ दो नही तो हमे जेल दो
- पथिक के आग्रह पर माणिक्यलाल वर्मा ने ठिकाने की नोकरी छोडकर आन्दोलन में भाग लिया
- पथिक ने उपरमाल डंका समाचार पत्र प्रकाशन किया
- पथिक जी के आग्रह पर गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप समाचार पत्र के माध्यम से इस आन्दोलन को राष्ट्रिय पहचान दिलाई
- बाल गंगाधर तिलक ने पुणा से प्रकाशित मराठा समाचार पत्र में भी बिजोलिया आन्दोलन पर लेख लिखा
- तिलक ने महाराणा फतेह सिंह को भी बिजोलिया किसानो के पक्ष में पत्र लिखा था
- विजयसिंह पथिक ने झंडा गीत की रचना की
- माणिक्य लाल वर्मा ने पन्छिडा नामक गीत की रचना की
- महाराणा द्वारा 1919 में बिन्दुलाल भट्टाचार्य आयोग का गठन किया गया
- अन्य सदस्य —-
- अमरसिंह
- अफजल अली
- इस आयोग को प्रथम आयोग के नाम से भी जाना जाता है
- इस आयोग द्वारा किसानो के पक्ष में रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी परन्तु इसे लागु नही किया गया
- अन्य सदस्य —-
- 1920 में द्वितीय आयोग का गठन किया गया जिसमे निम्नलिखित सदस्य थे
- रमाकांत मालवीय
- ठाकुर राजसिंह
- तख़्त सिंह मेहता
- 1919 ई. में विजयसिंह पथिक ने राजस्थान सेवा संघ की स्थापना वर्धा ( महाराष्ट्र ) में की थी
- 1920 ई. में पथिक जी ने राजस्थान केसरी समाचार-पत्र का प्रकाशन वर्धा ( महाराष्ट्र ) से किया था
- 1920 ई. में राजस्थान सेवा संघ का मुख्यालय वर्धा ( महारष्ट्र ) से अजमेर स्थानांतरित किया गया
- अजमेर से नवींन राजस्थान , तरुण राजस्थान , नव संदेश राजस्थान ईत्यादी समाचार-पत्र का प्रकाशन किया
- 1920 ई. में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में पथिक जी ने हजारो किसानो के नेतृत्व में धरना दिया
- 1920 ई. में ही पथिक जी की मुंबई में गांधीजी से मुलाकात हुई थी
- तत्कालीन AGG होलेन्ड ने 84 में से 35 लाग-बागे हटाने की घोषणा की
- 10 सितम्बर 1923 को विजयसिंह पथिक को बंदी बना लिया गया
- पथिक जी 1927 में जेल से मुक्त हुवे
- नेतृत्वकर्ता ——- विजयसिंह पथिक
- 3 तृतीय चरण (1927-1941)———-
- नेतृत्वकर्ता ———- जमनालाल बजाज
- बजाज ने अपना प्रतिनिधि ———–हरिभाऊ उपाध्याय को नियुक्त किया
- इस चरण में सर्वाधिक सक्रिय योगदान ——माणिक्य लाल वर्मा
- मेवाड़ के प्रधानमंत्री ,T.राघवाचार्य , अंग्रेज अधिकारी विलकिंन्सन तथा माणिक्य लाल वर्मा के प्रयासों से होलेन्ड की घोषणा को लागु किया गया
- AGG होलेन्ड की घोषणा —-84 लाग-बाग़ से 35 लाग-बागे हटाने की घोषणा
- तुलसी भील ने इस आन्दोलन में सूचनाओ के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- गांधीजी ने अपने निजी सचिव महादेव भाई देसाई को इस आन्दोलन की जाँच हेतु बिजोलिया भेजा था
- मुंशी प्रेमचन्द के उपन्यास रंगभूमि में जिस किसान आन्दोलन का उल्लेख है वह बिजोलिया से प्रेरित मन जाता है
- बिजोलिया किसान आन्दोलन में महिलाओ एवं बच्चो का नेतृत्व अंजना देवी चौधरी ने किया था
- 2 बेगू किसान आन्दोलन (1921-1923)————–
- कहा पर ———–चितोड़गढ़
- तत्कालीन ठाकुर ——-अनूपसिंह
- कारण —————-अत्यधिक कर व लाग-बागे
- नेतृत्वकर्ता ————रामनारायण चोधरी
- इस आन्दोलन का प्रारम्भिक केंद्र—– मेनाल के पास भेंरूकुंड नामक स्थान था
- आन्दोलन की शुरुवात —– 1921 ई. में
- प्रमुख सक्रिय संगठन —–राजस्थान सेवा संघ
- ठाकुर अनूपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के बिच 1922 में समझोता हुआ जिसे मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह ने बोल्शेविक समझोते की संज्ञा दी
- महाराणा फतेहसिंह ने अनूपसिंह को उदयपुर बुलवाया तथा उनके स्थान पर अमृतलाल को मुसरिम बनाकर बेगू भेजा
- ट्रेंच नामक अंग्रेज अधिकारी ने 1923 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे सभी करो को जायज ठहराया
- गोविन्दपुरा हत्याकांड ——–
- 13 जुलाई 1923 ई. को
- यह हत्याकांड ट्रेंच नामक अंग्रेज अधिकारी द्वारा करवाया गया
- इस हत्याकाण्ड में 2 किसान शहीद हुवे —–
- रुपाजी धाकड़
- कृपा जी धाकड़
- इस आन्दोलन के अंतिम भाग में विजयसिंह पथिक ने नेतृत्व किया अत 37 लाग-बागो को हटा दिया गया और यह आन्दोलन समाप्त हुवा
- 3 अलवर किसान आन्दोलन ———-
- तत्कालीन महाराजा ——–जयसिंह
- इन्होने 1922 में भूमि बन्दोबस्त किया जिसमे करो में बढ़ोतरी की गयी
- आन्दोलन का कारण ——
- भूमि करो में बढ़ोतरी करना
- जंगली सुअरों को मारने पर प्रतिबंध लगाना
- 6 मई 1925 ई. को अलवर में हथियार एवं जनसभा पर रोक लगाई
- 7 मई 1925 ई. को जयसिंह ने किसानो से वार्ता हेतु रामचन्द्र ओझा आयोग को निमुचना भेजा जो असफल रहा
- निमुचना हत्याकांड ——–
- कब हुवा ——–14 मई 1925 को
- निमुचना , अलवर जिले की बाणासुर तहसील में स्थित है
- यह कमांडर छज्जू सिंह ने गोलीकांड करवाया जिसमे 700 किसान शहीद हुए
- यहा महिलाओ का नेतृत्व सीता देवी ने किया
- गांधीजी ने अपने यंग-इंडिया समाचार पत्र में इस हत्याकांड को दोहरी डायर शाही कहा
- रियासत समाचार पत्र में इसकी तुलना जलीय वाला बाग़ हत्याकांड से की गयी
- निमुचना हत्याकांड की खबर क्षत्रिय महासभा द्वारा प्रकाशित समाचार-पत्र पुकार में छापी गयी
- राजस्थान का जनरल डायर ——— छ्ज्जूसिंह
- केंद्र सरकार द्वारा माणिक्य लाल कोठारी जाँच आयोग भेजा गया
- कुल शहीदों की संख्या —– 95
- कुल घायल हुए —- 250
- हत्याकांड के बाद जंगली सुअरों को मारने पर प्रतिबंध हटा लिया गया और करो में राहत दी गयी
- विश्वेदारी प्रथा —–
- इसके अंतर्गत किसानो को अपनी भूमि पर स्वामित्व प्राप्त था
- इजारा प्रथा ——-
- यह एक ठेकेदारी प्रथा थी जिसके कारण किसानो का सर्वाधिक शोषण हुआ
- अलवर रियासत में कुल क्रषि भूमि का 20% भाग जागीर भूमि और 80% भाग खालसा भूमि के अंतर्गत था
- तत्कालीन महाराजा ——–जयसिंह
- 4 मेव किसान आन्दोलन(1932-1937) ———
- कारण ——
- अत्यधिक कर व लाग-बाग़
- कुरान की शिक्षा पर रोक लगाना
- अलवर के तत्कालीन महाराजा ———-जयसिंह
- इनको देशनिकाला दिया गया
- नेतृत्वकर्ता ——-
- चोधरी यासीन खान
- मोहमद खा
- प्रमुख सक्रिय संगठन —–
- अजुमन-ए-खादिमुल-इश्लाम ( मोहमद शाही , 1932 ई. में स्थापना )
- अखिल भारतीय मुस्लिम लीग
- तणलिकी जमात
- लगभग 25 हजार मेव जाती के लोगो द्वारा अलवर शासक जयसिंह के विरुद्ध 1932 ई. में आन्दोलन प्रारम्भ किया गया
- यह आन्दोलन किसान की समस्याओ से शुरू होकर साम्प्रदाईक रंग लेते हुए समाप्त हुआ
- 1933 ई. में जयसिंह को यूरोप भेजा गया
- 1937 में कुरान की शिक्षा पर लगी रोक को हटा लिया गया
- 1937 ई. में पैरिस में जयसिंह की मर्त्यु के साथ यह आन्दोलन समाप्त हुआ
- कारण ——
- 5 बूंदी किसान आन्दोलन (1922-1927)——–
- आन्दोलन का कारण —— अत्यधिक कर व लाग-बाग़
- नेतृत्वकर्ता ——— पंडित न्यनुराम शर्मा
- आन्दोलन का प्रारम्भिक केंद्र ———बरड (बूंदी)
- प्रमुख सक्रिय संगठन ———राजस्थान सेवा संघ
- इस संगठन द्वार बूंदी राज्य में स्त्रियो पर अत्याचार नामक पत्रक प्रकाशित किया
- तरुण राजस्थान समाचार पत्र के माध्यम से इस आन्दोलन का प्रचार-प्रसार किया गया
- इस किसान आन्दोलन को बरड किसान आन्दोलन भी कहते है
- यह आन्दोलन रियासत के विरुद्ध न होकर प्रशासन के विरुद्ध था
- डाबी हत्याकांड (2 अप्रैल 1923 ) ———
- डाबी नामक गाँव में किसान सभा के दोरान पुलिश अधिकारी इकराम हुसेन द्वारा 2 किसान की गोली मारकर हत्या की गयी—
- नानक भील
- देवलाल गुर्जर
- इस समय इन दोनों किसानो द्वारा मंच पर झंडा गीत की प्रस्तुती दी जा रही थी
- इनकी शहादत पर माणिक्य लाल वर्मा ने अर्जी नामक गीत की रचना की
- डाबी नामक गाँव में किसान सभा के दोरान पुलिश अधिकारी इकराम हुसेन द्वारा 2 किसान की गोली मारकर हत्या की गयी—
- इकराम हुसेन द्वारा गोली चलाने के आदेश की जाँच हेतु पृथ्वीराज आयोग का गठन किया गया
- इस आयोग के सदस्य
- पृथ्वीराज ( अध्यक्ष )
- रामप्रताप
- भेरोलाल
- पृथ्वीराज आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इकराम हुसेन को निर्दोष बताया
- इस आयोग के सदस्य
- 10 मई 1923 ई. में न्यनुराम शर्मा को गिरफ्तार कर जेल में कैद किया गया
- महिलाओ व बच्चो पर अत्याचार के विरोढ में बूंदी किसान आन्दोलन में राजस्थान सेवा संघ ने बूंदी राज्य में महिलाओ पर अत्याचार नामक शीर्षक से पर्चे बंटवाए थे
- 1927 में राजस्थान सेवा संघ में विघटन के कारण यह आन्दोलन भी समाप्त हुआ
- 6 बीकानेर किसान आन्दोलन ———
- तत्कालीन महाराज ——-गंगासिंह
- आन्दोलन का कारण ——-अत्यधिक कर और सामन्ती अत्याचार
- बीकानेर के महाजन ठिकाने में किसानो पर सर्वाधिक अत्याचार हुए
- महाजन इस रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था
- जमीदारो ने किसानो के विरुद्ध जमीदार एसोसिएशन (1929) की स्थापना की जिसका अध्यक्ष ——दरबार सिंह को बनाया गया
- 1932 में देशद्रोह का आरोप लगाकर कार्यकर्ताओ को जेल की सजा दी गयी जिसे बीकानेर षड्यंत्र केस भी कहा जाता है
- इस आन्दोलन का क्रूरता से दमन किया गया जिसे आन्दोलन की भ्रूणहत्या भी कहते है
- 7 दुधवा खारा हत्याकांड ———
- तत्कालीन जागीरदार ——ठाकुर सूरजमल सिंह
- आन्दोलन के कारण ——किसानो को उनकी जोत से बेदखल करना
- नेतृत्वकर्ता ——–चोधरी हनुमान सिंह
- प्रमुख सहयोगी ——-मघाराम वेध
- मघाराम वेध ने इस आन्दोलन को राष्ट्रिय पहचान दिलाई
- काँगड़ कांड (1946) ——-
- यह वर्तमान में चुरू जिले की रतनगढ़ तहसील में स्थित है
- यहा किसानो की सभा पर अत्याचार हुआ
- यह महिलाओ के साथ भी बुरा व्यवहार किया गया
- काँगड़ में महिलाओ का नेतृत्व खेतु बाई ने किया
- 8 मारवाड़ किसान आन्दोलन (1923-1947)———-
- आन्दोलन का कारण ——
- माप-तोल का विरोध
- बिघोडी कर
- तिहरा शोषण
- अत्यधिक कर व लाग-बागे
- रियासत से मादा पशुओ के निष्कासन पर रोक हटाना
- आन्दोलन का नेतृत्वकर्ता ——-जयनारायण व्यास
- 1922 में मारवाड़ रियासत से मादा पशुओ के निष्कासन पर रोक हटा ली थी परन्तु विरोध के कारण सितम्बर 1923 में पुन रोक लगा दी गयी
- मारवाड़ रियासत क्षेत्रफल की द्रष्टि से राजपूताने की सबसे बड़ी रियासत थी
- यंहा कुल कर्षि भूमि का 87% भाग जागीर भूमि और 13% भाग खालसा भूमि थी अत सर्वाधिक तिहरा शोषण मारवाड़ रियासत में हुआ
- गनेशीलाल उस्ताद ने निम्नलिखित पुस्तको की रचना की ——
- गरीबो की आवाज
- बेकसों की आवाज
- इन्क्लाबे तराने
- महिमा देवी किंकर ने उतरदाई शासन नामक पुस्तक की रचना की
- 1938 में मारवाड़ कर्षक सुधारक मंच की स्थापना हुई
- 1941 में बलदेव राम मिर्धा की अध्यक्षता में मारवाड़ किसान संघ की स्थापना हुई
- यह संगठन रियासत समर्पित संगठन था
- डाबडा हत्याकांड (13 मार्च 1947 )——-
- डाबडा , डीडवाना के पास स्थित है
- मथुरादास माथुर के नेतृत्व में डाबडा में प्रजामंडल और किसान आन्दोलन का सयुंक्त सम्मेलन हुआ जिस पर डीडवाना व आस-पास के जागीरदारों ने अत्याचार किया इसमें 12 लोगो की मृत्यू हुई
- इस हत्याकांड के बाद करो में राहत दी गयी और आन्दोलन समाप्त हुआ
- 1949 में मारवाड़ टेनेंसी एक्ट पारित किया गया जिसमे किसानो को जोत के अधिकार प्राप्त हुए
- माप-तोल आन्दोलन (1920-1922)——–
- कहा पर ——-मारवाड़ में
- कारण——-100 टोला प्रति सेर से घटाकर 80 तोला प्रति सेर का माप करना
- नेतृत्वकर्ता —–चांदमल सुराना
- मंडोर किसान आन्दोलन ————
- 1930-1931 ई.
- यह आन्दोलन माली जाती के किसानो द्वारा किया गया
- चन्द्रावल घटना ————–
- 28-29 मार्च 1942
- इस घटना में 6 किसान शहीद हुए थे
- यह खबर हरिजन समाचार-पत्र में प्रकाशित की गयी
- महात्मा गाँधी जी ने इस घटना की जाँच हेतु श्री प्रकाश जाँच आयोग भेजा
- मारवाड़ क्षेत्र का प्रथम राजनैतिक संगठन ——– मरुधर मीत्र हितकारिणी सभा 1915
- मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना ———- 1921 ई. में चांदमल सुराणा द्वारा की गयी
- मारवाड़ हितकारिणी सभा ——– 1921 ई. में जयनारायण व्यास
- 1923 ई. में जयनारायण व्यास द्वारा पुनर्गठन किया गया
- अखिल भारतीय देसी राज्य लोक परिषद ——1927 ई. में
- कार्य —- उतरदाई शासन की स्थापना
- मारवाड़ देसी राज्य लोक परिषद ——- 1929 ई. में
- प्रथम बैठक 24 नवम्बर 1931 ई. को पुष्कर में हुई
- अध्यक्ष ——- चाँदकरण शारदा
- इस बैठक में कस्तूरबा गाँधी व केलकर ने भाग लिया था
- मारवाड़ किसान सभा का गठन 1941 ई. में नाथूराम मिर्धा द्वारा किया गया
- इसके प्रथम अध्यक्ष —- मंगलसिंह कच्छवाहा
- इस सभा का गठन एक साजिस के तहत हुआ ताकि यह सभा मारवाड़ लोक परिषद का विरोध कर सके
- 1945 ई. में मारवाड़ लोक परिषद व मारवाड़ किसान सभा ने मंडोर में एक साथ कार्य करना प्रारम्भ कर दिया
- मारवाड़ में खालसा भूमि के किसानो द्वारा 1931 में बिघेडी कर में वर्दी के विरुद्ध आन्दोलन चलाया गया
- 1934 में बिघेडी कर में कमी कर दी गयी और यह आन्दोलन समाप्त हुआ
- आन्दोलन का कारण ——
- 9 शेखावाटी किसान आन्दोलन —————
- आन्दोलन का कारण —-अत्यधिक कर और सामन्ती अत्याचार
- नेतृत्वकर्ता ————–रामनारायण चोधरी
- सीकर के ठाकुर कल्याणसिंह ने भूमि कर में डेड (1.5) गुना की वर्दी की जिससे आन्दोलन प्रारम्भ हुआ
- चोधरी हरलाल सिंह ने सीकर क्षेत्र में किसान पंचायतो का गठन किया
- 1921 में चिडावा सेवा समिति की स्थापना की गयी
- 1922 में प्यारेलाल गुप्ता ने चिडावा में श्री कृष्ण पुस्तकालय स्थापित किया जो जनजागरण का केंद्र बना
- प्यारेलाल गुप्ता ने खेतड़ी के प्याऊ आन्दोलन में भी सक्रिय योगदान दिया
- प्यारेलाल गुप्ता को चिडावा का गाँधी भी कहा जाता है
- भरतपुर के शासक ब्र्जेंद्र्सिंह के छोटे भाई देशराज ने पलथाना नामक स्थान पर जाट प्रजापति महायज्ञ(अप्रैल 1934 ) का आयोजन किया जिसमे 3.5 लाख से अधिक लोगो ने अपनी आहुतिया दी
- कटराथल महिला सम्मेलन (25 अप्रैल 1934 )——
- यह सम्मेलन किशोरी देवी के नेतृत्व में सीकर के पास कटराथल नामक स्थान पर हुआ
- इस सम्मेलन की अन्य प्रमुख महिलाये ——
- उतमा देवी
- रमा देवी
- दुर्गा देवी
- इसे राजस्थान का प्रथम महिला सम्मेलन माना जाता है
- इसमें 10 हजार से अधिक महिलाओ ने भाग लिया था
- जयसिंहपूरा हत्याकांड (21 जून 1934) ———
- इस हत्याकांड के आरोपी डूणडलोद के इश्वरीसिंह पर जयपुर रियासत में अभियोग चलाया गया
- इनको 18 माह की सजा दी गयी
- अगस्त 1934 में अंग्रेज अधिकारी W.T.वेब के माध्यम से किसानो और जागीरदारों के बीच समझोता हुआ परन्तु इसे लागु नही किया गया
- कुदन गाँव हत्याकांड ———
- अप्रैल 1935 में खुडी गाँव और कुदन गाँव हत्याकांड हुए
- कुदन गाँव हत्याकांड की चर्चा ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कोम्न्स में भी की गयी
- कुदन गाँव में निम्नलिखित किसान शहीद हुए
- चेतराम
- तुलछाराम
- टीकुराम
- आशाराम
- 1939 में नरोत्तम लाल जोशी द्वारा शेखावाटी में जकात आन्दोलन चलाया गया
- यह आन्दोलन करो में वर्दी के विरुद्ध था
- 1946 में हीरालाल शास्त्री के प्रयाशो से भूमिकर में कमी की गयी और यह आन्दोलन समाप्त हुआ
- 10 मेवाड़ जाट किसान आन्दोलन (1880) ————–
- 22 जुलाई 1880 ई.
- कारण ——किसान विरोधी शासकीय नीतिया और सामन्ती अत्याचार
- प्रारम्भिक स्थल ——–मातरकुंडिया (चितोडगढ़)
- इसे मेवाड़ का हरिद्वार कहा जाता है
- यह राजस्थान का प्रथम किसान आन्दोलन था
- उस समय मेवाड़ के महाराणा फतेहसिंह थे
- 11 राजगद आन्दोलन ———
- 1945 में चुरू की राजगद तहसील के किसानो ने सत्याग्रह किया
- इनके नेता स्वामी क्र्मानंद और चोधरी हनुमानसिंह की गिरफ्तारी पर तारानगर के किसानो ने विरोध प्रदर्शन किया
- 1946 में राजगद में एक बड़ा जुलुस निकला जिस पर पुलिश ने बर्बरतापूर्ण लाठीचार्ज किया
- 21 जून 1946 को महाराजा सार्दुल सिंह ने शीघ्र ही उतरदाई शासन की घोषणा की