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Indian polity

fundamental rights of india : मौलिक अधिकार Topik-1

पहले हमारे 7 fundamental rights ( 7 मौलिक अधिकार ) थे , वर्तमान में 6 fundamental rights ( 6 मौलिक अधिकार ) है , 1 सम्पति का अधिकार ( अनुच्छेद 31 ) को मौलिक अधिकार से हटा दिया गया , मौलिक अधिकार पर विस्तृत जानकारी निम्न लिखित है —–

fundamental rights of india

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fundamental rights of india : मौलिक अधिकार

  • परिभाषा ———–
    • ऐसे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के लिए मोलिक एवं अनिवार्य होते है तथा जो सविधान द्वारा नागरिको को प्रदान किये जाते है , उन्हें मौलिक अधिकार कहते है
      1. मौलिक अधिकारों का हनन होने पर उच्चतम न्यायालय उनकी रक्षार्थ याचिकाए जारी करता है
      2. मौलिक अधिकारों की अवधारणा ———– अमेरिका से ली गयी है
      3. भाग -3 को ———— भारतीय सविधान का मेगनाकार्टा कहा जाता है

भारत में सर्वप्रथम मौलिक अधिकारों की स्पष्ट रूप से मांग 1935 में जवाहरलाल नेहरु ने की थी

  • मौलिक अधिकार ( fundamental rights of india )—————————
    • भारत के सविधान के भाग – 3 में अनुच्छेद-12 से अनुच्छेद-35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है
    • भाग ———- 3
    • अनुच्छेद ——– 12 से 35 तक
      1. समानता का अधिकार
      2. स्वतंत्रता का अधिकार
      3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
      4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
      5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
      6. संवेधानिक उपचारों का अधिकार
  • 1. समानता ( समता ) का अधिकार ( Right of Equality ) ———————–
    अनुच्छेद ——– 14 से 18 तक
    1. अनुच्छेद – 14 ———
      1. विधि के समक्ष समता ( Equality before law ) एवं विधिओ का समान सरंक्षण ( Equal protection of laws )
    2. अनुच्छेद – 15 ———-
      • धर्म , मूलवंश ( race ) , जाति , लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद ( discriminaion ) का प्रतिषेद ( prohibition )
    3. अनुच्छेद – 16 ———–
      • लोक – नियोजन ( public employment ) के विषय में अवसर की समानता
    4. अनुच्छेद – 17 ————
      • अस्पर्श्यता ( untouchability ) का उन्मूलन
    5. अनुच्छेद – 18 ————
      • उपाधियो का अंत ( abolition of titles )

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  • 2. स्वतंत्रता का अधिकार ( Right of Freedom ) —————–
    अनुच्छेद ——– 19 से 22 तक
    1. अनुच्छेद – 19 ———
      • अभिव्यक्ति की सवतंत्रता सहित 6 अधिकार —–
        1 भाषण एवं अभिव्यक्ति की सवतंत्रता
        2. शांतिपूर्ण सम्मलेन का अधिकार
        3. संघ , संगठन या सहकारी समिति बनाने का आधिकार
        4. भारत में कंही भी अबाध संचरण का अधिकार
        5. भारत में कंही भी निवास का अधिकार
        6. कोई वृति ( profession ) व्यापार ( business ) आदि करने का अधिकार
    2. अनुच्छेद – 20 ———
      • अपराधो के लिए दोष – सिद्धि के सम्बन्ध में सरंक्षण
    3. अनुच्छेद – 21 ———
      • प्राण ( Life ) एवं दैहिक स्वतंत्रता ( personal Liberty ) का अधिकार
    4. अनुच्छेद – 21 ( क ) ———
      • प्राथमिक शिक्षा ( 6 – 14 वर्ष की आयु तक ) का अधिकार
    5. अनुच्छेद – 22 ———
      • कुछ दशाओ में गिरफ्तारी ( arrest ) और निरोध ( detention ) से सरंक्षण

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  • 3. शोषण के विरुद्ध अधिकार ( Right Against Exploitation ) —————–
    अनुच्छेद ——– 23 और 24
    1. अनुच्छेद – 23 ———
      1. मानव के दुर्व्यापार ( human trafficking ) ,
      2. बलात श्रम ( Forced labour )
      3. तथा बेगार का प्रतिषेद
    2. अनुच्छेद – 24 ———
      • कारखानों आदि में बच्चो के नियोजन का प्रतिषेद

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  • 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ( Right to Freedom of Religion ) —————–
    अनुच्छेद ——– 25 से 28 तक
    1. अनुच्छेद – 25 ———
      1. अंत:करण ( conscience ) की स्वतंत्रता और
      2. धर्म को अबाध रूप से मानने , आचरण और प्रचार ( propagates ) करने की स्वतंत्रता
    2. अनुच्छेद – 26 ———
      • धार्मिक कार्यो के प्रबंध की स्वतंत्रता
    3. अनुच्छेद – 27 ———
      • किसी धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर नही देने की स्वतंत्रता
    4. अनुच्छेद – 28 ———
      • कुछ शिक्षण संस्थाओ में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना ( worship ) में उपस्थित होने से स्वतंत्रता

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  • 5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार ( Cultural and Educational Rights ) —————–
    अनुच्छेद ——– 29 और 30
    1. अनुच्छेद – 29 ———
      • भाषा , लिपि और संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार
    2. अनुच्छेद – 30 ———
      • शिक्षण संस्थाओ की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गो ( minorities ) का अधिकार

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  • 6. संवेधानिक उपचारों का अधिकार ( Right to Constitutional Remedies ) —————–
    अनुच्छेद ——– 32
    1. अनुच्छेद – 32 ———
      • संवेधानिक उपचारों का अधिकार
    2. अनुच्छेद – 32 ( i ) ———
      • मौलिक अधिकारों का उल्लघंन होने पर उच्चतम न्यायालय इनकी रक्षा हेतु याचिकाए जारी करता है
    3. अनुच्छेद – 32 ( ii ) ———
      • इसमें उल्लिखित है की उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु 5 प्रकार की याचिकाए जारी करता है
      • सम्पूर्ण भारतीय क्षेत्र से कोई भी व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सीधे सर्वोच्च्य न्यायालय में अपील कर सकता है
    4. रिट जारी करने की शक्ति सर्वोच्च्य न्यायालय को अनुच्छेद – 32 के अंतर्गत प्राप्त है जबकि उच्च न्यायालय को अनुच्छेद – 226 के अंतर्गत प्राप्त है
  • अनुच्छेद – 32 ( संवेधानिक उपचारों के अधिकार ) को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ————— भारतीय संविधान की आत्मा और संविधान की प्राचीर कहा है

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  • प्रमुख रिट या प्रलेख ———–
    1. बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus ) ————-
      1. बंदी प्रत्यक्षीकरण का शाब्दिक अर्थ ——- सशरीर प्रस्तुत किया जाये
      2. यह रिट ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध की जाती है जिसने किसी व्यक्ति को अवेध रूप से निरुद्ध किया है
      3. इसके अनुसार न्यायालय निरुद्ध या करावासित व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित करवाता है
    2. परमादेश ( Mandamus ) ————-
      1. परमादेश का शाब्दिक अर्थ ——————– हम आदेश देते है
      2. इस रिट का प्रयोग ऐसे अधिकारी को आदेश देने के लिए किया जाता है जो सार्वजनिक कर्तव्यो को करने से इंकार या उपेक्षा करता है
      3. यह रिट राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरुद्ध जारी नही की जा सकती है
    3. प्रतिषेद ( Prohibition ) ————-
      1. प्रतिषेद का शाब्दिक अर्थ ————- मना करना या रोकना
      2. इसके अनुसार ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने से निषिद्ध किया जाता है , जो उसमे निहित नही है यह रिट सिर्फ न्यायिक या अर्द्धन्यायिक कृत्यों के विरुद्ध जारी की जाती है
      3. जिस तरह परमादेश सीधे सक्रिय रहता है , प्रतिषेद सीधे सक्रिय नही रहता
    4. अधिकार प्रच्छा ( Quo warranto ) ————-
      1. अधिकार प्रच्छा का शाब्दिक अर्थ ———– किसी प्राधिकृत या वारंट के द्वारा
      2. यदि किसी व्यक्ति द्वारा गैर वैधानिक तरीके से किसी भी पद को धारण किया गया हो तो न्यायालय इस रिट के माध्यम से उसके पद का आधार पूछती है
      3. अन्य 4 रिटो से हटकर इसे किसी भी इच्छुक व्यक्ति द्वारा जारी किया जा सकता है , न की पीड़ित द्वारा
      4. इसे मंत्रित्व और निजी कार्यालय के लिए जारी नही किया जा सकता
    5. उत्प्रेषण ( Certiorari ) ————-
      1. उत्प्रेषण का शाब्दिक अर्थ ———— सुचना देना या प्रमाणित होना
      2. उत्प्रेषण , प्रतिषेद के समान ही है क्युकी दोनों अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है किन्तु दोनों में मुख्य अंतर यह है की प्रतिषेद रीट कार्यवाही के दौरान कार्यवाही को रोकने के लिए जारी की जाती है जबकि उत्प्रेषण रिट कार्यवाही की समाप्ति पर निर्णय को रद्द करने हेतु जारी की जाती है
    6. जनहित याचिका / लोकहितवाद ————-
      1. लोगो के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा याचिका स्वीकार करना जनहित याचिका या लोकहितवाद कहलाता है
      2. लोकहितवाद जैसा शब्द संविधान में उल्लिखित नही है यह अवधारणा अमेरिका के संविधान से ली गयी है
      3. लोकहितवाद का जनक ————- पी. एन. भगवती ( भारत के 17 वे मुख्य न्यायाधीश )
      4. लोकहितवाद के सन्दर्भ में वी. आर. कृष्णन अय्यर का भी महत्वपूर्ण योगदान है ये उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश थे , ये एकमात्र व्यक्ति है जो व्यवस्थापिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तीनो के सदस्य रह चुके है
      5. एकमात्र व्यक्ति जो व्यवस्थापिका कार्यपालिका तथा न्यायपालिका तीनो के सदस्य रह चुके है ———- वी. आर. कृष्णन अय्यर
      6. S.P. गुप्ता बनाम भारत संघ ( 1982 ) के मामले में लोकहितवाद को भारतीय सन्दर्भ में परिभाषित किया गया

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  • सम्पति का अधिकार —————–
    अनुच्छेद ——– 3
    1 ( हटाया गया )
    सम्पति के अधिकार को मूल अधिकार से हटाया गया
    1. अनुच्छेद – 31 ( A ) ———
      • राज्य सम्पति को अधिग्रहित कर सकता है
    2. अनुच्छेद – 31 ( B ) ———
      • विधि को न्यायालय में चुनोती नही दी जा सकती
    3. अनुच्छेद – 31 ( C ) ———
      • अनुच्छेद – 39b व अनुच्छेद – 39c को मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी
    4. अनुच्छेद – 31 ( D ) ———
      • राष्ट्र विरोधी गतिविधिओ वाले कानून को न्यायालय में चुनोती नही दी जा सकती

 

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